1. बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल

अंतर्राष्ट्रीय सौहार्द और सहयोग बढ़ाने की दिशा में एक बेहतरीन कदम-  

डॉ तबस्सुम जहां

 

बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल के दूसरे सत्र का रविवार 14 नवंबर को सफ़ल समापन हुआ। 12 से 14 नवम्बर तक चले तीन दिवसीय ऑनलाइन फेस्टिवल में जहाँ देश विदेश की बेहतरीन फिल्मे, शार्ट फिल्मे व डॉक्युमेंट्रीज़ दिखायी गयीं वहीं इस मंच से फ़िल्म जगत की अनेक महान हस्तियों से रूबरू होने का अवसर भी प्राप्त हुआ। बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल दो साल से सफलता के ऊंचाइयों को छू रहा है।

बॉलीवुड एक्टर यशपाल शर्मा एवं बॉलीवुड एक्टर, डायरेक्टर प्रतिभा शर्मा इसकी संस्थापक हैं। यह मंच आज जितना प्रसिद्ध है इसके बनने की कहानी इससे भी अधिक दिलचस्प है। प्रतिभा शर्मा इसके बनने के संदर्भ में बताती हैं कि “इसका ख्याल हमे एकाएक तब आया जब हम 4 शार्ट फिल्मों का निर्माण कर चुके थे। कुछ फिल्मों की पटकथा लेखन भी उन दिनों हो चुका था। जिसे फ़िल्म का रूप देने के लिए हमारे पास आर्थिक समस्या थी। इसी के चलते ख़्याल आया कि एक साथ फिल्म फेस्टिवल शुरू करते हैं। एक अच्छा सा नाम ढूंढकर हमने उसे ‘इम्फा’ से रजिस्टर भी करा लिया। उसके बाद हम रात दिन बड़ी शिद्दत से इस मंच को आगे लाने में जुट गए।

कुछ मुट्ठीभर लोगों से खड़े किए इस मंच से धीरे-धीरे लोग जुड़ने लगे। जिनके सहयोग और अथक प्रयास से इस मंच को मूर्त जीवन मिलने लगा। फ़िल्म ‘फ्री वे’ की वेबसाइट पर भी फ़िल्म फेस्टिवल रजिस्टर हुआ। जिस दिन इस फेस्टिवल में पहली फ़िल्म एंट्री आयी वे हमारे मंच का ऐतिहासिक दिन था। इस दिन ने जैसे हमें जीवनदान दे दिया हो।”

प्रतिभा शर्मा आगे बताती हैं कि जैसे सोचा था उतना आसान हमारा सफ़र नही था। फ़िल्म फेस्टिवल मंच के आंरभ होने से ही उसमे अनेक उतार चढ़ाव होते रहे। जो लोग इससे पहले साल में जुड़े उसमे से अनेक लोग अलग हो गए। जो लोग इसकी ज़मीन से जुड़े थे वे भी किसी कारणवश उससे अलग हो गए। पर वह एक फाउंडर के तौर पर मज़बूती के साथ खड़ी रही। मेरे पति यशपाल इस मंच का ब्रांड चेहरा थे जिनके होने ने हमारे फ़िल्म फेस्टिवल को एक मज़बूत दशा और दिशा प्रदान की।”

कहा जा सकता है कि समय के साथ अनेक उतार चढ़ाव देखने के बाद फ़िल्म फेस्टिवल को आगे चलकर सही दिशा दशा के साथ एक निश्चित ठहराव मिला। प्रथम लोकडाउन की घोषणा के साथ जहाँ सिनेमा जगत व थियेटर से जुड़ी सभी गतिविधियां थम गयीं वही ऑनलाइन होने के कारण फ़िल्म फेस्टिवल ने बहुत ही जल्दी दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनायी और बुलन्दियों को छूने लगा। ओ टी टी प्लेटफॉर्म की भांति ही यह ऑनलाइन फ़िल्म फेस्टिवल भी दर्शकों में मनोरंजन परोस रहा था। पहले ही वर्ष इस फेस्टिवल में 200 के लगभग फिल्में सम्मिलित हुईं। इन फिल्मों में से ज्यूरी द्वारा बेहतरीन फ़िल्म को चयनित किया गया। पहले ही वर्ष में अंतर्राष्ट्रीय पटल पर बॉलीवुड फ़िल्म फेस्टिवल छा गया।

पहला वर्ष उम्मीद के मुताबिक जितना सफल रहा कालांतर में फिर से कुछ समस्याओं ने सिर उठाना शुरू कर दिया। फ़िल्म फेस्टिवल ने जितनी तेजी से नाम कमाया उसके विपरीत उससे आमदनी नहीं हो सकी। अतः फिर से लोग इससे हटने लगें। एक बारगी लगा कि बस यह सिलसिला अब यहीं थम जाएगा पर इसकी संस्थापक प्रतिभा शर्मा ने हिम्मत नहीं हारी। वह डटकर हर समस्या व परेशानी का सामना करती रहीं।

प्रतिभा शर्मा इस संदर्भ के बताती हैं कि, “पहले वर्ष की अपार सफलता का नशा फटाफट ही उतर गया। फेस्टिवल ने नाम तो कमाया लेकिन कोई आमदनी नहीं हुई। जितना पैसा लगा था उतना भी मैं नहीं निकाल पायी। मैंने यह मंच पैसा कमाने के उद्देश्य से नहीं बनाया था। कोविड कि वजह से भी मैंने बहुत ही मामूली फ़ीस रखी थी। ताकि फिल्मकारों को फ़ीस बोझ न लगे। सिनेमा के प्रति प्रेम और समर्पण की वजह से ही मैंने फ़िल्म फेस्टिवल बनाया था। निष्पक्ष ज्यूरी मेम्बर का चयन भी इसी लिए किया गया। आर्थिक समस्या व अपेक्षित सहयोग के अभाव में सब कुछ बिखरने लगा। लगा जैसे सब कुछ ज़ीरो पर आ गया हो।

ऐसी विषम परिस्थितियों में यशपाल जी ने बहुत साथ दिया। उन्होंने सिनेमा जगत से जुड़े अनेक तकनीकी लोगों को फ़िल्म फेस्टिवल से जोड़ा। इन लोगों के सहयोग से फ़िल्म फेस्टिवल फिर से रफ़्तार पकड़ने लगा। एंकर अल्पना सुहासिनी व सुनील बेनीवाल जैसे सशक्त व अनुभवी टीम मेम्बर्स के सामने आने से एक बार फिर से यह मंच अपनी ऊंचाइयों को छूने लगा। विशाल शर्मा व सौरभ शुक्ला जैसे लोगों की कड़ी मेहनत ने इस मंच को और भी अधिक सुदृढ़ बनाया।”

गत रविवार को बॉलीवुड  इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का दूसरा सेशन भी बड़ी कामयाबी के साथ पूर्ण हुआ। इस बार सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि मंच के संस्थापक द्वारा अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे और सौहार्द की मिसाल पेश करते हुए ईरान और अफगानिस्तान के लिए फ्री एंट्री रखी गयी। हालांकि कोविड की वजह से देश विदेश में फ़िल्म निर्माण कम ही हुआ है पर विदेश से जितनी भी फिल्में सम्मिलित की गयीं सब अपने आप में बेमिसाल व बेजोड़ थीं।

भारत से भी इस बार पिछले साल की तुलना में और भी कम फीस रखी गयी ताकि ज़्यादा से ज़्यादा फ़िल्में सम्मिलित हो सकें। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि तीनों दिन दिखायी जाने वाली  लगभग सभी फ़िल्में सामाजिक मुद्दों पर आधारित थीं। इतना ही नहीं, इन फिल्मों द्वारा फ़िल्म निर्माण से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदुओं को जानने व समझने का अवसर भी मिला। आज के कमर्शियल दौर में बॉलीवुड इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का एक ही उद्देश्य है कि दर्शकों तक ज़्यादा से ज़्यादा स्तरीय व बेहतरीन फ़िल्मे पहुंचायें और तीन दिन चले अपने दूसरे सेशन में उसने यह अभूतपूर्व सफल प्रयास करके दिखाया।

बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल के पहले दिन का आग़ाज़ बहुत ही शानदार रहा। प्रोग्राम के आरंभ में कोरोना काल मे बिछड़े फ़िल्म जगत के लोगो को नम आँखों से भावभीनी श्रद्धांजलि दी गयी। उसके बाद पूरा दिन शार्ट फिल्मों को समर्पित रहा। सुबह 10 बजे से रात 8 बजे तक दिखायी जाने वाली फिल्मों ने दर्शकों को बांधे रखा। फ़िल्मो का आगाज़ बहुत ही प्यारी और खूबसूरत फ़िल्म ‘गजरा’ से हुआ। पर उससे पहले दिखाए गए म्युज़िक वीडियो ने समां बांध दिया। फिल्मों के अतिरिक्त लेट्स टॉक तथा मास्टर क्लास के द्वारा फ़िल्म निर्माण व अभिनय से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं पर बारीक़ी से चर्चा हुई। जिससे दर्शकों को काफ़ी कुछ सीखने को मिला। पहले दिन की मास्टर क्लास सुप्रसिद्ध फ़िल्म समीक्षक अशोक राणे के साथ हुयी। उन्होंने चर्चा में बताया कि डॉक्युमेंट्रीज़ बनाना आज के तकनीकी युग मे बोझिल नहीं है। कम संसाधनों के चलते भी एक अच्छे कथानक को लेकर रोचक डॉक्यूमेंट्री बनायी जा सकती है। इस मास्टर क्लास का सफल संचालन सुप्रसिद्ध अभिनेत्री  व ‘पहल फाउंडेशन’ की संस्थापक प्रतिभा शर्मा ने किया।

पहले दिन दिखायी जाने वाली लिस्ट में शामिल हैं – अमेरिका से ब्रांडी मैकडोनाल्ड, ब्रेंडन रीगल की म्यूज़िक वीडियो। इसके अलावा इंडिया से डायरेक्टर विनीत शर्मा की शार्ट फ़िल्म गजरा, दधि आर पाण्डे की शार्ट फ़िल्म एवरी लाइफ मैटर, वनिता ओमंग कुमार की शार्ट फ़िल्म अवे मारिया, सुदीश कनौजिया की शार्ट फ़िल्म यू चेंज्ड मी, सिद्धांत दानी की शार्ट फ़िल्म कैनवस दिखाई गयी। विदेश से ही इटली से डायरेक्टर एन्द्रयु पापालोटी की शार्ट फ़िल्म ब्लैंच, अमेरिका से जॉन हैमलिन की शार्ट फ़िल्म ‘रिचर्ड एन्ड सारा’ भी प्रस्तुत की गयीं।

दूसरे दिन देश विदेश की महत्वपूर्ण चुनिंदा डॉक्युमेंट्रीज़ दिखायी गयीं। इस दिन की मास्टर क्लास सुप्रसिद्ध एक्टर डायरेक्टर यशपाल शर्मा से बातचीत के रूप में हुई। जिसमे उन्होंने बताया कि वास्तव में अभिनय क्या है? उनके अनुसार अभिनय किया नही जाता। अभिनय की कोशिश करना ही हमें अभिनय से दूर करता है। अभिनय ऐसे करना चाहिए कि लगे जैसे ज़िंदगी जी रहे हो और ज़िंदगी ऐसे जियो कि अभिनय कर रहे हों। अभिनय करते हुए बहुत ही सहज और सरल रहना चाहिए। इस मास्टर क्लास का संचालन बिफ़्फ़ के डायरेक्टर सौरभ शुक्ला ने किया।

आज के दिन का आंरभ म्युज़िक वीडियो के साथ हुआ उसके बाद डायरेक्टर मौरिस मिकालिफ़ की डाक्यूमेंट्री ‘द रोमन्स’, इंडिया से अंनत महादेवन की ‘विलेज ऑफ लेज़र गॉड’, सोहन राय की ‘ब्लैक सैंड’,  मनोहर ख़ुशलानी की कॉपिंग विद ए डी एच डी, गौतम मिश्रा की ‘द डिवाइन डॉक्टर’ नामक डॉक्यूमेंट्री दिखायी गयी। विदेश से ईरानी चाय कैफ़े( मंसूर शॉगी यज़्दी, कुवैत से स्टीव मैके व जोनाथन अली खान की  ‘अ वॉयेज अगेंस्ट टाइम’ तथा टर्की से बतुहन क्लायसी की ‘आई एम नॉट टेलिंग फैरी टेल्स डॉक्युमेंट्री दिखायी गयी।

तीसरे और अंतिम दिन क्षेत्रीय व देश विदेश की फीचर फ़िल्मे दिखायी गयीं। जिसमे अमेरिका से मसूद गौतबी की मोबाइल फ़िल्म ‘टर्निंग प्वाइंट’, इटली से एन्टोनियो पिसु की ‘ई एस टी’, ईरान से मुर्तज़ा आतिशज़मज़म की ‘मेलनकोलिया’, चाईना से सू मिकेल की ‘डॉ सन’ तथा इंडिया से अशोक आर कलिता की ‘वेलुक्काका ओप्पु का’ फ़िल्मे दिखायी गयीं।

इस तीन दिवसीय फेस्टिवल का खूबसूरत व बेहतरीन संचालन समीर चौधरी, डॉ अल्पना सुहासिनी, सौरभ शुक्ला व प्रतिभा फड़के ने किया। अंत में अवार्ड की घोषणा अमेरिका से श्वेता वासुदेवन ने की।
बेस्ट फ़िल्म को चुनने के लिए 5 निर्णायक मंडल को नियुक्त किया गया। इस निर्णायक मंडल में देश विदेश से फ़िल्म समीक्षक व नेशनल अवार्ड प्राप्त हस्तियों को शामिल किया गया। जिसमे इंडिया के अशोक राणे, अमित राय, संदीप शर्मा, फ्रांस की अभिनेत्री मेरीन बोरबो, बंगला देश के तौक़ीर अहमद शामिल थे। निर्णायक मंडल का निर्णय निष्पक्ष और तटस्थ रहे इस बात का विशेष ध्यान रखा गया। सबसे दिलचस्प बात यह थी कि अंत तक एक जज को यह पता नहीं चल पाया कि दूसरा जज कौन है। निर्णायक मंडल ने अपने विवेक से बेहतरीन फिल्मों की घोषणा की।

ज्यूरी के निर्णय के आधार पर बेस्ट इंडियन शार्ट हिंदी मूवी के लिए सुदीश कनौजिया की ‘यू चेंज्ड मी’, बेस्ट शार्ट फॉरेन मूवी के लिए इटली से डायरेक्टर एन्द्रयु पापालोटी की ‘ब्लैंच’ को अवार्ड दिया गया। बेस्ट डायरेक्टर के लिए फ़िल्म रिचर्ड एंड सारा के डायरेक्टर ‘जॉन हैमलिन’, बेस्ट सिनेमाटोग्राफी के लिए कैनवस फ़िल्म के ‘चिरायुंश भानुशाली’ और बेस्ट एक्टर का अवार्ड ‘एन्द्रयु पापालोटी’ को फ़िल्म ब्लैंच तथा बेस्ट एक्ट्रेस के लिए ‘नीलाक्षी चेतिया’ को सोलर नून फ़िल्म के लिए दिया गया।

अगली कैटिगरी में बेस्ट लॉन्ग शार्ट मूवी के लिए इंडिया की लॉन्ग शार्ट मूवी ‘अवे मारिया’ तथा फॉरेन की ‘ब्रदर ट्रोल’ को अवार्ड दिया गया इसके अलावा डायरेक्टर, बेस्ट सिनेमाटोग्राफी, बेस्ट एक्टर के लिए ‘निकोलाज फ्लैक’ को इसी फ़िल्म के लिए अवार्ड दिया गया। बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड ‘रुचिता जाधव’ को उनकी मूवी एनिग्मा’ के लिए मिला। बेस्ट म्यूज़िक वीडियो अवार्ड अमेरिका की ‘एथोस’ तथा जर्मनी की ‘शैडो ऑफ मैगलिन’ को मिला। बेस्ट एनिमेशन लॉन्ग शॉर्ट फ़िल्म केे लिए चाईना से ‘डॉ सन’ और ‘द सिल्क रोड वॉकर’ को अवार्ड दिया गया।

इसके आगे बारी थी बेस्ट डॉक्युमेंट्रीज़ की। इसमे शार्ट डॉक्यूमेंट्री की कैटेगरी में इंडिया से सोहन रॉय ने ‘ब्लैक सैंड’, तथा विदेश ईरान से ‘बुद्ध शेम’ को अवार्ड दिया गया। तथा लॉंग डाक्यूमेंट्री में ‘द रोमन्स’ को अवार्ड मिला। बेस्ट डायरेक्टर के लिए टर्की से ‘बतुहन क्लायसी’, सिनेमाटोग्राफी के लिए इंडिया से ‘प्रदीप खानविलकर’, तथा स्पेशल मेंशन अवार्ड के लिए ‘ईरानी चाय कैफे’ व कुवैत से ‘अ वॉयेज अगेंस्ट टाइम’ को पुरस्कृत किया गया।

फ़ीचर फ़िल्म की कैटेगरी में इंडिया से ‘वॉक अलोन’ तथा फॉरेन से इटली की ‘ई एस टी’ को अवार्ड मिला। बेस्ट स्टोरी के लिए ईरान की ‘मेलनकोलिया’, बेस्ट सिनेमैटोग्राफर में मेलनकोलिया के लिए ‘तौराज असलानी’ को अवार्ड दिया गया। बेस्ट डायरेक्टर के लिए ‘बायारम फैल’ को फ़िल्म ब्यूटीफूल जिन के लिए अवार्ड मिला। बेस्ट एक्टर इंडिया के लिए ‘अशोक कलिता’ तथा फॉरेन के ‘फरहाद असलानी’ ने अवार्ड जीता। बेस्ट एक्ट्रेस के लिए इंडिया से ‘केतकी नारायण’ तथा फॉरेन से ‘लैला ओटाकलिया’ को पुरस्कृत किया गया। बेस्ट स्क्रीन प्ले अवार्ड ‘द रिंग’ फ़िल्म को दिया गया। बेस्ट मोबाइल फ़िल्म का अवार्ड मसूद गौतबी की ‘टर्निंग पॉइंट’ के नाम रहा। इस बार एक ख़ास अवार्ड की भी घोषणा हुई जिसमें फाउंडर च्वॉइस अवार्ड क्षमा उर्मिला को उनकी फिल्म ‘प्यूपा एंड एंजेलिना’ को मिला।

इस प्रकार तीन दिवसीय बॉलीवुड फ़िल्म फेस्टिवल ने न केवल दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया अपितु मास्टर क्लास द्वारा फ़िल्म जगत में प्रवेश करने वाले लोगों का उचित मार्गदर्शन भी किया। देश विदेश से भारी संख्या में लोग इससे तीन दिन तक इससे जुड़े रहे।

 

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