Sunday, October 6, 2024
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जय वर्मा का लेख – महात्मा गांधी और मैं

जब मेरी आयु बारह वर्ष की थी मुझे गांधी जी की जीवन कथा पढ़ने का अवसर मिला। उससे पहले मेरे मन में महात्मा जी की छवि एक हाथ में छड़ी व ऐनक लगाये एक बुजुर्ग की थी। गांधी जी के बारे में जानकारी व षिक्षा हेतु हमारे विद्यालय में उनको इसी तरह चित्रित किया जाता था। जीवन कथा पढ़ने के दौरान वे कभी किशोर तथा हमउम्र के युवक प्रतीत होते, कभी वे एक सत्याग्रही व कभी सत्य व अहिंसा के पुजारी प्रतीत होते थे। उनकी एक लाठी पकड़े व आगे को झुके हुए मन्द मुस्कराने वाली छवि कहीं मेरे मन में बिखरने लगती। संसार में उनका सर्वव्यापी चित्र मेरी दृष्टि से ओझल होने लगता। उनके बारे में जानने व समझने का कौतूहल बढ़ने लगा। गांधी जी के लिए स्वराज व देशप्रेम सर्वोपरि थे। उनको अपने विचारों को सषक्त करने के लिए व अपनी इच्छाओं की परिणति के लिए स्वयं को शक्तिशाली व निर्भयी बनने की सलाह उनके मित्रों व शिक्षकों ने दी। उनके घर में शाकाहारी भोजन का प्रचलन था। शक्तिशाली बनने के लिए व्यायाम व भोजन में परिवर्तन करने की सलाह दी गयी। गांधी जी ने नियमित व्यायाम व शाकाहारी रहने का निश्चय किया। इसके फलस्वरूप उन्होंने गाय का दूध पीना बन्द कर दिया। उनका मानना था कि ये दूध उनके बछड़ों के लिए है, मनुष्यों के लिए नहीं। 
जब मुझे यह अवगत हुआ तो मैंने भी दूध पीना बन्द कर दिया। जब मेरी मां मुझे दूध पीने को देती तो मुझे गाय के छोटे बछड़े की मूँ…. की आवाज सुनाई देती। जब मेरी मां गाय को दूहने से पहले बछड़े को गाय का दूध पिलाने हेतु छोड़ती तब मुझे उस बछड़े को हटाने के लिए कहा जाता तो मैं उसे दूध पीने देती। एक दिन बछड़े ने अधिक मात्रा में दूध पी लिया व उसका पेट गुब्बारे की तरह फूल गया। सभी परेशान थे कि ये क्या हुआ? बुआ जी ने बताया कि आज ये जय का काम था। उसने बछड़े को जल्दी नहीं बांधा। परिवार में सभी जानते थे कि शाम के खाने के समय गली के कुछ कुत्ते घर में घुस जाते थे। मेरे दादाजी के खाने के दौरान कुत्तों को घर से दूर रखने के लिए, मुझे एक छड़ी देकर बरामदे में बैठने के लिए कहा जाता। मैं कुत्तों को डराने के लिए कहती कि तुम अपने घर जाओ। मेरे निरन्तर आग्रह पर भी कुत्ते नहीं जाते थे व मेरी छड़ी की तरफ न देखकर ये थाली पर टकटकी लगाए रहते। अन्य परिवार के बच्चे कौतूहल भरी निगाहों से देखते व उनके लिए ये मनोरंजक दृश्य बन जाता था। मैंने कभी भी किसी को नहीं बताया कि मैंने गांधी जी की जीवनी पढ़ी थी। गांव में एक छोटा-सा बच्चा खेत में काम करने जाती हुई अपनी मां के पीछे रोता हुआ भागता देखकर मैं द्रवित होकर उस बच्चे को गोद में उठाने के लिए दौड़ी, तो मुझे जोर से फटकार पड़ी कि तुम्हें पता है कि वह कौन है? तो मैं जवाब देती कि वह भूखा प्यासा है व उसकी मां उसे छोड़कर खेत में काम करने चली गयी है। 
कुछ समय पश्चात जब मेरी शादी डॉ. महीपाल सिंह वर्मा से हुई। शादी के कुछ वर्षों के बाद वे इंग्लैंड में चिकित्सक के पद पर कार्यरत हुए। उनके साथ रहने के लिए मैं दो अक्टूबर 1971 को दिल्ली से लंदन पहली बार जा रही थी, तो मुझे एक छोटा एयरबैग दिल्ली से खरीदना था। लेकिन गांधी जयंती के उपलक्ष्य में बाजार बन्द था। ये दिन मेरे जीवन के लिए भी अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा।
लंदन पहुंचकर एक दिन हम लंदन भ्रमण पर गये तो टेविस्टोक पार्क में फ्रेडा ब्रिलियन्ट द्वारा निर्मित गांधी की प्रतिमा देखकर स्तब्ध रह गयी व अत्यन्त प्रसन्न हुई। गांधी का मानव के प्रति भेदभाव रहित पवित्र प्रेम मेरी आंखों के सामने आ गया। मैंने काफी समय पार्क में बिताया और ऐसा लगा कि मैं भारत में ही हूं। मैंने मन ही मन ब्रिटीसर्स को नमन किया कि उन्होंने एक महान विभूति की प्रतिमा लगाकर सम्मान किया। गांधी जी जैसे युगपुरुष सदियों में पैदा होते हैं। वे जीवन पर्यन्त निस्वार्थ भाव से मनुष्यों को उत्पीड़न रहित करने हेतु कार्यरत रहे। दलितों व महिलाओं पर हुए अत्याचारों को वे सहन नहीं कर सकते थे। सर्वधर्म समभाव उनके लिए जीवन पर्यन्त सर्वोपरि रहा। उन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के लिए सत्य व अहिंसा को अपनाया। अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए 19 वर्ष की आयु में वे 1888 में इंग्लैंड गये। 
गांधी जी ने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से बैरिस्टर की शिक्षा प्राप्त की। वहीं पर उन्होंने ब्रिटिश सभ्यता में मेल-जोल बढ़ाया व शाकाहारी सोसायटी के सदस्य बने। उनके कॉलेज के अन्य विख्यात लोगों में अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जान.एफ. कैनेडी, नेल्सन मण्डेला व सर डेविड ऐटिनबरॉ आदि रहे।
गांधी जी की स्वराज की परिकल्पना व दृड़-संकल्प ने उनको विश्वव्यापी व्यक्तित्व का स्वामी बनाया। भारत के लोगों ने राष्ट्रपिता का दर्जा दिया। लोग उन्हें बापू के नाम से पुकारते थे। मार्टिन लूथर किंग व नेल्सन मन्डेला ने उन्हें अपना आदर्ष माना। दलितों एवं महिलाओं पर अत्याचार व शोषण इत्यादि सामाजिक कुरीतियों के निवारण में अग्रसर बने व समस्त विश्व में शासकों के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने के सम्प्रेशक बने। गांधी जी की संवेदना व सहिष्णुता के समावेश ने ही धर्मनिरपेक्ष भारत का निर्माण किया व स्वतंत्र भारत में ‘विविधता में एकता’ का संदेश दिया। 
गांधी जी ने देश को स्वावलम्बी बनाने हेतु लघु उद्योगों की प्राथमिकता पर जोर दिया। ग्रामोउद्योग में मजदूर व किसान वर्ग के उत्थान हेतु विशेष कार्य किया। भारत की हस्तकला उद्योग द्वारा निर्मित वस्तुएं आज विश्व में विख्यात हैं। वर्तमान का स्वच्छ भारत अभियान गांधी जी की परिकल्पना थी। गांधी जी ने सामाजिक उत्थान हेतु स्वदेशी अभियान का नेतृत्व किया व विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया। भारतीय संस्कृति व हिंदी भाषा के प्रेरणास्रोत रहे। गांधी जी समस्त विश्व में प्रकृति व पर्यावरण का संरक्षण करते हुए विकास को बढ़ावा दिया। भारतीय संस्कृति में प्रकृति व पर्यावरण को उच्च स्थान दिया गया है।
ब्रिटेन से वकालत की षिक्षा प्राप्त करने के बाद जून, 1891 में भारत लौटे व बम्बई में प्रैक्टिस करने लगे। उस समय साऊथ अफ्रीका में रंगभेद व नस्लभेद चर्म पर था। भारतीयों को भी इन कुरीतियों का सामना करना पड़ा। उसके बाद वे दक्षिण अफ्रीका में एक सिविल राइट्स की वकालत करने के लिए गये। साऊथ अफ्रीका ही उनकी सत्याग्रह की कर्मभूमि बनी। 1893 में गांधी जी की रेल यात्रा की घटना जब उन्हें प्रथम क्लास के डिब्बे से बाहर फेंक दिया गया था उसकी याद मेरे मन में बैठी हुई थी। मेरे साऊथ अफ्रीका में पांच दिन के प्रवास काल के दौरान गांधी जी की रेलयात्रा की खोज स्वाभाविक थी। नेल्सन मण्डेला म्यूजियम में जगह-जगह पर गांधी जी को याद किया गया है। उनके विचारों का नेल्सन मण्डेला व वहां के समुदाय पर असर देखने को मिला। गांधी जी की कर्मठता व चेतना से प्रेरित होकर नेल्सन मण्डेला ने अपने देश को रंगभेद व नस्लभेद से मुक्त कराया व स्वराज दिलाया। गांधी जी के सत्याग्र्रह एवं अहिंसा को नेल्सन मण्डेला ने अपने क्रान्तिकारी कर्मक्षेत्र में उतारा। जोहान्सवर्ग में गांधी जी की तांबे की प्रतिमा एक नौजवान युवक की है। जिसमें उन्होंने वकीलों का काला ग्राउन व सूट पहना हुआ है। उनके घने काले बालों के साथ एक हाथ में किताब तथा उनका सौम्य स्वरूप देखते ही बनता है। गांधी चैक ही वह स्थान था जहां पर गांधी जी ने भारतीयों को सामाजिक अधिकार दिलाने का कार्य प्रारम्भ किया। उसी जगह वो कानून की प्रैक्टिस करते, सभाएं आयोजित करते और भारतीयों को प्रेरित करते रहे। यहीं से गांधी जी ने सत्याग्रह व सिविल राईट्स दिलाने शुरू किये। 9वें विश्व हिन्दी सम्मेलन 2012 में मुझे वहां जाने का अवसर मिला तो मेरे मन में गांधी के करीब बीस वर्षों के प्रवास का असर दिखाई दिया। 
गांधी जी 1931 में राउण्ड-टेबल कॉन्फ्रेंस में भाग लेने लंदन गये थे। खादी के वस्त्र पहनने से विदेशी कपड़ों का विनिमय कम हो गया था। परिणामस्वरूप ब्रिटेन के मिल मालिक परेशान हो गये थे। उन्होंने गांधी जी से पूछा कि हमारे हजारों मजदूरों की रोजी रोटी छिन गयी है। तो बापू ने उत्तर दिया कि भारत के लाखों किसान व मजदूर बेरोजगार हैं व उनके बच्चों को रोटी खाने को भी नहीं मिलती। 
जोहान्सवर्ग में ही मुझे महात्मा गांधी की पौत्री सुश्री इला गांधी से मिलने का मौका मिला। इला गांधी साऊथ अफ्रीका में फिनिक्स शहर में 1940 में जन्मी व 1994 से 2004 तक साऊथ अफ्रीका में मेम्बर आॅफ पार्लियामेंट भी रहीं। फिनिक्स में अफ्रीकन, भारतीय एवं यूरोपियन समुदाय के लोग मेल-जोल से रहते हैं। इला गांधी भी एक पीस ऐक्टीविस्ट हैं। मैंने उनसे अंग्रेजी में ही बातचीत की क्योंकि वे हिन्दी भाषा कम बोलती थीं। उनका सान्निध्य एक सुखद अनुभव था।
जोहान्सवर्ग से लौट कर जब मैं नॉटिंघम, इंग्लैंड पहुंची तो गांधी जी के सिद्धान्तों का असर मेरे ऊपर था। उसी खोज में मैं गांधी जी की प्रतिमा देखने के लिए कौंसिल हाऊस पहुंची। सन् 1986 में गांधी जी की प्रतिमा नौटिंगम कौंसिल हाऊस, ओल्ड मार्केट स्कावायर में स्थापित की गई थी। इसके अलावा गांधी जी ब्रिटेन में कई जगह गये उन जगहों पर आज उनकी प्रतिमायें लगाई गयी हैं जैसे कि लंदन, टैबिस्टोक स्कावायर, मैनचेस्टर एवं वुल्वर हैम्पटन इत्यादि में। सन् 2019 में मुझे महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, वर्धा जाने का अवसर मिला। वहां से गांधी आश्रम सेवा ग्राम जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जहां मैंने गांधी जी के जीवन प्रणाली का साक्षात अनुभव किया तथा कुसुम ताई से बातचीत करके गांधी जी की अविस्मरणीय अनुभूति की। मेरा मन श्रद्धा से अभिभूत था। मैंने अन्तर्मन से गांधी जी को श्रद्धापूर्वक नमन किया और ईश्वर को धन्यवाद दिया। 
   अंग्रेजों ने भारतवर्ष में लगभग 200 वर्षों तक शासन किया तथा उन्होंने अपने देश में गांधी जी की प्रतिमायें लगाकर गांधी जी व समस्त भारतीयों का सम्मान दिया। अपने देश के बाहर गांधी जी की प्रतिमा देखकर अत्यन्त प्रसन्नता होती है। कौंसिल हाऊस नौटिंगम में लोर्डमेयर व शैरिफ आॅफ नौटिंगम का अधिकारिक ऑफिस भी है। वहां भी उनको अहिंसा व शान्तिदूत के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।
सत्याग्रह सत्य की प्राप्ति के लिए जीवन-पर्यन्त आग्रह करना है। गांधी जी सत्य को ही ईश्वर मानते थे। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी गांधी जी के जन्मदिन 2 अक्टूबर को अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस का नाम दिया है। 
गांधी जी ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रयास किया यद्यपि उनकी मातृ-भाषा गुजराती थी। वे सदा हिन्दी भाषा के ही पक्षधर रहे। उन्होंने वायसराय के समक्ष अपना भाषण बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के शिलान्यास के समय हिन्दी में ही दिया था। गांधी जी प्रादेशिक भाषाओें के भी समर्थक रहे। गांधी जी अंग्रेजी भाषा के खिलाफ नहीं थे। लेकिन वे देवनागरी भाषा को प्राथमिकता देते थे क्योंकि भारत के अधिकांश लोग देवनागरी में ही लिखते व बोलते हैं। 
हिन्दी भारत की राजभाषा है राष्ट्रभाषा बनाने के प्रयास अभी तक जारी हैं। जिस देश की अपनी राष्ट्रभाषा न हो उसे अपनी संस्कृति व सभ्यता को अगली पीढ़ी को विरासत में देने से वंचित होना पड़ सकता है। 1975 में नागपुर (महाराष्ट्र) में पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन का उद्घाटन श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा सम्पन्न हुआ तब से 11 विश्व हिन्दी सम्मेलनों में हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रयास जारी है। मुझे तीन विश्व हिन्दी सम्मेलनों में सहभागिता का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सन् 2007 में न्यूयार्क अमेरिका में विश्व हिन्दी सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ के सभागार में एक कार्यक्रम हिन्दी में सम्पन्न किया गया। हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषाओं में सम्मिलित करने का प्रस्ताव रखा गया। 8वें विश्व हिन्दी सम्मेलन का विषय था-‘विश्व मंच पर हिन्दी’ इसका आयोजन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय एवं अमेरिका की हिन्दी सेवा संस्था, भारतीय विद्या भवन ने किया। इस अवसर पर डॉ. करण सिंह का भाषण अत्यन्त प्रभावशाली था। इसी दौरान शायर गुलजार की नज्म एवं कविताओं का पाठ अति रोचक रहा।
सन् 2012 में 9वां विश्व हिन्दी सम्मेलन जोहान्सवर्ग साऊथ अफ्रीका में हिन्दी षिक्षा संघ व भारत के विदेश मंत्रालय के सहयोग से आयोजित हुआ। सम्मेलन का विषय था – ‘भारत की अस्मिता और हिन्दी का वैश्विक संदर्भ’। विदेश राज्य मंत्री श्रीमती परणीत कौर ने सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस सम्मेलन हेतु तकनीकी कार्य श्री बालेन्दु शर्मा दधीचि ने किया। इसी सम्मेलन के दौरान साऊथ अफ्रीका में भारत के उच्चायुक्त महामहिम वीरेन्द्र गुप्ता ने अपने निवास पर प्रतिभागियों का आतिथ्य सत्कार किया। इसी अवसर पर अतिथियों के मनोरंजन हेतु उन्होंने साऊथ अफ्रीका के लोक सांस्कृतिक कार्यक्र्रम का आयोजन भी करवाया। सांस्कृतिक कार्यक्र्रम में विभिन्न प्रकार के नृत्य व लोक संगीत का प्रस्तुतीकरण अति सौम्यपूर्ण रहा। हमें उनकी सांस्कृतिक विविधता देखने को मिली, जो अत्यन्त रोचक थी। उनके नृत्यों व वाद्य यंत्रों में ड्रम, घंटियां व बरछों का समावेष था। उनकी पोषाकें भी जानवरों की खाल, पत्तियों, पेड़ों की छाल व हस्त निम्रित वस्त्रों व आभूषणों से विभूषित थे। सारा प्रस्तुतीकरण प्रकृति एवं पर्यावरण के नजदीक था।
नेल्सन मण्डेला सभागार में आयोजित कवि सम्मेलन में मैंने अपनी कविता ‘शान्ति दूत: नेल्सन मण्डेला’ सहयात्री हैं हम नामक पुस्तक से प्रस्तुत की। जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं-
हे शान्ति दूत! हे क्रान्ति दूत।
अपनाए वे, जो थे अछूत
तुम लड़े उसी के लिए सदा
दक्षिण अफ्रीका के सपूत।
सन् 2015 में 10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन भोपाल (मध्यप्रदेश) की राजधानी में, भारत सरकार व मध्यप्रदेश सरकार के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इस समारोह का उद्घाटन भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने किया। श्रीमती सुषमा स्वराज, विदेश मंत्री, श्री षिवराज सिंह चैहान मुख्यमंत्री व पष्चिमी बंगाल के राज्यपाल महामहिम केसरी नाथ त्रिपाठी एवं अन्य गणमान्य व्यक्तियों की गरिमामयी उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। विश्व हिन्दी सम्मेलन का विषय था – ‘हिन्दी जगत विस्तार एवं सम्भावनाएं’।
सभी विश्व हिन्दी सम्मेलनों में हिन्दी को राष्ट्रभाषा एवं संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषाओं में सम्मिलित करने की योजनायें एवं प्रस्ताव रखे जाते हैं। अब यह देखना है कि कब हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा पायेगी व संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषाओं में सम्मिलित होकर गांधी जी का स्वप्न एवं परिकल्पना को साकार करेगी।
जय वर्मा
जय वर्मा
नॉटिंघम एशियन आर्ट्स काउंसिल की निदेशक एवं काव्य रंग की अध्यक्ष. वरिष्ठ लेखिका. संपर्क - [email protected]
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