आज दो दिन से बालकनी की लाइट जलती  नहीं दिखाई दे रही है… पता नहीं क्या माजरा है… 
मुझे इस घर में आये आज आठ महीने हो चुके हैं। रोज़ बेडरूम से बालकनी में रोशनी दिखाई देती रही है… न जाने उस रोशनी से क्या जुड़ाव सा हो गया है… यदि वो रोशनी न दिखाई दे तो मन बेचैन सा हो उठता है। और वहाँ वे आते-जाते टहलते कभी भी दिख ही जाते थे…
लॉकडाउन के बाद ज़िन्दगी बिलकुल ही बदल ही गई है… सब अपने आप में ही व्यस्त रहने लगे हैं। महीनों हो गये… कोई भी बाहर नहीं निकलता… कभी-कभार कोई अपनी ज़रूरत के काम से ही बाहर जाता।  बस किसी तरह दिन और रात निकल रहे थे… 
सुनने में यही आता कि सी ब्लॉक आठवीं मंजिल के झा साहब नहीं रहे… या फिर साथ वाली बिल्डिंग से फलां आंटी नहीं रहीं… और इस तरह कई ज़िन्दगियां अब आंकड़ों में बदल गई थीं… सुबह उगती और फिर शाम हो जाती…  यही जीवन बन गया था… और फिर यही सोच कर रह जाती कि लो अब फिर रात हो गई… नींद आंखों से ग़ायब रहती… बस एक डर मन पर तारी था या फिर उदासी… 
मन बहुत हताश रहने लगा था… अब आगे क्या होगा या क्या होने वाला है… एक अजीब से उहापोह सी मची रहती… पहली बार जब उन्हें देखा था, वे  बालकनी में खड़े सूर्य को जल चढ़ा रहे थे… उसके बाद दहशत ने सबको अपने अपने  घरों में बंद कर दिया था… घर में उनके अलावा और कोई कभी दिखाई नहीं दिया… कई बार बात करने की सोची… मगर हो नहीं पाई… 
मन में अजीब सी उहापोह थी… कहीं कुछ हो तो नहीं गया… पर मन मानने को तैयार नहीं… सच्चाई को सह पाना क्या इतना आसान होता है… और आज वह लाईट हमेशा के लिए बुझ गयी… जलाने वाले का कोई पता नहीं चला… वे एक प्रश्न हमेशा के लिए छोड़ गए…

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.