आंकड़े बताते हैं कि बहुत से ऐसे किन्नर बच्चे है जिन्हे परिवार का प्रेम एवं साथ नहीं मिलता , हमेशा परिवार के प्यार के लिए तरसते रहते है। किन्नर समुदाय में शिक्षा का नितांत अभाव है। कारण स्पष्ट है, वे अपने ही लोगों द्वारा अपने ही परिवार मे होश संभालते ही विस्थापित कर दिए जाते है। विस्थापन का दशं झेलता किन्नर बच्चा बड़ा होता है।
सुष्मिता सेन की ओटीटी पर रिलीज़ हुई वैब-सीरीज़ ‘ताली’ की कहानी श्रीगोरी सावंत के जीवन पर आधारित है। श्री गौरी एक सामाजिक कार्यकर्ता है जिसने सड़क से लेकर कोर्ट-कचहरी तक अपने समुदाय के लिये लड़ाई लड़ी, ताकि किन्नरों को उनका हक़ मिले। उसका मुख्य मुद्दा रहा है तीसरे लिगं यानी थर्ड जेंडर को देश में एक लिंग के तौर पर मान्यता मिले।
सुष्मिता सेन ने इससे पहले भी कुछ अच्छी सार्थक फिल्में बनाई है। ‘आर्या’ जैसी वेब सीरीज से ओटीटी के दर्शकों का दिल जीतने वाली सुष्मिता सेन ने श्री गौरी सावंत के किरदार में पूरी ईमानदारी से अपनी जिंदगी का बेहतरीन अभिनय करने का प्रयास किया है।
गोरी के किशोरावस्था की भूमिका निभाने वाली कृतिका देव का अभिनय भी बहुत ही संवेदनशील और सुंदर है। वास्तव में वह गौरी के रूप में सुष्मिता के किरदार से दर्शकों को जोड़ती है और मजबूती से बांधकर रखती है।
एक ऐसा भी समय था जब किन्नर समाज के लोग आधार कार्ड, वोटर कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस जैसे डॉक्यूमेंट में भी नहीं बनवा सकते थे। वे शादी नहीं कर सकते थे बच्चे गोद नहीं ले सकते थे मकान दुकान जमीन किसी भी तरह की जायदाद नहीं खरीद सकते थे। निचोड़ यह था कि कानूनी रूप से उनका कोई अस्तित्व ही नहीं था। गौरी सावंत ये सब मुद्दे लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची और उसकी याचिका पर ही 2014 मे आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने स्थितियों को बदल दिया।
‘ताली’ सीरीज के माध्यम से गौरी सांवत के जीवन के संघर्षों को व्यक्त किया गया है। फ़िल्म का सबसे महत्वपूर्ण संवाद है कि “ताली बजाऊंगी नहीं बजवाऊंगी”।
सुष्मिता सेन ने इस वैब-सीरीज़ के बारे में कहा है, “मुझे एक खूबसूरत व्यक्ति के जीवन को चित्रित करने का मौका मिला। इससे बड़ी सौभाग्य की कोई और बात नहीं हो सकती। सुष्मिता ने सीरीज़ के पोस्टर में साड़ी के साथ माथे पर बड़ी सी लाल बिदी लगाई है और गले में माला पहनी है। उन्हें देखकर साफ पता चल रहा है। किन्नर का रोल निभा रही हैं।
गौरी सांवत अपने कामों की वजह से अमिताभ बच्चन के शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में भी भाग ले चुकी हैं। यह कहानी गाली से लेकर ताली तक की है… जो लोग अपनी असलियत दिखाने से डरते हैं वह कभी जीते नहीं है। फ़िल्म की कहानी ट्रांसजेंडर कम्युनिटी से जुड़ी है इतना ही नहीं गौरी ने कैसे ट्रांसजेडर के हक के लिए लड़ाई लड़ी। फ़िल्म में बहुत सी सच्ची घटनाओं का इस्तेमाल किया गया है। गणेश कैसे गौरी बन जाता है और ट्रांसजेंडर कम्युनिटी का नेता बन जाता है। गौरी का सफर आसान नहीं उसे बहुत से उतार-चढ़ाव सहन करने पड़ते हैं।
बहुत ही मर्मस्पर्शी समीक्षा मुक्ति शर्मा । अच्छे आकलन और हृदयस्पर्शी प्रस्तुति के लिए साधुवाद।
बहुत बहुत आभार आपका
बहुत सुंदर समीक्षा मुक्ति जी, कुछ सवालों को सोचने के लिए विवश करती।
साधुवाद
जी बहुत बहुत धन्यवाद