Friday, October 11, 2024
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‘सुनो नीलगिरी’ पर चर्चा

दिल्ली की प्रतिष्ठित संस्था ‘अभिव्यक्ति’ की मासिक गोष्ठी 21 सितम्बर 2024 को हौज खास के सर्वप्रिय क्लब में संपन्न हुई| उल्लेखनीय है कि संस्था के सदस्य सभी सदस्यों को हर माह कोई एक किताब खरीद कर दी जाती है, सदस्य किताब की पढ़ते हैं, उसका विश्लेषण करते हैं| फिर उस कृति के लेखक को आमंत्रित कर उस पर विस्तार से चर्चा और समीक्षा की जाती है| इसी श्रृंखला में सितम्बर माह की चयनित कृति थी, शैली बक्षी खड़कोतकर का कहानी संग्रह ‘सुनो नीलगिरी’| 
संस्था के आमंत्रण पर शैली भोपाल से इस गोष्ठी में भाग लेने पहुँचीं| ख्यात कथाकार द्वय आकांक्षा पारे काशिव और नीलिमा शर्मा भी गोष्ठी में उपस्थित थीं| गोष्ठी का शुभारंभ संस्था की प्रार्थना से हुआ| सर्वप्रथम संस्था की अध्यक्ष रीता जैन ने लेखक परिचय दिया और सभी का स्वागत किया| शैली खड़कोतकर ने अपने रोचक उद्बोधन में अपनी लेखन यात्रा पर प्रकाश डाला| अभिव्यक्ति की सदस्याओं ने ‘सुनो नीलगिरी’ की सभी कहानियों पर विस्तार से चर्चा की और अपने प्रश्न लेखक के समक्ष रखे| शैली ने सभी जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए कहानियों की रचना प्रक्रिया साझा की| 

अभिव्यक्ति की ओर से बीना जी ने कहानियों की विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत की, जिसमें हर कहानी का गहन विश्लेषण किया गया| उन्होंने कहा कि दिल को छू लेने वाली ये कहनियाँ यथार्थवादी होते हुए भी कहीं नकारात्मक नहीं होती| लेखक की सच्चाई और सरलता कहानियों में झलकती है| वहीं रीता जी ने संग्रह की भाषा की सराहना करते हुए कुछ कहानियों के अंश पढ़कर सुनाए| निर्मला जी, उमा जी, आशा जी, संगीता जी की भी चर्चा में सार्थक सहभागिता रही, जिन्होंने कहानियों के विभिन्न पहलुओं पर बात रखते हुए को पूरे संग्रह को बेहद प्रभावी बताया| अंत में शैली ने कहा कि उनके माता-पिता, परिवार और मित्र उनकी लेखन की प्रेरणा हैं और पुस्तक का श्रेय भी इन्हीं स्नेहीजनों को जाता है| यह संगोष्ठी अत्यंत सफल और यादगार रही| साहित्य के क्षेत्र में ऐसी संगोष्ठियां होती रहना चाहिए|
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1 टिप्पणी

  1. “अभिव्यक्ति” संस्था के बारे में जानकर हमको बहुत अधिक अच्छा लगा। बहुत खुशी हुई। हम कल्पना नहीं कर सकते थे कि इस तरह का भी काम किसी संस्था द्वारा होता होगा। जो किताबें खरीद कर अपने समूह के सदस्यों को देता होगा और पढ़कर इसका विश्लेषण करना आवश्यक होता होगा। उसके बाद लेखक को बुलाना, चर्चा करना, सभी कुछ काबिले तारीफ है। इससे दूसरों को पढ़ने की आदत निरंतर रहती है।हमारी अपनी वैचारिक क्षमता बढ़ती है। पढ़ना, विश्लेषण करना, समीक्षा करना, चर्चा करना, सभी महत्वपूर्ण है दिमाग के लिए भोजन की तरह।
    जो रचनाकार होता है वह स्वयं का आंकलन इस माध्यम से बेहतरीन तरीके से कर सकता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जि आपके लेखन में और वैचारिक तथा बौद्धिक स्तर पर अपने आप को समझने और सुधारने का पर्याप्त मौका देती है।
    उसके बाद लेखक को बुलाना, चर्चा करना; सभी कुछ काबिले तारीफ है। इससे दूसरों को पढ़ने की आदत निरंतर रहती है, हमारी वैचारिक क्षमता बढ़ती है। पढ़ना ,विश्लेषण करना, समीक्षा, चर्चा करना ,सभी महत्वपूर्ण है, दिमाग के लिए भोजन की तरह।
    जो रचनाकार होता है वह भी स्वयं का आंकलन इस माध्यम से बेहतरीन तरीके से कर सकता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे वैचारिक तथा बौद्धिक स्तर पर आप अपने आप को समझ पाते थे हैं। आपकी अपनी कमियाँ और खूबियाँ, दोनों से ही आप रूबरू होते हैं और सुधार के साथ कलम में और निखार आता है।
    सुनो नीलगिरी कहानी संग्रह के लिए शैली जी को बहुत-बहुत बधाइयाँ।
    इस बेहतरीन जानकारी की प्रस्तुति के लिये नीलिमा शर्मा जी का बहुत-बहुत शुक्रिया।
    पुरवाई का आभार।

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