Saturday, July 27, 2024
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हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में डॉ. पद्मा मिश्रा का लेख – हमारी एकता और अखंडता में हिंदी की भूमिका

मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती
भगवान भारत वर्ष में, गूंजे हमारी भारती
हमारी हिंदी सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों की वाहिका बन विश्व भर में छा जाए, विश्व बंधुत्व की पवित्र भावना का उद्घोष जन जन के कंठो से मुखरित हो,शायद आज हर भारतीय और राष्ट्रप्रेमी की कामना यही होगी,,
वह हमारी अस्मिता है, सृजन यात्रा का पाथेय बन विश्व को राह दिखाती रही है।, हिंदी के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती, काश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधकर, विविध भाषाओं, धर्मों, संस्कृतियों को एक माला की तरह पिरोने वाली हिंदी आज हमारी पहचान है,।,हम चाहे बंगला भाषी हों या तमिल, पंजाबी,गुजराती उन्हें समझने के लिए हिंदी ही एक मात्र वो माध्यम है जो अभिव्यक्ति के आदान प्रदान में सहायक हो सकती है।
किसी भी राष्ट्र की प्रगति, और विकास उसकी भाषा,बोली, परिवेश, संस्कृति के आधार पर ही संभव हो सकता है।यदि अभिव्यक्ति सहज,सरल और सर्वजन ग्राहृय हो तो समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़ने का मार्ग आसान हो जाता है, और हम विकास की योजनाओं को सरलता से जारी रख सकते हैं,।
अपनी संस्कृति,अपनी धरती,अपना आकाश अपना राष्ट्र,अपना संविधान,,अपना भोजन,अपनी संस्कृति की अवधारणा जहां हो वहां अपनी भाषा की परिकल्पना भी अनिवार्य है,, और होनी चाहिए,,।
हमारे देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिन्दी है,या यूं कहें कि हिंदी भारत की आत्मा है, उसके अंतर्गत आने वाली विभिन्न उप बोलियां भी हों और उनसे जुड़ने और उनको समझने के लिए भी हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करना जरूरी है।
एक भाषा के रूप में हिन्दी न सिर्फ भारत की पहचान है, बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति और संस्कारों की सच्ची सवाहिका भी है,, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी ने कहा था*निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को मूल,बिनु निज भाषा ज्ञान के,मिटत न हिय को शूल*
*****सांस्कृतिक भाषा ही किसी देश की संपर्क भाषा होती है, इसमें कोई संदेह नहीं और वर्तमान संदर्भ में हिन्दी ने इसके पर्याप्त गुण अर्जित कर लिए हैं। निश्चय ही हिन्दी भाषा की यह समाहार शक्ति हमारे देश की भावात्मक एकता को सुदृढ करने में सहायक होगी*।
सचमुच विकास की पहली सीढ़ी होती है भाषा, और भारत को समझने, जानने और उसकी अंतरात्मा को महसूस करने के लिए हिंदी का ज्ञान आवश्यक है. क्योंकि यह सबसे अधिक सुगम,सरल और सहज भाषा है, वैज्ञानिक भाषा होने के कारण भी यह विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है, और विश्व भर में हर जगह बोली और समझी जाती है।भारत की संस्कृति, ज्ञान विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पौराणिकता से परिचित होने के लिए भी हिंदी साहित्य का ज्ञान होना अति आवश्यक है ।
स्वतंत्रता बाद के समय में हिंदी का क्रमिक विकास हुआ है, राष्ट्रभाषा के रुप में तो सर्व विदित है ही, विशेष प्रयोजनों में प्रयोग आने के कारण भी अनेक स्वरुप मिले हैं*राजभाषा हिंदी,, तकनीकी हिन्दी, कामकाजी हिंदी,जो उसके विकास की पहचान बने हैं ।
स्वतंत्रता के लिए लड़े जाने वाले संघर्ष में,जब पूरे देश में देश के लिए मर मिटने की बारी आई तो हिंदी ही सिरमौर और अद्भुत मार्गदर्शक बन कर सामने आई थी–
जिसको न निज गौरव तथा निज देश पर अभिमान है,
वह नर नहीं,नरपशु निरा है, और मृतक समान है,
कबीर, सूर, तुलसी की संवेदना को जन-जन तक पहुंचाने वाली हिंदी आज भी सर्वाधिक लोकप्रिय और सुपरिचित भाषा है,, इसके अंतर्गत आने वाली उप भाषाओं और लिपियों ने भारतीय मानस की आत्मा को छुआ है,। अवधी में तुलसी ने लिखा तो हर घर के आंगन में हिंदी/मानस के गीत गाए गए,,राम और सीता के त्याग और माता पिता के प्रति पुत्र के कर्तव्यों और राम राज्य की परिकल्पना को दुनिया ने समझा —
*राम राज बैठे त्रिलोका, हर्षित भयउ गयउ सब शोका *इसी रामराज्य की कल्पना ने गांधी जी के घोषित रामराज्य के स्वप्न को साकार करने के लिए उद्घोष किया था,जन जन तक देश के इस विकास के सपने ने जन्म लिया था,।.देश को सभ्यता और संस्कृति की अनमोल विरासत सौंपने वाली हिंदी की पवित्र राम चरित मानस ने अभूतपूर्व योगदान दिया है,। मानवीय संबंधों की गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखने में मानस की महती भूमिका है,*जिय बिनु देह नदी बिनु बारी,तैसिय नाथ पुरुष बिनु नारी*यह भारत की संस्कृति है जहां स्त्री पुरुष दोनों समान सम्मान के अधिकारी हैं,।
कबीर ने अपने उपदेशों और दोहों में विश्व बंधुत्व की भावना को संजोया है, हिंदू मुस्लिम, सिख ईसाई और निम्न, उच्च वर्ग सभी उनकी दृष्टि में समान थे,–
कंकर पत्थर जोरि कै, मस्जिद लगती बनाया,
ता चढ़ मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय??
हिंदू अपनी करें बड़ाई,गागर छुअन न दे ई
वेश्या के पायन तर सोवे,यह कैसी हिदुआई*
हिंदी की सहचरी अवधी भाषा के अतिरिक्त भोजपुरी और ब्रज,मगधी भाषाएं भी साथ साथ इस सांस्कृतिक यात्रा में चलती रही है। नृत्य गीत,गान के मधुरिम स्वरों में सजी हिंदी भारत की एकता और अखंडता की असली पहचान है।भोजपुरी में एक लोकगीत देखिए*सुंदर सुभूमि भैया भारत के देशवा से,मोरे प्राण बसें हिम खोह रे बटोहिया, एक ओर घेरे रामा सिंधु कोतवलवा से,दूसरे विराजे हिम खोह रे बटोहिया*,,
रामधारी सिंह दिनकर, मैथिली शरण गुप्त,निराला, प्रसाद,पन्त, महादेवी, सुभद्रा कुमारी चौहान, जैसे लोकप्रिय यशस्वी रचनाकारों ने हिंदी को गौरवान्वित किया है।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिंदी साहित्य ने अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई थी, एक भारतीय आत्मा के नाम से माखनलाल चतुर्वेदी जी ने लिखा**
चाह नहीं मैं सुर बाला के गहनों में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं प्रेमी माला में,बिध प्यारी को ललचाऊं
मुझे तोड़ लेना वन माली,उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,जिस पथ जाएं वीर अनेक*इस गीत ने देश भर में क्रांति की ज्वाला भडकाई थी,उस समय हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा थी जो वर्ग, धर्म,जाति, से परे सहजता से पहुंच सकती थी,,चाहें बगलाभाषी वीर सुभाष हों,,या गुजराती मूल के सरदार पटेल, गांधी जी अथवा अन्य भाषा भाषी, सभी की समवेत भावना और अभिव्यक्ति हिंदी ही थी..
इस प्रकार देशभक्ति, त्याग और समर्पण की ऐसी विलक्षण संस्कृति विकसित हुई थी देश में जहां देश सर्वोपरि था, स्व हित नहीं। इस प्रकार हिंदी आम आदमी की भाषा के रूप में देश की एकता का सूत्र बन गई। सभी भाषाओं की बड़ी बहन होने के नाते यह विभिन्न भाषाओं के उपयोगी और प्रचलित शब्दों को स्वयं में समाहित करके सही अर्थों में भारत की संपर्क भाषा होने की भूमिका निभा रही है।
भारतीय संस्कृति में साहित्य की सबसे बड़ी भूमिका रही है, सामाजिक परिवेश को चित्रित करती हुई अनेक रचनाएं और लोकगीत है जिनमें समाज की पीड़ा परिलक्षित होती है,,, निराला ने जहां लिखा –
वह आता दो टूक कलेजे के करता
पछताता,,पर पर आता,
पेट पीठ,दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक,,
दिनकर ने भी भारतीय जनमानस में व्याप्त सामाजिक विद्रूपताओं की ओर संकेत किया है —
श्वानों को मिलता वस्त्र दूध, भूखे बच्चे अकुलाते है
मां की छाती से चिपक ठिठुर, जाड़े की रात बिताते हैं
वस्तुत: लोकगीतों ने भारतीय मानस को एक नई पहचान दी है,केवल खड़ी बोली हिन्दी ही नहीं, विभिन्न उप भाषाओं, बोलियों ने भी हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है,,देश की परंपराएं,रीति रिवाज,पर्व, सभी तो इन लोकगीतों में मौजूद हैं,,
मोरे चरखा के टूटे न तार चरखवा चालू रहे**अथवा छठ पूजा पर सूर्य उपासना के गीतों ने भी अपनी जगह बनाई है।
मुख्य रुप से हिंदी हमारे देश मेंकहां-कहां मौजूद नहीं हैं,? जन आंदोलनों में भी हिंदी ने क्रांति का जय घोष किया था,जैसा कि गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अत्यंत सुंदर परिभाषा दी है**भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी**
भारतीय संस्कृति के अधिकांश तत्वों को आत्मसात करने प्रवृत्ति हिंदी में प्राचीन काल से ही दिखाई देती है,यही कारण है कि हिंदी मध्य युग के संतों द्वारा सार्वदेशिक रूप में ब्रज भाषा गुजरात से लेकर असम तक भारतीय संस्कृति की सवाहिका बन गई थी, और गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा अवधी कोशल क्षेत्र से बाहर निकल कर छत्तीसगढ़ और देश के समूचे परिदृश्य में व्याप्त हो गई थी ।
खड़ी बोली हिन्दी आधुनिक काल में सार्वजनिक भाषा के रूप में अखिल भारतीय राजकाज की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो गई,,, और आजकल न केवल नगरीय संस्कृति बल्कि लोक संस्कृति को भी उजागर कर रही है।
सांस्कृतिक भाषा के रूप में हिन्दी के विकास को लेकर दो बातें स्पष्ट होती है, इतिहास की दृष्टि से और साहित्यिक रचनाओं की दृष्टि से।., इतिहास की बात करें तो भारतेन्दु युग से प्रारंभ होकर आज तक हिंदी जहां भी है वह तत्कालीन युग चेतना का ही परिणाम है,जब भारतेंदु ने हरिश्चंद्र मैगजीन*में लिखा कि*हिंदी नयी चाल में ढली**तो उनका अर्थ था कि हिंदी की ऐसी सर्वांगीण उन्नति हो, जो राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद की अरबी फारसी मिश्रित हिंदी और राजा लक्ष्मण सिंह की संस्कृत प्रधान हिंदी के मिश्रण से जन साधारण की भाषा के रूप में विकसित हो,* भारतेन्दु मंडल के कवियों ने निज देश और निज भाषा की उन्नति पर तन मन धन न्योछावर करने की बात कही थी,।जन जन तक हिंदी के सरल रुप को पहुंचाने के लिए इन साहित्यकारों ने हिंदी को सांस्कृतिक भाषा बनने की ओर उन्मुख किया,,उनका मानना था कि भाषा राष्ट्रीय चेतना का अनिवार्य अंग होती है वह केवल मनुष्य के विचारों को ही प्रकट नहीं करती बल्कि देश के संगठित रूप का भी बोध कराती है । रवीन्द्र नाथ टैगोर सहित देश के प्रमुख नेताओ ने माना कि केवल हिन्दी ही राष्ट्रीय एकता का प्रतीक हो सकती है, अतः अंग्रेजी का विरोध करते हुए हिंदी का पक्ष लिया तो इससे सांस्कृतिक विकास को गति मिलना स्वाभाविक था।
आज वैश्वीकरण के दौर में हिन्दी विश्व स्तर पर एक प्रभावशाली भाषा बनकर उभरी है,,आज पूरी दुनिया में 175 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा पढ़ाई जा रही है ।, ज्ञान विज्ञान की पुस्तकें बड़ी मात्रा में लिखी जा रही है। सोशल मीडिया और संचार माध्यमों में हिंदी का बढ़ता प्रयोग यह सिद्ध करता है कि हिंदी सर्व प्रिय,सरल सहज और सर्व ग्राह्य भाषा है जो देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने में सहायक हो सकती है। तमाम आलोचनाओं और समालोचनाओं, संघर्षों के अनथक दौर के बाद भी हिंदी हमारी आत्मा में समाहित है,वह हमारी अभिव्यक्ति और संस्कृति की गरिमा का सशक्त माध्यम भी है,। हताशा और निराशा की बात नहीं है, हिंदी में सृजन हो रहा है, लोकप्रियता भी बढ़ी है,बस परस्पर संवाद भी बना रहना चाहिए,। हम अपने बच्चों को हिंदी की प्रसिद्ध कहानियों, पौराणिक कथाओं के विषय में बताएं यह एक बड़ा कदम होगा। नयी पीढ़ी को एक सूत्र में बांधने के लिए, हमारी संस्कृति हमारी सभ्यता का मूल हिंदी में ही निहित है, हिंदी आगे बढ़े, राष्ट्र की भाषा बने, ऐसी ही कामना है!!
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1 टिप्पणी

  1. सार्थक लेख के लिए आभार आपका आदरणीया दीदी
    अंग्रेज़ी भाषा का भ्रम जाल किताब भी अवश्य पढ़ना चाहिए।

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