एक बार फिर वह उसी हेलमेट की दुकान पर खड़े थे।  दुकानदार ,जो उन्हें अच्छे से जानता था, ने नमस्ते कर अपने नौकर को ठंडा पेश करने को कहा।  “जी सर कहें क्या दिखाऊँ इस बार,  वैसे उसे पता था हर बार की तरह 200 हेलमेट का ऑर्डर ही उसके पास आएगा।  उसे आज तक समझ नहीं आया कि इतना बड़ा व्यापारी, खुद हर महीने दो महीने में 200 हेलमेट ले जाकर क्या करता है।  कोई धंधा भी ऐसा नहीं कि ले जाकर कहीं दुकान लगाई हो। खैर , होगा कोई कारण ” उसने फिर कहा “जी सर क्या दिखाऊँ”।
अनमने ढंग से अशोक गुप्ता, जी यही नाम है उस आदमी का जो एक बहुत बड़े व्यापारी घराने से ताल्लूक रखता है और पिछले  साल ही इस शहर में आया है।  इस शहर के लोग उसे ज्यादा नहीं जानते थे।  तो अजीब सी विक्षिप्त अवस्था में अपनी बड़ी बड़ी आँख को और बड़ा करते हुए वह बोले, “वही 200 अच्छी क़्वालिटी  के हेलमेट दे दीजिए, जो भारी चोट से भी न टूटे”।   उसने नौकर को इशारा किया और 500 हेलमेट का ऑर्डर घर पहुंचाने को बोल बिल थमा दिया।  3000 का 1 हेलमेट था,  पैसे चुका दिये और अशोक गुप्ता वापस अपनी गाड़ी में जाकर बैठ गए ।
घर पहुंचा तो देखा नर्स उनकी बीवी को दवाई दे रही थी और साथ ही साथ उनकी कॉउंसलिंग भी  कर रही थी।  निर्जीव सी देह में कोई अधिक हलचल नहीं थी,  लेकिन फिर भी अब धीरे धीरे सुधार हो रहा था और लिक्विड दिया जाने लगा था ।  वे जाकर पत्नी के पास बैठ गए,  इतने में बेटी भी आ गई,  तीन जोड़ी सूनी आंखों में एक साथ दर्द का समंदर लहरा गया,  बेटी पिता से लिपट कर रो पड़ी,  माँ रो भी नहीं पाती थी सदमें में थी,  पिता एक हाथ से बेटी की  पीठ पर हाथ फेरते रहे और दूसरे हाथ में पत्नी का हाथ था।  दर्द जैसे बह रहा था, एक दूजे के हाथ के स्पर्श में भी इतना स्पंदन था कि बिना कुछ बोले भी नसों में पिघलता शीशा बहने जैसा दर्द हो रहा था जो जज़्ब नहीं  हो रहा था।  तीनों सोच रहे थे है भगवान हम मर क्यों नहीं जाते, ये दर्द ……ये दर्द…… सहन नहीं हो रहा और जब सहन नहीं हो रहा तो मार क्यों नहीं डालते हमें।  लेकिन कब किस दर्द ने किसी की जान ली है , दर्द तो जैसे परीक्षा लेता है …कितना सह सकते हैं, और इंसान उसे सहते हुए भी जीता है ।
। दर्द तो जैसे नसों को निचोड़ लेता है मारता नहीं।  कुछ दर्द जीवन भर सालते हैं न जीने देते हैं न मरने देते हैं,  एक जिंदा लाश बन जाता है इंसान।
ऐसा ही दर्द इन तीनों को और मजबूती से  जोड़ रहा था।  अचानक उनकी तंद्रा टूटी और वे बोले 4 बज गए चलो मेरे काम का वक्त हो गया,  बेटी ने कातर नज़रों से उन्हें देखा रोकने की कोशिश नहीं की,  पत्नी उसी तरह निर्जीव सी देखती रही।
ड्राइवर मोहन ने भी आँख से आँसू पोछ लिए और गाड़ी तैयार रहने का इशारा किया ।
 कॉलेज छूट गया था, लड़के अपनी अपनी गाड़ी पर निकल रहे थे।  वैसे ही जैसे निकलते हैं ट्रिपलिंग करते हुए,  गाड़ी दौड़ाते हुए,  इतनी तेज़ बाइक चलाते सड़कों पर शोर मचाते हुए।
वे देखते रहे फिर अपना पेम्पलेट, “मुफ्त में हेलमेट, मुफ्त में हेलमेट …..”.उनका नौकर दौड़ दौड़  कर लड़कों को रोकता और मुफ्त के हेलमेट की बात बताता । शुरुवात में लोग विश्वास नहीं करते, उन्हें लगता किसी कंपनी का प्रचार कर रहे होंगें, वरना कौन इतने महंगे हेलमेट मुफ्त में बांटता है, “पागल है क्या”  शुरुवात में तो सबने खिल्ली उड़ाई ,  लेकिन देखा कि रोज ही वह उदास आँख से बच्चों को देखता और उनसे हेलमेट लेने की गुज़ारिश करता।
“अरे कंपनी का टारगेट पूरा कर रहा होगा” एक लड़के ने गाड़ी खड़ी करते हुए पूछा ।
लेकिन अशोक गुप्ता ने कुछ नहीं कहा मुस्कुराने की भरसक कोशिश में भी दर्द आँख से दो बूंद बन लुढ़क गया।
वे लड़के अचकचा गए  “कितने रुपये देना होंगें” अच्छी कंपनी के उच्च गुणवत्ता वाले हेलमेट देख वे थोड़े संकोच में आये ।
लेकिन जब मुफ्त में ही हेलमेट मिल रहा है जान कर खुश भी हुए सशंकित  भी ।
“हेलमेट ले तो आये देखना रे कोई बम वम तो फिट नहीं है ” कोई कहता ।
“देख रे कोई चिप तो नहीं लगी” दूसरे ने हँसते हुए कहा ।
“आजकल किसी का कोई भरोसा है क्या वरना कोई ऐसे हेलमेट मुफ्त में  बांटता है क्या ” लोग आपस में बात करते ।
कैसा समय हो गया अब  हर किसी की अच्छाई , मासूमियत  प्रेम और सेवा में भी षड्यंत्र और हथकंडे नज़र  आते हैं ।
यही तो दिया है इस आधुनिकता ने  अविश्वास  सब पर । वे सोचते रहे ।
वे रोज देखते और लगा कि नहीं यह बंदा चेरिटी ही कर रहा है तो कॉलेज के दूसरे दोस्तों को भी बोल दिया।
सबने जाकर हेलमेट ले लिए ।
गुप्ता जी उनसे एक रजिस्टर में साइन करवाते कि वे हमेशा हेलमेट पहनेंगे और कम स्पीड में गाड़ी चलाएंगें।
अब तो लड़को का   शक पुख्ता  हो गया हो न हो यह सरकार का कोई आदमी है जो गांधीगिरी कर रहा है, बाद में उन्हें परेशान करेगा।
तो लड़कों ने गलत नाम पते डालना शुरू कर दिये। लड़कियां भी उनमें शामील थी।
वे दो घंटे कॉलेज छूटते समय अलग अलग कॉलेज तो कभी ट्रैफिक सिग्नल तो कभी वहाँ जहाँ पार्किंग होती अपने नौकर के साथ चले जाते यह दो घंटे का नियम उनका ऐसा था  और ऐसी शांति देता था मानों किसी मंदिर जाने वाले को मिलने वाली संतुष्टि ।
वे थोड़े  हल्के होकर घर पहुँचते, बेटी और पत्नी के साथ समय बिताते । रमा,  श्रीमती गुप्ता की  तबियत अब धीरे धीरे सुधरने लगी थी।
वक्त से बड़ा कोई मरहम नहीं होता, बिटिया ने भी धीरे धीरे अपने पिता के काम में हाथ बटाना शुरू कर दिया था।
लेकिन वक्त जैसे ठहर गया था आगे नही बढ़ रहा था।
कुछ  बाते अटक जाती हैं जैसे  जेहन से निकलती नहीं, वह दिन भी अटक गया था उस घर के दरवाजे पर, ठिठक गया था।
दिन फिर भी गुजर जाता था , रात का सन्नाटा उन्हें और भी असहाय कर जाता, पत्नी की बीमारी की चिंता बेटी की चिंता, और सबका साझा दर्द ।
खूब पढ़ते गीता “नैन छिन्दन्ति शस्त्राणि ……. लेकिन मन किसी तर्क से,…………ममता किसी उपदेश से कब सम्भाली गई है भला।
रोज का नियम जारी था, एक दिन उनके नौकर ने कहा, “साहेब मैंने एक बात देखी उस कॉलेज के लड़कों  का एक समूह है जो बारी बारी से हमारे यहाँ से हेलमेट ले जाता है, और कुछ दिन बाद नंगे सर आ कर फिर से हेलमेट माँगता है, आपने ध्यान नहीं दिया लेकिन इतनी बार हेलमेट ले जाने के बाद भी वो हेलमेट कभी पहने दिखे नहीं, क्या कल इस बात का पता करें”।
“हाँ हाँ कर लो उन्होंने कहा, हेलमेट लिया है तो पहने तभी बात बनेगी नहीं तो अपना उद्देश्य कैसे पूरा होगा” उन्होंने शून्य में ताकते हुए बोला।
गुप्ता जी के नौकर का शक सही था, वे लड़के बारी बारी से आते हेलमेट ले जाते, अलग अलग जगह पर मिलते उनसे और हेलमेट पा लेते, भीड़ भाड़ में, कभी दाढ़ी बढ़ा, कभी सर पे रुमाल बाँध, कभी गॉगल लगा वे हेलमेट इकट्ठे करते , कीमती उच्च गुणवत्ता वाले हेलमेट मुफ्त में इकट्ठे कर वे आधी कीमत में बेच देते।
“अरे यार बैठे ठाले कमाई का जुगाड़ हो गया, पता नहीं कौन है ” एक बोला ।
“हमे क्या,आम खाओ गुठलियां कौन गिने ” दूसरा बोला ।
“लेते रहो, बेचते रहो, पार्टी मनाते रहो’ आँख मारते हुए कहा।
जिस देश में मंदिर के बाहर से चप्पल गायब हो जाए, पानी के गिलास को चेन से बाँधना पड़े, सड़क पर जालियां और स्पीड ब्रेकर  से लोहा चुरा  ले जाए कोई वहां ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं ।
लड़के आये दिन अलग अलग समूह में लाभ लेने लगे, खुद को तो इसका उपयोग शान के खिलाफ लगता, ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ाने में लड़के लड़कियां कोई पीछे नहीं रहते, सब अपने में मगन मुफ्त की चीज़ से मिलने वाली कमाई ने पार्टी  भी बढ़ा दी  ।
अशोक गुप्ता  सोचते,  “अब आजकल के ये बच्चे दूध पीकर पार्टी तो  नहीं करेंगें । शराब और सिगरेट मुख्य तत्व । आधी रात में नशे में धुत होस्टल लौटते माँ बाप को पता नहीं बच्चा क्या कर रहा कब तक नज़र रखें । अपना भला बुरा तो खुद समझना होता है ना, घर पर रहने वाले बच्चे कौन से सुधरे हैं , छुप छुप  कर हरकतें हो रहीं हैं, ज्यादा बोलो तो मरने की धमकी देते हैं, क्या माँ बाप का कोई हक नहीं रह गया ।  उनका प्यार उनकी चिन्ता कैसे बंधन लगने लगी बच्चों को”।
सोचते सोचते उन्हें नींद  आ गई। जिस कॉलेज में पिछले  15 दिन से वे इस मुहीम में लगे थे वहाँ के चौकीदार ने उन्हें कहा “साहेब ये बेच देते हैं और पार्टी करते हैं”।
नौकर से कह कर आज रात कहाँ पार्टी है, गुप्ता जी ने पता कर लिया। कॉलेज से बहुत दूर एक ढाबे पर आज दोस्तों का प्लान था पूरे 10 हेलमेट बेच दिये थे अच्छे पैसे मिले तो आज मौज मस्ती का इरादा था ।
रात किसी दोस्त कमरे पर पढ़ाई करने  जा रहे हैं बोल दिया था ।
लड़कियां साथ नहीं आई थी तो  कुछ  पीने का इंतजाम उनकी वॉटर बोतल में छुपाकर उन तक पहुंचा दिया गया था ।
एक ने कहा “भाई बराबरी का जमाना है, जो हम कर  रहें हैं वो सब लड़कियों को करने का हक है”।
“हें हें हें, और क्या , हमने छोड़ी  नहीं बुरी आदते, उन्हें भी लगा दी” एक सम्मिलित ठहका गूंजा
“हें हें हें और उन्होंने ले भी ली, this is called women’s libration, true feminism, बराबरी से बिगड़ेंगे”  वे ताली ठोक हँस पड़े ।
“वो बोलती है ना  तेरी वाली “सब बराबर हैं तो इसमे पीछे क्यों रहें , शराब और स्मोकिंग व्याभिचार नहीं शिष्टाचार है भाई और हम शिष्टाचार निभाने में लड़को से पीछे कैसे रहे ” हा हा हा”  हँसी का एक वीकृत ठहाका लगा।
“अरे वो तो नई  वार्डन आ गई  नहीं  तो आज लड़कियां भी होती अपने साथ “एक बोला ।
“वो बोल रही थी थोड़े दिन में इसको भी सेट कर लेंगे, नई नई मुर्गी है तो ज्यादा फुदक रही है ” सिगरेट का कश लेते हुए एक बोला ।
चलो चलो करते वे एक ढाबे पर पहुँच गए, शराब कबाब का पूरा इंतजाम  था नशे में झूमते तेज़ संगीत पर थिरक रहे थे सब।
इधर गुप्ता जी को चौकीदार ने बता दिया था तो एक कार खुद चला कर दूसरी कार ड्राइवर को लेकर आने का कह ढाबे की और चल दिए।
पहुँचे तो  धुएं और शराब की गंध ने उबकाई ला दी लेकिन जैसे तैसे अंदर  गए और म्यूज़िक  बंद कर दिया ।
“अबे कौन है किसने म्यूजिक बंद कर दिया” सब एक साथ चिल्लाए ।
जब देखा कि गुप्ता जी हेलमेट वाले हैं तो सकपका गए ।
लेकिन नशे में धुत एक बोला “अंकल आप भी आ गए, चलो  अंकल  को कंपनी दो”।
गुप्ता जी के ड्राइवर ने ज़ोर से डांट लगाते हुए उन्हें गाड़ी में बिठाया और दोनों गाड़ियों में उन दसो को लेकर वे घर की तरफ चल दिए ।
गाड़ी में खुसुर पुसुर  हो रही थी “मैंने कहा था न कोई पुलिस वाला है, सिविल ड्रेस में नाटक कर रहा था ” ।
दूसरा बोला “अब धरे गए ना, डंडे खाने को तैयार हो जाओ ।
“यह पेरेंट्स को न बुला ले कही” ।  वे आपस में बात कर रहे थे ।
जैसे तैसे गुप्ता जी के घर पहुँचे ।
उन्हें ले जा कर अंदर बिठाया और कॉफ़ी लाने का बोल गुप्ता जी वहीं बैठ गए।
हॉल में चुप्पी थी, कॉफी पी लेने के बाद वे कुछ सामान्य हुए तो गुप्ता जी हाल से लगे एक बड़े कमरे में उन्हें ले गए, जहाँ श्रीमती गुप्ता बिस्तर पर थीं, उन्होंने एक दिशा की तरफ इशारा किया, सबने एक साथ उस दिवाल की तरफ देखा
देखते ही सिटपिटा गए नशा झटके से काफूर हो गया ।
एक 22 25 साल के लड़के की तस्वीर टँगी थी, बहुत हैंडसम जवान लड़का ।
गुप्ता जी उस तस्वीर के पास जा खड़े हुए बोले, “जानते हो यह मेरा बेटा है………….नहीं……. था……” कहते कहते वे रो दिए ।
“तुम्हारी तरह ही जवान खून, जोश से भरा, हाँ कोई बुरी आदत नहीं थी उसकी, घर भी समय से आता, शराब सिगरेट  घर में कभी आई नहीं तो उसे भी आदत नहीं  रही । लेकिन उसके दोस्तों ने उसे बहकाने की कोशिश की, वह बहका तो नहीं लेकिन कभी कभी उनके साथ चला जाता था, मुझे बता कर जाता था, कहता था मुझ पर विश्वास करिए पापा , उसके दोस्त भी उसकी आदत जानते थे तो एक दो बार जोर देने के बाद उन्होंने भी जबरजस्ती  करना छोड़ दिया था”। दो पल ठहरकर बोले,
“होनहार बच्चा था, ज़हीन , उस रात भी उसके बचपन के दोस्त की बर्थडे पार्टी में गया था, जिसके साथ गया था , उसने पी ली थी, वह गाड़ी नहीं चला पा रहा था तो मेरे बेटे ने गाड़ी ले ली, वह तो ठीक चल रहा था लेकिन  गलत दिशा से, सिग्नल तोड़ते  हुए तेजी से….तेज़ी से गाड़ी दौड़ाते तीन चार बाईक वाले लहराते चले आरहे थे जिनकी चपेट में मेरा बेटा आ गया, सर टकरा गया खम्बे से और वह वहीं…….. …….” कहते कहते वे चेहरा हाथ में छुपा रोने लगे ।
इधर श्रीमती गुप्ता की  आँख भी बरस पड़ी ।
हॉस्पिटल में डॉक्टर ने कहा, “सर की चोट से मौत हुई, हेलमेट लगा होता तो बच जाता….. मेरे दिमाग इन हेलमेट अटक गया तब से ……….”
वे रुके उन लड़कों की तरफ देख कर बोले “तब से हर रोज हेलमेट बाटता फिरता हूँ, लिखवा भी लेता हूँ   कि गाड़ी हेलमेट पहन कर चलाना, धीरे चलाना, नियम मानना”।
“जानता हूँ हर कोई मेरी बात मान ही लेता होगा ऐसा नहीं है, लेकिन इस उम्मीद में  करता हूँ कि एक बच्चे की जान भी बचा सकूँ तो मन को थोड़ी शांति मिले।
मौत केवल इसी रूप में आये जरूरी नहीं लेकिन सतर्कता और सुरक्षा तो हर जगह जरूरी है ना।
“अब यही बाटता हूँ गिफ्ट में, शादी  में सब दूर यही देता हूँ और एक लेटर अपनी कहानी का जिससे सबक ले सब……अपने को और अपनो को संभाल सके ।
फिर बच्चों की तरफ देखकर बोले,  “यह मेरी पत्नी है, जिंदा लाश हो गई है उस हादसे के बाद, रह रह कर बड़बड़ाती है, रोहन के आने का वक्त हो गया, उसकी परीक्षा है, चाय बना के दे दो, उसकी पीली शर्ट प्रेस करना है, उसकी अलमारी जमाना है, उसका जन्मदिन है…. उसके दोस्तों के यहां  से अभी तक नहीं आया……..”
कई बार उसके दोस्तों को फोन करके उसके बारे में पूछती है, वे रो रो कर बेहाल हो जाते हैं…. उनका यहाँ आना मैंने बंद करवाया,  उनके आते ही पगला जाती है……. कमरे में आवाज देने लगती है…… उसे बुलाने लगती हैं……. फिर होश नहीं रहता…..इंजेक्शन देने होते है…….. और होश में आने पर संभालना मुश्कील हो जाता है।
और मैं मेरी भी सिर्फ सांस चल रही है, मर तो मैं उसी दिन गया था, जब…………. कुछ दर्द मर मर कर सहने होते हैं” उन्होंने एक ठंडी सांस भरी, लाचारी की।
उन लड़को का हाथ हाथ में ले कर बोले,
“न जी पाते हैं माँ बाप, न मर पाते हैं, यह दर्द ऐसे ठहर जाता है जिंदगी में कि, इतना दर्द होता है………..इतना दर्द होता है कि …….कि………..मैं बयान नहीं कर सकता, कलेजा जकड़ा रहता  है , जिंदगी बोझिल हो जाती है लेकिन मौत नहीं आती, मौत नहीं आती, नसों में खून नही दर्द बहता है जो हर पल दो पल में चुभता है कहीं,
हाथ जोड़ कर विनती करता हूँ बेटा अपने माँ बाप को यह दर्द मत दो, और किसी और के माँ बाप के दर्द का कारण मत बनो , होश मे रहो, होश में रहो …….ज़िन्दगी बहुत कीमती  है बच्चे । जिंदगी बहुत कीमती है। जो रह जाते हैं वो जीवन भर उबर नहीं पाते”।
लड़कों का नशा पूरी तरह गायब हो गया था वे सिसक रहे  थे, श्रीमती गुप्ता के बिस्तर केपास जा कर देखा, तो दया सी आ गई , पथरीली आँखों में कोई आस नहीं थी, आँख के किनारे सूखे आंसू के निशान थे……… सांस ऐसे थम थम कर आ रही थी मानों कहीं अटकी सी हो।
वे मुँह छुपा कर रो पड़े, और वहीं बैठ गए
“हमे माफ कर दीजिए  अंकल हम….. हम…… जोश में होश खो बैठ थे, अब हम हम ध्यान रखेंगे  अपना भी और दूसरों का भी …….और और आपकी इस मुहीम में अब हम भी आपका साथ देंगे”।
गुप्ता जी ने प्यार से  उनकी पीठ थपथपाई,  और ड्राईवर  से बोले ” मोहन अपने हेलमेट तो ये बच्चे बेच चुके हैं इन्हे नये हेलमेट दे दो”. । मोहन ने रजिस्टर में दर्ज किया नंबर और बोला ये दस मिलाकर हो गए साब 1008 हेलमेट।  उन्होंने झिड़का, “क्या गिनते हो, अब यह क्या गिनने की चीज़ है”।
“नहीं साब इसलिए कह रहा हूँ सिद्ध नम्बर है”, मोहन बोला, “अच्छा शगुन है, आपका कार्य सिद्ध होगा “।
“ईश्वर बस किसी अपने को ऐसे किसी से जुदा न करे, यही चाहता हूँ , ” उन्होंने साप्रयास मुस्कुराने की कोशिश की।
हाथ में हेलमेट और आँख में आंसू लिये वे बच्चे तय कर चुके थे कि अब  उन्हें क्या करना है ।
सहायक प्राध्यापक , अंग्रेजी साहित्य , बचपन से पठन पाठन , लेखन में रूचि , गत 8 वर्षों से लेखन में सक्रीय , कई कहानियाँ , व्यंग्य , कवितायें व लघुकथा , समसामयिक लेख , समीक्षा नईदुनिया, जागरण , पत्रिका , हरिभूमि , दैनिक भास्कर , फेमिना , अहा ज़िन्दगी, आदि पात्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। संपर्क - garima.dubey108@gmail.com

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