गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने जब हाल ही में एक बयान में कहा, “बस बहुत हो गया। ब्रिटिश लोग इस मुद्दे का हल चाहते हैं। वो पर्याप्त कार्रवाई न होने से परेशान हैं। हमें नावों को रोकना चाहिए” तो गैरी लिनेकर ने अपने ट्वीट में लिखा, “(नाव से आने वालों का) – कोई बड़ा तांता नहीं लगा हुआ। हम अन्य बड़े यूरोपियन देशों के मुकाबले कहीं कम शरणार्थी लेते हैं। यह सबसे कमजोर लोगों को निशाना बनाने वाली अत्यंत क्रूर नीति है, ये तरीका 30 के दशक में जर्मनी द्वारा इस्तेमाल की गई नीति से कुछ अलग नहीं है… कि मैं सीमा लांघ रहा हूं?”

पिछले दिनों ब्रिटेन में दो समाचार सुर्ख़ियों में रहे। पहला समाचार था कि पूर्व प्रधानमंत्री बॉरिस जॉन्सन ने अपने पिता के नाम की ‘सर’ की उपाधि के लिये प्रस्तावना की है। पूरी संसद हतप्रभ रह गई मगर भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को इसमें कुछ ग़लत दिखाई नहीं दिया।
दूसरा समाचार केवल ब्रिटेन की संसद तक सीमित नहीं था। इस समाचार ने बी.बी.सी. को लेकर पूरे विश्व में विवाद खड़ा कर दिया। विश्व की सिरमौर समाचार संस्था जो कि अभिव्यक्ति की आज़ादी का ढोल पीटते नहीं थकती – बीबीसी ने अपने फ़ुटबॉल मैचों के मेज़बान गैरी लिनेकर को उनके ‘सरकार-विरोधी’ ट्वीट के जरिए अपने सोशल मीडिया दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने की वजह से निलंबित कर दिया।
ज़ाहिर है कि फुटबॉल जगत, उनके चाहने वालों और सजग नागरिकों द्वारा इस निर्णय का पुरजोर विरोध किया गया। ब्रिटेन की संसद में भी विपक्षी लेबर पार्टी के नेता केयर स्टॉमर ने इस विषय पर प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को आड़े हाथों लिया।
ज़ाहिर है कि पुरवाई के लिये दूसरा समाचार अधिक महत्वपूर्ण है। इसी बीबीसी ने जब गुजरात पर दो भागों में अपनी डॉक्युमेंट्री दिखाई थी तो अभिव्यक्ति की आज़ादी का हवाला दिया था। हालांकि उस समय भी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने उस डॉक्युमेंट्री को भी समर्थन नहीं दिया था। और भारत के साथ ब्रिटेन के रिश्तों की बात कही थी।
हम पुरवाई के पाठकों के साथ छोटी नौकाओं पर ग़ैर-कानूनी ढंग से प्रवेश करने वाले विदेशियों के प्रति ब्रिटेन की सत्तारूढ़ टोरी पार्टी द्वारा प्रस्तावित नई नीति के बारे में बात करना चाहेंगे। दरअसल अल्बानिया से बड़ी संख्या में छोटी नावों पर लोग अवैध रूप से ब्रिटेन में दाख़िल होने का प्रयास करते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक अल्बानिया से अवैध रूप से आने वालों में से ज्यादातर सिंगल और वयस्क पुरुष हैं। ब्रिटेन की सरकार इसे अपने देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा मानती है। सरकार का मानना है कि अवैध रूप से आने वाले लोग आपराधिक प्रवृत्ति के हो सकते हैं।
अवैध प्रवासियों से निपटने के लिए गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने पेश किया है एक विधेयक। नए विधेयक को लेकर हाउस ऑफ कॉमन्स में चर्चा के दौरान ब्रेवरमैन ने कहा कि “वे तब तक यहां आना बंद नहीं करेंगे जब तक दुनिया यह नहीं जानती कि अगर आप अवैध रूप से ब्रिटेन में प्रवेश करते हैं तो आपको हिरासत में लिया जाएगा और तेजी से अपने देश वापस ले जाया जाएगा, या किसी तीसरे देश में ले जाया जाएगा। यह बिल यही करेगा। इसी तरह हम नावों को रोकेंगे।”
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भी इस नई नीति का समर्थन किया। उन्होंने फ्रांसीसी समुद्री सीमा से आने वाली असुरक्षित नावों पर कार्रवाई के अलावा ब्रिटेन में सुरक्षित मार्गों से शरण देने वाले प्रवासियों पर वार्षिक संसद द्वारा निर्धारित सीमा की योजना का भी खुलासा किया।
नया कानून लागू होने के बाद छोटी नावों पर यूके आने वाले शरण का दावा नहीं कर पाएंगे। इस विधेयक को लेकर देश की गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने बताया कि जो कोई भी छोटी नाव पर आता है उसे जल्द से जल्द एक ‘सुरक्षित तीसरे देश’ में भेज दिया जाएगा।
जैसा कि होता है… भारत में भी… पूरा विपक्ष मिल कर किसानों के लिये बनाए हुए कानूनों को काले कानून कह कर सरकार पर दबाव बनाता रहा था। कुछ उसी तरह बीबीसी के फ़ुटबॉल विशेषज्ञ गैरी लिनेकर ने भी नये प्रवासन विधेयक पर एक ट्वीट कर दिया। उसे महसूस हुआ कि ऐसा कोई ख़तरा सिर पर नहीं है। कोई ऐसी अवैध घुसने की चेष्टाएं नहीं हो रही।
गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने जब हाल ही में एक बयान में कहा, “बस बहुत हो गया। ब्रिटिश लोग इस मुद्दे का हल चाहते हैं। वो पर्याप्त कार्रवाई न होने से परेशान हैं। हमें नावों को रोकना चाहिए” तो गैरी लिनेकर ने अपने ट्वीट में लिखा, “(नाव से आने वालों का) – कोई बड़ा तांता नहीं लगा हुआ। हम अन्य बड़े यूरोपियन देशों के मुकाबले कहीं कम शरणार्थी लेते हैं। यह सबसे कमजोर लोगों को निशाना बनाने वाली अत्यंत क्रूर नीति है, ये तरीका 30 के दशक में जर्मनी द्वारा इस्तेमाल की गई नीति से कुछ अलग नहीं है… कि मैं सीमा लांघ रहा हूं?”
इस ट्वीट में, उन्होंने संकेत दिया कि ऋषि सुनक के नेतृत्व वाली ब्रिटेन सरकार की विवादास्पद शरणार्थी नीति नाजी जर्मनी द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा की याद दिलाती है। ट्वीट सार्वजनिक होते ही लिनेकर को प्रसारण से हटा दिया गया जिससे बीबीसी का सप्ताहांत का फुटबॉल कवरेज भी प्रभावित हुआ। लेकिन इससे यह सवाल तो उठता है – क्या किसी पत्रकार या खेल प्रस्तुतकर्ता को सोशल मीडिया पर उनके विचारों के लिए जवाबदेह ठहराया जा सकता है?
बीबीसी ने बयान जारी करते हुए कहा कि लिनेकर को “राजनीतिक मामलों में पड़ने” के लिए निलंबित किया गया था। इस घटना से बीबीसी के निष्पक्षता नियम पर ध्यान जाना लाज़मी है। बीबीसी का कहना है कि वह अपनी पूरी सामग्री में उचित निष्पक्षता कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध है, और नियम कहता है कि इसका अर्थ सिर्फ “संतुलन” के एक आम मतलब से ज्यादा है. “इसके लिए हर मुद्दे पर पूर्ण तटस्थता या मूल लोकतांत्रिक सिद्धांतों से अलग होने की आवश्यकता नहीं है, जैसे मतदान का अधिकार, अभिव्यक्ति की आजादी और कानून का राज।”
बीबीसी का एक नियम है (ऐसा उनका कहना है) कि उनके कर्मचारी सोशल मीडिया पर भी यदि कुछ पोस्ट करें तो उनके विचार बीबीसी की निष्पक्षता और प्रतिष्ठा की धारणा से समझौता न करें। बीबीसी की छवि को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिये।
मगर गैरी लिनेकर बीबीसी के कर्मचारी तो हैं ही नहीं। वे एक स्वतंत्र प्रोग्राम प्रस्तुतकर्ता हैं। वे कोई पत्रकार भी नहीं हैं। वे फ़ुटबॉल के मैच पर स्वतंत्र राय प्रस्तुत करते हैं। इसलिये उन पर तो बीबीसी की नियमावली लागू ही नहीं होनी चाहिये।
याद रहे कि गैरी लिनेकर के प्रशंसकों की संख्या लगभग 88 लाख के करीब है। उनकी छवि ऐसे शालीन खिलाड़ी की रही है जिसे उसके 16 साल लंबे खेल जीवन में एक बार भी पीला या लाल कार्ड नहीं दिखाया गया।
हालांकि बीबीसी के अध्यक्ष टिम डेवी पर इतना दबाव पड़ा कि उन्हें गैरी लिनेकर को वापस बुलाना पड़ा। दर्शकों से उनका चहेता खेल शो न दिखा पाने के लिए माफ़ी माँगनी पड़ी है, साथ ही एक समीक्षा समिति बिठानी पड़ी है जो सोशल मीडिया पर निजी राय प्रकट करने के लिए नए दिशा-निर्देश तैयार करेगी। संभावना इस बात की है कि समाचार और सामयिक चर्चा से इतर विषयों पर और अनुबंध पर काम करने वालों के लिए नियमों को फिर से ढीला कर दिया जाएगा।
टिम डेवी पर पहले से आरोप लग रहे हैं कि उसने पूर्व प्रधानमंत्री बॉरिस जॉन्सन को ‘लोन’ दिलवाने में सहायता की थी। उसके रिश्ते सत्तारूढ़ दल के साथ सवालों के घेरे में हैं।
बॉरिस जॉन्सन का नाम सामने आते ही याद आ गया कि उन्होंने देश के उच्चतम सम्मान ‘नाइटहुड’ के लिये अपने पिता के नाम की सिफ़ारिश की है। मुझे इस समाचार ने सोचने पर मजबूर कर दिया। जब हम भारत में होते थे तो इस बात का मज़ाक उड़ाया करते थे कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (1955) और इंदिरा गांधी (1971) ने अपने कार्यकाल में ही अपने आपको भारत रत्न से सम्मानित कर लिया। बॉरिस उनके नक़्श-ए-क़दम पर चल रहे हैं।  चलिये… कम से कम ब्रिटेन भारत से कुछ तो सीख रहा है। हम भी यह सोच कर ख़ुश हो लेते हैं कि जो वहां होता है… वही तो यहां हो रहा है।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

14 टिप्पणी

  1. आपके संपादकीय को पढ़कर इंग्लैंड के ताजा हलचलों की जानकारी मिली। धन्यवाद आपका।

    किसी भी देश को अपनी सुरक्षा के लिए बाहर से आनेवालों पर रोक लगाना आवश्यक है। ऐसे ही अधिकतर लोग बाद में गलत कार्यों में लिप्त होकर स्थानीय सुरक्षा के लिए कठिनाई उत्पन्न करते हैं।

  2. इंग्लैंड की ताजा हलचल! (ध्यानाकर्षण : ताजा का रूप-परिवर्तन नहीं होगा।)

  3. सम्पादकीय से संकेत मिल रहा है कि अब विचारों का भी वैश्विकरण हो रहा है ।
    मौसम की तरह नीतियां भी बदल रहीं हैं ।
    सहज तरीके से गहरी बात
    साधुवाद
    Dr Prabha mishra

  4. Very informative Editorial.
    Got to know how the British government had issued a stern warning to people reaching England illegally in small boats.
    To which the BBC commentator had objected.
    Interesting reaction from BBC to first suspend him n then take him back.
    Regards
    Deepak Sharma

  5. सीखने सिखाने से ही प्रगति होती है। इस संचार क्रांति के ज़माने में सब बहुत शीघ्रता से सीख रहे हैं। वसुधैव कुटुम्बकम की परिकल्पना साकार हो रही है। हम तो भारत में भी उत्तर प्रदेश वाले हैं, जहाँ मायावती ने अपने जीतेजी अनेकों मूर्तियाँ लगवा लीं।
    परम्पराएं टूट रही हैं, नयी गढ़ी जा रही हैं…
    बहुत कुछ कहता, बताता हमेशा की तरह रोचक सम्पादकीय। धन्यवाद।

  6. संपादक महोदय,
    इस बार का संपादकीय मुझे तो अत्यंत ही आनंददायक और रोचक लगा, प्रतिक्रिया के स्वरूप मेरे मन में सिर्फ दो मुहावरे आए
    गुजराती में कहते हैं-” घेर घेर माटी ना चूला “—हर घर में मिट्टी के ही चूल्हे हैं ,और दूसरा —‘हमाम में सभी नंगे’
    लहू का रंग एक है।
    मस्ती भरे संपादकीय के लिए साधुवाद!!

  7. इस रोचक सम्पादकीय से ब्रिटेन के संसदीय सिलसिले साकार हो गये। नयी जानकारियाँ भी मिली। आपके वैश्विक ज्ञान की बधाई।
    रोचक तथ्य अति सरल-सहज ढंग से प्रस्तुत किए गए हैं।

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