सांकेतिक चित्र (साभार : The Week)
हमारे सौरमंडल में मंगल ही इकलौता ऐसा ग्रह है जो पृथ्वी जैसी अनेक समानताएं लिए हुए है और भविष्य में पृथ्वी से बाहर मानव कॉलोनी बसाने के लिए भी सबसे उपयुक्त पात्र भी यही ग्रह नजर आता है। जैसे-जैसे इसके बारे में हमारे ज्ञान में वृद्धि हुई है वैज्ञानिकों और सामान्य जनसाधारण की इसके प्रति रुचि में भी निरंतर बढ़ोत्तरी हुई है।
अंतरिक्ष खोजी अभियानों के लिहाज़ से भी अन्य ग्रहों-उपग्रहों और तारों की तुलना में मंगल सर्वाधिक उपयोगी और उपयुक्त ग्रह माना जाता है। इसलिए पिछली सदी के उत्तरार्ध में शुरू हुए ज़्यादातर अंतरिक्ष के खोजी अभियान मंगल के ही नाम है।
लेकिन अभी भी हमें इससे जुड़े कई अहम सवालों के जवाब मिलने बाकी हैं जैसे कि – क्या कभी मंगल पर जीवन था, और अगर था तो किस रूप में था और उसका अंत कैसे और क्यों हुआ? क्या मंगल पर कभी पृथ्वी की तरह नदियां और सागर हिलोरें लेते थे? इस आखिरी सवाल यानी क्या कभी लाल ग्रह पर नदियां और सागर हिलोरें लेते थे, का जवाब एक लंबे अर्से से वैज्ञानिकों का जवाब ‘हां’ में रहा है।
हाल ही में वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय टीम को मंगल ग्रह पर एक अरब साल पहले नदियों के मौजूदगी के नए और पुष्ट संकेत मिले हैं। इस नए खोज का खुलासा ‘नेचर कम्यूनिकेशन’ जर्नल में किया गया है।हालांकि इसकी पुष्टि के नए-नए सबूत वैज्ञानिकों को समय बीतने और तकनीकी विकास के साथ मिलते ही जा रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने नासा के ‘मार्स रिकॉनेनेस ऑर्बिटर’ के ‘हाईराइज़’ नामक कैमरे से लिए गए हाई-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरों का विश्लेषण कर यह जानकारी हासिल की है। वैज्ञानिकों ने तस्वीरों की सहायता से मंगल ग्रह के ‘हेलास बेसिन’ नामक एक बहुत बड़े क्रेटर क्षेत्र का एक 3डी टोपोग्राफिकल मैप बनाया। वैज्ञानिकों ने एक पथरीले पहाड़ की चोटी के पास गहरे अवसादी तलछट पाए हैं जो तकरीबन 200 मीटर ऊंचे हैं।
यह अवसादी तलछट तेज बहती नदी की वजह से बने हैं। इसकी चौड़ाई करीब डेढ़ किलोमीटर है। वैज्ञानिकों ने बताया कि हम फिलहाल वहां जाकर विस्तृत जानकारी नहीं ले सकते हैं। मगर इनकी पृथ्वी के अवसादी चट्टानों (सेडीमेंटरी रॉक्स) से समानता संदेह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ रही है। करीब 656 फीट ऊंचे अवसादी निक्षेप बनने के लिए हमें ऐसे हालात चाहिए जहां बहुत बड़ी मात्रा में तरल पानी बहता हो।
नेचर कम्यूनिकेशन जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र के प्रमुख लेखक फ्रांसेस्को सैलेरी का कहना है कि ‘यह वर्षों पहले ही सिद्ध हो चुका है कि मंगल ग्रह पर अरबों वर्ष पहले बहुत-सी झीलें, नदियां और संभवतः महासागर तक रहे होंगे जो जीवन के शुरुआती स्तर के अनुकूल रहे होंगे। आज मंगल के ध्रुवों पर बर्फ जमा है और उसमें बहुत ज्यादा धूल के तूफान आते हैं। लेकिन वहां की सतह पर तरल पानी की मौजूदगी के कोई भी संकेत नहीं हैं। मगर जब पृथ्वी पर जीवन आज से 3.7 अरब साल पहले शुरू हुआ था।
मंगल पर हालात इतने विषम नहीं थे। और हो सकता है कि तब वहां जीवन के अनुकूल परिस्थितियां मौजूद रही हो। पृथ्वी पर भी अवसादी चट्टानों का अध्ययन कर जियोलॉजिस्ट शुरू से ही लाखों-अरबों साल पहले के स्थितियों के बारे में जानने में सफल हुए हैं। और अब हम मंगल ग्रह का भी अध्ययन कर पा रहे हैं जहां हमारी पृथ्वी से भी पहले के समय के अवसादी चट्टानें पाए गए हैं।’
इस शोध के तहत वैज्ञानिकों ने यह भी पाया है कि इन तेज बहती नदियों ने इन चट्टानों को करीब हजारों-लाखों साल पहले बनाया होगा। इन चट्टानों में सूक्ष्मजीवी जीवन के प्रमाण हो सकते हैं और मंगल ग्रह के इतिहास के बारे में बहुत-सी जानकारी हासिल हो सकती है।
बहरहाल, मंगल की खोज निरंतर जारी है। नासा का इनसाइट लैंडर मंगल पर सफलतापूर्वक लैंडिंग कर चुका है और मंगल के भूगर्भीय बनावट का अध्ययन कर रहा है। वहीं क्यूरियॉसिटी रोवर छह साल से अधिक समय से गेल क्रेटर की खोजबीन कर रहा है। और नासा का मार्स 2020 रोवर (जिसे 17 जुलाई 2020 में लॉंच करने की योजना है) और युरोपियन स्पेस एजेंसी का एक्समर्स रोवर (संभावित लॉंचिंग वर्ष 2022)  दोनों लॉंच होने के बाद ऐसे रोवर मिशन बन जाएंगे, जिन्हे मुख्य रूप से लाल ग्रह पर अतीत के सूक्ष्मजीवी जीवन और नदियों, सागरों की मौजूदगी के संकेतों की तलाश के लिए बनाया गया होगा।
प्रदीप कुमार, विज्ञान विषयों के उभरते हुए लेखक हैं. दैनिक जागरण, नवभारत टाइम्स, इलेक्ट्रॉनिकी आदि देश के अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में इनके विज्ञान विषयक आलेख प्रकाशित होते रहते हैं. संपर्क - pk110043@gmail.com

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