जीवन भी कितनी अजीब चीज है जो कुछ हम चाहते हैं वह मिलता नहीं है और जो मिलता है उसमें भी न जाने कितनी खोज करने पर हम लगे रहते हैं! आज अनामिका फिल्म देखते समय संजीव कुमार के हाथ में हेमिंग्वे की एक पुस्तक देखकर मोहिनी ने सोचा कि यूं तो हेमिंग्वे को पढा है लेकिन आज उसकी जीवनी दोबारा से पढ़ ली जाए और बस हेमिंग्वे की जीवनी पढ़ने में मोहिनी ने पूरा समय निकाल दिया ।
अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंची कि मानो हेमिंग्वे की आत्मा ही उसके अंदर समा गई है। ऐसा उसने क्यों सोचा ?यह जानने के लिए आवश्यक है फ्लैशबैक में जाना!
बात सन 1996 की है जब उसे अकेले ही सारी जिम्मेदारी का बोझ उठाना पड़ गया था और इतना काम करते -करते उसे स्पॉन्डिलाइटिस हो गया। उसने एक डॉक्टर का नाम सुना था जो केवल व्यायाम से ही बीमारियां ठीक कर देते थे। उनका नाम था डॉक्टर सारंगपानी ।अब क्या था, अपॉइंटमेंट लिया गया ।उनके पास जाकर दिखाया गया और मोहिनी का चेकअप करने के बाद उन्होंने एक लफ्ज़ बोला कि “तुम्हें कोई बीमारी नहीं है और जो बीमारी है उसका कोई इलाज नहीं है”। मोहिनी दहशत में आ गई ।आश्चर्यचकित हो डॉक्टर को देखने लगी। डॉक्टर ने कहा ,आपको परफेक्शनिस्ट की बीमारी है और इसका कोई इलाज नहीं ।उसे कुछ व्यायाम बता दिए गए और कुछ बातें समझा दी गई। कुछ आदतों को बदलने के लिए कह दिया गया। हालांकि यह सब उसके लिए संभव नहीं था।
स्पॉन्डिलाइटिस तो व्यायाम से ठीक हो गया लेकिन परफेक्शनिस्ट वाला जो सवाल था वह आज भी उसके साथ जुड़ा हुआ है! बचपन से ही उसके स्वभाव में हर काम में अनुशासन होना ही चाहिए इसकी आदत उसे लगाई गई थी ।इसलिए वह अपने हर काम को बहुत करीने से करती थी और स्वयं तो करती ही थी लेकिन हरेक से भी उम्मीद करने लगती थी ।उसे वह व्यक्ति पसंद ही नहीं आता जो अपने कार्य करने में थोड़ी सी भी चूक कर जाता। उसे लगता कि जो व्यक्ति अपने कार्य के प्रति गंभीर नहीं है वह व्यक्ति अच्छा हो ही नहीं सकता!बस इस विचार को उसने अपने दिमाग में कहीं गहरे बिठा रखा था। अब वह हालांकि अपने अच्छे कार्य के लिए ही प्रशंसा की पात्र भी बनी हुई थी लेकिन धीरे धीरे कुछ बीमारियां भी उसे घेरने लगी थीं। काम के आगे वह खाना छोड़ देती थी।जवानी में तो चल गया लेकिन आगे निश्चित ही कमजोर शरीर बीमारी से घिरने लगा।
आज जब वह शुगर की बीमारी से पीड़ित है अवकाश प्राप्त जीवन व्यतीत कर रही है, ऐसे में हेमिंग्वे की जीवनी ने उसे और अधिक सशंकित कर दिया। जब उसने पढ़ा कि हेमिंग्वे भी एक परफेक्शनिस्ट व्यक्तित्व का मालिक था ।हेमिंग्वे को अपने जीवन में एक साथ सब कुछ कर लेने की आदत थी। मोहिनी को भी लगा कि यही तो उसका भी स्वभाव है !जैसे-जैसे हेमिंग्वे के जीवन को वह पढ़ती जा रही थी न जाने क्यों उसे लगता जा रहा था कि एकदम उसका जीवन हेमिंग्वे के जीवन से मेल खाता है। अब क्या था! उसकी नजर उसके जन्मदिन पर गई ।अब तो वह और चौंक गई ,अरे !जो तारीख उसके जन्म की है वह तारीख हेमिंग्वे की मृत्यु की है! मोहिनी के आश्चर्य की सीमा न रही।
वह मन ही मन यह सोचने लगी कि कहीं वह स्वयं हेमिंग्वे तो नहीं ?सारी आदतें तो उससे मिलती हैं !सारी बातें तो उसकी मिलती-जुलती हैं !अब क्या था !मोहिनी को दिन-ब-दिन भ्रम होने लगा कि वह हेमिंग्वे की ही आत्मा है !बस, अंतर इतना है कि वह पुरुष रूप में थे और वह नारी रूप में जन्मी है ।धीरे-धीरे मोहिनी हेमिंग्वे के साहित्य में डूबने लगी और उसे लगा कि ज्यों- ज्यों वह उसका साहित्य पढ़ती जा रही है, त्यों – त्यों उसे अपनी और गहरी पहचान मिलती जा रही है। अब क्या था! अभी वह आनंदित हो ही रही थी कि अचानक उसने पढ़ा कि हेमिंग्वे ने अंत में अपनी कनपटी पर पिस्तौल को दागकर स्वयं को मार डाला था!
अचानक मोहिनी के हाव -भाव बदल गए। उसे लगा नहीं ,यह असंभव है। वह हेमिंग्वे की तरह मरना नहीं चाहती ।वह इतनी कायर नहीं है कि वह आत्महत्या कर के मरे ! अचानक फोन की घंटी बजने से उसकी तंद्रा टूटी और वह सोचने लगी …. वह हेमिंग्वे को पढ़ते -पढ़ते हेमिंग्वेमय बन गई ? इसीलिए शायद कहा जाता है कि जब आप किसी भी काम को डूबकर करते हो तो वह काम आपको अपने में इतना समा लेता है कि आप उसी के जैसे महसूस करने लगते हो!
मोहिनी ने किताब बंद की और सोचने लगी कि हेमिंग्वे ने चार विवाह किए थे। कहीं ऐसा तो नहीं कि मनुष्य अपने ही जीवन में जब बार-बार कुछ नया पाने की कोशिश में हर बार वह नहीं पा पाता है जो उसे चाहिए तो कहीं ना कहीं वह अपने को कमजोर समझ बैठता है और जो अपने हर काम बहुत ही सलीके से करने का आदी होता है उसे किसी भी काम में कमजोरी पसंद नहीं होती! शायद इसीलिए हेमिंग्वे ने अपने जीवन की किसी कमजोरी को बर्दाश्त न करने के कारण ही इतना बड़ा कदम उठाया होगा कि जीवन को ही समाप्त कर लिया होगा?
हालांकि हेमिंग्वे का मानना है कि,”जीवन अपने आप में एक लड़ाई है,उसे लड़ते रहना चाहिए।” शायद इसीलिए उन्हें जब एक जीवन साथी से सफलता नहीं मिली तो दूसरी पर आगे बढ़ गए होंगे। दूसरे से तीसरे पर और तीसरे में भी जब सफलता नहीं मिली तो चौथे से विवाह किया होगा! शायद यही कारण है कि जब वह किसी में भी या यूं कहिए कि किसी के साथ भी जब खुश नहीं रह सके तो उस असफलता को स्वीकार न कर सके होंगे और अंत में स्वयं इतने बड़े वाक्य को कहने वाला व्यक्ति ही जीवन से हार गया! या यूं कहिए कि जीवन को हारना नहीं चाहता था इसलिए स्वयं को गोली दाग ली और योद्धा की तरह कूंच कर गए। मोहिनी सोचने लगी कि यदि उसके शरीर में हेमिंग्वे की आत्मा है तो कहीं उसका अंत भी हेमिंग्वे की तरह ही तो नहीं होगा? मन ही मन कहने लगी ,नहीं वो पुरुष थे लेकिन मैं नारी हूं और सच पूछो तो नारी और पुरुष में यही तो अंतर होता है कि नारी जल्दी हार नहीं मानती है इसीलिए तो सृजन करती है!
पुरवाई संपादकीय टीम को मेरा धन्यवाद ,मेरी लघु कथा को
अपनी ई – पत्रिका में स्थान देने के लिए। डॉ.सविता सिंह,पुणे।