Friday, October 11, 2024
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लंदन से चार बच्चों की कविताएँ

लंदन से शिखा वार्ष्णेय ने इन चार बच्चों की कविताएँ भेजी हैं, जिन्हें प्रकाशित करते हुए हमें इस बात की प्रसन्नता हो रही है कि विदेशों में नयी पीढ़ी हिंदी भाषा और साहित्य को लेकर इस तरह से सजग है। पुरवाई परिवार इन चारों प्रतिभावान बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है।

अयाति कुमारी
(HCS, 10 years old)
वो है पृथ्वी और शुक्र हैं हम
चमकता हूँ आकाश में रोज़ रात भर
घड़ी की सुई की तरह घूमता हूँ हर दम
यूँ लगता है जुड़वाँ हैं दोनों
वो है पृथ्वी और शुक्र हैं हम |
है पानी और ही कोई आंधी
वोल्केनो से भरपूर पर नहीं है मानसून
नहीं है मेरे पास प्यारा चाँद
फिर भी रोमन देवी के नाम से हूँ मशहूर
विचरता हूँ आकाश गंगा में स्वछन्द
गर्म हूँ सबसे अधिक लेकिन रह गए
दूसरे नंबर पर सूर्य तक जाने की रेस में हम|
यूँ लगता है जुडवाँ हैं दोनों
वो है पृथ्वी और शुक्र हैं हम|
रिओ मुंजाल
(ACS Cobham, 11 year old)
जब स्कूल में इंस्पेक्टर आया
स्कूल इंस्पेक्टर था जब आया
मिस्टर लुईस का द्वार मैंने था खटखटाया
गुस्से में थी उसकी आवाज़ आई
मैंने अलार्म की घंटी थी बजाई|
हुआ जोर का धमाका कैफ़ेटेरिया में
शोर मचाया बच्चों ने यहाँ से टिमबकटू तक
अध्यापक यूँ गुर्राये थे
मानो चीते ने शिकार खोकर दी हो दुहाई
मैंने अलार्म की घंटी थी बजाई |
वे आए तो स्कूल में रहा न कोईफ़न
रोकना चाहा तो रायनो के झुण्ड की तरह टकराए
वे कक्षाओं में थे, वे पी ई में थे
क्यूं नहीं कर सकते हम स्वतंत्रता से पढ़ाई
थी मैंने अलार्म की घंटी बजाई |
इंस्पेक्टर के आने की जब ज़ोरों से दी दुहाई तो
तो नींद खुली सपनो की दुनिया से
और मेरी जान में जान आई |
अमिशी उपाध्याय
(Shabd Jyoti  Cambourne, 11 years old)
क्या सोचते हो तुम जब देखते हो कुछ रंग
क्या सोचते हो तुम जब देखते हो काला
हो जैसे किसी ने फायर प्लेस की चिमनी से धुंआ निकाला.
क्या सोचते हो तुम जब देखते हो भूरा
जैसे सामने हो एक डिब्बा चॉकलेट का पूरा.
क्या सोचते हो देखते हो नीला जब तुम
जैसे ख़ुशी भरा पीला यादों में नीला हो गया गुम.
जब देखते हो लाल तो सोचते हो क्या
कहा हो किसी ने जैसे कुछ चिंता भरा.
सोचते हो क्या जब देखते हो सफ़ेद
चमकती सुन्दर रौशनी और इस रंग में नहीं कोई भेद. 
धृति शाह
(12 years old)
देश भक्ति
हे भगवान, मुझे देना इतनी शक्ति
मुझे करनी है जी जान से देश भक्ति!
मेरे देश में रहते हैं साथ सब
अब कोई कहे राम कोई कहे रब
मजहब ने ले लिया है अपना स्थान
ऐसे ही बिगड़ रही है देश की शान. 
कितने जवानों ने देश के पीछे दे दी अपनी जान
उनका यह बलिदान नहीं होने दूंगी कुर्बान. 
चलो चुने देश भक्ति दिखाने का नया रास्ता
मिलकर बदल दें देश की यह अवस्था.
जाति भेद छोड़कर रखो सब एकता
एक दुसरे से करो प्यार और मित्रता.
विदेशी चीजों का करो बहिष्कार
स्वदेशी चीजों को करो स्वीकार. 
छोड़ो स्वार्थ, न करो बईमानी
न पहुँचाओ देश वासियों को कोई हानि
ये सब करके लौटाएं देश का मान
फिर से कहलायेंगे सोने की चिड़िया वाला हिंदुस्तान.  
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1 टिप्पणी

  1. संपादकीय सामायिक और जानकारियों से भरे हैं । बच्चों की कविताएं अद्भुत लगीं ।छोटी उम्र में इतना सब सोचना और ज्ञान अर्जित करना । शाबासी बच्चों को । बधाई पुरवाई को ।

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