सांस्कृतिक, सभ्यता एवं भाषा का निर्माण होने में बहुत समय, काल एवं युग बीत जाते हैं। मनुष्य सदैव प्रगतीशील होता है। रहन-सहन, खान-पान, सामाजिक, राजनैतिक, भौतिक एवं धार्मिक संदर्भों में वह सदैव उन्नति-प्रशंसा, सुधार एवं सकारात्मकता प्राप्त करना चाहता है। भौतिक एवं मानसिक विकास सभ्यता एवं संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। क्लचरल बैलेंस को बना कर रखना सदैव प्रत्येक समाज, जाति, देश की धरोहर होती है। संस्कृति समाज एवं देश काल से प्रभावित होती है। यह सामाजिक, राजनैतिक, प्राकृतिक और पर्यावरण के साथ बदलती रहती है। आर्थिक, राजनैतिक एवं वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिए मानव पलायन करते हैं। जोकि इंटरनल तथा एक्सटरनल होते हैं।
गांव से शहर में तथा एक देश से दूसरे देश में  प्रवास करने जाते हैं। वैश्वीकरण के इस युग में दुनिया एक छोटी जगह बन गयी है। विभिन्न देशों के लोग एक दूसरे देशों की संस्कृति एवं भाषा अपनाते हैं। ऐसे में सांस्कृतिक प्रदूषण होना स्वाभाविक है।
भारतीय संस्कृति पुरातन संस्कृति है। एक महान सभ्यता एवं संस्कृति होने के कारण देश की नींव मजबूत है। लेकिन बाहरी आक्रमणों के कारण भारतीय संस्कृति में बहुत बदलाव आये हैं। फिर आधुनिकता चलायमान होती है। जिसे हम आज आधुनिक मान रहे हैं आगे चलकर वही पुरातन कहलाएगा।
कई बार हम आधुनिकता के नाम पर पुरानी चीजों का बहिष्कार कर देते हैं। नई चीजें, नयी संस्कृति तथा शिक्षा से अनभिज्ञ रहते हैं। लेकिन पश्चिमी या अन्य संस्कृतियों का अंधाधुंध अनुकरण करने लगते हैं। उनके मूल्यों को समझे बिना आत्मसात कर लेते हैं।  जैसे कि फैशन, खाना, शिक्षा, भाषा तथा त्यौहार मनाने के तौर तरीके।
भारतीय संस्कृति में माता पिता का दिन विशेष नहीं होता है। लेकिन हम फादर्रस डे साल में एक बार मनाने लगे हैं। ऐसे ही मदर्स डे और नया विशेष वेलेनटाईन डे को त्यौहार की भांति जोरो-शोरों से मनाने लगे हैं।
जन्मदिन को दीप न जलाकर मोमबती बुझाकर 
होली का गुलाल या टेस्ट के फूल से आगे बढ़कर
खतरनाक रंग आदि से खेलने लगे हैं।
दीपावली पर राजा राम के वापिस आने पर दीये जलाकर खुशियां मनायी गयी थी।  लेकिन आजकल दीवाली पर पटाखें एवं आतिशबाजी की जाती है जो कि वातावरण को प्रदूषित करती हैं।
शादी विवाह में शहनाई एवं सितार बजाने के बजाय तेज स्वर में डी.जे का धमाका ताकि आप आपस में बातचीत न कर सके।
लोक गीतों की जगह फिल्मी गाने एवं धुन ने ले ली है।
नृत्य के बदले डांस म्यूजिक पर लगातार डांस अगर आप ऐसा नहीं करते तो आप ह्यआउट आॅफ डेटह्ण कहलाते हैं।
बाहरी आक्रमणों के कारण भारत के पुस्तकालय, विश्व महाविद्यालयों को क्षति उठानी पड़ी है।
जैसे कि
तक्षशिला
नालंदा
पाटलिपुत्र
उज्जैन  इत्यादि
मंदिरों की मूर्तियों एवं कला वस्तुओं को भारत से बाहर म्यूजियम तथा संग्रहालयों में देखने को अवशेष मिलते हैं।
मुगल शासन एवं अंग्रेजों के राज्य करने से भाषा एवं साहित्य समाज में प्रदूषण बढ़ा है।
72 वर्षों की आजादी के बाद भी यह असर कम नहीं हुआ है।
अगर अंग्र्रेजी नहीं आती तो आपको कुछ भी नहीं आता। इसका अहसास प्रत्येक स्थान पर कराया जाता है।
चाहे आपको छोटे बच्चे का स्कूल दाखिला कराना है या कोई आईएस का फॉर्म भरना है।
जब मैं 1971 में बहुत समय पहले इंग्लैंड आयी तब मैं कम उम्र की बी.ए. पास थी। आजकल के बच्चों की तरह कोई इंटरनेट, टेलीविजन, टेलीफोन भी नहीं था।
सैट नव से मैं नहीं बात सकती थी कि इंग्लैण्ड कितनी दूर है। मौसम का अन्दाज भी नहीं था। यहां आकर देखा कि दूसरी संस्कृति कैसी होती है। 
कोई मंदिर नहीं था, हिन्दी की झंकार नहीं थी, शाकाहारी भोजन मुश्किल से मिलता था। भारतीय संस्कृति अमिट है। भारतीय समाज में बदलाव का आना आवश्यक है। बस आवश्यकता इस बात की है कि हम पश्चिम संस्कृति या किसी और संस्कृति का अनुकरण अंधाधुंध न करे। पश्चिमी सभ्यता की सकारात्मक की ले अपना काम स्वयं करना जैसे- टाइम कीपिंग : लाइन में खड़े होने की आदत, परंपरावादी बनो रूढ़िवादी नहीं। अपनी सोच को विकसित करें। सृजनात्मक काम को आगे बढ़ायें। मिलकर काम करे। अपनी जड़ों को न भूलें। भाषा एवं संस्कृति बदलती रहती है समय के साथ व्यापार, भाषा, संस्कृति ।
स्वदेशी वस्तुओं का इस्तेमाल करें। भाषा का सम्मान करें। गौरव महसूस करें।
मातृभाषा, देश की भाषा तथा आधुनिक भाषा की। आज के विद्यार्थी दूसरे देशों में यहां की शिक्षा प्रणाली भाषा, रहन सहन, वेशभूषा, खानपान सीख रहे हैं। उसका असर उनकी संस्कृति पर पड़ेगा ही। 
पश्चिम में योग अभ्यास कर रहे हैं। आज यहां योग शिक्षा एवं शाकाहारी भोजन भारतीय संगीत नेचुरल क्लोथ का प्रचलन बढ़ता जा रहा है।
बच्चे मातृभाषा ही बोलते हैं।
माता पिता ग्रासरूट से संस्कार देने जाने चाहिए।
मां ही पहला ज्ञान देती है।
पहली आचार्य मां ही होती है।
मातृभाषा, हिन्दी एवं अन्य आधुनिक अत: मां, मातृभाषाओं को सीखे और भारत माता को व्यवहार, शिष्टाचार एवं जीवन में प्राथमिकता दे। 
जय हिन्द
व्याधियों से मुक्त करने के लिए तृषित धरा को शॉत करने के लिए फिर सागर का मंथन करना होगा तुम्हें विष को अमृत बनाने के लिए तुम आ जाओ गगन के पार से हाथ में अपना सुदर्शन चक्र लिए।
नॉटिंघम एशियन आर्ट्स काउंसिल की निदेशक एवं काव्य रंग की अध्यक्ष. वरिष्ठ लेखिका. संपर्क - jaiverma777@yahoo.co.uk

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