पुस्तक  : गहरे पत्तों की आदतें और अन्य कहानियाँ (कहानी संग्रह) लेखिका : अंतरा करवड़े
प्रकाशक : राइजिंग स्टार्स, 600/5-ए, आदेश मोहल्ला, गली नंबर 15, मौजपुर, दिल्ली मूल्य : 400 रूपए
“गहरे पत्तों की आदतें और अन्य कहानियाँ साहित्यकार अंतरा करवड़े का पहला कहानी संग्रह है, इन दिनों काफी चर्चा में है। अंतरा करवड़े ने इस संग्रह की कहानियों में स्त्रियों के मन की अनकही बातों को, उनके जीवन के संघर्ष को और उनके सवालों को रेखांकित किया हैं। अंतरा करवड़े एक ऐसी कथाकार है जो मानवीय स्थितियों और सम्बन्धों को यथार्थ की कलम से उकेरती है और वे भावनाओं को गढ़ना जानती हैं। लेखिका के पास गहरी मनोवैज्ञानिक पकड़ है। इनकी कहानियाँ पाठकों के भीतर नए चिंतन, नई दृष्टि की चमक पैदा करती हैं। इस कहानी संग्रह में नारी जीवन के विविध पक्षों को अभिव्यक्त करने वाली सशक्त छोटी-बड़ी 16 कहानियाँ हैं। इन कहानियों में कुछ ऐसे चरित्र हैं जो अपनी संवेदनशीलता के कारण सदैव याद किए जाते रहेंगे। इनमें प्रमुख है “पाखी कहानी का पंछी, “पापा को देर हो गई है की मिशी, “गुलाबी फरवरी”  की रोहिणी, “समानांतर की सुषमा, “मेरा समुन्दर   की बिन्नी, “सेकेण्ड हैण्ड” की अन्नी, वाणी और समीर, “गहरे पत्तों की आदतें कहानी की शैली।
“पाखी”एक सशक्त कहानी है जिसमें कथ्य का निर्वाह कुशलतापूर्वक किया गया है। कथाकार ने इस कहानी का गठन बहुत ही बेजोड़ ढंग से प्रस्तुत किया है। कहानी की नायिका पाखी के मनोभावों की अभिव्यक्ति प्रभावशाली तरीके से हुई है। पाखी ने पंछी से उदात्त प्रेम का अनुभव किया है। इस कथा में अनुभूतियों की मधुरता है, यह कहानी अंतरा जी के सामर्थ्य से परिचित कराती है। कथाकार ने कहानी में प्रतीकों, बिम्बों, सांकेतिकता का सार्थक प्रयोग किया है। अंतरा जी की इस कथा में गंध संवेदना की सुंदर अभिव्यक्ति मिली है – “सॉरी, बहुत दिनों बाद आज धूप में सूखे हुए कपड़ों की गंध मिली थी! कल मम्मी की एक पुरानी सूती साड़ी धोकर सुखाई थी।” “पापा को देर हो गई है कहानी में बाल मनोविज्ञान का सूक्ष्म चित्रण दिखता है। पापा को स्कूल आने में देर हो जाती है तो मिशी पर क्या गुजरती है, लेखिका ने मिशी की मन:स्थिति का विशद चित्रण किया है। कहानी “गुलाबी फरवरी को लेखिका ने काफी संवेदनात्मक सघनता के साथ प्रस्तुत किया है। कहानी का सृजन बेहतरीन तरीके से किया है। कथा नायिका रोहिणी की मन: स्थितियों की एक मर्मस्पर्शी, भावुक कहानी है। कहानी में नारीजनित कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति है। कथाकार ने रोहिणी के सपनों को, उसके निश्छल प्रेम के उदात्त भाव को अभिव्यक्त किया है। कहानी का शीर्षक “समानांतर कथानक के अनुरूप है। इस कहानी को पढ़ते हुए एक किशोर बेटे की माँ की मनोदशा का बखूबी अहसास होता है। अंतरा जी ने इस रचना में एक माँ की छटपटाहट को स्वाभाविक रूप से रेखांकित किया है। लेखिका ने परिवेश के अनुरूप भाषा और दृश्यों के साथ कथा को कुछ इस तरह बुना है कि कथा खुद आँखों के आगे साकार होते चली जाती है। अंतरा जी सुषमा के बेटे शालीन के मन के भीतरी तहों में संजोए सच को स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्त करती है – “आपको बुरा तो लगेगा सुनकर, लेकिन मैं पूछ सकता हूँ कि मुझे यहाँ रखने के पीछे क्या कारण था?”
“……”
“हम बड़े शहर में रहते थे, मैं कोई बिगड़ैल किस्म का बच्चा भी नहीं था, कोई और मजबूरी भी तो नहीं थी।” सुषमा और उसका बेटा शालीन, दोनों पात्र अपने स्तर पर आतंरिक मानसिक त्रास को भोगने हेतु विवश हैं। लेखिका ने पात्रों के मनोविज्ञान को अच्छी तरह से निरूपित किया है और उनके स्वभाव को भी रूपायित किया है। 
“पत्नी की मौत के बाद कहानी लेखिका की सूक्ष्म दृष्टि की परिचायक है। कहानी में समाज की मानसिकता के स्पष्ट दर्शन है। “बर्गर गुझिया कहानी के पात्र हमारे आस पास के परिवेश के लगते हैं। इस कहानी में पात्रों का चरित्र-चित्रण बहुत ही सशक्त रूप से किया है। कथाकार इस कथा में स्याह होती संवेदनाओं को उभार कर उनमें फिर से रंग भर देती हैं। “शिखा बोल्ड हो गई है” कहानी एक अलग तेवर के साथ लिखी गई है। लेखिका ने शिखा के मन की भावनाओं को बखूबी व्यक्त किया है। इस कहानी की मुख्य किरदार शिखा को जिस प्रकार कथाकार ने गढ़ा है, उससे ऐसा लगता है कि शिखा सजीव होकर हमारे सामने आ गई है। शिखा ने कभी हारना सीखा ही नहीं था। जीत नहीं पाती थी, तो जीत की परिभाषा बदल देती थी। कहानी की नायिका शिखा एक अमिट छाप छोड़ती है। मिरुल कहानी में लेखिका ने कथानायिका मिरुल की ऐसी मन: स्थिति पर वार किया है जिसमें अक्सर प्रेमिका अपने पहले प्रेमी को भूल नहीं पाती है और दूसरे प्रेमी में अपने पहले प्रेमी की छवि ढूँढती है। लेखिका ने कहानी की मुख्य किरदार मिरुल के मन की अनकही उथल-पुथल को शब्दों के धागों में सुंदरता से पिरोया है। इस कहानी की गहराई आप इस कहानी के अंत से जान सकते हैं और यह अंत बहुत कुछ सोचने को मज़बूर कर देता है। कहानी का दृश्य विधान इसकी ताकत है। मेरा समुन्दर कथा नायिका बिन्नी सांकेतिक प्रतीकों के माध्यम से अपनी स्थिति और भावना अभिव्यक्त करती है। कहानी में लेखिका ने संवेदना के मर्मस्पर्शी चित्र उकेरे हैं।
“एकांत बाँसुरी कहानी में कथा नायक राहुल और कथा नायिका श्रीनिका  सांकेतिक प्रतीकों के माध्यम से अपने निश्छल प्रेम और भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। नारी संवेदना को अत्यन्त आत्मीयता एवं कलात्मक ढंग से चित्रित करती रोचक कहानी है  “स्वेता जो पाठकों को काफी प्रभावित करती है। इस कहानी में एक पुरुष के प्रति कथा नायिका की बदलती मनोसंवेदना का वर्णन है। “गहरे पत्तों की आदतें कहानी में एक युवती शैली की अनब्याही संवेदनाओं की पराकाष्ठों को पाठकों के समक्ष सकारात्मकता के साथ प्रस्तुत किया है। “सेकेण्ड हैण्ड कहानी आत्मीय संवेदनाओं को चित्रित करती एक मर्मस्पर्शी, भावुक कहानी है। कथाकार ने इस कहानी में पारिवारिक संबंधों की धड़कन को और बालसुलभ भावनाओं को बखूबी उभारा है। अन्नी, वाणी और समीर की संवेदनाओं को लेखिका ने जिस तरह से इस कहानी में संप्रेषित किया है वह काबिलेतारीफ़ है। यह कहानी स्त्री विमर्श के फलक को आवश्यक विस्तार देती हैं। “रिपोर्ट नारी जीवन के छुए अनछुए पहलुओं को अभिव्यक्त करती एक अनोखी कहानी है। माही का व्यक्तित्व कमाल का है। कथाकार ने माही के अदम्य जिजीविषा तथा असीम सहन शक्ति का अंकन किया है। माही चिंतन को अवसाद से बाहर निकालने के लिए भरसक प्रयत्न करती है और वह अपने प्रयासों में सफल हो जाती है। कथाकार ने एक महत्वपूर्ण विषय को उठाया है कहानी “उखड़ी हुई जड़ में। इस कहानी का शीर्षक प्रतीकात्मक है जिसमें इस कहानी के मुख्य किरदार शशांक को अपनी चेतना से जूझते हुए दिखाया गया है। कथाकार ने “आईना देखो गार्गी कहानी का सृजन बेहतरीन तरीके से किया है। कहानी का दृश्य विधान इसकी ताकत है। कहीं-कहीं तो लगता है हम इसके साथ बह रहे हैं। इस कहानी को पढ़कर लगता है कि वास्तव में गार्गी अपने माता पिता से दो-तीन पीढ़ी आगे निकल चुकी है। यह बदलते समय की आहट है।
कथाकार स्त्रियों की जिंदगी के हर पार्श्वो को देखने, छूने तथा उकेरने की निरंतर कोशिश करती हैं। इनके कथा साहित्य में स्त्री के कई रूप दिखाई देते हैं। अंतरा जी के नारी पात्र पुरुष से अधिक ईमानदार, व्यवहारिक, साहसी और कर्मठ दिखाई देती हैं। कहानियाँ नारी मन का मनोवैज्ञानिक तरीके से विश्लेषण करती हैं। अंतरा जी की कहानियों की स्त्रियां सबल, प्रगतिशील, स्वाबलंबी, कामकाजी, जुझारू और अपना जीवन अपनी शर्तों पर जीने वाली हैं। इस संग्रह की कहानियाँ अपनी सार्थकता सिद्ध करती हैं। इस संकलन की कहानियों में लेखिका की परिपक्वता, उनकी सकारात्मकता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। कहानीकार ने कहानियों में घटनाक्रम से अधिक वहाँ पात्रों के मनोभावों और उनके अंदर चल रहे अंतर्द्वन्द्वों को अभिव्यक्त किया है। कथाकार ने जीवन के यथार्थ का सहज और सजीव चित्रण अपने कथा साहित्य में किया है। संग्रह की सभी कहानियाँ शिल्प और कथानक में बेजोड़ हैं  और पाठकों को सोचने को मजबूर करती हैं। अंतरा जी की कहानियों का शिल्प चरित्रों की मनःस्थिति एवं कथ्य की आवश्यकता के अनुरूप निर्धारित होता है। इस संग्रह की कहानियाँ पाठकों को मानवीय संवेदनाओं के विविध रंगों से रूबरू करवाती हैं। रिश्तों और मानवीय संबंधों की बारीक पड़ताल की गई है। कथाकार ने नारी जीवन के विविध पक्षों को अपने ही नज़रिए से देखा और उन्हें अपनी कहानियों में अभिव्यक्त भी किया हैं। 
इस कहानी संग्रह की हर एक कहानी नारी के मन और उसकी भावनाओं के हर एक पहलु को उजागर करती है। स्त्री के मन को छूती हुई ये कहानियाँ पाठक के मन में समा जाती हैं। इनकी भाषा का लालित्य पाठकों को मोहित करता है। कहानीकार ने नारियों की सूक्ष्म मनोवृत्तियों, स्त्री जीवन की धड़कनों, किरदारों के मन में चलने वाली उथल पुथल को इन कहानियों में सहजता से अभिव्यक्त किया है। इन कहानियों के किरदार कहानी ख़त्म होते ही आपसे जुदा नहीं होते हैं बल्कि आपके ज़ेहन में हमेशा के लिए बस जाते हैं। संग्रह की कहानियों में जीवन की गहराई है। अंतरा जी ने मुखर होकर आज की नारी जीवन की सच्चाइयों का वास्तविक चित्र प्रस्तुत किये हैं। भाषा परिवेश के अनुकूल है। कथाकार की भाषा में पाठक को बाँधे रखने का सामर्थ्य है। संवेदना के धरातल पर ये कहानियाँ सशक्त हैं। संग्रह की हर कहानी उल्लेखनीय तथा लाज़वाब है और साथ ही हर कहानी ख़ास शिल्प लिए हुए है। इन कहानियों में प्रयुक्त कथानुकूलित परिवेश, पात्रों की अनुभूतियों, पात्रों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण, कहानियों में लेखिका की उत्कृष्ट कला-कौशलता का परिचय देती है। कथा सृजन की अनूठी पद्धति अंतरा करवड़े को अपने समकालीन कथाकारों से अलग खड़ा कर देती है। कहानियों का यह संग्रह सिर्फ पठनीय ही नहीं है, संग्रहणीय भी है। इस संग्रह की कहानियाँ पढ़कर ऐसा नहीं लगता है कि “गहरे पत्तों की आदतें और अन्य कहानियाँ इनका पहला कहानी संग्रह है। अंतरा करवड़े की प्रथम कृति “गहरे पत्तों की आदतें और अन्य कहानियाँ का साहित्य जगत में स्वागत है, इस शुभकामना के साथ कि उनकी यह यात्रा जारी रहेगी।
दीपक गिरकर
समीक्षक
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,
इंदौर- 452016
मोबाइल : 9425067036
मेल आईडी : deepakgirkar2016@gmail.com 

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.