पूनम यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलर थी यूनिवर्सिटी जाते समय रास्ते में उसे पुलिस मुख्यालय मिलता। वह जब भी उस तरफ देखती तो सबसे पहले उसके दिल में ख्याल आता कि हे भगवान मुझे कभी इधर न आना पड़े क्योंकि इंसान यहां दो ही स्थिति में आता है या तो किसी झगड़े- फसाद, कोर्ट-कचहरी के चक्कर में फंसा हो या अपने किसी मित्र, परिचित या किसी स्वजन से मिलने आया हो लेकिन उसका तो यहां अपना कोई दूर दूर तक नहीं है। फिर वह सोचती काश उसका अपना कोई मित्र यहां होता तो है वह बडे आराम से उससे मिलने आ सकती थी दूसरे ही पल में वह अपने दिमाग को झटका देते हुए आगे बढ़ जाती कि वह भी न जाने क्या क्या सोचती रहती है।
ऐसे ही एक दिन जब वह यूनिवर्सिटी जाने के लिए अपनी स्कूटी लेकर निकली ही थी कि उसी पुलिस मुख्यालय के सामने एक तेजगति से आ रहे ट्रक ने उसे टक्कर मार दी और वह एक ही झटके में सड़क पर औंधे मुंह गिर पड़ी।
एक तरफ वह सड़क पर पड़ी दर्द से छटपटा रही थी तो दूसरी तरफ से उसे तमाशाबीन भीड़ ने घेर रखा था तभी भीड़ को चीरता हुआ रौबदार चेहरा और गठीले बदन का एक युवक उसकी मदद के लिये आगे आया ।उस युवक का व्यक्तित्व इतना आकर्षक लग रहा था कि एकबारगी तो वह भी अपना सारा दर्द भूलकर उसे एकटक देखती रह गई। उस युवक ने उसे अस्पताल पहुंचाया और अस्पताल की सारी औपचारिकताएं भी उसी ने पूरी की और जब तक उसके परिजन उसके पास ना पहुंच गए तब तक वह किसी हम साए की तरह उसके साथ रहकर उसे ढांढस बँधाता रहा और वह जाते-जाते उसके दिल पर एक अमिट छाप छोड़ गया। पूनम अभी भी अस्पताल के पलंग पर लेटी लेटी उसी युवक के बारे में सोच रही थी।
“पता नहीं कौन था वह जिसने उसे अस्पताल पहुंचाया पर जो भी हो वह मेरे लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं था। भगवान जाने उसे धन्यवाद कहने का कभी अवसर मिलेगा भी या नहीं।”
मगर उसकी खुशी का उस वक्त कोई ठिकाना ना रहा जब वही शख्स दूसरे दिन उससे मिलने अस्पताल आया। उसने बिस्तर से उठकर उसका अभिवादन करना चाहा मगर असफल रही, देह ने उसका साथ नहीं दिया।”कोई बात नहीं मैम, आप लेटे रहिए “उस युवक ने धीरे से उससे कहा।
“मुझे मैम मत कहिए मेरा नाम पूनम है।”उसने बिस्तर पर लेटे लेटे कहा।
“जी”उस युवक ने कहा
पूनम ने उत्सुकता से भरकर पूछा “आप यहां कैसे”
“ओह!मैम कल जल्दबाजी में आपका वोलेट मेरे पास ही रह गया था उसे वापस करने आया हूँ।”
“अरे! आप इतनी जल्दी भूल गये मेरा नाम”पूनम ने उसको उलाहना सा देते हुए कहा।
“सॉरी, सॉरी मैम “उस युवक ने हड़बड़ी मे कहा फिर शीघ्र ही अपनी भूल पर मुस्करा उठा।
“अरे बातों ही बातों में, मैं तो आपका नाम पूछना ही भूल गई | आपका नाम क्या है ? “पूनम ने उससे पूछा
“अभय सिंघानिया” उसने अपना नाम बताया।
फिर पूनम ने उसको अपनी जान बचाने के लिए शुक्रिया अदा किया। इस पर उसने पूनम से कहा आपको शुक्रिया कहने की कोई जरूरत नहीं है मैम सॉरी पूनम जी यह तो एक पुलिस अधिकारी होने के नाते मेरा कर्तव्य था।
“क्या आप सच में पुलिस अधिकारी है” पूनम ने विस्मय भरे स्वर मे उससे पूछा
उसने मुस्कुराकर हा मे सिर हिलाया
“आप कहां पोस्टेड हो”पूनम ने बेसब्री से पूछा
“यही पुलिस मुख्यालय में“ उसने बताया
अच्छा पूनम जी अब मैं चलता हूं, थोड़ा लेट हो रहा हूं।अपना ख्याल रखिएगा अगर मुझसे कुछ काम हो तो यह मेरा कार्ड है आप मुझे बेझिझक कॉल करके बताइएगा। उसकी बात सुनकर पूनम जैसे किसी ख्याल में खो गई।अरे यह क्या जो इच्छा मैंने की थी काश यहां मेरा कोई दोस्त होता वह इच्छा किसी अलादीन के जिन की तरह उसके सामने प्रत्यक्ष खड़ी थी।
“कहां खो गई पूनम जी “यह प्रश्न सुनकर
वह अपने विचारों की दुनिया से बाहर आई।
“कहीं नहीं “पूनम ने सिर हिलाकर कहा
उसने एक बार फिर पूनम से चलने के लिए आज्ञा मांगी। पूनम ने उसे अलविदा कहने के लिए अपना हाथ उठाना चाहा मगर एक्सीडेंट मे बूरी तरह से जख्मी होने से वह उसे अपनी जगह से हिला भी नहीं पा रही थी इसलिए पूनम ने ऑखो से उसे जाने के लिए मौन स्वीकृति दे दी।अभय के चले जाने के बाद वह उसके दिये कार्ड को उलट पलट कर देखने लगी।
कुछ ही दिनों मे वह अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर आ गई और फिर से वह अपना रिसर्च कार्य करने लगी। ऐसे ही एक दिन वह रिसर्च के लिए यूनिवर्सिटी जाते समय पुलिस मुख्यालय के सामने उसकी मुलाकात अभय से हो गई। अभय ने पूरी गर्मजोशी से उसका स्वागत किया। पूनम भी उससे मिलकर चहक उठी। उसे अभय का दोस्ताना मिजाज अच्छा लगा।फिर अक्सर यूनिवर्सिटी जाते समय उसका अभय से सामना हो जाता।
जल्द ही वह बहुत अच्छे दोस्त बन गए।इससे भी बड़ी बात यह थी वे दोनों एक दूसरे के लिए दोस्ती से भी बढ़कर महसूस करने लगे थे।
एक दिन अभय ने उसे अपने साथ कॉफी पीने के लिए आमंत्रित किया।पूनम का भी मन था कि वह भी उसके साथ कॉफी पीये मगर एक अनजानी सी डोर ने उसके कदमों को जाने से रोक लिया है। उसे अहसास हुआ यह सब ठीक नहीं हो रहा है । नहीं, उसे अब अभय से कोई दोस्ती नहीं रखनी । उससे कोई बात नहीं करनी है। उसने फोन में सेव अभय का मोबाइल नंबर डिलीट कर दिया। इसके बाद कई बार अभय का फोन कॉल्स व मैसेज आये मगर पुनम ने उनका कोई जबाब नही दिया इस तरह से कुछ महीने गुजर गए।
लेकिन आज महीनों बाद अभय का मैसेज आया उसका स्थानांतरण हो गया है और जाने से पहले एक बार उससे मिलना चाहता है, मैसेज पढ़कर पूनम के दिल में कहीं कुछ दरक सा गया। उसका मन हो रहा था कि उसके पैरों में पंख लग जाए और वह उसे जाने से रोक ले मगर उसने अपने आगे बढते कदमों को रोक लिया मगर आंखों में उमड़ आये आंसुओं के सैलाब को न रोक सकी जिनमें कुछ देर बाद ही हिचकियों का शोर भी शामिल हो गया।उसने आंसुओं को हथेलियो से पोछते हुए स्वयं से प्रश्न किया।यह मुझे क्या होता जा रहा है ? मन क्यों भंवरा बन उसके प्रेम में बावरा हुआ जा रहा है ? मुझे क्यों अभय का साथ, उसकी हर बात अच्छी लगती है ?
मैं जितनी भी उससे दूर होने की कोशिश करती हूं उतनी ही उसके करीब महसूस करती हूं क्या यह सच में प्रेम है या महज एक आकर्षण ? नहीं, नहीं जो भी हो वह उस रास्ते पर आगे नहीं बढ़ सकती जिसकी कोई मंजिल ना हो। फिर रोते रोते वह अपने घुटनों के बल बैठ गई। जो सैलाब उसके अंदर उमड़ रहा था वह उसके साथ बहे जा रही थी। पूर्व स्मृतियों के एक एक चित्र उसकी ऑखों के सामने आ जा रहे थे।उसे वह दृश्य याद आ रहा था। जब वह दुल्हन बनी मंडप में बैठी थी।
इधर लड़के वाले दहेज की डिमांड बढ़ा रहे थे उधर उसके पापा की बीपी के साथ बेबसी भी बढ़ती जा रही थी और मां का रो रो कर बुरा हाल हो रहा था फिर न जाने उसमें इतनी हिम्मत कहां से आ गई कि उसने शादी से इंकार कर के लड़के वालों को बैरंग लौटा दिया था।इस घटना से उसके मां-बाप जगहँसाई के डर से ठीक से किसी से नजरें भी नहीं मिला पा रहे थे। वह खुद भी अंदर से टूट सी गई थी, ऐसे समय में जतिन उसके परिवार के लिए फरिश्ता बनकर आया।
वह उसके पापा के दोस्त का बेटा था तथा एक मल्टीनेशनल कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था।उसने सभी के सामने उसके माता-पिता से बिना दहेज पूनम से शादी करने का प्रस्ताव रखा, अंधे को क्या चाहिए ? दो आंखें, उन्होंने भी पूनम से पूछे बिना झट से शादी के लिए हां कह दी। वह भी पत्थर की मूरत सी भाव शून्य होकर यंत्रवत इस विवाह बंधन में बंध गई।
शादी की शुरुआत में उसके मन में जतिन के प्रति कोई खास लगाव ना था पर जतिन ने अपने प्रेम समर्पण व विश्वास से उसके दिल में एक जगह बना ली थी।
शादी के कुछ महीने बाद ही जतिन को एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में छः महीने के लिए ऑस्ट्रेलिया जाना पड़ा और वह यहां बिल्कुल अकेली रह कर अपना रिसर्च कार्य को पूरा कर रही थी मगर आज अभय के मैसेज ने उसके शांत दिमाग में हलचल मचा दी थी वह उससे मिलने जाए या ना जाए की गहरे अंतर्द्वंद ने उसे घेर लिया था और उसका मन घड़ी के पेंडुलम की तरह इधर-उधर घूम रहा था जिसकी एक ओर अभय खड़ा था जिससे उसने प्रेम किया था दूसरी तरफ जतिन था जिसने उसे निस्वार्थ प्रेम दिया था ऐसी स्थिति में वह क्या करें ? सोच के सागर मे काफी देर डूबने -उतराने के बाद वह अंततः एक निर्णय पर पहुंची। उसने अभय को मिलने के लिए हा कह दी।
वे दोनों फिर उसी पुलिस मुख्यालय के सामने मिले।अभय ने बिना किसी भूमिका बाधे सीधे पूनम से शादी करने का प्रस्ताव रख दिया।
“मैं शादी शुदा हूँ “क्या तुम्हें पता है? पूनम ने थोड़ी बेरुखी से पूछा।
“मुझे मालुम है”अभय ने कहा
“फिर भी……..”पूनम इतना ही कह पाई बाकी के शब्द उसके हलक मे ही अटक गये।
“हाँ, पूनम मुझे तुम्हारे बारे मे सब पता है। तुम्हारी शादी किन परिस्थितियों में हुई इस बात से भी भलीभाँति वाकिफ हूँ।”
“ओह तो तुम मुझ पर तरस खा रहे हो।”
“नहीं मैं तुम से प्रेम करता हूँ और आगे की जिन्दगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं बस।”
“लगता है मिस्टर अभय आप को बहुत बडी गलत फहमी हो गई हैं।”
“मैंने तुमसे हंसकर क्या बोल लिया आप तो मेरे पीछे ही पड़ गए। तुम्हें क्या लगता है ? तुम मुझे डीजर्व करते हो।कभी अपनी शक्ल भी देखी है तुमने आइने मे।”
ऐसी दिल में चुभने वाली न जाने कितनी बाते वह एक ही सांस मे कह गई और अभय की किसी भी बात को सुने बिना वह सीधे घर आ गई और कमरे का दरवाजा बंद करके पलंग पर औंधे मुंह गिर पडी और अब तक रोके रखी, उसकी रुलाई फूट पडी। आज वह अभय नही अपना ही दिल तोड़ कर आई थी। वह नहीं चाहती थी, अभय उसकी याद में मजनू बना फिरे इसीलिए आज वह चुपके से उसके मन में अपने प्रति नफरत का बीज बो आई थी। जिससे वह किसी और के साथ अपना घर बसा कर नई जिंदगी शुरु कर सकें। दूसरी ओर वह यह भी नहीं चाहती थी कि उस पर उपकार करने वाले जतिन के प्रति वह बेवफाई करें इसीलिए वह स्वयं ही पीड़ा के सागर में डूब गई।