विश्व साईकिल दिवस पर साईकिल पर तय की गई अनूठी लेकिन सच्ची व अविश्वसनीय प्रेम कहानी
ये कहानी है भारत के एक दीवाने और स्वीडन की राजकुमारी के अद्भुत प्रेम की एक ऐसा दीवाना जो मुहब्बत की ख़ातिर तीन महाद्वीप पार कर गया। आठ देशों को नाप गया। ये कहानी है इस दौर के इश्क की। विश्व साइकिल दिवस पर उन्हें सलाम।
मुहब्बत की इस दास्तां के किरदार इसी ज़मीन के हैं लेकिन उनकी कहानी परियों जैसी है। जिसमें मिलन है। जुदाई है। जुनून है। हौसला है। और सबसे बड़ी बात प्यार को निभाने का वो जज्बा है जिसने इनकी प्रेमकहानी को असाधारण बना दिया जो भी सुनता है वो यही कहता है, ऐसा भी होता है क्या ?
कहानी के दो किरदार हैं। उड़ीसा के पी के आनंदिया और स्वीडन की राजकुमारी शारलेट की। उड़ीसा के आनंदिया को रंग भरने का शौक था। वो रंग जो ज़िंदगी की तस्वीर बनाते थे। ये अलग बात है कि ग़रीबी की वजह से उनकी खुद की ज़िंदगी बेरंग थी। प्रद्युम्न अपने पिता से योग सीखते थे और मां से ज़िंदगी की बारीकियां। जब कभी ग़रीबी हावी होती तो उनकी मां कहा करती थीं बेटा उदास मत होना एक दिन तुम्हारी ज़िंदगी में दूर कहीं से परी जैसी एक लड़की आएगी उसकी आवाज़ में एक संगीत जैसा जादू होगा और उसके खुद के बड़े बड़े बागान होंगे
मां की बात से हौसला मिलता और उम्मीदें पंख लगाकर उड़ने लगतीं। आनंदिया को यकीन हो गया था कि वाकई ऐसा ही होगा।
कुछ करने की ललक प्रद्युम्न को उड़ीसा से दिल्ली ले आई। कॉलेज ऑफ आर्ट में प्रद्युम्न ने दाखिला ले लिया। धीरे धीरे प्रद्युम्न की पेंटिंग्स चर्चाओं में आने लगीं और उनकी पहचान एक अच्छे पेंटर की तरह बनती चली गई प्रद्युम्न महानंदिया ने कैनवास पर जो रंगों की रंगोली शुरू की उससे उनकी ज़िंदगी में भी रंग भरते चले गए। लोग उनकी पेंटिग्स को खरीदने और देखने के लिए उनके पास आने लगे। प्रद्युम्न कुमार महानंदिया को लोग अब सम्मान से पीके कहने लगे
कहानी के असली पात्र
शौहरत की तरफ़ तेज़ी से कदम बढ़ाते पीके ने एक दिन उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तस्वीर बनाई। तस्वीर इतनी शानदार बनी कि उसकी खबर इंदिरा गांधी तक पहुंची और इंदिरा गांधी ने पीके से मुलाकात की। इस वाकये के बाद पीके की ज़िंदगी बदल गई। पीके दिल्ली के दिल क्नॉट प्लेस में बैठकर पेंटिग्स बनाने लगे। देश दुनिया के लोगों की नज़र उन पर पड़ने लगी। 
एक दिन पीके रोज़ की तरह रंगों से किसी लम्हे को तस्वीर में ढाल रहे थे कि एक आवाज़ सुनाई दी वो आवाज़ थी शारलेट की शारलेट स्वीडन से आई थी और वो पीके की पेंटिग्स देखना और खरीदना चाहती थी। बात बात में शारलेट ने बताया कि वो स्वीडन के राजपरिवार से हैं और उसका घर बड़े बड़े बागों के बीच में है। बागों वाली बात सुनते ही पीके को मां की बात याद आ गई और शारलेट की आवाज़ का संगीत उसके कानों में गूंजने लगा। पीके के दिल से आवाज़ आई यही तो है वो परी जिसका उसे ना जाने कब से इंतज़ार था।
शारलेट को पीके महानंदिया की सादगी भा गई। पीके के लिए तो वो सपनों की राजकुमारी थी। पहली ही मुलाकात में दोनों एक दूसरे को दिल दे बैठे और शुरू हो गया मुहब्बत का अफसाना
बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो मुलाकातें भी होने लगीं और एक दिन पीके महानंदिया ने शारलेट को उड़ीसा घूमने आने की दावत दी। शारलेट पीके के गांव पहुंच गईं।
शारलेट जहां से आई थी वो दुनिया यहां के लोगों के ख्वाबों की दुनिया थी। लेकिन  महानंदिया की सोहबत में शारलेट को ये दुनिया अच्छी लगने लगी। शारलेट और पीके महानंदिया हिंदुस्तानी रीति-रिवाज के मुताबिक शादी के बंधन में बंध गए। शारलेट ने अपना नाम चारुलता रख लिया..
ये इश्क का आगाज़ था। अंजाम की दोनों को कोई चिंता नहीं थी। लेकिन हां इंतेहा अभी बाकी थी। क्योंकि शारलेट कुछ ही दिनों के लिए भारत आई थी। कहते हैं कि अच्छे दिन पंख लगाकर उड़ जाते हैं। ऐसा ही हुआ, शारलेट के वीज़ा की मियाद खत्म हो गई और वो वापस अपने देश लौट गई। लेकिन जाते जाते उसने वादा किया कि हम फिर मिलेंगे….
शारलेट चली गई और उसके साथ ही चला गया पीके महानंदिया के दिल का सुकून अब रंग थे, कैनवास था, ब्रश थे लेकिन तस्वीर बनाने को जी नहीं करता था। दूसरी तरफ राजकुमारी शारलेट को भी महलों के एशो आराम चुभने लगे और बार बार उनका दिल महानंदिया की यादों के रास्ते हिंदुस्तान में भटकने लगा। फिर से मिलने की उम्मीद का धागा उन खतों के ज़रिए जुड़ा हुआ था जो दोनों एक दूसरे को लिखने लगे। लेकिन खत पल भर की खुशी तो देते थे। उम्र भर का करार अब भी दूर था।
एक रोज़ शारलेट ने खत में एक पेशकश की
मैं तुम्हारे लिए हवाई टिकट और ज़रूरी सामान भेज रही हूं तुम टिकट मिलते ही चले आना
 -चारूलता
लेकिन पीके महानंदिया के खुद्दार दिल ने इस पेशकश को स्वीकार नहीं किया और तय किया कि अब वो खुद अपने दम पर स्वीडन जाएगा, अपनी पत्नी को लेने। पी के महानंदिया ने, जो कुछ भी उनके पास था वो बेचकर एक साईकिल खरीदी जेब में रंग और ब्रश रखे और निकल पड़े उस रास्ते पर जो आग का एक दरिया था जिसमें उन्हें डूब कर जाना था। पीके महानंदिया अपनी ही धुन में निकल पड़े। उन्हें मालूम था कि वो जो कर रहे हैं वो आसान नहीं लेकिन वो इश्क ही क्या जो मुश्किल राह ना चुने। अब इश्क था तो था।
साईकिल के सहारे दिल्ली से अमृतसर..अमृतसर से अफगानिस्तान…अफगानिस्तान से ईरान…टर्की..बुल्गारिया…युगोस्लाविया..जर्मनी, ऑस्ट्रिया होते हुए पीके महानंदिया डेनमार्क पहुंच गए
22 जनवरी 1977 को शुरु हुआ सफर 28 मई को यूरोप पहुंच गया। इस बीच ना जाने कितनी बार साईकिल टूटी। कितने दिन भूखे गुज़ारे। कितनी रातें दर्द में काटीं लेकिन शारलेट से मिलने की चाह के आगे हर मुश्किल बस एक इम्तेहान थी और पीके महानंदिया को उसे हर हाल में बस पार करना था
महानंदिया एक दिन स्वीडन के गोथनबर्ग पहुंच गए। उस स्वीडन में जहां उनकी राजकुमारी रहती थी। वो राजकुमारी जो उनकी पत्नी थी। वो राजकुमारी जो हिंदुस्तान में उनसे दोबारा मिलने का वादा करके आई थी
ये उन दिनों की बात है जब बहुत से देशों में वीज़ा मायने नहीं रखता था। लेकिन फिर भी साईकिल पर घूमते एक अजनबी को देखकर पुलिस ने पीके महानंदिया को रोक कर पूछताछ की और महानंदिया ने उन्हें अपने इश्क की दास्तां सुना दी। एक आशिक सात समंदर पार करके अपनी प्रेमिका से मिलने साईकिल से आया था। यकीन करना मुश्किल था। लेकिन यही सच था। क्योंकि महानंदिया का धड़कता दिल और संभाल कर रखीं तस्वीरें इस बात की गवाही दे रही थीं।
शारलेट और पीके
यह मुमकिन था कि शारलेट पीके महानंदिया की मुहब्बत को एक धोखा कह देती। एक भूल कह देती और महानंदिया को पहचानने से ही इंकार कर देती लेकिन फिर वो इश्क ही कहां होता। खबर मिलते ही शारलेट गोथेनबर्ग पहुंच गई। और महानंदिया को अपने महल में ले आई। ये महल बिल्कुल वैसा ही था जैसा कभी पीके महानंदिया की मां कहा करती थी। 
शारलेट के राजपरिवार ने पीके महानंदिया के प्यार के आगे सिर झुकाया और उन्हें अपनी बेटी का पति स्वीकार कर लिया। जबकि इससे पहले कोई अश्वेत या गैर शाही परिवार का व्यक्ति कभी उनके परिवार का हिस्सा नहीं बना था।
पीके महानंदिया और शारलेट के प्यार को मंज़िल मिल गई। दोनों ने जो वादा किया था एक दूसरे से वो पूरा हुआ। महानंदिया अब भी अक्सर साईकिल चलाते हैं। शारलेट अब भी अक्सर पेड़ के नीचे उनका इंतज़ार किया करती हैं। दोनों के दो बच्चे हैं। जिन्हें अपने पैरेंट्स के प्यार पर गर्व है। महानंदिया अब भी कोरे कैनवास पर ज़िंदगी के रंग भरते हैं। वो हिंदुस्तान और स्वीडन के बीच उड़िया संस्कृति के ब्रैंड एंबेस्डर हैं। स्वीडन सरकार ने उनके प्यार के सम्मान में कई फिल्मस बनाई हैं जिन्हें शान से दिखाया जाता है। 
महानंदिया और शारलेट जब भी हिंदुस्तान आते हैं उनका प्यार नौजवानों की कहानी की तरह मचल उठता है वो नाचते हैं, गाते हैं और अपनी मुहब्बत का जश्न मनाते हैं जैसे उनके इश्क की कहानी..कल की ही बात हो, राजकुमारी ने कहा था मुझसे मिलने आओगे क्या..प्रेम ने कहा मैं तुम्हारा ही था, मैं तुम्हारा ही हूं, हर जनम में तुम्हारा रहूंगा सदा।
डिप्टी एग्ज़ीक्यूटिव प्रोड्यूसर आजतक इंडिया टुडे टी वी नेटवर्क भारत संपर्क - pankajdwijendra@gmail.com

1 टिप्पणी

  1. “मुझसे मिलने आओगे क्या..प्रेम ने कहा मैं तुम्हारा ही था, मैं तुम्हारा ही हूं, हर जनम में तुम्हारा रहूंगा सदा।”

    अद्भुत !

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