कविता, मानव मन की उन सोयी हुई तंतियों को छेड़कर सप्त सुर का सृजन करती है, जो जीवन के उतार चढ़ाव एवं  दैनिक संघर्ष के बीच संभवतः लुप्तप्राय की स्थिति तक पहुँच गई है| वैश्वीकरण की दौड़ में, तेज रफ्तार से चलती मानव जीवन में भी एक प्रकार की कुंठा दिखाई देती है| इस प्रतिक्रियात्मक गतिशील समाज में संबंधों की गहराई भी उस रेत से भरी हुई नदी के समान है जिसमें पानी का बहाव तो है पर गहराई का रहस्य नहीं, दूर दूर तक जिसकी सतह से एक विशालता का आभास तो होता है पर सागर से मिलकर एकाकार होने का सामर्थ्य नहीं है| 
शिथिल पड़ती हुई जीवन की गति को सक्रिय एवं सकारात्मक रखने के उद्देश्य से ही कवि समाज को अपनी रचनाओं से नई ऊर्जा प्रदान करते है| हिन्दी साहित्य जगत में ऐसे कई कालजयी रचनाकारों से हम परिचित है| समय के साथ रचनाकार, रचना एवं पाठक बदल जाते है| परंतु अगर कुछ नहीं बदलता है तो वह है परिस्थिति| इसलिए आज के रचनाकार ,सामाजिक मूल्यों का एहसास भी दिलाते हुए परंपरा की अदृश्य डोर से बंधे रहने का संकेत भी देते है| भारतीय समाज की अपनी मान्यताएं एवं संस्कृति है| समकालीन साहित्यकार इन्हीं मूल्यों का प्रतिपादन करते हुए भारतीय समाज एवं  नवीन पीढ़ी को सजग रखने का प्रयास कर रहे हैं|
समकालीन साहित्यकारों की श्रेणी में हरीश अरोड़ा एक ऐसे ही प्रतिभासंपन्न रचनाकार हैं जिनकी रचनाओं में जीवन, समाज एवं व्यक्ति को देखने का एक भिन्न दृष्टिकोण हैं| उनके कविता संग्रह “कैनवास से बाहर झाँकती लड़की” हिन्दी साहित्य का वह नवीन चित्रपट है जिसमें कवि ने कल्पना और यथार्थ के सम्मिश्रण से पाठकों के मन को रंग दिया है| कलम हो या तूलिका, उनके कैनवास में उकेरती वह हर लकीर, किसी न किसी रूप में संबंधों के मर्म को परिभाषित करती है| कवि के शब्दों में – ‘
मेरी कविता
आज भी ढूंढती है
जीवन का अर्थ –
उस जीवन का
जिसमें मैं हूं
और कविता
ढूंढती है
उस जीवन में
मेरे होने का अर्थ |
कविता “जीवन की लय” में कवि ने व्यक्ति से भी मूल्यवान उस जीवन को माना जिसमें हर स्पंदन का एक अर्थ होता है और कविता उस जीवन में व्यक्ति के होने का अर्थ ढूंढती है| कई मनुष्य अपने जीवन काल में स्वयं के बनाए सवालों के चक्रव्यूह में फंस जाते है| जीवन अपनी निर्धारित समयसीमा में व्यक्ति के बंद मुट्ठी से धीरे धीरे मुक्त होने लगता है| तो क्या दोष जीवन का है, समय का है या व्यक्ति के अपने अहं की है, जो जीवन की मधुर लय को सुन नहीं पाता? जिस लय को कवि ने ‘अभिव्यक्ति का सोता’ कहा है ,जिसमें आवेग,क्रोध, संघर्ष आदि सभी भावनाएं है| और उसके साथ जीवन का समर्पण भी है|  कवि के शब्दों में;
जिसमें हैं
खामोश आंखों से बहता
खारा जल|
सच तो ये है
कि जीवन का सौंदर्यबोध
मेरे होने से नहीं है
कविता तो
उस बहते खारे जल की
खामोशी में ही
ढूंढती है जीवन की लय| 2
जीवन को कविता के माध्यम से अभिव्यक्त करने के साथ साथ कवि ने अपनी कविताओं में प्रकृति, प्रेम एवं देशभक्ति की ओर भी पाठकों को आकर्षित किया है|
 कविता ‘गांव बहुत सुंदर होते है’ प्रकृति चित्रण का एक अनुपम दृष्टांत है| गाँव की सुंदरताको केवल प्रकृति तक सीमित न रखकर  उसमें रहने वाले लोगों के मन की निश्छल सुंदरता के साथ कवि ने जोड़ा है | वास्तविक रूप में संस्कृति का सजीव दर्शन हमें गांव में मिलता है| कवि ने बड़े ही सूक्ष्मता से गांव की मिट्टी से आने वाली महक को परंपरा की महक से एकाकार कर दिया| कच्चे मकानों में पक्के मजबूत रिश्तों का उदाहरण देकर कवि समाज और उसमें पनपती संबंधों के धागे में जैसे एक मजबूत गांठ लगा दी हो| उनका यह कहना कि 
गांव ही तो हैं
जो सच में मुसकुराते हैं,
लहलहाते हैं खेतों की तरह
उड़ते हैं बादलों की तरह
संभालते है रिश्तों को
बहते हैं झरनों की तरह 3
इस कविता में मानव सौन्दर्य समष्टिगत रूप से प्राकृतिक सौन्दर्य में विलय हो गया है|
हरीश अरोड़ा की कविताओं में प्रकृति चित्रण की तुलना किसी भी छायावादी कवि की रचनाओं के साथ किया जा सकता है| उनकी कविताओं में वे काव्य गुण परिलक्षित होते हैं| उनकी यह कविता पंत जी के प्रकृति चित्रण को मानस पटल पर सजीव बना देती है| और उस रचनाकार के दृष्टिकोण का भी आभास होता है जिनका ज्ञान भंडार असंख्य साहित्यकारों की रचनाओं के अध्ययन स्वरूप प्लावित हुआ है|
कवि के रचना संसार का एक भिन्न रूप उनके प्रेम प्रधान कविताओं में देखा जाता है| वेदना और संवेदना के उठते गिरते लहरों के बीच कही एक उदास मन की छवि भी दिखाई देती है| कविता कल्पना और यथार्थ के बीच की वह स्थिति है जहां पहुंचकर भावनाएं केवल अभिव्यक्ति का स्वर बन जाता है| किसी प्रेमिक के मन में अपनी प्रेमिका की छवि या उसकी कल्पना क्या हो सकती है? उसकी हंसी में मासूमियत, उसके स्वभाव में पवित्रता और उसके होने मात्र से परिपूर्णता का सुख, जिसे चाहने में कोई बाधा न हो, जो मन की उन गहराइयों में समायी हुई हो जिसे कभी देखा नहीं जा सकता केवल मन के किसी कोने में महसूस किया जा सकता है| 
कवि की दो रचनाएं ‘तुम्हारी आभा’ और ‘तुम्हारा प्रेम’ शृंगार रस से ओत-प्रोत दो ऐसी कविताएं हैं जिनमें बिंबों के माध्यम से प्रेमिका के सौन्दर्य का वर्णन किया है| वह सौन्दर्य पवित्रता से परिपूर्ण है| उनकी प्रेमिका वह संस्कारी नारी स्वरूपा है जिसमें भावनाओं की गहराई के साथ एक निश्छल निष्कपट हृदय भी है| उनकी प्रेमिका भी प्रकृति से अलग नहीं हैं| कभी कभी तो ऐसा लगता है मानो काल्पनिक जगत की वह नारी प्रकृति के हर तत्व में समायी हुई है| वह केवल शरीर नहीं एक सुंदर अनुभूति से रचा हुआ एक चित्र है|उनके शब्दों में 
तुम्हारा होना
जैसे
पवित्र ऋचाओं का होना
जैसे
ब्रह्मांड में लहराती
तारक-प्रभाओं का होना
जैसे होना
तुलसी के पौधे की
शुचिता का
जिसके
चारों ओर लिपटा हो
एक पवित्र धागा
जैसे
तुम्हारी आभा|
सौन्दर्य वर्णन की ऐसी उपमा विरल है| ऐसा लगता है मानो कवि ने अपनी कलम को छोड़कर एक तूलिका के हल्के स्पर्श से अपने काव्य संसार का निर्माण किया हो| 
कवि की रचना धर्मिता की पुष्टि करते हुए W.H.Hudsonके कथन पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए जिनके अनुसार –“The poetry of set description, in which the poet undertakes to do with his pen what the landscape painter does with his brush”.5 और जब इन कविताओं में व्याप्त कल्पना के सौन्दर्य को अनुभव करते हैं तब प्रसाद के काव्य गुण के विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित जो जाता है|
जयशंकर प्रसाद ने कल्पना के सौन्दर्य के लिए कहा है – “ आह, कल्पना का सुंदर यह जगत मधुर कितना होता|”6  कविताओं की शृंखला में सर्वाधिक मर्मस्पर्शी वे कविताएं हैं जिनमें कवि ने अपने माता पिता के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा को प्रकट किया है| संतान का व्यक्तित्व उनके अभिभावकों का प्रतिबिंब होता है| मनुष्य के चारित्रिक उदात्तता की पृष्ठभूमि में इन्हीं पारिवारिक मूल्यों की शक्ति है जो कालक्रम में उसे समाज का एक कर्तव्यपरायण व्यक्ति में रूपांतरित करता है| कवि की रचनाओं में ऐसे कई मूल्यों का संकेत हुआ है| कविता ‘पिता’ में कवि ने बालपन की स्मृतियों को शब्दों से भिगो दिया है| कविता ‘मिट्टी और माँ’ में मातृत्व की छांव खोजती हुई कवि का मन स्तब्धता की ओर उन्मुख सा प्रतीत हुआ है|  
माँ
रोज बुहार लेती थी,
मेरे दुःखों की मिट्टी
पर
न जाने कब
उस मिट्टी की धूल
बुहार ले गई
माँ को
पता ही नहीं चला|7
कवि की रचना शक्ति ईश्वरीय देन है| यह शक्ति उन लोगों को प्राप्त है जिनमें सूक्ष्म दृष्टि और सूक्ष्मतम भावों को महसूस करने की क्षमता हो|इस प्रकार की अनुभूति जगत से ही संवेदना का जन्म होता है और संवेदना की भूमि से नई चेतना अपने नन्हें पंख फहराकर उड़ने लगते हैं| कवि की संवेदनशीलता मानवों से लेकर प्रकृति तक दिखाई देती है|
कविता ‘पेट’ में भूख से पीड़ित लोगों के लिए संवेदना का भाव दिखाई देता है तो दूसरी ओर ‘आकाश पर टंगा चाँद’ भी सर्द रातों में उन गरीबों की व्यथा अभिव्यक्त करती है जो परिस्थिति के हाथों मजबूर है| 
कविता ‘आत्मकथा’ उन वृक्षों के प्रति संवेदना को परिभाषित करती हुई एक रचना है जिनसे कागज बनते हैं| उन पर लिखी कविताओं को गौण मानते हुए कवि ने सर्वप्रथम प्रकृति में उन असंख्य वृक्षों के प्रति अपनी चिंता व्यक्त की है जो पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाते हैं|
हरीश अरोड़ा की कविताओं की एक और विशेषता है उनमें गूंजने वाला एक विद्रोही स्वर| यह स्वर कही प्रखर तो कही परिस्थिति के साथ समझौता करता हुआ दिखाई देता है| लेकिन विद्रोह की आग में झुलसते एक नवयुवक की तड़प को अभिव्यक्ति का स्वर जरूर मिला है| कवि अपनी कई रचनाओं में समाज तथा उसके नियमों के विरुद्ध स्वयं एक प्रश्न चिन्ह बनकर खड़े होते हुए दिखाई देते है| कविता ‘ज़िंदगी’ में कवि लिखते हैं 
ज़िंदगी
शब्दहीन पहिए को उखाड़कर
लड़ती है बड़े-बड़े महायोद्धाओं से
अभिमन्यु की तरह
पर पराजित हो जाती है|8
राजनैतिक निर्णयों पर कवि ने अपनी उद्विग्नता प्रकट किया है| कविता ‘बंटवारा’ और ‘धार’ उस असंतुष्टि को व्यक्त करती है| यहाँ तक कि साहित्यिक जगत में भी कुछ विवादित प्रसंगों को लेकर कवि ने अपनी रचनाओं में उनपर पुनरचिन्तन करने के लिए पाठकों को प्रेरित किया है| कविता ‘तुम समझ ही नहीं पाए’ में कवि लिखते हैं –
तुम समझ ही नहीं पाए
मुक्तिबोध को
उसने कब कहा
सब कुछ है
अंधेरे में
उसने तो बस
तुम्हें दिखाया था
अंधेरे में
दूर कही उड़ता
एक रोशनी का परिंदा|9
इस संकलन की सभी कविताओं में अभिव्यक्ति के अलग अलग स्वर मुखरित हुए है| 
स्थान,काल और पात्र के अनुरूप इन कविताओं में शब्द का चयन सराहनीय है| प्रगतिवादी कविता धारा की शृंखला में एक दिन प्रवाहमान बनने की क्षमता से परिपूर्ण हरीश जी की कविताएं वर्तमान भारत में नारी सशक्तिकरण को भी अनछुआ नहीं जाने दिया| 
स्त्री के प्रति सम्मान की भावना और उससे जुड़ी दूरदृष्टि, जिसमें हर नारी स्वतंत्र होंगी| उन्होंने उन असंख्य लड़कियों के अदृश्य पंखों की कल्पना की है जिसके सहारे वे अभिव्यक्ति के आकाश में उन्मुक्त विचरण कर सकेंगे| जिस समाज में नारी स्वतंत्र हो वह समाज गतिशील, सृजनात्मक और उन्नत है| उनके शब्दों में 
लड़कियां
उड़ लेती हैं
बहुत ऊंचा
सपनों के आकाश में
इतना ऊंचा
कि आकाश की तरह
नाप नहीं सकता उसे
जबकि
दुनिया कहती है
लड़कियों के पंख नहीं होते|10
हरीश अरोड़ा की  कविताएं समकालीन दौड़ की वे कविताएं हैं जिसने मानव जीवन के उन हर पहलूयों को स्पर्श किया है जो एक मनुष्य अपने जीवन काल में अलग अलग परिस्थिति में महसूस करता है| उन भावों को अभिव्यक्ति का स्वर दे पाना ही उत्कृष्ट रचना का सूचक है| उनकी कविताओं में पुरुष मन का उद्वेग भी है और कोमलता भी| संबंधों को जीने वाले कवि ने अपनी हर कविता में उसे सर्वोपरि स्थान दिया|
‘कैनवास से बाहर झाँकती लड़की’ कवि के जीवन का बदलता समय है जो प्रकृति के नियमानुसार आगे बढ़ता चला जाता है| मगर मन या कल्पना का जगत समय के कांटों से बंधा नहीं होता| कैनवास की वह लड़की संभवतः वह ठहरा हुआ समय हो जिसे कवि भूलना नहीं चाहते या जिन्हें वे शब्दों में जीवित रखना चाहते है| इसलिए बाहर की दुनिया में भले ही सबकुछ बदल गया हो,पर कवि मन का जगत नहीं बदला| जैसे किसी पहाड़ी नदी के पानी पर झिलमिलाती सूरज की किरणें स्वर्णिम धागा जैसे प्रतीत होता है, कवि के ‘अस्पर्श स्पर्श’ से शब्द भी गीत बन जाते है| काव्य सौन्दर्य की दृष्टि से भी यह एक उत्कृष्ट श्रेणी की रचना है| ऐसी रचनाएं ही भविष्य में कालजयी रचना बन जाती है| 
संदर्भ सूची :
  1. हरीश अरोड़ा, कैनवास से बाहर झाँकती लड़की, पृ.सं 56 
  2. वहीं , पृ.सं 57
  3. वहीं , पृ.सं 37
  4. वही ,पृ.सं 24
  5. डॉ रामेश्वरलाल खण्डेलवाल,जयशंकर प्रसाद:वस्तु और कला, पृ सं 249
  6. वहीं पृ सं 324,
  7. हरीश अरोड़ा, कैनवास से बाहर झाँकती लड़की,पृ.सं 89
  8. वही ,पृ.सं 34
  9. वही ,पृ.सं 106
  10. वही ,पृ.सं 96
सहायक प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, माउंट कार्मल कॉलेज, स्वायत्त, बेंगलुरू संपर्क - koyalbiswas@gmail.com

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