उसके पास ढेर सारी किताबें हैं देखी हैं मैंने उसके घर की अलमारियों में करीने से सजी किताबें । कुछ किताबों के भीतर से बाहर झाँक रही थी रंग–बिरंगी झंडियाँ- शायद उसने पढ़ी होंगी कुछ बेहतरीन रचनाएं जो झंडियों की सिटकनी से खुलती होंगी । लेकिन जब भी वो मुझसे मिलता है हमेशा की तरह उसके चेहरे पर होती है एक अजीब–सी कसक और गिनाता है अपनी सारी परेशानियों के कारण जो थे उसके तथाकथित प्रगाढ़ सम्बन्ध। समझ नहीं पाया आज तक उसे ढेरों किताबें पढ़कर भी क्यों नहीं पढ़ पाया आज तक चेहरे जो हर पल बदलते हैं अपना रंग आखिर मेरे चेहरे पर कौन–सा ठहरा हुआ रंग है जो अपनी तमाम परेशानियों के हल खोजता है वो मुझमें । उसे सीखना होगा ठहरे हुए रंगों को पढ़ना- कहीं ऐसा न हो हम भी चले जाएं एक दूसरे के जीवन से बिना एक–दूसरे की- चेहरे की किताब को पढ़े ।
2- विष बेल
तुम अभी सोए हुए हो ये जानते हुए भी कि धरती पर फैल रही है विष बेल बहुत तेजी से हर ओर गलियों में- बाज़ारों में- ऊंची–ऊंची इमारतों पर चढ़ती बड़ी–बड़ी मीनारों पर बिजली के खम्भों पर पीपल के पेड़ों पर विशाल बरगदों और चंदन वृक्षों के चारों ओर- नहीं छोड़ा उसने पवित्र तुलसी के पौधों को भी लगातार बढ़ रही है वो वक़्त देखे बिना सुबह की उठान पर दिन की तपन पर रात के अंधेरे में । अगर लड़ना है तुम्हें उस विष बेल के वजूद से तो उठना होगा तुम्हें आकाश की तरह- बिष बेल से भी ऊँचा और तोड़नी होगी उसकी ऊँचाई कतरने होंगे उसके पर काटनी होंगी उसकी भुजायें बंद करनी होगी उसकी खाद उतारना होगा तुम्हें आसमान से रोशनी का झरना जिसके पुंज से चैंधिया जायें उसकी आंखें और सिमट जाए उसका अस्तित्व ।
ओ कवि! इससे पहले कि वो जकड़ ले नदी कोµ उकेरनी होंगी अपनी कलम से शब्दों की तलवारें विचारों की कटारें और काटने होंगे विष बेल के हाथ- कहीं तुम्हारी चुप्पी फैला न दे ब्रह्माण्ड विविर में इसे ।
दुनिया के दरवाज़ों के भीतर बहुत अंधेरा है इसलिए लाना होगा तुम्हें ही सूरजमुखी की खुली मुस्कान को आकाशदीप से ओ कवि!
3 – स्त्री का काम
आखिर करती क्या है स्त्री ? दिन भर काम करने के बाद वक़्त–ही–वक़्त तो होता है उसके पास- नहीं ऐसा नहीं है- काम तो उसका तब शुरू होता है जब वह दिन भर के काम से मुक्त होती है और फिर याद करती है अगले दिन के काम- उसके काम का हिसाब सिर्फ वही जानती है ।
सभी कविता उत्कृष्ट है विशेषकर ‘स्त्री का काम’, हरीश सर को धन्यवाद और प्रणाम ऐसी रचनाएं लिखने के लिए तथा पुरवाई का आभार इसे पाठकों तक पहुंचाने के लिए।
अति उत्तम पाठकों के मन को छू लेने वाली
बेहतरीन अभिव्यक्ति हरीश जी