बिस्तर पर एक औरत की लाश पड़ी थी.इंस्पेक्टर ने कमरे का जायजा लेना शुरू किया.दस बाई दस के इस कमरें में एक छोटी सी खिड़की थी.जिस पर एक मोटा परदा डला था. इंस्पेक्टर लाश के नजदीक पहुंच ठिठक गई. बेड़ के पास एक डायरी गिरी हुई थी.उसने कांस्टेबल को इशारा कर डायरी अपने पास मंगवाई और पन्ने पलटने लगी. उन पन्नों में लिखी कहानी इंस्पेक्टर की आँखों के सामने चलचित्र की तरह चलनी लगी.
1 जनवरी, 2007
थैंक्यू अब्बू इस सुंदर डायरी के लिए.
बुशरा मलिक
मकान नंबर-दस,गोल मस्जिद, करीमगंज.
3 जनवरी-2007,
ठीक तो कहता है फैजल कि मैं खूबसूरत हूँ.मुझे फिल्मों में होना चाहिए.आज उसकी बात सुनकर पहली बार इतने गौर से खुद को आईने में निहारा.
सुन डायरी,तू तो मेरी दोस्त है ना!इसलिए तुझे आज अपने दिल की बात बताती हूँ.फैजल मुझे बेइंतहा मोहब्बत करता है लेकिन बताता नहीं.सब जानती हूँ मैं.मुझे जलाने के लिए रूखसाना से बातें करता रहता है जैसे कि मैं सच में जलूँगी… हुंउ..
मुझे तो मुम्बई जाना है.मौका देखकर अब्बू से बात करूंगी लेकिन तब तक यह बात अपने दिल में छिपाए रखना।समझ गई ना!
चल अब सोती हूँ.
5 जनवरी, 2007
अब्बू ने आज मुझे बहुत डाँटा.बस इतना ही तो कहा था कि मुझे ऑडिशन देना है मॉडलिंग के लिए.अब्बू कहते हैं कि यह काम शरीफ घरानों की लड़कियों के लिए नहीं है.अब्बू यह क्या बात हुई भला!आप इतने पढे लिखें हैं फिर भी ऐसी बातें करते हैं.आप तो बिल्कुल दकियानूसी नहीं थे!मैं एक दिन मुम्बई जरूर जाऊंगी और देखना अब्बू आपको अपनी बुशरा पर नाज होगा.
10 जनवरी, 2007
आज जन्मदिन है मेरा.अब्बू ने मुझे सोने के झुमके दिए हैं तोहफे में.बहुत प्यार करते हैं मुझे मेरे अब्बू।फैजल ने मेकअप बॉक्स दिया है।छिपा लिया मैंने.कोई देख लेता तो!अल्लाह.. तुफान आ जाता.
14 फरवरी 2007
तूझे पता है?आज फैजल ने मुझे आई लव यू कहा.मुझे बहुत शर्म आई।चार महीने हो गए हैं फैजल को हमारे शहर में नौकरी करते।बता रहा था कि मुम्बई में घर है उसका.
मुझसे कहता है कि मुझे हिरोइन बनायेगा, चाहे कुछ भी करना पड़े.कह रहा था कि तुम्हारे लिए खुद को भी गिरवी रख दूंगा लेकिन तुम्हारा ख्वाब जरूर पूरा करूंगा…पागल है सच में.
ऐसे भी कोई इश्क करता है क्या!
20 मार्च 2007
आज फिर अम्मी से बात करने की कोशिश की कि अब्बू को समझाए.लेकिन मेरी बात तो हिमाकत लगती है सबको.कह रही थी कि उन्नीस साल की हो गई हो अब निकाह करके रूखसत कर देंगी घर से.
मेरी ख्वाहिश मेरे अरमानों की फिक्र बस फैजल को है.
बेइंतहा मोहब्बत करता है मुझसे.मेरी आँखों में जानें क्या ढूंढता रहता है!बावला है पूरा.
देख!तुझे बता रही हूँ अपने दिल का हाल,लेकिन तू किसी को न कहना.
अब तू भी सो जा.कल फिर तुझ पर मेरी कलम मेरा हाल लिखेगी.
5 अप्रैल 2007
कल फैजल मुम्बई जा रहा है और मैं भी उसके साथ ही चली जाऊंगी.जब सपनों को पूरा कर लूंगी तभी लौटकर आऊंगी.थोड़े से गहने रख लिए हैं साथ में.जरूरत पड़ गई तो!बेचारा फैजल कितना करेगा?
क्या कहा?यह गलत है!
अरे!यह गहने अम्मी के नहीं हैं मेरे निकाह के लिए ही तो बनवाएं हैं अम्मी ने!तो इन पर मेरा हक हुआ न!और फिर एक बार हिरोइन बन गई तो ऐसे कितने ही गहने खरीदवा दूंगी अम्मी को…हाय अल्लाह आज की रात न जाने कैसे बीतेगी.
तू बहुत बातें करती है डायरी. मुझे भी उलझा देती है नामुराद.चल अब सोती हूँ।कल बहुत तैयारी करनी है।
10 जनवरी 2008
बहुत दिनों बाद तुझे उठा रही हूँ डायरी.क्या करती हिम्मत न थी इन नापाक हाथों से तुझे हाथ लगाने की.
अब्बू बहुत मोहब्बत से मेरे लिए लाए थे तुझे.
आज तुझे सीने से लगाया तो लगा कि अब्बू करीब हैं.मैं मुम्बई आकर अपने अब्बू की बुशरा न रही.अब रोज नये किरदार में खुद को ढालती हूँ रोज बिछती हूँ रोज सिकुड़ती हूँ.मरना चाहती हूँ लेकिन एक बार अपने अम्मी अब्बू को देख लूँ बस.किसी तरह मुझे मौका मिल जाए यहाँ से निकलना का.
हिरोइन बनने आई थी लेकिन मालूम न था ये ख्वाहिश मुझे यूँ तबाह कर देगी.
सीने में दर्द उठ रहा है लेकिन तुझसे भी न कहूंगी. यह तो मुझे ही सहना होगा.
6 फरवरी 2008
जल्दी वापस चली जाऊंगी अपने शहर.एक बार जी भर देख लूँ सबको. बस एक बार. फिर तो मर जाऊंगी.दस बज रहे हैं और मैं यहाँ अकेले… थकी हुई. आज अगर घर में होती तो अम्मी की गोद में सिर रखकर लेटी होती.
अब्बू की लाई कुल्फी खा रही होती लेकिन अब…
14 -मार्च 2008
आज लौट आई हूँ वापस अपने शहर लेकिन घर नहीं जा सकती।क्या मुँह दिखाऊंगी किसी को।
कैसे कर सकूंगी अब्बू का सामना।कैसे कहूंगी कि आपकी बुशरा सब खो चुकी है उस शहर में।
कैसे कहूँ कि फैजल ने नोच दी आपके घर की आबरू. वह बेच गया मुझे मण्डी में.बन गई मैं धंधेवाली.नीलाम कर दी बुशरा ने आपकी इज्ज़त।अब तो बस कयामत का इंतजार है. अल्लाह मुझे उठा ले.
…..काश मुझे मौत आ जाए।
20-जून 2008
अखबार में आज अपनी गुमशुदगी की खबर पढी।एक साल हो गया मुझे घर छोड़े लेकिनवह आज भी मुझे याद करते हैं।मन करता है जाकर अम्मी के गले लग जाऊं. अब्बू के कदमों में बैठकर रो लूँ.लेकिन नहीं कर सकती ऐसा. मेरे गुनाह इतने छोटे नही.मैं इन्हीं अंधेरे में सही हूँ।कम से कम मुझे ढूंढ तो न पायेंगे।मैं अपनी नापाक रूह लेकर आपको पास नहीं आ सकती अब्बू।अकेले बैठी हूँ।इस छोटे से कमरे में दम घुटता है मेरा।क्या बनना चाहा क्या बन गई।जिस्म से रोज कपड़े उतरते हैं रोज आदमी बदलते हैं लेकिन मैं तो वही रहती हूँ बेशर्मी की पुतली बुशरा. कीड़े रेंगते हैं मेरे जिस्म पर.घिनौनी हो गई हूँ मैं.क्यों जिंदा हूँ…या खुदा.
….काश मौत आ जाए मुझे.
20-जुलाई 2008
जी न माना तो चली गयी आज चुपचाप अब्बू की दुकान पर.बस दूर से देख आई उन्हें.उनकी आँखों में दर्द था।कितना नाज था उन्हें मुझ पर लेकिन मैने….!मैं उनसे नजरें नहीं मिला सकती.
अल्लाह मेरे गुनाहों को माफ करना.मेरे अब्बू के चेहरे पर हँसी खिला दे.मुझे तो दोजख की आग भी नसीब न हो.
…..काश मुझे मौत आ जाए…
8 सितंबर-2008
दुल्हा बना कितना सुन्दर लग रहा था मेरा भाई.मन कर रहा था झूम कर नाचूँ लेकिन… बस दूर से बलाएं ले ली.आज अम्मी ने हरा लिबास पहना था.वैसा ही लिबास जैसा मुझे पसंद है.पर वह बुझी हुई लग रही थी.. वह मुझे भूली नहीं.
बस एक बार भाभी का चेहरा देख पाती लेकिन यह नापाक साया उस पर नहीं डाल सकती.मैं रो रही हूँ अब्बू.मुझे ले जाओ यहाँ से. अम्मी मुझे माफ कर दो.मैं मुझे पनाह दे दो अम्मी.
या खुदा!ये मैं क्या कह रही हूँ!नहीं, नहीं…मुझे मरना होगा. अपनी गंदगी का साया अपने घर पर न डालूंगी.
…….काश मुझे मौत आ जाए…
6 अक्टूबर- 2008
बुखार से बदन तप रहा है लेकिन मुझसे ज्यादा तपन इन भूखो के शरीर में लगी है।इस शरीर से बेइंतहा मोहब्बत थी मुझे,इस पर गरूर कर फैजल पर यकीन किया था …लेकिन अब…नफरत हो गई…अल्लाह अब किसी और बुशरा को उस कमीने के चंगुल में न फंसने देना.
अब्बू आपकी बुशरा से गुनाह हो गया..मुझे माफ कर दो अब्बू…आप सही कहते थे..मुम्बई बहुत गंदा शहर है.
….काश मौत आ जाए मुझे…
10-अक्टूबर 2008
अपने इस जिस्म पर गुमान कर घर से निकल गयी थी… देखो अब्बू… आपकी बुशरा इलाज से भी महरूम है.मेरी छींक पर भी बेचैन हो उठते थे आप और आज…
अल्लाह!कैसी गलीच जिंदगी जी रही हूँ मैं..
काश मुझे मौत आ जाए….
15 अक्टूबर-2008
हिम्मत नहीं बची है अब.मौत करीब लग रही है.
आज मैं मर जाऊंगी.अल्लाह का बुलावा आ गया है. लेकिन मेरे बारे में मेरे परिवार को पता न चले.उन्हें पता न चले कि अब्बू की बुशरा अब धंधेवाली..….
काश कोई इस जिस्म को लवारिस समझ खाक में मिला दे………..
उसके मासूम चेहरे पर अब भी नजामत दिख रही थी भले ही रूह साथ छोड़ गई थी।इंस्पेक्टर को आँखों में कुछ नमी सी महसूस हुई.डायरी को बंद कर उसनें एक ठंडी साँस ली.मोहब्बत की शिकार ख्वाब देखने वाली बुशरा के मरे जिस्म को उसनें लवारिस लाश में शामिल कर दिया.