Saturday, July 27, 2024
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हिंदी सिनेमा की विडंबना

हिंदी सिनेमा विकट विडंबना से जूझ रहा है, जहाँ प्रतीक गांधी जैसे अभिनय के लिए ही बने कलाकार पहचान के लिए संघर्षरत हैं, वहीं सारा अली खान जैसों जिनका जन्म अभिनय के लिए हुआ ही नहीं, को लगातार बिग बजट फ़िल्में मिलती जा रही हैं। यहाँ प्रतीक गांधी और सारा अली खान केवल दो व्यक्ति नहीं, बल्कि दो अलग-अलग वर्गों के प्रतिनिधि पात्र हैं।
पिछले दिनों दो सिनेमा सामग्रियों से गुजरना हुआ। एक, सोनी लिव पर प्रसारित बहुचर्चित वेब सीरीज ‘SCAM 1992’ देखी गयी और दूसरा, 25 दिसंबर को अमेज़न प्राइम पर प्रसारित होने जा रही वरुण धवन-सारा अली खान की फिल्म ‘कूली नम्बर वन’ के गाने देखे गए। इन दोनों चलचित्रों से गुजरने के बाद मन में हिंदी सिनेमा की जिस विडंबनात्मक छवि का अक्स उभरा यह लेख उसीकी उपज है।

SCAM 1992
हंसल मेहता द्वारा निर्देशित यह वेब सीरीज 1992 में सामने आए हर्षद मेहता के स्कैम को लेकर लिखी गयी वरिष्ठ पत्रकार सुचेता दलाल और देबाशीष बासु की किताब ‘The Scam’ पर आधारित है। कहने को यह वेब सीरीज 1992 के स्कैम पर है, मगर इसमें हर्षद मेहता का फर्श से अर्श और अवसान तक का पूरा सफर दिखाया गया है। सीरीज दस एपिसोड की है और हर एपिसोड लगभग एक घंटे का है, मगर कहीं भी न तो कहानी धीमी होती है न ही आप बोर होते हैं। यह इस वेब सीरीज की कसी हुई पटकथा का ही परिणाम है।
इस वेब सीरीज को देखने के बाद आप स्वयं से पूछ पड़ते हैं कि क्या ऊपर से घोटाला नज़र आने वाला हर मामला वास्तव में भी घोटाला ही होता है या वो व्यवस्था की विसंगतियों का एक परिणाम होता है? हर्षद मेहता ने जो किया था, वो नैतिक रूप से बेशक गलत था, लेकिन यदि उसे अपराध माना जाए तो फिर सबसे बड़ा अपराधी व्यवस्था को माना जाना चाहिए।
बहरहाल, इस सीरीज में मुख्य पात्र हर्षद मेहता की भूमिका प्रतीक गाँधी ने निभाई है। प्रतीक गुजराती थिएटर कलाकार हैं। इसके अतिरिक्त बॉलीवुड की कुछेक फिल्मों में छोटे-मोटे किरदार भी उन्होंने किए हैं, हालांकि उनकी मुख्य पहचान थिएटर कलाकार के रूप में ही रही है। लेकिन अब उनकी पहचान हर्षद मेहता का पर्याय बन चुकी है।
किसी वास्तविक किरदार को, बिना मिमिक्री के निम्न स्तर तक गए, परदे पर कैसे उतारा जाता है, यह बात इस वेब सीरीज में प्रतीक के अभिनय को देखकर समझी जा सकती है। अन्य किरदारों ने भी जरूरत के मुताबिक अच्छा काम किया है। संवाद भी बेहतरीन हैं। गुजराती भाषा का भी टुकड़ों-टुकड़ों में सुसंगत इस्तेमाल किया गया है।
किसी वास्तविक स्कैम को लेकर बनी यह भारत की पहली वेब सीरीज है। निश्चित ही आगाज़ शानदार हुआ है। यह वेब सीरीज देखने के बाद लगता है कि ऐसी सत्य घटनाओं और घोटालों पर और भी वेब सीरीजें बननी चाहिए।

कूली नम्बर वन
1995 में डेविड धवन ने गोविंदा और करिश्मा कपूर को लेकर एक फिल्म बनाई – कूली नम्बर वन। यह फिल्म इतनी सफल रही कि इसके बाद गोविंदा की ‘नंबर वन’ फ्रेंचाइजी ही चल पड़ी जिसके तहत उन्होंने छः फ़िल्में की।
बहरहाल, अब रीमेक फिल्मों के इस युग में ‘कूली नम्बर वन’ की रीमेक बनाने का ख्याल अगर डेविड धवन को आया तो भला क्या बड़ी बात है! इसमें उन्होंने अपने सुपुत्र वरुण धवन को गोविंदा की जगह रख लिया और करिश्मा कपूर की जगह सारा अली खान को मिल गयी। फिल्म के ट्रेलर और गानों के आधार पर इस नयी ‘कूली नम्बर वन’ का पुरानी से तुलना करें तो समझ आने लगता है कि डेविड धवन ने अपनी ही बनाई एक अच्छी फिल्म का रीमेक करने के चक्कर में किस तरह से कचड़ा कर दिया है।
जैसे ‘पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं’ वैसे ही इस फिल्म का स्तर इसके गानों में नायक-नायिका का अभिनय देखकर समझ आ जाता है। वरुण धवन ठीकठाक अभिनेता हैं। मगर उनके अभिनय का फिक्स पैटर्न बन गया है। वे उससे बाहर कुछ नहीं कर पाते।
ध्यान से देखें तो आप पाएंगे कि चेहरे के हाव-भाव से लेकर शरीर की भाव-भंगिमा तक को वे अपनी ज्यादातर फिल्मों में दुहराते रहे हैं। बाकी गोविंदा के डांस का जो लेवल है, उसे वरुण धवन क्या, आज के अधिकांश अभिनेता टच नहीं कर सकते। यह समझने के लिए आप नयी और पुरानी ‘कूली नम्बर वन’ का  ‘हुश्न है सुहाना’ गाना देख सकते हैं।
अब आते हैं फिल्म की हीरोइन सारा अली खान पर। इन्हें रूप अपनी माँ से मिला है। आँखों को आकर्षक लगती हैं। अब सुंदर होना फिल्म की नायिका होने के लिए जरूरी तो है, मगर केवल इतने से काम चल जाए ऐसा नहीं है। आपको अभिनय भी आना चाहिए जिसमें सारा अली खान निल बटे सन्नाटा हैं।
मैडम के फ़िल्मी करियर की शुरुआत 2018 में सुशांत सिंह राजपूत के साथ फिल्म केदारनाथ से हुई। फिल्म तो ख़ास नहीं चली, लेकिन सारा को बेस्ट डेब्यू अभिनेत्री का फिल्मफेयर अवार्ड जरूर मिल गया। ये क्यों मिला, यह रहस्य आज भी कायम है। मगर मान लेते हैं कि एक नयी अभिनेत्री को प्रोत्साहित करने के लिए ये अवार्ड दे दिया गया हो, लेकिन सवाल है कि तबसे अबतक सारा ने क्या कुछ भी सीखा है ?
केदारनाथ के बाद सारा रोहित शेट्टी की फिल्म ‘सिम्बा’ में नज़र आईं और इस फिल्म को पाने के लिए उन्हें कैसा ‘संघर्ष’ करना पड़ा इसकी कहानी खुद रोहित शेट्टी की जुबानी ही जगजाहिर हो चुकी है। सिम्बा नायक-प्रधान फिल्म थी, सो सारा के लिए करने को कुछ था नहीं।
इसी साल फरवरी में इम्तियाज़ अली अपनी फिल्म ‘लव आज कल’ का सीक्वल लेकर आए, जिसमें कार्तिक आर्यन के साथ सारा अली खान मुख्य भूमिका में थीं। इस फिल्म में उनके पास अपने अभिनय को साबित करने के लिए भरपूर संभावना थी, मगर इस संभावना का जैसा सत्यानाश उन्होंने किया उसे फिल्म को झेलने वाले लोग भलीभांति समझ सकते हैं। फिल्म बुरी तरह से फ्लॉप रही।
दरअसल सारा को अभिनय की बेसिक बातों की भी समझ नहीं है। वे हर परिस्थिति में एक ही तरह से मुस्कुराती और दुखी होती हैं। ‘लव आज कल’ में दुखी होने वाले दृश्यों में उनका अभिनय देखकर सिर पीटने का मन करता है। कुछ ऐसा ही मन तब भी होता है, जब हम इस नयी ‘कूली नम्बर वन’ में डांस के दौरान सारा के चेहरे के एक्सप्रेशन देखते हैं। बाकी पूरी फिल्म में उन्होंने ‘अभिनय’ नामक चीज के साथ जो किया होगा, उसकी कल्पना भी सिहरा देती है।
डेविड धवन के लिए भी एक बात कहने का मन होता है कि गोविंदा की फिल्मों को आम आदमी की फ़िल्में कहा जाता था, लेकिन ‘कूली नम्बर वन’ का ये जो रीमेक है, वो ट्रेलर से कहीं भी आम आदमी की फिल्म वाला नहीं लग रहा। डेविड धवन अपने ही हाथों अपनी ही फिल्म को बर्बाद कर रहे हैं। इस ‘कूली नम्बर वन’ को फौरी तौर पर पर दर्शक भले मिल जाएं, लेकिन दर्शकों की स्मृति में इसे कोई स्थायी महत्व बिलकुल नहीं मिलेगा।
उपर्युक्त दोनों चलचित्रों के विश्लेषण के पश्चात् हम कह सकते हैं कि हिंदी सिनेमा विकट विडंबना से जूझ रहा है, जहाँ प्रतीक गांधी जैसे अभिनय के लिए ही बने कलाकार पहचान के लिए संघर्षरत हैं, वहीं सारा अली खान जैसों जिनका जन्म अभिनय के लिए हुआ ही नहीं, को लगातार बिग बजट फ़िल्में मिलती जा रही हैं।
यहाँ प्रतीक गांधी और सारा अली खान केवल दो व्यक्ति नहीं, बल्कि दो अलग-अलग वर्गों के प्रतिनिधि पात्र हैं। हालांकि संतोष की बात यह है कि अपनी तमाम विसंगतियों के बावजूद ओटीटी माध्यम प्रतिभाओं को प्रकाश में लाने का एक बेहतर मंच सिद्ध हो रहे हैं।
पीयूष कुमार दुबे
पीयूष कुमार दुबे
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिला स्थित ग्राम सजांव में जन्मे पीयूष कुमार दुबे हिंदी के युवा लेखक एवं समीक्षक हैं। दैनिक जागरण, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, पाञ्चजन्य, योजना, नया ज्ञानोदय आदि देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक व साहित्यिक विषयों पर इनके पांच सौ से अधिक आलेख और पचास से अधिक पुस्तक समीक्षाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। पुरवाई ई-पत्रिका से संपादक मंडल सदस्य के रूप में जुड़े हुए हैं। सम्मान : हिंदी की अग्रणी वेबसाइट प्रवक्ता डॉट कॉम द्वारा 'अटल पत्रकारिता सम्मान' तथा भारतीय राष्ट्रीय साहित्य उत्थान समिति द्वारा श्रेष्ठ लेखन के लिए 'शंखनाद सम्मान' से सम्मानित। संप्रति - शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय। ईमेल एवं मोबाइल - [email protected] एवं 8750960603
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1 टिप्पणी

  1. पीयूष जी आपने हिंदी सिनेमा के वर्तमान हालात पर उम्दा बात
    कही । गुलशन कुमार नें इस क्षेत्र मेंक्रांतिकारी काम किया
    एकाधिकार ख़त्म करने में उनका बड़ा योगदान रहा ।

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