विडम्बना है कि आज विश्व के किसी भी देश को थोड़ा भी ज्ञान नहीं कि इस विचित्र विश्वमारी से कैसे निपटा जाए। जिन्हें कुछ भी नहीं पता उन्हें सब कुछ पता है। दिल्ली में कोरोना मुंबई के मुक़ाबले दो गुनी रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है तो अहमदाबाद के मुक़ाबले तीन गुना। 
दिल्ली में पिछले 12 दिनों में 741 मौतें हुई हैं। यानि कि मृत्यु का प्रतिशत 61%% है। उद्धव ठाकरे एक दिन कहते हैं कि लॉकडाऊन खोला जा रहा है। दूसरे दिन धमकी देते हैं कि दोबारा शुरू कर दिया जाएगा और तीसरे दिन कुछ और ही कहते हैं। महाराष्ट्र के तीन मंत्री कोरोना की जद में हैं। 
भारत में मानवता कोरोना के सामने बुरी तरह से हार गयी है। एक ऐसा वीडियो वायरल हुआ है जिसमें दिखाया जा रहा है कि पश्चिम बंगाल के एक शवग्रह में लाशों को हुक से खींचा जा रहा है। ज़ाहिर है कि कर्मचारियों को अपनी जान प्यारी है और वे कोरोनाग्रस्त लाश को छूना नहीं चाहते। मगर फिर भी कोई बेहतर तरीके के बारे में सोचा जा सकता है। मगर यह सोच ऊपर से नीचे आ सकती है। नीचे से ऊपर नहीं जा सकती। 
इस विषय में पश्चिम बंगाल के गवर्नर जगदीप धनखड़ ने एक ट्वीट भी किया और उन्होंने मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी से बातचीत भी की। कलकत्ता पुलिस ने बेशरमी का प्रदर्शन करते हुए गवर्नर साहब के ट्वीट का जवाब देते हुए कहा कि हुक (खूंटे) से खींचे जाने वाले शव कोरोनाग्रस्त मरीज़ों के नहीं थे। यदि ऐसा है तो स्थिति और भी चिन्ताजनक है।

मैं लंदन की ओवरग्राउण्ड रेलवे में काम करता हूं। यहां बहुत से युवा पाकिस्तान से हैं जो कि सिक्योरिटी का काम करते हैं। हमारे यहां रिवाज है कि हर कर्मचारी एक दूसरे को पहले नाम से पुकारते हैं। मगर ये बच्चे क्योंकि उम्र में मुझ से बहुत छोटे हैं और परवरिश भारतीय उच्चामहाद्वीप की है तो वे मुझे ‘अंकल जी’ कह कर बुलाते हैं।
भारत के ही मेजर गौरव आर्या की एक बात ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया। पाकिस्तान के एक चैनल पर बोलते हुए मेजर गौरव आर्या ने बताया कि 1990 के बाद (यानि कि कश्मीरी पंडितों को कश्मीर वैली से निकाल देने के बाद) कश्मीर में एक ऐसी पीढ़ी बड़ी हुई है जिसने कभी कोई हिन्दू नहीं देखा।
मेरे साथ काम करने वाले पुरुष एवं महिला साथी हैरान होते हैं कि वे बाक़ी सबको नाम से पुकारते हैं तो मुझे क्यों नहीं। एक महिला साथी ने पूछ ही लिया, “तेज, वाई डू दे कॉल यू अंकल? यू आर नॉट रिलेटिड टु दैम।”
उन्हें हैरानी होती हैं कि मैं भारत से हूं और वे पाकिस्तान से हैं, फिर मेरा इतना सम्मान क्यों करते हैं। 
उनमें से बहुत से बच्चे बताते हैं कि उन्होंने लंदन आने से पहले कभी कोई हिन्दू नहीं देखा था। मगर यहाँ लंदन में आने के बाद जब हिन्दुओं से मिले तो हैरान रह गये कि वे तो पाकिस्तानियों जैसे ही दिखते हैं और इतने अच्छे इन्सान होते हैं। वे बहुत गर्व से बताते हैं कि, “अंकल जी, मैं जित्थे रहंदा हाँ ना, उत्थे तिन हिन्दू ने, ते मैं कल्ला मुसलमान। असी ताँ इक फ़ैमिली वाकन रहंदे हाँ।”
मैं हैरान होता हूं कि पार्टीशन के समय पाकिस्तान में 23% हिन्दू थे और इन बच्चों ने अपने जीवन में एक हिन्दू नहीं देखा।
चलिये यह तो पाकिस्तान की बात थी। मगर भारत के ही मेजर गौरव आर्या की एक बात ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया। पाकिस्तान के एक चैनल पर बोलते हुए मेजर गौरव आर्या ने बताया कि 1990 के बाद (यानि कि कश्मीरी पंडितों को कश्मीर वैली से निकाल देने के बाद) कश्मीर में एक ऐसी पीढ़ी बड़ी हुई है जिसने कभी कोई हिन्दू नहीं देखा।
यह ख़्याल ही दिल को दहला देने वाला है कि भारत में एक ऐसा भी राज्य है जहां हिन्दू एक लुप्तप्रायः प्रजाति है। क्या भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य नहीं कि इस दिशा में कुछ गंभीरता से विचार करे और कुछ सकारात्मक कदम उठाने में सहायता करे? 
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

5 टिप्पणी

  1. विचारणीय लेख
    नोकझोंक तो पड़ोसियों में होती है… परदेस में तो प्रेम भाव बना रहता है। आपने अंतिम वाक्य में बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया जिसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई
    यह बात सही है कि 30 वर्ष पहले कश्मीर से सारे हिंदू पलायन होने के बाद वहां के मुस्लिम भाई-बहनों ने हिंदू परिवार देखा ही नहीं।
    एक पीढ़ी पूर्णतया हिंदू विचारधारा से वंचित है। हिंदुस्तान का अभिन्न अंग होते हुए भी हिंदू सभ्यता विचारधारा से इतना अनुभिज्ञ है! जिसके लिए सरकार को महत्वपूर्ण कदम उठाना चाहिए।

  2. सम्पादकीय के अन्त में जो सकारात्मक क़दम उठाने का प्रश्नसूचक संकेत किया गया है, उसकी आशा भारत के नागरिकों से तो अवश्य की जा सकती है, किन्तु सियासत को ऐसी नाज़ुक बातों पर ध्यान देने की फ़ुर्सत ही नहीं है।
    सम्पादक की सजग लेखनी साधुवाद की पात्र है।

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