“दुश्मन को रख देंगे चीर : हम हैं अग्निवीर!”
ये नारा है अग्निवीरों का। हाँ वही अग्निवीर – जिनके लिए जब यह योजना लाई गयी थी तब पता नहीं किसने युवाओं को इसके विरुद्ध भड़काया था कि ये उनको सुनहरे ख़्वाब दिखाए जा रहे हैं और चार साल के बाद ये युवा दर दर के भिखारी बन भटकेंगे। जब अग्नि वीरों की भर्ती हो रही थी तो सरकार की इस योजना की पुरजोर आलोचना की गई थी और इसको विफल करने के लिए उस समय रेल जलाना , बसें जलाने के काम भी किए गए थे। वह कौन थे? जो युवाओं को अग्निवीर में भर्ती के लिए भड़का रहे थे, ये हम खुल कर नहीं कह सकते हैं।
पिछले दिनों अपनी नासिक से कानपुर की यात्रा के दौरान मुझको अपने ही कंपार्टमेंट में कुछ अग्निवीरों से मुलाकात करने का मौका मिला। बोगी में हम दूर थे लेकिन कानपुर में उतरते समय हम सब एक ही गेट पर खड़े थे तो मैंने सोचा कि उनके कुछ अनुभव और उनके अपनी नौकरी के प्रति विचारों को साझा किया जाए. वह जो अग्निवीर बने वे बहुत ही संतुष्ट है और सरकार की भविष्य की नीतियों के प्रति भी उनके अंदर एक आश्वासन है, जो उन्हें एक सुरक्षित भविष्य देगा।
मेरी 8 -10 अग्नि वीरों से मुलाकात हुई जिनकी उम्र 18 से 23 वर्ष के बीच थी। वे अपनी पहली ट्रेनिंग पीरियड पूरा करके 15 दिन की छुट्टी पर अपने घर आ रहे थे और स्टेशन पर उनको रिसीव करने के लिए उनके घर वाले, उनके मित्र सभी एकत्र थे। जितना उत्साह अग्नि वीरों में था, उतना ही उत्साह उनके घर वालों में भी था। उनमें से कुछ अपनी यूनिफॉर्म में थे। जब उनसे पूछा कि आप यूनिफॉर्म में क्यों जा रहे हैं ? वे बोले हमारा मन तो नहीं था लेकिन घर वालों ने कहा कि हम अपने बच्चों को यूनिफॉर्म में देखना चाहते हैं इसीलिए हम यूनिफॉर्म में जा रहे हैं।गाँव से घर वाले स्टेशन पर आ रहे हैं मैंने तो मना किया था लेकिन वो माने ही नहीं है।
हमारे साथ पढ़ने वालों में भी बहुत उत्साह है कि हमें इस तरह देख कर वे अपने को खुशनसीब समझेंगे कि हमारा यार देश की सेवा में है।हमारे घर वाले इतने सम्पन्न नहीं हैं कि हमको एन डी ए के लिए कोचिंग करवा पाते और सरकार के इस कदम ने हमें एक अच्छा मौका दिया है। हम और घर वाले सब खुश हैं।
मैंने उनकी अपने कार्य-स्थल और कार्य प्रशिक्षण के प्रति संतुष्टि के बारे में पूछा और पूछा –
1. आप अपने भविष्य के प्रति आशंकित तो नहीं हैं?
तब उन्होंने बताया – ” नहीं इससे अच्छा भविष्य हमको नहीं मिलता, हमको 40 हजार रुपए वेतन मिलता है और हमारे सारे खर्च सरकार उठाती है। 4 साल के बाद हमको 14 लाख रुपए मिलेंगे और सिविल एरिया में हमें नौकरी मिलेगी। जिसमें हर क्षेत्र में हमें 25 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। हममें से जो भी सेना की नौकरी को जारी रखना चाहेगा तो उसकी नौकरी जारी रहेगी। इससे अच्छा विकल्प और हमारे लिए क्या हो सकता है ?
हम अभी उच्च शिक्षित नहीं है लेकिन अपने परिवार के लिए और अपने लिए एक सुरक्षित भविष्य के प्रति निश्चिंत हैं।
2. आपकी ट्रेनिंग किस तरह की होती है ? :–
हमारी ट्रेनिंग बहुत कठिन होती है, जिसके लिए ही हमारी इसमें चयन के समय ही कठिन परीक्षा ली गयी थी और उसमें सफल होने के बाद ही लिया गया। अपने नासिक के प्रशिक्षण काल में हमको काफी बोझ पीठ , हाथों में लेकर मीलों तक पैदल चलना होता है और यह हमारे दैनिक की क्रिया होती है।हमें कड़े अनुशासन का पालन करना होता है और हमारा “आर्टिलरी प्रशिक्षण केंद्र ” है । हम लोग आर्टिलरी रेजिमेंट में है जिसमें हमको सभी अस्त्र-शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। गोला आदि का चलाना सिखाया गया है। एक गोले का भार करीब 95 किलो होता है, जिसे हम चार लोग उठाकर डालते हैं और एक बार उसका वार करने पर 40 किलोमीटर तक सब कुछ तबाह हो जाता है। इसलिए हमें निर्णय भी बहुत सोच समझ कर लेने का निर्देश दिया जाता है।हम जहाँ भी जरूरत होती है वहाँ सेना को इन सब चीजों को पहुंचाते भी हैं।
3. आपको एक साल में कितने दिनों की छुट्टी मिलती हैं ?
हमको साल में 2 महीने की छुट्टी मिलती है, जिसमें १ महीने की कैजुअल और एक महीने की अर्न होती है। और मेडिकल सुविधा हमको सेना की तरफ से प्राप्त होती है। उसमें छुट्टी की कोई गणना नहीं की जाती है। बाकी कैंटीन की सुविधा भी मिलती है, जिसे घर वालों के लिए प्रयोग किया जा सकता है क्योंकि हमें तो सब कुछ वहीं से मिलता है।
4. आप को अपने काम से संतुष्टि है ? कोई असुरक्षा का भाव तो नहीं है ?
बिलकुल भी नहीं , हमारी उम्र में कौन इतना कमा सकता है ? हम अभी आगे की पढाई के लिए जा रहे होते तो अभी पढ़ ही रहे होते। हम अपने घर का एक मजबूत कन्धा बन चुके हैं और घर वाले भी खुश हैं और हम भी।
इनमें से कुछ बच्चे तो कानपुर के आस पास के थे, कुछ लखनऊ, गोण्डा, बलिया, बस्ती और गोरखपुर के थे।