इस डिजिटल क्रांति युग में जिस तरह  वर्क फ्रॉम होम की शानदार सुविधा शुरू हुई ही है। आजकल इंसान लड़ाइयां भी क्लेश फ्रॉम होम की तर्ज पर ही निपटाने में विश्वास करते हैं। वे जमाने गए जब लोग गलियों और सड़कों पर लठ लेकर लड़ते थे,औरतें आंगन और नल पर एक दूसरे के  बाल खींचती थी । बीच बचाव कराने वाले की भी स्पेशल भूमिका होती थी । आजकल बड़ा सिम्पल है लड़ना …घर बैठकर फेसबुक और वाट्सेप से ही बड़ी बड़ी लड़ाइयां लड़ी जा रही है|  डिजिटल लट्ठ से लेकर बंदूकें तक चल जाती हैं ।  
स्वार्थ और निजी आराम को तवज्जो देते लोगो के  खून का टेंपरेचर माइनस से नीचे  पर चल रहा है..कितनी भी बड़ी मुसीबत आए खून में उबाल आना नामुमकिन हो चुका है | बहुत असहनीय मुद्दा हो तो भी इन वीरों का खून  हल्का गुनगुना ही हो पाता है॥ एडवांस टेक्नोलोजी का पदार्पण के साथ गलियों में और मुहल्लों में होने वाला मनोरंजन बैडरूम तक जा पहुंचा  सो आज का इंसान बिस्तर पर पड़े पड़े ही ए के 47 चला कर दुश्मन को ढेर कर देता है।

ऑडियो /वीडियो और वीर रस से भरे मेसेज पढ़ कर लगता है.. अब तो दुश्मन की खैर नहीं..  अब तो गया पर ग्राउंड पर उपस्थिति जीरो ही रहती है । जातिवादी दंगे हों या मुहल्ले का कोई मेटर सब कुछ इधर ही सिलटा कर लोग प्रसन्न रहते हैं। इस डिजिटल क्रांति युग में घर घर क्रांतिकारी और देशभक्त पैदा हो चुके हैं जो कई बार पाकिस्तान को नेस्तनाबूत कर चुके हैं । चाइना को सबक सिखा चुके हैं।
इनकी बातें वीर रस के कवियों को भी पीछे छोड़कर आगे निकल जाती हैं । वाट्स एप के सोसायटी ग्रुप से  फेमिली ग्रुप युद्ध का मैदान बन चुके हैं  ..  जो लोग एक मक्खी तक मारने में आसमर्थ हैं वे फेसबुक ट्विटर को युद्ध का मैदान समझ तरह तरह की मिशाइलें दागने में व्यस्त है . इन सब वाट्सएप वीरों की कमजोरी का फायदा देश और समाज के नेता पूरी तरह से उठा रहे हैं और अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं | जो लोग तीतर बटेर या मुर्गी नहीं लड़ा पाते थे वो मुहल्ले वालों को लड़ा कर मजे ले लेते थे, वे आजकल ग्रुप्स पर तीली लगा कर पुरानी परंपरा को जीवित रखने का पुण्य कार्य कर रहे हैं |
भाई मतलब तो मनोरंजन से है  कोई भले ही लड़ लड़ के मार जाए हमारे आनंद में कमी नहीं होनी चाहिए इस सिद्धांत पे चल चल के घर घर जमालो पैदा हो गयी जो “ भुस में आग लगा के दूर हट जाती हैं  .. जिसे हम शालीन भाषा में लगाईं बुझाई करना कहते हैं…डिजिटल युग में कट पेस्ट और स्क्रीन शॉट जैसी चीजें लोगों के अंदर वीर रस के  प्रवाह को स्मूथ करने में काम आती हैं, ये बात और है कि उसका असर कुछ देर ही होता है दो चार गरमागरम मेसेज के बाद सब फुस्स हो जाता है . कितना भी नुकसान हो जाए कितनी भी बड़ी मुसीबत आ जाए पर इन  डिजिटल वीरों को  मोबाइल से बाहर निकालना असंभव है सो लगे रहो मुन्ना भाई

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