मिल्कियत”/लघुकथा

कहाँ घुसे चले आ रहे हो?- सरकारी शौचालय के बाहर खड़े जमादार ने अंदर घुसते हुए भद्र को रोकते हुए कहा।

हाजत लगी है।”-भद्र पुरुष ने जवाब दिया।

तुम ऐसे चुपचाप नहीं जा सकते।”-जमादार ने प्रतिउत्तर में बोला।

अरे भाई हाजत क्या ढिंढोरा पीटकर जाऊँ?अजीब बात करते हो।”-भद्र पुरुष झुंझलाया।

मेरे कहने का मलतब है फोकट में नहीं जा सकते।”

क्यों भाई ये सरकारी शौचालय नहीं है?क्या ये किसी की मिल्कियत है।”

वो सब हमें नहीं मालूमसूबे के हाकिम का आदेश हैआज से हाजत का दस रुपया देना होगा। खुल्ला दस का नोट हो तो हाथ पर रखो वर्ना दफा हो जाओ।”

भद्र पुरुष का मरोड़ के मारे बुरा हाल था। एक हाथ से पेट पकड़ वह दूसरे हाथ से जेब टटोलने लगा।

मिल्कियत

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जनहित”

 

एक मास्टर थादूसरा वैज्ञानिक। दोनो ही अलमस्त। पहले ने मास्टरी छोड़ी तो दूसरे ने वैज्ञानिक के पद से इस्तीफा दे दिया। दोनो ही आला दर्जे के फक्कड़।

वैज्ञानिक महोदय नई खोज का जुनून पाले रहते तो मास्टर साहब उनके लिए फंड का जुगाड़ लगाते।
एक शाम को वैज्ञानिक महोदय मास्टर साहब के पास आयेबोले-” एक जबरदस्त खोज होने वाला है। एयर प्रेशर से टॉयलेट साफ करने का सूत्र हाथ लगा है। सैद्धान्तिक तौर पर कामयाबी मिल गयी। बस दो चीजों का इंतज़ाम करना हैएक सिलेंडर और दूसरा एक कमोड। लोहे का खाँचा बनाने मेंडाई बनाने में बड़ा खर्च आएगा। कुछ जुगाड़ लगाइयेताकि इस काम को अंजाम दिया जा सके।”

मास्टर साहब ने उन्हें अपने पुराने से स्कूटर पर बैठाया और रेलवे के ट्रेक पर ले आए और एक बॉगी के टॉयलेट में ले जाकर बोले-” इससे काम चलेगा?”

हाँ काम तो चलेगा लेकिन…..।”- वैज्ञानिक ने मानो कुछ कहना चाहा।

फिर ठीक है।”-कहकर मास्टर साहब ने कमोड उखाड़ने के लिए बारी से अभी पहला वार ही किया था कि रेलवे का चौकीदार आ धमका। आवाज सुन उसने दोनो को बोगी से उतारा और गरजकर बोला-” चोरी करते हो। अभी तुम्हें ठीक करता हूँ।”

वैज्ञानिक साहब को प्रोजेक्ट जेल में सड़ता नजर आया लेकिन मास्टर साहब ने बात संभाली-” देखिये कोतवाल साहबहम ये चोरी देश हित में कर रहे हैं। ये बहुत बड़े वैज्ञानिक हैं। अपने प्रयोग से कम पानी से धोने और साफ करने की सुविधा देने वाले हैं। आपके सहयोग से ये सब संभव हो सकता है। देश आपका ऋणी रहेगा।”

मास्टर साहब ने सौ का मुड़ा-तुड़ा नोट उसकी ओर बढ़ाकर पूरी योजना समझा दी।
चौकीदार को खुद को कोतवाल सुनना बेहद अच्छा लगा। उसने सौ का नोट अपने खाकी कोट की जेब में ठूंसते हुए थोड़ा डपटने के लहजे में कहा-” ठीक है – ठीक है। लेकिन खबरदार इस कमोड का उपयोग जनहित में ही होना चाहिए।”

 

नाम : संदीप तोमर
जन्म: ७ जून १९७५ (गंगधाडी, जिला मुज़फ्फरनगर उत्तर प्रदेश)
शिक्षा: एम्.एस सी(गणित) एम् ए (समाजशास्त्र व भूगोल) एम फिल (शिक्षाशास्त्र)
लेखन की विधाएँ: कविता, कहानी, लघु कथा, आलोचना
सम्प्रति: अध्यापन
प्रकाशित पुस्तकें: सच के आस पास (कविता संग्रह),

टुकड़ा टुकड़ा परछाई(कहानी संग्रह),

शिक्षा और समाज(लेखों का संकलन शोध-प्रबंध),
कामरेड संजय (लघुकथा),
महक अभी बाकी है(संपादन, कविता संकलन),
थ्री गर्ल्सफ्रेंड्स (उपन्यास)
# प्रारंभ, मुक्ति, प्रिय मित्र अनवरत अविराम इत्यादि साझा संकलन में बतौर कवि सम्मलित

 # सृजन व नई जंग त्रैमासिक पत्रिकाओं में बतौर सह-संपादक सहयोग,

# “हम सब साथ साथ”(मार्रून) में स्त्री-शक्ति विशेषांक का संपादन
पता: D 2/1 जीवन पार्क , उत्तमनगर, नई दिल्ली – 110059
मोबाइल नं: 8377875009
ईमेल :  gangdhari.sandy@gmail.com

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