Saturday, July 27, 2024
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डॉ. शालिनी सिंह की कहानी – बाबुल काहें हमको दियो परदेस!

जब आसमान में एक ओर सूरज अपनी पूरी धज के साथ निकल रहा होता है तो दूसरी ओर चंद्रमा अपने शीतल ताप को समेटते हुए विदाई की तैयारी कर रहा होता है.. और हम एक ही समय में दोनों को आसमान में एक साथ निहार सकते हैं.. कितना अद्भुत दृश्य होता है ना !
एक ऐसी ही सुंदर सी सुबह में मैं और भैया निकल पड़े थे अपनी गाड़ी से गाँव की ओर..ताकि जब तक सूरज अपनी झुलसाने  वाली तेज़ धूप के साथ आग उगले ,हम गाँव पहुँच चुके हों.
कहते हैं ना कि जब कोई भीतर से  ख़ुश होता है तो उस ख़ुशी की चमक उसके चेहरे पर उतर आती है..तो आज ऐसी ही ख़ुशी से हमारा चेहरा भी चमक रहा था..
आज के समय में कितने लोग होते होंगे,जिनके पास अपने माँ-बाप के अलावा भी कुछ ऐसे रिश्ते होते होंगे ,जो उन पर जान छिड़कते हों..इस तरह से अगर सोंचा जाए तो हम सौभाग्यशाली ही  थे कि जिन पर हमारे ताऊ ताई के प्रेम और दुलार की छत्र छाया थी..पापा नौकरी की वजह से शहर ज़रूर आ गए थे लेकिन गाँव से उनका मोह जस का तस बना हुआ था..आज कितने लोग बचे हैं जिनका अपने गाँव,अपनी जड़ों से अब भी प्रेम का नाता बचा हो.
पहले तो लोगों ने पढ़ाई और रोज़गार की तलाश में गाँवों से पलायन किया.. फिर वे समय के साथ भूलते गए कि गाँव की स्मृति धुँधली न पड़े इसके लिए उसकी धूल झाड़ने पोंछने आते रहना पड़ेगा..पर पहले समय ने उनका हाथ पकड़ा, फिर शहर ने अपने मोह में जकड़ा और इस उधेड़बुन में गाँव बहुत पीछे रह गया.. शुरू शुरू में तो गाँवों ने हर तीज त्योहारों पर उन्हें आवाज़ दी पर जब उनके कदम पलट कर लौटने में आनाकानी करने लगे तो फिर गाँव भी धीमे- धीमे उनके पलायन का दंश अपने भीतर पीते हुए सूखने लगे..और फिर एक समय ऐसा आया कि  गाँवों ने भी उनसे मुँह मोड़ लिया..यादों की भी तो एक मियाद होती है..जो बड़े से बड़ा घाव भुला देती है.. 
वैसे तो मैं और भैया गाँव आते जाते रहते हैं लेकिन इस बार का जाना कुछ विशेष है..अगले हफ़्ते ताऊ जी और ताई जी की शादी की पचासवीं सालगिरह जो है..मम्मी पापा दो दिन पहले पहुँचने वाले थे पर ताऊ जी ने मुझे और भैया को पहले से बुलवा लिया था..
हमने एक भरपूर बचपन ताऊ जी और ताई जी के साथ जिया है..जब भी छुट्टियाँ होतीं ,हम लोग पापा के पीछे पड़ जाते कि हमें कहीं नहीं जाना बस हमें ताऊ जी के पास गाँव जाना है..जहाँ हम जी भर मनमर्ज़ियाँ करते रह सकते थे..
ताई जी और ताऊ जी के प्रति हम लोगों का स्नेह बहुत अधिक था..
इतनी सुंदर स्मृतियाँ जमा हैं हमारे मन के किसी कोने में कि जब जी चाहता है उसके पन्ने पलट लेते हैं और चले जाते हैं सुनहरी यादों के गलियारों में फिरने…
ताऊ जी के कोई संतान नहीं थी…ऐसा नहीं था..एक बेटी थी पर उन्होंने ताऊ जी की इच्छा के विरुद्ध जाकर शादी कर ली थी..ताऊ जी ने जब संगीता दीदी का ये फ़ैसला सुना तो बहुत हंगामा किया और उन्हें लगा कि अब दीदी उनके आगे झुक जाएँगी पर दीदी भी ज़िद की पक्की ठहरीं ..उन्होंने भी एलान कर दिया कि शादी तो मैं अपनी मर्ज़ी से करूँगी..अगर आप मान जाते हैं तो ठीक है..नहीं तो मैं आपकी इच्छा के विरुद्ध जाकर शादी कर लूँगी..
ताऊ जी को जब लगा कि अब पानी नाक के ऊपर चढ़ चुका है..तो उन्होंने शादी के लिए स्वीकृति देते हुए उन्हें कसम भी दे दी कि शादी तो मैं कर दे रहा हूँ..पर उसके बाद तुम यहाँ से दूर चली जाना और दोबारा कभी इस घर में पाँव मत रखना..
हालाँकि माँ बताती हैं कि जीजा जी किसी अच्छी सर्विस में थे पर ताऊ जी ने जो कह दिया फिर उससे फिरते नहीं थे..और दीदी भी उन्ही की बेटी ठहरीं तो उन्होंने भी दोबारा इस घर की तरफ़ मुँह नहीं किया..
पापा और माँ ताऊ जी के डर की वजह से दीदी से  कोई राब्ता नहीं रख पाए कि ताऊ जी को कोई ठेस न पहुँचे..और फिर जब उनके बारे में जानने का प्रयास किया भी तो कोई ठोस जानकारी न होने की वजह से पता भी नहीं चला कि कहाँ हैं वो..
दीदी तो चली गईं पर ताऊ जी के मन से नहीं निकल पाईं..दीदी से वो बहुत लाड़ करते थे और प्यार से उन्हें लाड़ो पुकारते थे..अब वो भीतर ही भीतर घुलते रहते पर किसी से कहते नहीं कि वो दीदी को कितना याद करते हैं..
हम लोग कितनी बार उनसे कह चुके थे कि हमारे साथ चलिए..कई बार पापा ग़ुस्सा हो जाते तो ताऊ जी कुछ दिनों के लिए उनके साथ घर चले आते पर पंद्रह दिन बीतते बीतते उन्हें गाँव की याद सताने लगती और वो वापस लौट जाते इस वादे के साथ कि जल्दी ही फिर आएँगे..
हमारी गाड़ी जब खेतों से होकर गुज़र रही थी तो गाँव के बच्चों का हुजूम हमारी गाड़ी के पीछे पीछे भाग रहा था..घर के सामने जब गाड़ी रुकी तो बच्चों ने शोर मचाना शुरू कर दिया..
मैं जैसे ही गाड़ी से उतरी तो जितने बच्चे थे..सब में मानो होड़ मच गई पैर छूने की..मैं ये प्रेम देखकर ख़ुशी से भर गई..
ताऊ जी और ताई जी बाहर ही दालान में बैठे बड़ी बेसब्री से हम लोगों का इंतज़ार कर रहे  थे..
भैया ने उनके पाँव छुए तो उन्होंने गले से लगा लिया.
“आ गए तुम दोनों!! कब से राह देख रहा था तुम दोनों की..लाली तू भी मेरे पास आ जा..” मैं भी झट से उनके गले लग गई…
“अरे सुनो कुछ चाय नाश्ता बनाओ..हमारे बच्चों के लिए..चाय नहीं तुम औटाया हुआ गरम गरम दूध और गुड़ ले आओ..या मट्ठा पिएँ तो मट्ठा ले आओ..और जल्दी से अच्छा सा खाना बनाओ..हमारे बच्चे आए हैं..आज हम सब एक साथ बच्चों के संग खाना खाएँगे..”
ताऊ जी की ख़ुशी उनकी आवाज़ से छलक रही थी..
ताई जी मुझे इशारा करते हुए बोलीं..लाली देख रही हो इनकी ख़ुशी.. 
भैया और मैंने नहाकर ताई जी के हाथ का बना स्वादिष्ट खाना खाया ..कद्दू की खट्टी मीठी सब्ज़ी,आलू टमाटर की रसेदार सब्ज़ी और एकदम चटपटा सन्नाटा..अरे लो आपको सन्नाटा किसे कहते हैं ये तो बता दूँ..खट्टे दही का खूब पतला लाल मिर्च से भरा रायता  ..बहुत दिनों बाद ऐसा खाना खाया..पेट तो भर गया पर मन नही भरा ..
खाना खाने के बाद जैसे ही बिस्तर पर लेटे तो थकान की वज़ह से कब आँख लग गई पता ही नहीं चला..
शाम को ताऊ जी की आवाज़ से हम दोनों उठे..ताऊ जी बोले जल्दी से चाय पी लो फिर तुम दोनों को खेत घुमा कर लाता हूँ..
हाँ हाँ चलते हैं ताऊ जी..हमने कहा..
हम लोग करीब दो ढाई घंटे खेतों पर रहे..ऐसा नहीं था कि वो ख़ुश नहीं थे पर कोई दर्द था ,जो वो अकेले ही पी रहे थे..
रात में ताई जी जब हमारे पास सोने आईं और हमने और भैया ने उन्हें कुरेदा तो वे रोते हुए बोलीं कि लाला उन्हें संगीता की बहुत याद आती है पर अकड़ इतनी है कि ये बात कह नहीं सकते..बस वो चाहते हैं कि जाने से पहले एक बार संगीता को देख लें..
अगर मैं यही बात कह दूँ तो आगबबूला हो जाते हैं..
मैं कहाँ से खोजूँ लाली को..न कोई नम्बर है, न कोई पता..मेरी भी आँखें तरसती रहती हैं…छुप छुप कर आँसू बहाती रहती हूँ और संतोष कर लेती हूँ कि जहाँ भी हो हँसी ख़ुशी से हो..
जिस तरह हम लोगों से नज़रें चुराते हुए वो बार बार सफ़ाई दे रहीं थीं कि उनकी दीदी से बात नहीं होती है..मुझे ये बात कहते हुए उनके चेहरे के भाव कुछ और ही बात की ओर इशारा कर रहे थे.
ताई जी की बात पर भरोसा नहीं हुआ तो उनके सोने के बाद चुपचाप उनका फ़ोन देखने का विचार मन में आया. एक बार तो लगा कि ये नहीं करना चाहिए पर फिर मन नहीं माना कि हो सकता है कुछ ऐसा सूत्र मिल जाये कि टूटे हुए बंधन प्रेम के धागे से फिर जुड़ जाएँ.
कोई पासवर्ड तो था नहीं,फ़ोन देखते हुए मैंने ग़ौर किया कि एक नंबर ऐसा है ,जिस पर अधिकतर बातें हुई हैं और ये नंबर कम से कम हमारे किसी करीबी रिश्तेदार का तो  नहीं ही है..लेकिन कोई नाम सेव नहीं था..मैंने झट से वो नम्बर कॉपी कर लिया..
और जब अपने फ़ोन से वो नंबर  ट्रू कॉलर पर डालकर चेक किया तो वो संगीता अरोरा नाम से शो होने लगा..मैं ख़ुश ज़्यादा थी या आश्चर्यचकित अधिक..मेरे मैन के भाव मुझे खुद ही नहीं समझ आ रहे थे.
ख़ैर रात तो बेचैनीं में काट दी मैंने और सुबह उठते ही भैया के पास भागी,ताऊ जी खेत की तरफ़ गये थे तो मैं निश्चिंत थी. जल्दी से उन्हें सारी बात बताई..भैया तो सुनकर एकदम चुप हो गए..पर हम दोनों ही समझ चुके थे कि ताई जी की दीदी से बातचीत होती है..और वो ताऊ जी के ग़ुस्से की वजह से उनसे ये बात छिपा रही हैं..
फिर हिम्मत करके हम ताई जी के पास गए,ताई जी के हाथों में पूजा की थाली थी. जैसे ही उनसे पूछा ये किसका नम्बर है ताई जी??
ताई जी सकपका गईं..इससे पहले कि वो अपनी बात से फिरतीं ..
हम दोनों एक साथ बोल पड़े कि – “ताई जी हमें सब पता चल चुका है. बस आप ये बताइए कि आपने ताऊ जी से ये सब क्यूँ छिपाया?”
“लाली तुम तो जानती हो उन्हें..कई बार घुमा फिरा कर मैंने संगीता की बात करने की कोशिश की लेकिन वो आपे से बाहर हो गए और मेरी एक न सुनीं..संगीता के दो बच्चे हैं और अब वो यहाँ आने से डरती है कि उसके बच्चों के सामने तमाशा न बने..”
“ताई जी अब आप देखिए हम कैसे इन अकडू बाप बेटी को मिलाते हैं लेकिन आपको इस काम में हमारा साथ देना होगा..” ताई जी ने हमारी बलाएँ  लेनी शुरू कर दीं और कहा जैसा हम कहेंगे वो वही करेंगी लेकिन इस बात की भनक कि उनकी बात होती है संगीता से ..ताऊ जी को न पता चले..वरना उनका भरोसा मुझ पर से टूट जाएगा..
ताऊ ताई जी की पचासवीं सालगिरह पर उनकी पसंद का तोहफ़ा हमें मिल चुका था..अब हम भी अपना प्लान बनाकर उसे एग्जीक्यूट करने में लग गए..
अभी कार्यक्रम में पूरे सात दिन शेष थे..हमने ताई जी से दीदी को कॉल करवाया और कितने मान मन्नौवल के साथ वे हमारी बात से सहमत हुईं,ये तो हम ही जानते हैं.लेकिन अंततः दीदी मान गईं.
शायद उन्हें इतने लाड़ और अधिकार से किसी ने अब तक बुलाया भी नहीं था..
दो दिनों के बाद  रात की फ़्लाइट से दीदी आ गईं..भैया शहर से जाकर उन्हें अपनी गाड़ी से लिवा लाए..
इधर मन ही मन हम सबकी डर के मारे हालत ख़राब हो रही थी कि ताऊ जी इतने सालों बाद अचानक दीदी को देखकर जाने कैसा व्यवहार करेंगे..जाने कौन सी बिजली टूटेगी हम सबके ऊपर.पर अब जो सोंच लिया था, उसे साकार करने का समय था..
संगीता दीदी जब आईं तो ताऊ जी बाहर बैठक वाले कमरे में ही लेटे हुए प्रेमचंद का उपन्यास गोदान पढ़ रहे थे,जो हम और भैया उनके लिए लाए थे..
हमने दीदी की बेटियों चिंकी और पिंकी का हाथ पकड़ा और ताऊ जी के पास पहुँच गए..ताऊ जी ने सिर ऊपर उठाया और सवालिया नज़रों से बोले ..
“अरे वाह ये इतने प्यारे बच्चे किसके हैं?”
दीदी से रहा नहीं गया और वो भीतर चलीं आईं..
“बाबू जी ये आपकी नालायक बेटी की बेटियाँ और आपकी नवासियाँ हैं “
ताऊ जी का चेहरा झक्क सफ़ेद पड़ गया..
दीदी बोलीं..बच्चों अपने नाना जी को प्रणाम करो और दूसरे कमरे में जाकर थोड़ा आराम करो..मैं आकर तुम लोगों के कपड़े निकालती हूँ..
शायद दीदी बच्चों को इस बहस से दूर रखना चाहतीं थीं..
बच्चे चले गए और दीदी ताऊ जी के पास आकर उनका हाथ पकड़ कर रोतीं रहीं..ताऊ जी एकदम बुत बने बैठे रहे..कुछ बोले नहीं..
इधर हम लोगों की हालत ख़राब हो रही थी..
कुछ देर बाद दीदी बोलीं..
“बाबू जी क्या आप अब तक नाराज़ हैं? और कब तक नाराज़ रहेंगे अपनी लाड़ो से..इतने सालों में आपने एक बार भी आवाज़ नहीं दी मुझे ..क्या आपको एक बार भी पल भर के लिए  मेरी याद नहीं आई..क्या मेरा अपराध इतना बड़ा था कि घर वापसी का कोई रास्ता नहीं बचता था? मैंने जो रास्ता चुना,वो आपने ही दिखाया मुझे..ये कहकर कि कभी दोबारा लौट कर न आना..मैं चली तो गई पर एक भी दिन ऐसा नही हुआ कि आपकी याद न आई हो..लगता कि आप दो चार महीने में सब भूल जाएँगे और अपनी लाड़ो को अपने पास बुला लेंगे..मेरे बग़ैर आपसे रहा ही नहीं जाएगा.. मैं अपने फ़ोन में आपकी तस्वीरें  देखती रहती..आपकी और अम्मा की फ़ोटो फ़्रेम करवा कर अपने ऑफ़िस और अपने रूम में ऐसी जगह रखी थी कि आप हमेशा मेरी आँखों के सामने रहें”
ये कहते हुए दीदी बिलख बिलख कर रोने लगीं..और ताऊ जी उठ कर चल दिए..ताऊ जी को जाता हुआ देखकर दीदी टूट गईं और रोते हुए भैया से बोलीं, “विनय कल मुझे छोड़ आओगे एअरपोर्ट तक..बाबू जी का दिल मेरे लिए अब नहीं पिघलेगा..”
ताई जी ये सुन कर रोने लगीं..
हम और भैया को तो लगा कि ये क्या हुआ..सोंचा था ताऊ जी की पचासवीं सालगिरह खूब धूमधाम से उत्सव की तरह मनाएँगे पर यहाँ तो सब सोचा हुआ उलट ही  गया..ऊपर से माहौल भी ख़राब हो गया..पापा मम्मी सुनेंगे तो उनसे अलग डाँट मिलेगी..
ताऊ जी को गए लगभग दो घंटे हो गए थे..अब हम लोग सब कुछ भूल कर इस चिंता में पड़ गए कि ताऊ जी कहाँ चले गए बिना बताए !
उन्हें ढूँढने जाने की तो किसी में हिम्मत ही नहीं थी..कि तभी ताऊ जी की आहट सुनाई पड़ी..यानी वो आ गए थे..पर हम सबमें किसी में हौसला नहीं था कि उनका सामना करें..
ताई जी ने खाने की थाली दी तो मैं डरते डरते उनके कमरे में रखने गई..वहाँ जाकर खाना रख दिया तो महसूस किया कि ताऊ जी की नाक सुड़कने की आवाज़ आ रही है..अब मैंने जितनी जल्दी हो सके कमरे से निकल जाने में ही भलाई समझी..
वो रात बहुत भारी थी हम सब पर..किसी को ढंग से नींद नहीं आई..हम और भैया कभी दीदी तो कभी ताई जी को समझाते रहे..
सुबह हुई और दीदी अपनी पैकिंग करने लगीं..
हम लोग चुपचाप सब देख ही सकते थे ..कुछ भी हमारे हाथ में नहीं था..ताऊ जी फिर सुबह सुबह कहीं चले गए थे तो हम लोग समझ गए थे कि जब तक दीदी वापस चली नहीं जाएँगी तब तक ताऊ जी शायद घर नही आएँगे..
कि तभी बाहर से ताऊ जी की तेज़ आवाज़ आई..
“सुन रही हो..कहाँ हैं सब लोग”
दीदी और बेटियों को कमरे में छोड़कर हम लोग तेज़ गति से बाहर आ गए..
“हाँ कहिए..सुन ही तो रही हूँ इतने बरसों से..”
ताई जी ने दबी आवाज़ में कहा.
लेकिन ताऊ जी ने सुन लिया
और बोले
“सुन रही हो तो कुछ फ़िकर विकर है कि नहीं तुम्हें..इतने सालों बाद बिटिया और बच्चे आए हुए हैं..क्या रोना धोना मचा रखा है घर में..ऐसे शुभ समय में क्या ये रोना धोना शोभा देता है तुम्हें..चाय नाश्ते का कुछ इंतज़ाम किया या नहीं..या बस हाथ पर हाथ धरे बैठी हो “
हम सब चकित होकर उनकी तरफ़ देखे ही जा रहे थे..ये चल क्या रहा है ताऊ जी के दिमाग़ में..मुझे तो लगा कि शायद ताऊ जी को लग रहा है की दीदी चलीं गईं वापस..तभी इतने ख़ुश नज़र आ रहे हैं..इस एक पल मुझे ताऊ जी पर बहुत ग़ुस्सा आने लगा कि तभी ताऊ जी आगे फिर बोले-
“ये लो बाबू लाल की रबड़ी और जलेबी लाया हूँ..मेरी लाड़ो को बहुत पसंद है ना !”
अरे उनके ये कहते ही हम सबके चेहरे खिल गए..
दीदी जल्दी बाहर आइए,चिंकी,पिंकी तुम दोनों भी बाहर आओ – भैया ने दीदी को आवाज़ दी
दीदी भागती हुई बाहर आईं,उन्हें देखते ही रुँधे गले से ताऊ की बोले
“लाड़ो बेटा बहुत देर कर दी आने में”
कुछ देर दीदी उन्हें अपलक निहारती रहीं..शायद उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था..फिर जब ताऊ जी ने उनकी तरफ़ हाथ बढ़ाया तो वे बोलीं, “बाबू जी आपने ही बुलाने में देर कर दी.मैं तो हर दिन ,हर क्षण आपके बुलावे के इंतज़ार में रहती थी .”
“लाड़ो अपने बाबू जी की बात को भी कोई इस तरह दिल में बांध लेता है क्या? तेरा अपना घर था, मैं भी तो तेरे जाने के बाद से हर पल तेरी याद में घुलता रहा हूँ पर मेरा अहम मेरे आड़े आ जाता था..मैं चाहकर भी तुझे बुला नहीं पाया और दिल से कभी भुला नहीं पाया..“
बाबू जी इतने दिनों से भरे अपने शब्दों को दीदी के ऊपर लाड़ में बहाते जा रहे थे..
“सुन लो सब लोग अब हमारी शादी की पचासवीं सालगिरह खूब धूमधाम से मनाई जाएगी और सारा कार्यक्रम लाड़ो की पसंद के मुताबिक़ होगा..”
ये सुनते ही दीदी सुबकते हुए ताऊ जी के गले लग गईं..
“क्या ताऊ जी अब दीदी आ गईं तो आप हम दोनों को तो भूल हो गए ..चलो भैया हम लोग वापस चलें..” मैंने झूठ मूठ का ग़ुस्सा दिखाते हुए जब कहा तो ताऊ जी और ताई जी हँसने लगे..
“अरे मेरे बच्चों तुम दोनों की वजह से ही तो आज फिर इस घर में ख़ुशियों ने दोबारा दस्तक दी है..दोनों लोग मेरे पास आओ और मेरे गले लग जाओ…“
ताऊ जी के इतना कहते ही मैं और भैया दोनों ताऊ जी के गले लग गए..
वो ऐसा अनोखा पल था कि सभी एक साथ रो भी रहे थे, हँस भी रहे थे..और इतने बरसों का रुका हुआ सब्र और दुख आँखों के रास्ते बह रहा था..मैं सोच रही थी कि समय कैसे जादू की छड़ी घुमाकर एक पल में सब ठीक कर देता है..उधर ताऊ जी का चेहरा खिले फूल-सा चमक रहा था.
डॉ. शालिनी सिंह
हिंदवी सहित अन्य महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित
संपर्क – 9453849860
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