आज मालिनी का स्कूल में नौकरी का पहला दिन था.शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल में उसे प्राइमरी सेक्शन में कंप्यूटर टीचर की नौकरी मिली थी.बहुत खुश थी वह, उसके हाथ में मिठाई का एक डब्बा था‌. आते ही उसने अपनी स्कूटी पार्क की, झुककर श्यामली जी के चरण छुए और मिठाई का एक टुकड़ा उनके मुँह में डाल दिया. श्यामली जी ने प्यार से उसकी पीठ थपथपाई और उसे नई नौकरी की बधाई दी. मालिनी का पाँच साल का बेटा अंकित भी उसके साथ खड़ा मंद-मंद मुस्कुरा रहा था.
“आंटी! मैं सोच रही हूँ, कि अंकित का नाम भी उसी स्कूल में लिखवा दूँ, जहाँ मेरी नौकरी लगी है. इससे मुझे अपनी नौकरी और इसकी पढ़ाई दोनों साथ-साथ व्यवस्थित करने में सुविधा हो जाएगी”, मालिनी ने कहा.
     श्यामली जी ने सहमति जताई, “वैसे भी तुम्हारा अंकित बहुत चंचल है, अपने साथ ही ले जाना,  तुम्हारे पीछे यह किसी के काबू में नहीं आने वाला नहीं”, वह मुस्कुराईं.
मालिनी मुड़ी और बेटे के साथ अपने फ्लैट में समा गई. उसे खुश देखकर श्यामली जी ने राहत की साँस ली, पिछले कुछ महीनों का तनाव मानो एक क्षण में ही तिरोहित हो गया उनका.
श्यामली जी वहीं अपने पार्किंग में लगी एक कुर्सी पर बैठ गईं. पिछले तीन महीने मानो उनकी आँखों के सामने से चलचित्र की तरह गुज़र गए. “गुज़रे हुए तीन महीने इतने नाटकीय थे कि इन पर एक बॉलीवुड फिल्म भी बन सकती है”,सोचा उन्होंने.
       उनके विचार उन्हें तीन महीने पूर्व ले गए, जब वह अपने भूतल वाले खाली फ्लैट के लिए किराएदार की तलाश में थीं. मकान नया-नया बना था. वह पहली मंज़िल पर रहती थीं.विचार आए,निचले तल्ले में किरायेदार होते तो रौनक हो जाती, सूना घर उन्हें काट खाने को दौड़ता था.
     अनेकों लोग नीचे वाले फ्लैट के लिए आए गए, पर कोई नहीं जँचा, वह फ्लैट खाली ही पड़ा रहा. अक्टूबर के महीने में एक दिन अचानक एक आकर्षक नवयुवक उनके गेट पर घंटी बजाकर कर खड़ा दिखा. श्यामली जी के पूछने पर उसने बताया कि वह नीचे वाले फ्लैट के लिए आया है.शक्ल-सूरत और पहनावे से भले घर का लग रहा था.
   उन्होंने कहा, “कल रविवार है, मेरे पति घर पर रहेंगे. तुम अपना परिचय पत्र वग़ैरह लेकर आना तो बातचीत हो जाएगी. तुम्हारा कोई और परिचित हो तो साथ लाना,अच्छा रहेगा. मैं अपने पति के ऑफ़िस जाने के बाद अकेली ही रहती हूँ. इसलिए अनजान इंसान को घर देना नहीं चाहती.”
  अनजान युवक,अपना नाम मयंक बताया,अगले दिन बारह बजे के आसपास अपने बहनोई को लेकर आया, जो सचिवालय में नौकरी करते थे. “जीजाजी यहाँ के सचिवालय में नौकरी करते हैं, इन्हीं की गारंटी मान लें, मैं बिज़नेस करता हूँ. मेरे पिताजी पुलिस में उच्च पदस्थ पदाधिकारी थे, अब नहीं रहे”, मयंक के स्वर में अनुरोध था।
     श्यामली जी के पति रामेश्वर जी ने उन दोनों के कागज़ात देखे. सब ठीक-ठाक ही लगे. यूँ ही पूछ लिया,“तुम अभी रहते कहाँ हो?” मयंक ने जिस मोहल्ले में अपना घर होना बताया,वह उनके घर से चार-पाँच किलोमीटर की दूरी पर ही था.बात कुछ अजीब थी.
    जब अपना घर है, तो किराए पर क्यों रहना है?” रामेश्वर जी ने पूछ लिया.
    “अभी दो महीने पहले ही मेरी पत्नी का प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव से देहांत हो गया है. नवजात शिशु को छोड़कर वह चली गई. होनी को कौन टाल सकता है? मेरी चार बहनें हैं,बारी-बारी अभी मेरे छोटे से बच्चे को संभाल रही हैं. पर उनकी भी अपनी जिम्मेदारियाँ हैं.
 मैं परिवार वालों के दबाव में तथा उस दो महीने के बच्चे के बारे में सोच कर दूसरी शादी करने पर मजबूर हूँ. उसे अपने पुराने मकान में नहीं ले जाना चाहता, क्योंकि मेरी स्वर्गवासी पत्नी की यादें, वहाँ बिखरी हैं. मेरे पड़ोसी  क्या कहेंगे कि अभी एक पत्नी की चिता की आग ठंडी भी नहीं हुई कि दूजा ब्याह रचा लिया.”मयंक ने कहा, उसके बहनोई हाँ में हाँ मिला रहे थे।
    माहौल पूरा गमगीन हो गया. श्यामली जी ने अपने पति की ओर देखा. वह दर्द भरी कहानी में पूरी तरह डूबे हुए प्रतीत हो रहे थे. उन्होंने रात भर का समय माँगा ताकि पति-पत्नी आपसी विचार विमर्श कर सकें. साथ ही पूछा,     “तुम्हें फ्लैट कितने दिनों के लिए चाहिए?”
   “आंटी! लगभग एक साल के लिए,उसके बाद मैं अपने घर में जा सकूँगा. दूसरी शादी के बाद नई पत्नी को लेकर तुरंत जाऊँगा तो मोहल्ले में बहुत सारी बातें उठेंगी.”
श्यामली जी ने सोचा कि ग्यारह महीने का क़रार करके दे दिया जाए, क्योंकि मयंक की कहानी ही ऐसी थी कि कोई भी विश्वास करे.
    चाबी मिल गई उसे, अगले दिन ही वह टेंपो से अपना सामान ले आया. नीचे वाले फ्लैट में रख कर चला गया. एक-दो दिन और बीते तो एक बड़ी सी गाड़ी से दो महिलाएँ उतरीं और नीचे वाले फ्लैट में समा गई, उनके साथ ही चार-पाँच साल का एक बच्चा भी था. दो-तीन घंटे तक सामान उलट-पुलट करने की आवाजें आती रहीं. उसके बाद बड़े उम्र की महिला उसी गाड़ी से वापस लौट गईं, युवती और बच्चा नीचे वाले फ्लैट में रह गये. श्यामली जी ने सोचा कि बच्चा दो महीने का बताया था, यह बड़ा लग रहा है.
    पर उन्होंने सोचा, यह पहला बच्चा होगा, दूसरा शायद दो महीने का हो. कोई भी ऐसा ही सोचता. शाम को युवती टहलती हुई नजर आई तो श्यामली जी ने उससे पूछना चाहा पर पूछ नहीं पाईं.लगा ,“युवती कहेगी कि कैसी मकान मालकिन है ,आते पूछ-ताछ शुरू कर दी. बाद में पूछ लूँगी.”
     मयंक प्रतिदिन दस-ग्यारह बजे के आसपास जाता हुआ दिखता. “अपने काम पर जाता होगा”, श्यामली जी के मन में विचार आते. उसके जाने के बाद वह युवती दरवाज़ा- खिड़की पूर्णरूपेण बंद कर बच्चे के साथ स्वयं को फ्लैट में बंद कर लेती.
    दो महीने में उनमें नहीं के बराबर बातें हुईं,युवती ने बस अपना और बच्चे का नाम बताया, “मालिनी और अंकित,” तथा बताया कि वह पास वाले शहर से है तथा वहीं स्कूल टीचर है. शायद तभी वह सोमवार से शुक्रवार तक अक्सर नहीं दिखती थी,पर शनिवार और रविवार को दिखती थी.
     मयंक ने एक बार बताया था, उसका लंबा-चौड़ा परिवार है,पर ससुराल की ओर से मालिनी से मिलने कोई नहीं आता था. बस कभी-कभी मालिनी के माता-पिता और उसकी छोटी बहन मिलने आया करते थे.
   एक महीने तक सब कुछ सहज था, जैसा एक नए जोड़े के दरमियां होता है. दोनों प्रसन्न रहा करते थे. मयंक लगभग प्रतिदिन रात के वक्त लौट आता था.बीतते दिनों के साथ मयंक अब कभी घर लौटता, कभी नहीं भी लौटता. उन दिनों, उस जोड़े को फ्लैट में रहते हुए लगभग दूसरा महीना खत्म होने वाला था…
     मयंक आते-जाते श्यामली जी से टकराता तो बड़ी सुलझी हुई बातें करता. मालिनी से जितना पूछो, उतना ही जवाब देती थी, अल्प-भाषी लगती थी. उन्हें आए हुए
तीन महीने बीतने को थे.
     एक दिन श्यामली जी पहली मंज़िल पर बैठी टीवी देख रही थीं. उनके पति रामेश्वर जी कार्यालय के काम से दौरे पर गए हुए थे. दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई, दरवाज़ा खुलते ही मालिनी अंकित के साथ आई और ड्राइंग रूम में बैठ गई. तीन महीने में वह पहली बार ऊपर(पहली मंजिल पर) आई थी. बोली, “आंटी आपके पास समय हो तो मैं कुछ बात करना चाहती हूँ.” श्यामली जी डिनर कर चुकी थीं, अतः फ़ुर्सत में थीं.
       “आंटी! मयंक आजकल रोज घर नहीं आता है, दो-तीन दिन के अंतराल से आने लगा है. इस बार चार-पाँच दिन हो गए हैं,घर नहीं लौटा है. मेरा कॉल भी बार-बार काट दे रहा है.” श्यामली जी समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहें.
कुछ सोच विचार कर कहा-“ससुराल वालों से मदद माँगो, मेरा तुम पति-पत्नी के मामले में बोलना ठीक नहीं होगा.” मालिनी ने बताया-” जेठ और ननदों को फोन करके इस विषय पर बात करने की कोशिश कर चुकी है,
पर उनका टालमटोल का रवैया स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है.
“माता-पिता को खबर करो”, श्यामली जी ने कहा.
अल्प भाषी मालिनी पूरे रहस्योद्घाटन के मूड में लग रही थी, बताया कि मयंक ने उसे श्यामली जी से बात करने से रोक रखा था.
“आंटी! दरअसल अंकित मेरा बेटा है, मेरे पहले पति से; मैं तलाक़शुदा हूँ, मेरी पहली शादी छः साल पहले टूट चुकी है.उस लड़के ने अपने आपको बैंक कर्मी बताया था. विवाहोपरांत,जब मैं विदा होकर पहुँची,कुछ ही दिनों में जान गई कि वह बेरोज़गार है.उसे अक्सर एक लड़की के फोन आते थे.किसका फोन आता है, पूछने पर टाल जाता. पर सच्चाई कब तक छुपती. मुझे पता चल ही गया कि वह पहले से ही शादीशुदा है;अपने माता-पिता से यह बात उसने छुपा रखी थी, क्योंकि लड़की दलित थी.उसे इस बात का विश्वास भी था कि उस लड़की को उसके सवर्ण माता-पिता बहू के रूप में कभी स्वीकार नहीं करेंगे, पर वह उसके साथ रिश्ता रखना चाहता था.अपनी पहली शादी अपने माता-पिता और मुझसे छुपाने का कारण उसने यही बताया था मुझे.
उसने कड़े शब्दों में मुझे हिदायत दी ,मेरे घर में और मेरे साथ रहना चाहती हो तो यह बात मेरे माता पिता को नहीं पता चले और न तुम्हारे माता-पिता को.किसी तरह गम खा कर दिन काट रही थी. पर बेरोज़गारी का मारा, वह मेरे गहने एक-एक करके बेचने लगा. हमारे झगड़े बढ़ने लगे, कभी-कभी मारपीट की नौबत भी आ जाती थी.ऐसे ही कुछ दूरूह बीतते महीनों के साथ मैं गर्भवती भी हो गई.
मुझ पर स्नेह रखने वाले ससुर जी,तब तक
हमारे रोज-रोज के झगड़ों से काफी कुछ सुन और समझ चुके थे.बदकिस्मती देखिए मेरी, उनको एक असाध्य बीमारी ने जकड़ लिया.जब तक ससुर जी जीवित थे, मैं येन केन प्रकारेण ससुराल में ही रहती रही.
पर ससुर जी के स्वर्गवास के बाद, यह जानकर कि मेरे बेटे के दिल में यह घर न कर सकी है,सासु माँ मुझे मनहूस कहने लगीं. उनका स्वभाव मेरे लिए दिन ब दिन असहनीय होता चला गया.इस विचित्र सी शादी में बँधे रहकर मुझे अपना तथा आने वाले बच्चे का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था. मैंने मायके लौटने और उस नाम मात्र के पति से तलाक लेने का फैसला कर लिया.
       सच उजागर होते ही मेरे माता-पिता मेरे फैसले से सहमत हुए तथा मेरा साथ दिया. पहले से शादीशुदा, ऊपर से बेरोज़गार,उनकी बेटी के साथ बुरा  व्यवहार करने वाला, ऐसे आदमी के साथ बँधे रहने से अच्छा है, मायके में ही रहो-पापा ने कहा. पापा स्वयं को दोष दिए जा रहे थे कि बिना जांच पड़ताल के बेटी दी ही क्यों??
      “बीते सालों में मैंने एक अच्छे स्कूल में नौकरी ढूँढी, जहाँ मैं अभी तक अस्थायी शिक्षक थी. पहले बीसीए थी,
उस ससुराल रूपी कैदखाने से छूटकर एमसीए भी कर लिया था.
     नौकरी करते पाँच साल बीते ,मेरी छोटी बहन रजनी 28 की हो चुकी थी,बैंक में क्लर्क की नौकरी कर रही थी,जब उसकी शादी की बातचीत चलने लगी तो मेरे  अकेलापन से चिंतित उसने इंटरनेट पर शादी(दूसरी) के लिए मेरा प्रोफाइल बनाकर डाल दिया. ताकि दीदी की भी शादी तय हो जाए और दोनों बहनों की शादी साथ में हो सके.
    मयंक भी हालिया दिनों में ही विधुर हुआ था, उसे संभालने और उसके नवजात बच्चे की देखरेख की समस्या को देखते हुए उसके परिवार वालों ने मेरा इंटरनेट पर
डाला गया प्रोफाइल देख कर हमें संपर्क किया.
   पापा ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का बेटा जान बिना जाँच-पड़ताल किए मेरे लिए आया हुआ मयंक का रिश्ता  मेरा अच्छा भाग्य समझकर आनन-फानन में लपक लिया.
यह था,पापा का मेरे लिए किया गया दूसरा लापरवाही भरा फैसला.
     “मयंक के माता-पिता जीवित हैं नहीं, अगर होते तो शायद आज इन विकट परिस्थितियों में उनका आसरा हो सकता था.”
“मेरी दूसरी शादी बड़े विचित्र हालातों में हुई, दोनों
पक्षों  के मेहमान कुल मिलाकर सिर्फ बीस या पच्चीस ही होंगे. मेरे तरफ के नज़दीकी रिश्तेदार और मयंक की तरफ से उसके बड़े भाई, चार बड़ी बहनें और एक भाँजा,बस.
मंदिर में शादी हुई, उसी दिन मेरी विदाई हुई और  इस नए शहर में लाकर आपके घर में मुझे एकांतवास में रखा गया. इस शहर में ज्यादा मैं किसी को जानती पहचानती भी नहीं हूँ. ”
“कुछ दिनों पहले मैंने अपनी नौकरी छोड़ी और स्थायी रूप से यहीं रहने का फैसला किया ताकि मैं मयंक के दो महीने के बच्चे को पाल सकूँ.मयंक को अंकित की उपस्थिति पसंद नहीं थी, इसीलिए मेरी माँ ने मुझे उसके
नवजात बच्चे की देखभाल करने की सलाह दी,ताकि
बदले हालातों में मयंक भी अंकित के साथ जुड़ाव महसूस कर सके.
सम्मत जलने (होलिका दहन) के बाद वह मुझे ससुराल यानी अपनी पुश्तैनी मकान में ले जाने वाला था, कहा था उसने.
     श्यामली जी ने पूछा कि मयंक के बच्चे से मिली हो कि नहीं कभी? मालिनी ने बताया कि जब मयंक के साथ वह एक बार बड़ी ननद के यहाँ गई थी, तब उसके बच्चे से मिली थी.बहुत प्यारा बच्चा है उसका. उससे मिलने के  बाद ही मैंने मां से सलाह मशविरा कर नौकरी छोड़ने का मन बना लिया था. सोचा था, पहले वह छोटा सा बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाए तथा मयंक और अंकित के रिश्ते भी कुछ सुधर जाएं.कुछ महीनों के बाद दोबारा इसी शहर में
ससुराल के घर के आस-पास  कोई नौकरी ढूंढ लूंगी.
क्योंकि होली के बाद वहीं शिफ्ट होने का प्लान था.
     रात काफी हो गई थी, इसीलिए मालिनी नीचे अपने फ्लैट में चली गई, बात अधूरी ही रह गई…
     श्यामली जी को लगा कि मियाँ-बीवी का कोई मामूली सा झगड़ा है, दो-चार दिनों में सुलझ जाएगा. देखा जाए तो दोनों की शादी परस्पर समझौते वाली थी. दोनों के साथ बच्चों के देख-भाल मजबूरी थी, इसीलिए शादी तो निभनी ही चाहिए. पर ऊँट किस करवट बैठने वाला था, यह उन्हें पता नहीं था।
मयंक का आना जाना बंद हो चुका था, मालिनी ने भी अपने आपको फ्लैट के अंदर बंद कर लिया था. मकान मालकिन साथ में एक इंसान होने के नाते उन्हें चिंता होने लगी. फ्लैट में छाई खामोशी उन्हें डराने भी लगी.चिंता के वशीभूत,कुछ दिनों के इंतजार के बाद उन्होंने मालिनी का दरवाज़ा खुलवाया तो देखा कि रोते-रोते उसकी आँखें सूज चुकी हैं, अंकित सहमा सा कोने में बैठा था.
श्यामली जी ने व्यवहारिक सलाह दी कि मयंक तुम्हारा कॉल नहीं ले रहा है और न कॉल बैक कर रहा है.ससुराल वाले अभी कुछ जवाब नहीं दे रहे हैं तो तुम्हें कुछ दिनों के लिए मायके चले जाना चाहिए.
मालिनी ने भरे गले से बताया कि इन बदले हालातों में वह मायके नहीं लौट सकती. उसकी छोटी बहन की शादी की बातचीत चल रही है.उसके लौटने से उसके मोहल्ले तथा रिश्तेदारों में यह बात उठेगी कि बड़ी बहन शादी निभा नहीं पाती तो छोटी बहन क्या निभाएगी? उसका बनता हुआ रिश्ता कहीं टूट न जाए.
 मालिनी की बात सोलहों आने सच थी.हमारा समाज हमेशा लड़कियों में ही दोष ढूँढता है;यह कहने से कभी नहीं चूकता कि आजकल की पढ़ी-लिखी लड़कियाँ रिश्ते निभाना नहीं जानतीं.
      श्यामली जी ने मालिनी से जेठ और ननदों के फोन नंबर लिये तथा उन्हें समझाने की भरसक कोशिश की, वे घर की बहू को लिवा जाएँ. ससुराल पहुँचेगी तो उसे परिवार का सहारा रहेगा, यहाँ तो निपट अकेली है,श्यामली जी सोचतीं.
 ससुराल वालों के अनुसार मयंक शहर से बाहर गया हुआ है, लौटेगा तो मालिनी से मिलने जाएगा. उनके व्यवहार से उनकी टालमटोल की नीति स्पष्ट परिलक्षित होने लगी थी. मालिनी की जिंदगी की बिगड़े हालातों की खबर मिलते ही माता-पिता भी पहुँच गए एवं उसके जेठ और ननद के घर जाकर मसला हल करने की जी तोड़ कोशिश की. नतीजा वही ढाक के तीन पात. उनका व्यवहार यह जता गया कि वे मालिनी को विदा कराने में  रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं रखते.
श्यामली जी ने उसके माता-पिता से दुखित स्वर में कहा कि अगर आपसे एक बार गलती हुई थी तो दुबारा इस नए रिश्ते के लिए अच्छी तरह से जाँच-पड़ताल करनी चाहिए थी. इस बात का कोई जवाब तो नहीं दिया पर मालिनी के पिता बहुत दुखी नजर आए.कहा कि उन्हें लगा था, एक वरिष्ठ पुलिस ऑफिसर का पढ़ा-लिखा परिवार है, सभी भाई-बहन खाते-पीते संपन्न हैं, सब ठीक ही होगा.  यही नहीं जान पाए कि मयंक उस घर का बिगड़ैल छोटा सुपुत्र है.
अब जब उलझ चुके मामले में हमारा उसके जेठ से मिलने आना जाना पड़ रहा है,तब मोहल्ले वालों से पता चला कि वह(मयंक) सिर्फ नेतागिरी करता रहता है, काम-धाम कुछ खास नहीं करता. किसी राजनीतिक पार्टी का महासचिव है,सिर्फ.
कुछ दिन ठहर कर मालिनी के माता पिता अपने शहर लौट गए क्योंकि उनकी छोटी बेटी के रिश्ते की बात चल रही थी. उन्होंने श्यामली जी से मालिनी का विशेष ख्याल रखने की गुजारिश की.
   एक दिन मयंक अचानक से ही प्रकट हुआ, संयोगवश मालिनी उस वक्त घर पर नहीं थी, बाजार गई हुई थी. उसने श्यामली जी से फ्लैट की अतिरिक्त चाबी माँगी. उनकी आंखों में प्रश्न भाँपकर बताया कि शहर के बाहर गया हुआ था, इसलिए बात नहीं हो पा रही थी.आज घंटे-दो घंटे पहले मालिनी से बात हो गई है.
     श्यामली जी ने चाबी दे दी,कुछ देर बाद एक टेंपो नजर आया, उस पर मयंक समान लदवाता हुआ दिखा. उन्हें लगा, हो सकता है मालिनी को साथ ले जाना चाहता हो, इसीलिए फ्लैट खाली कर रहा हो. पूछने पर मयंक ने बताया कि उसके पहले ससुराल वाले अपनी स्वर्गीय बेटी का सामान वापस चाहते हैं, इसीलिए उन्हें वापस करना पड़ेगा. वह जल्दी ही मालिनी के लिए दूसरा फर्नीचर ले आएगा. उनकी समझ में नहीं आया क्या करें, क्योंकि सामान तो उसी का था. मयंक सामान के साथ चला गया.
शाम के वक्त, मालिनी लौटी, तो श्यामली जी को पता चला कि मयंक झूठ बोलकर सामान उठा ले गया है,
मालिनी के साथ उसकी कोई बातचीत नहीं हुई है.उनके
फ्लैट में सिर्फ गैस चूल्हा, सिलेंडर,वाटर फिल्टर और एक चौकी बची हुई थी. उनका दिमाग घूम गया, समझ गईं मामला बहुत पेचीदा हो चुका है.
    कुछेक दिन और बीते, एक दिन नीचे वाले फ्लैट से झगड़े की आवाजें आने लगीं. उन्होंने सीढ़ियों से नीचे जाना चाहा, तब तक आवाजें आनी बंद हो गईं और मालिनी ऊपर आती हुई दिखी. आँखों में आँसू भरे थे, बताया कि मयंक आया था.उसका मंगलसूत्र तोड़ कर ले गया है.यह भी कह गया है कि अब कभी वापस नहीं आएगा, हमारा रिश्ता अब खत्म समझो. मैं भी वापस अपने शहर(मायके) लौट जाऊँ, क्योंकि इस शहर में मेरा कोई ठौर नहीं है.
श्यामली जी को कुछ नहीं सूझ रहा था कि अब क्या कहें? डर भी लग रहा था कि युवा लड़की है, कुछ उल्टा सीधा कर लिया, तो पुलिस केस हो जाएगा. मालिनी देखकर ऐसा लग रहा था कि उसकी भावनाएँ अब नियंत्रण से बाहर हो चुकी हैं. उस दिन के बाद फिर से मालिनी ने अपने फ्लैट के दरवाज़े बंद रखने शुरू कर दिए. श्यामली जी की घबराहट पुनः बढ़ने लगी. उन्हें एक ही रास्ता सूझ रहा था कि अब इस लड़की को अपने पैरों पर खड़ा होने की सलाह दी जाए. वरना इसकी बर्बादी तय है, कहीं डिप्रेशन में न चली जाए.
श्यामली जी के रिश्तेदार और पड़ोसी कहने लगे कि फ्लैट खाली कराइए,कुछ ऊँच-नीच हो गई तो पुलिस के लफड़े में फँस जाइएगा.बात कब तक छुप सकती थी कि एक किराएदार शादी के नाम पर एक लड़की का शारीरिक शोषण कर रहा था,आने का पहले से ही उसे छोड़कर भागने का मन बना चुका था.उनके सामने सारी बातें आईने की तरह साफ होने लगी थीं.
        अब तक मालिनी के लिए श्यामली जी के मन में मोह पैदा हो चुका था. व्यावहारिकता से परे जाकर मदद करना चाहती थीं. उन्होंने उसे सलाह दी कि ऑनलाइन जाकर स्कूलों में रिक्तियाँ ढूँढना शुरू करो,जहाँ भी खाली जगह मिले,आवेदन करो. साक्षात्कार भी देना शुरू करो. पढ़ी-लिखी हो, खाली बैठने से समय नहीं कटेगा.अपने ख़र्च के लिए तुम्हें पिताजी से पैसे मँगवाने पड़ेंगे. पैरों पर खड़ी हो जाओगी तो अपने आप व्यस्त होती चली जाओगी,बुरे ख्याल तुम्हारे दिमाग से कुछ हद तक दूर हो जाएँगे.मालिनी ने कहा कि नये(इस) शहर को जानती नहीं है, इंटरव्यू देने कैसे जाएगी?
जब इन बातों पर फोकस करना शुरू किया, तब कुछ खाली जगह(वैकेंसी) दिखी,उसने इंटरव्यू देने का मन बनाया. शहर को जानती पहचानती नहीं थी,इसलिए  श्यामली जी कागज़ पर नक्शा बना कर देतीं, मोबाइल से संपर्क में रहतीं ताकि सही सलामत इंटरव्यू देकर वापस आ जाए.
 दो-तीन प्रयासों के बाद उसे एक स्कूल में अकाउंटेंट की नौकरी मिली, नौकरी ठीक-ठाक थी पर वेतन ज्यादा नहीं था, पर उसके मन माफिक काम नहीं था.अन्य स्कूलों में भी आवेदन कर रखा था, साक्षात्कार चलते रहे, उसकी अकाउंटेंट की नौकरी भी चलती रही.       अंततः उसे शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल में अच्छी पगार के साथ प्राइमरी सेक्शन में कंप्यूटर टीचर की नौकरी मिल गई. उस नौकरी ने उसका खोया हुआ आत्मविश्वास लौटा दिया.उसके दुखों का इलाज किसी के पास नहीं था पर यह नौकरी उसका और बेटे का संबल बन चुकी थी,वह खर्चे के लिए किसी पर आश्रित नहीं थी. इसलिए बहुत दिनों के बाद आज वह खुश थी और उनके लिए मिठाई लाई थी…
एक प्रतिष्ठित स्कूल की नौकरी, स्कूली बच्चों और उनके पेरेंट्स से मिलता ढेर सारा सम्मान, मालिनी का खोया हुआ आत्मविश्वास वापस लौटने लगा. मुरझाई सी,अंतर्मुखी हो चुकी लड़की पुनः खुलने और खिलने लगी.
मालिनी स्कूटी से रोज ड्यूटी आती-जाती अपने कामकाज में व्यस्त रहने लगी. महीने डेढ़ महीने पर उसके माता-पिता भी दिख ही जाते, उनकी चिंता भी स्वाभाविक थी. उनके हाव-भाव से प्रकट होता कि वे श्यामली जी के लिए सद्भावना रखते हैं.
दिल की चोट छुपाने का लाख प्रयास करे मालिनी, पर अपना दर्द वह श्यामली जी की आँखों से छुपा नहीं पाती थी. स्कूल से आने के बाद अंकित पार्किंग लॉट में खेलता रहता और वह फोन पर लगी रहती थी. बार बार नंबर डायल करती, पर… मयंक का नंबर नहीं लगता. उसके चेहरे की उदासी उसके दिल का हाल बयाँ कर जाती. दिल के किसी कोने में शायद कोई उम्मीद अभी भी बाकी थी. पाँच साल के अकेलेपन के बाद तीन महीने का ही सही, पति का  सानिध्य भूल नहीं पाती थी. किसी चमत्कार की उम्मीद उसे अब भी थी.
श्यामली जी के पूछने पर कहती, “आंटी आपसे झूठ नहीं बोलूँगी, अभी भी दो-चार कॉल कर ही लेती हूँ, नॉट रिचेबल बताता है.” उसके आगे श्यामली जी भी कुछ नहीं पूछतीं…।
एक युवा लड़की की तड़प और उसकी बची हुई पहाड़ जैसी जिंदगी… इन बातों में क्या प्रश्न पूछे कोई? कहीं न कहीं उनके मन में भी दबी हुई उम्मीद थी कि बेवकूफ़ मयंक को सद्बुद्धि आ जाए, इस पढ़ी-लिखी सुशील लड़की की कीमत महसूस करे और इसका हाथ थाम कर ले जाए.
हिंदुस्तान की अजीबोगरीब परंपरा है, पति कितना भी सताए, जीवन की मंझधार में छोड़ गुम हो जाए, पर पत्नियाँ उसके सुधरने और लौट आने की राह तकते-तकते सारी जिंदगी निकाल देती हैं. खैर…
मयंक को ग़ायब हुए कुछ और महीने बीत गए. मालिनी ने उसे फोन करना भी लगभग बंद कर दिया. उसकी जिंदगी के पहले अध्याय की तरह यह अध्याय भी समाप्त हो चुका है, स्वीकार कर चुकी थी. छः दिन ड्यूटी करती, शनिवार की शाम को बस लेकर माता पिता के पास चली जाती. सोमवार को वहीं से स्कूल चली जाती, फिर सोमवार की शाम को श्यामली जी के फ्लैट में वापस. जिंदगी एक ढर्रे पर कटती चली जा रही थी, उसकी व्यस्तता और बीतता समय दु:खों पर मरहम का काम कर रहा था.
पर मालिनी की किस्मत को अभी कहाँ चैन आया था. एक दिन बिजली विभाग का छोटा-मोटा ठेकेदार, जो श्यामली जी के छोटे भाई का परिचित भी था, बिजली के काम से उनके घर आया. मकान नया था, रोज नया झमेला लगा ही रहता था. काम खत्म होने के बाद चाय पीते हुए मालिनी की बात चल निकली.
श्यामली जी ने कहा, “कैसे कैसे लोग होते हैं?”
“क्या हुआ दीदी! खुलकर बताइए,तब तो समझूंगा?”
श्यामली जी ने पूरी घटना कह सुनाई, क्योंकि उन्हें पता था कि वह लड़का(बिजली ठेकेदार) मयंक के पास वाले मोहल्ले से ही है. बिजली विभाग में काम करने के कारण उसका आसपास के तीन-चार मोहल्लों के हरेक  घर में आना जाना है. उससे कुछ न कुछ खबर ज़रूर मिल जाएगी.
मयंक का नाम सुनते ही वह चौंका, “अरे दीदी! नेताजी की बात कर रही हैं? सिर्फ नेतागिरी करता है, काम धंधा कुछ खास नहीं है. क्या लड़की के माता-पिता ने ठीक से पता नहीं लगाया था?”
“अरे नहीं! सिर्फ आला पुलिस अधिकारी का बेटा समझकर लड़की दे दी, क्योंकि वह लड़की भी एक बच्चे की माँ थी और एक बच्चे के साथ दूसरी शादी के लिए कोई वर नहीं मिल रहा था.”
“फिर भी दी! ऐसे लड़के से शादी करने से बढ़िया…”, आगे कुछ बोलना उसे शायद उचित नहीं लगा, “चलता हूँ दी! मयंक की कुंडली निकाल कर आपको बताता हूँ कि वह अभी कहाँ है और क्या कर रहा है?”
“ओके भाई!” कह कर उसे गेट तक विदा कर आईं.
दो दिन तक कोई फोन नहीं आया तो थक हार कर श्यामली जी ने खुद ही फोन किया, “कुछ पता चला कि नहीं?”
“हाँ दीदी! पता तो चला, पर बताने की हिम्मत नहीं हो रही थी.”
“जो भी सच है बताओ, सामना कर लेगी बेचारी. पूरी जिंदगी के इंतजार से तो यही अच्छा है. इंतजार एक ऐसी सजा है, जिसमें इंसान कुछ कहता नहीं, बस घुलता जाता है. मयंक का अच्छा-बुरा जो भी समाचार हो, मुझे बता दो, मैं मालिनी को समझा लूँगी.”
       “मैंने पता किया था दी, मयंक के आसपास के घरों से; क्योंकि बिजली मीटर से बिजली चोरी तो नहीं हो रही है, यह पता लगाने मुझे मोहल्ले के हर घर में जाना पड़ता है. मैंने मयंक के पड़ोसियों से पूछताछ की तो जो पता चला,उसकी  पुष्टि करने के लिए मैं एक नये मोहल्ले में गया, जहाँ मयंक आजकल एक और किराए के फ्लैट में नई नवेली तीसरी पत्नी के साथ रह रहा है.उस दिन आपके फ्लैट से टेंपो से अपना सामान ले जाने के बाद, उस इंसान ने अपनी तीसरी गृहस्थी बसाई है.”
“हे भगवान! अब यह नई तीसरी पत्नी कहाँ से आ गई?”
“दीदी! तीसरी पत्नी और कोई नहीं, उसकी
स्वर्गवासी पहली पत्नी की छोटी बहन, यानि उसकी पूर्व साली साहिबा हैं?”
“जब साली से शादी करनी थी तो फिर मालिनी की जिंदगी क्यों खराब की? इस बात की जानकारी है तुम्हें?”
“मयंक के घर के सबसे नजदीकी पड़ोसी-मकान वाले ने बताया था कि उसकी पहली पत्नी अत्यंत खूबसूरत थी, उसकी छोटी बहन भी उतनी ही खूबसूरत है. मयंक को वह पहले से ही पसंद थी. पर उसके पूर्व ससुर उसके पास खास काम धंधा न होने से दूसरी बार उसे ही बेटी देने को तैयार नहीं हुए. साली साहिबा की शादी की बात कहीं और चल रही थी. पर यह ससुराल आता जाता रहा.खूबसूरत तो है ही, अपनी खूबसूरती का जाल बिछा, साली साहिबा के दिल में अपनी जगह बनाई और भगा लाया.
“अच्छा!’ तभी मयंक बीच-बीच में गायब हो जाता था.पूछने पर संबंधी बताते थे कि शहर से बाहर गया है.शहर से बाहर यानी पूर्व ससुराल.”श्यामली जी ने कहा.
हाँ दीदी, ठीक सोच रही हैं.लड़की जब मयंक के साथ भाग ही आई, तब पूर्व ससुर जी ने इज़्ज़त बचाने के लिए उन दोनों की शादी करा दी. जहाँ तक मुझे लगता है, उन्हें मयंक के दूसरे विवाह(मालिनी के साथ) का पता भी नहीं होगा. उन्हें अपनी स्वर्गवासी पुत्री के बच्चे की चिंता होगी, तभी समझौता किया होगा.”
“तुम्हारे परिश्रम का धन्यवाद भाई!” एक ठंडी साँस छोड़कर श्यामली जी ने फोन काट दिया. मालिनी को इन जानकारियों से अवगत कराने के लिए उसे ऊपर पहली मंज़िल पर बुलाया. सारी हक़ीकत बयान की.
कहा, “मालिनी! तुम्हें पुलिस की मदद लेनी चाहिए.
      “नहीं आंटी! पहले पति से तलाक लेने के चक्करों में कितने पुलिस और कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़े थे. दुनिया भर की बदनामी सही थी अलग. अब और नहीं होगा मुझसे.”मालिनी ने कहा.
          “मेरी जिंदगी की जद्दोजहद कभी खत्म नहीं होने वाली,इसका कारण मेरी किस्मत और मेरा औसत से भी कम सुंदर होना है.”
“ऐसा क्यों कहती हो, अच्छी तो दिखती हो तुम.” श्यामली जी बोलीं.
” आंटी! ऐसा आप कहती हैं, मैं जानती हूं, मैं सिर्फ फोटोजेनिक हूँ,तभी फोटो देखते ही मयंक ने मुझे पसंद कर लिया होगा, बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ होगा.अच्छे नयन-नक्श के बावजूद मेरा सांवला रंग और मेरे दाँतो के बीच के गैप्स(रिक्त स्थान) मुझे असुंदर बना जाते हैं, तभी मेरी शादी नहीं टिकती.” उसके दुखते दिल के उद्गार थे.
“छोटी बहन की शादी लगभग तय हो गई है. मेरी किसी नासमझी की काली छाया उस पर न पड़े, बस इतनी ही दुआ है ईश्वर से.” अपनी आँखों की नमी छुपाने के लिए  सर झुकाए अपने फ्लैट में लौट गई, क्योंकि अंकित को नीचे सोता हुआ छोड़ आई थी.
दो-चार महीने बीतते-न-बीतते मालिनी के चेहरे पर पुनः मुस्कान ठहरने लगी, क्योंकि अब जिंदगी के
रास्ते नियत हो चुके थे,किसी परिवर्तन की उम्मीद छोड़ दी थी उसने. अंकित की शैतानियाँ हदें पार करने लगी थीं. उसका बातूनी होना मालिनी के जख्मों पर मरहम जैसा था. वह मालिनी को काफी हद तक व्यस्त रखता.
पर समय चक्र रुकता कहाँ है, कुछ और कुचक्र रचने में लगा था. श्यामली जी के पति का एक अन्य शहर में तबादले का आदेश आ गया. पति-पत्नी घर में कुल जमा दो ही लोग थे, बच्चे अपनी अपनी नौकरियों में व्यस्त. मध्य वयस में अकेले रहना मुश्किल सा था.पति-पत्नी में किसी न किसी की तबियत खराब होती ही रहती थी. अतः तय हुआ कि श्यामली जी पति के साथ ऊपरी मंजिल बंद करके नए शहर में शिफ्ट हो जाएँगी.
पर मालिनी की भी चिंता थी और सूने घर की भी. समय इतना खराब कि चौबीस घंटे बीतते- न-बीतते ताला तोड़कर चोर घर की साफ- सफाई कर देते. दोनों ही समस्याएँ गंभीर थीं। क्या करें, क्या न करें?
       एक परिचित केयरटेकर(पास के हॉस्पिटल का कंपाउंडर) की तलाश की गई.उसने कहा, “मैं कुछ दिनों में यहाँ शिफ्ट हो जाऊँगा.दिन-रात रहना अभी संभव नहीं है; बस रात के वक्त आकर पार्किंग लाॅट या गैरेज में सो जाया करूंगा; सवेरे उठकर चला जाऊँगा.”
श्यामली जी अपने पति के साथ अगले महीने सीमित सामानों के साथ दूसरे शहर में शिफ्ट हो गईं.बाकी सामान घर में ही छोड़ा ताकि आने जाने की गुंजाइश बनी रहे. केयरटेकर या उसकी पत्नी रात के वक्त दस बजे के बाद आकर गैरेज में सो जाया करते. उन्हें उम्मीद थी, सब अनुशासित हो जाएगा. पर नहीं…
किसी दिन भी केयरटेकर को आने में देर हो जाए तो मालिनी के फोन पर फोन आने लगते, “आंटी मुझे बहुत डर लग रहा है, मैं यहाँ आपके बिना ज्यादा दिन तक नहीं रह पाऊँगी। या तो आप यहाँ आ जाएँ या मुझे कोई और रास्ता ढूँढना पड़ेगा.”
“माँ को बुला लो”, श्यामली जी ने कहा.
“माँ ज्यादा दिन तक नहीं रह पाएँगी, आंटी! पापा भी वहाँ अकेले हैं.”
मालिनी के डर की समस्या हल भी नहीं हुई थी, तब तक केयरटेकर ने टका सा जवाब दे दिया, “मेरा अपने मकान मालिक के साथ कुछ टंटा था, सुलझ गया है, अब मैं आपके यहाँ नहीं आना चाहता.”
शायद कंपाउंडर साहब के घर-किराया बढ़ने की बात थी पर किराया नहीं बढ़ा तो उसे अपनी पुरानी जगह पर रहने में ही लाभ दिखा तथा उसने आने से इंकार कर दिया.यह खबर लगते ही मालिनी के डर का कोई पारावार न रहा; आंटी भी नहीं है और केयरटेकर भैया भी इधर
नहीं रहने वाले हैं.
श्यामली जी फिर वापस (अपने घर) आईं, नया केयरटेकर ढूँढा।अपने पुराने पेंटर को केयरटेकर के रूप में सपरिवार घर के गैरेज के ऊपर बने स्टोर को खाली करके
रहने को दे दिया. पेंटर अपनी पत्नी और बेटी के साथ आ गया. तदोपरांत श्यामली जी अपने पति के पास लौट गईं.                      इधर मालिनी का डर कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था,क्योंकि नये केयरटेकर की पत्नी काफी झगड़ालू प्रवृत्ति की महिला निकली।श्यामली जी सिर्फ अपने पेंटर के स्वभाव से अवगत थीं, उसकी पत्नी के नहीं.
       मालिनी के फोन पुनः आना शुरू हो गये “केयरटेकर भैया अच्छे हैं, पर भाभी(पेंटर की पत्नी) लगातार अपने पति से झगड़ा कर रही हैं  कि वह इस सुनसान मकान में नहीं रहना चाहतीं.मेरी तरह उन्हें भी खाली पड़े हुए मकान
से,जहाँ कुछ दूर तक आबादी भी बहुत कम है, में रहने से डर लग रहा है.
“आंटी! यहाँ मयंक का भी खतरा बना हुआ है, अपनी दूसरी शादी (मेरे साथ) छुपाने के लिए मौका देखकर मेरे साथ कुछ गलत कर बैठे तो”, मालिनी का डर स्वभाविक था.” उसे समझाने की धैर्यपूर्वक कोशिश करने पर भी लाभ नहीं दिखा उन्हें.
      दूसरे रास्तों की तलाश शुरू हुई. श्यामली जी के
कॉलेज के जमाने का एक मित्र मालिनी के स्कूल के आसपास के क्षेत्र में रहता था, उसका पुश्तैनी मकान था वहाँ. उसे फोन किया श्यामली जी ने कि अपने क्षेत्र में कोई घर ढूँढो,क्योंकि मेरी किराएदार उसी क्षेत्र में नौकरी करती है और शिफ्ट होना चाहती है. श्यामली जी के दोस्त तथा  मालिनी ने अपनी अपनी तरफ से प्रयास शुरू कर दिए. समय लंबा लगता देख श्यामली जी अपने पति के पास लौट गईं.
     इधर नए घर की तलाश जारी थी.जब भी मालिनी को कोई नया किराये का घर देखना होता,उसके पिता अपने शहर से एकाध दिन के लिए चले आते ताकि उसके साथ जाकर मकान मालिक से मिल सकें.
     अकेली लड़की को कोई भी मकान मालिक घर नहीं देना चाहता,दुनिया का दस्तूर. एक-दो महीनों के सम्मिलित प्रयास से रहने योग्य एक छोटा सा फ्लैट, उसके स्कूल के  निकट मिल गया. श्यामली जी अगले महीने फिर लौटकर आईं.तदोपरांत मालिनी फ्लैट की चाबी उनके हवाले कर स्कूल के बगल वाले नए घर में शिफ्ट हो गई.
     पर श्यामली जी की कनेक्टिविटी व्हाट्सएप के कारण उसके साथ बनी रही, जब तक वह अपने नए माहौल में रच बस नहीं गई. वैसे वहाँ भी सब ठीक-ठाक ही था पर लड़की को अकेला रहता देखा तो नए घर में मकान मालिक और पड़ोसियों ने खोद-खोद कर पूछना शुरू किया कि तुम्हारे पति कहाँ हैं, साथ क्यों नहीं रहते?
दरअसल उसने सामाजिक सुरक्षा के ख्याल से  सिंदूर धारण करना नहीं छोड़ा था. कुछ दिनों तक सवाल पूछे जाते रहे, फिर लोग शांत हो गए. उसने कह दिया कि उसके पति गाँव में खेती-बाड़ी करते हैं, वह शहर में नौकरी करती है,उन्हें आने की फ़ुरसत नहीं मिलती, वही चली जाती है.लगभग प्रत्येक सप्ताह वह मायके आती जाती रहती थी, इसलिए लोगों ने विश्वास भी कर लिया.
जब भी कुछ नया होता है उसकी जिंदगी में, वह अपना डीपी चेंज करती; जैसे उसके मायके में पूजा, छोटी बहन की मंगनी या छोटी बहन की शादी. डीपी पिक्चर बदलते रहे, ख़बरें मिलती रहीं. वह डीपी में सुहागन की वेशभूषा में ही नजर आती, सही भी था…सुरक्षा के दृष्टिकोण से शायद–
    करीब एक साल बीता था उसकी शिफ्टिंग को, तभी एक दिन एक स्क्रीनशॉट आया व्हाट्सएप पर. पढ़ाई से जी चुराने वाला अंकित पहली कक्षा में प्रथम आया था, वह भी 99.2% अंकों के साथ. श्यामली जी को एक सुकून सा महसूस हुआ, जैसे एक नैतिक ज़िम्मेदारी खत्म हो गई हो.
दो-चार महीने में श्यामली जी और मालिनी में कभी-कभार कुछ व्हाट्सएप से आदान-प्रदान हो जाता, वह भी धीरे-धीरे कम होते-होते खत्म हो गया. उन्हें खुशी ही हुई, एक डरी सहमी लड़की अपने फैसले खुद करने वाली और किस्मत की ठोकरों से हार नहीं मानने वाली एक मजबूत लड़की में बदल गई होगी, तभी फोन और मैसेज करने का वक्त नहीं मिलता होगा.
उसे अपने बच्चे, स्वयं और अपने माता-पिता (दो बहनें ही थी) सबकी देखभाल करनी थी.
इस संगदिल दुनिया में जीने के लिए मजबूत तो होना ही था उसे,चारा भी क्या था??
पटना साइंस कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय से जंतु विज्ञान में स्नातकोत्तर। पिछले डेढ़ वर्षों से देश के समाचार पत्रों एवं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लघुकथायें अनवरत प्रकाशित, जैसे वीणा, कथाबिंब, डिप्रेस्ड एक्सप्रेस, आलोक पर्व, प्रखर गूँज साहित्यनामा, संगिनी, मधुरिमा, रूपायन, साहित्यिक पुनर्नवा भोपाल, पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका, डेली हिंदी मिलाप-हैदराबाद, हरिभूमि-रोहतक, दैनिक भास्कर-सतना, दैनिक जनवाणी- मेरठ इत्यादि। संपर्क - maurya.swadeshi@gmail.com

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