सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहां
ज़िंदगी  गर कुछ  रही  तो  ये  जवानी फिर कहाँ
– ख़्वाजा मीर दर्द –
तो साहब ख़्वाजा मीर दर्द के इस शेर के अमल में मुझे भी आस पास ही सही सैर के  बारहा मौक़े मुअय्यन हो रहे हैं। पिछले माह ही हम लोग राजस्थान के कुछ हिस्सों में पर्यटन को गये थे कि एक और अवसर आ गया सूटकेस लेकर दूर निकलने का। वैसे इस बार बहती गंगा में हाथ धोने का योग था। यानि हम आए थे बेटी प्रतिष्ठा से मिलने के लिए बैतूल ।साथ में तीन जगहों पर सैर हो गई। जब दामाद अतुल जी ने कहा कि हम लोग कल सुबह ग्यारह बजे तक निकलेंगे,रात कहीं रूकेंगे फिर शाम तक वापस हो जाएंगे। अपनी पत्नी के नाम के संबंध में मैं अक्सर एक विनोद करता रहता हूं कि उनका नाम मुक्ता बहुत व्यापक है इस नाम को हम रामचरित मानस में भी पढ़ सकते हैं-
मणि माणिक मुक्ता छवि जैसीl
अहि गिरि गज सम सोह न तैसी।
सांची के पास एक गांव है मुक्तापुर, रामदेव बाबा ने मुक्तावटी बनाई है। भोपाल में  पीपुल्स माल में एक टाकीज़ का नाम भी मुक्ता थियेटर है। एक प्रसिद्ध महिला पत्रिका भी रही मुक्ता और अब प्रतिष्ठा अतुल जी हम तीनों को ले जाने वाले हैं मुक्ता गिरि जो कि बड़ा जैन तीर्थ है।
तो यह अगस्त की बरसात की सुहानी सुबह थी। कार ड्राइवर ने स्टेयरिंग संभाल ली थी। प्रशंसा, मुक्ता, प्रतिष्ठा और अतुल जी लगभग 200 किमी की यात्रा के लिए कमर कस चुके थे। बैतूल से केरपानी, झल्लार के रास्ते गुदगांव होते हुए पहुंच गए मुक्ता गिरि। बीच-बीच में गाने और गपशप के अलावा कुरकुरे चिप्स और हास परिहास की फुहारें चलती रहीं ।अतुल जी की वजह से हमें कुछ महत्वमय सुविधाएं मिलीं। वहीं एक कमरा, फिर चाय, फिर छाते मिलते गए।जैन भोजन की सात्विकता को स्मरण में रखते हुए हम सबसे पहले आहार ही ग्रहण करना चाहते थे मगर मैनेजर ने यह परामर्श  दिया।
-सर बहुत सारे जीने हैं यदि पेट भर जाएगा तो मजा नहीं आएगा आप लोग चढ़ नहीं पाएंगे। – इसलिए पहले दर्शन…

मैं सहमत हुआ। दोपहर भोजन के बाद तो एक झपकी की जरूरत लगती है। इसलिए पहले असली काम। हम लोग चल दिए नंगे पैर। बरसात बूंद बूंद बरस रही थी सावन रिम झिम गिर रहा था। हम लोग किसी भी जैन तीर्थ में पहली बार जा रहे थे हालांकि वैसी श्रद्धा तो नहीं थी लेकिन प्राकृतिक दृश्य देखने की ललक भी एक श्रद्धा का ही रूप है। मुझे जैनिज्म को लेकर यह अलबत्ता लिखना है कि उनके दर्शन में स्यादवाद और अनेकांत जैसे सिद्धांत हैं। उनके आचार्यों के पास त्याग का चरम है।जैन मंदिरों का भी एक पारंपरिक इतिहास है। मुक्ता गिरि ज़ाहिर है कि एक पहाड़ी है लगभग डेढ़ सो खड़ी सीढ़ियां थीं। मैं फटाफट चढ़ रहा था। हालांकि हांफ तो भर रही थी। मुक्ता भी हिम्मत नहीं हारी रहीं थीं। हर चांदा पर सुस्ताते तो मोबाइल के कैमरे भी ओन हो जाते। मैं काला चश्मा लगा कर तस्वीरें खिंचवाता। दृश्य देखने से चकित होना और फिर क्लिक के सहारे उन्हें सहेजना यही होता है सैर के लम्हों में सो यहां भी हुआ।
जैसे ही मंदिरों की श्रृंखला दिखाई दी उससे पहले दूर ऊपर से पत्थरों के शरीर से रगड़ करती हुईं जल धाराएं गिर रहीं थीं। लगभग पांच सौ फिट ऊपर से गिरता यह प्रपात जैसे आंखों की तलाश पूरा करता हुआ मनोरम दृश्य था।सभी तीर्थंकरों के मंदिर वहां थे।इन श्वेत मंदिरों की गुंबदें और लंबाई चौड़ाई जैसे बस दृश्य बनाने के लिए बनीं हैं ऐसा लग रहा था। छोटे छोटे प्रपात तो अनेक थे। एक नीरव वहां सौन्दर्य के साथ जमा हुआ था। लगभग आधा घंटा रुक कर हम लोग अवरोह कर आ गये।
चंद घड़ियों को सुस्ताकर हम लोगों को भोजन का न्योता आया। भोजनालय के नियमानुसार वहीं बैठना उचित समझा।दाल,रोटी,बाटी, गट्टे का साग और चूरमा खाकर स्वादिष्ट भरपेट भोजन की संतुष्टि मिली।थाली हम सबने खुद ही धुलाई क्षेत्र के पास रखी। यहां यह बात ध्यान खींच रही थी प्रसाद की या अन्य खेल खिलौनों की दुकानें नहीं थी। एक आध्यात्मिक वातावरण के लिए यह गिरि सचमुच मुफ़ीद थी।
कुकरू यानि सबसे ऊंचा पहाड़ वाला गांव 
अब हमें दो जगहों पर और सैर कराई जाएगी 
चिखलधरा तो महाराष्ट्र में है कुकरू मध्य प्रदेश में। कुकरू के बारे में मुझे कभी पूर्व सी ई ओ जिला पंचायत एम एल कौरव ने बताया था। अतुल जी हमे आज वहीं ले जा रहे थे। इसके ठीक पहले खामला गांव था। बैतूल जिले की भैंसदेही तहसील में स्थित यह हिल स्टेशन इस क्षेत्र में बहुत चर्चित है।शाम के बाद रात ही हो गई थी हम लोग बढ़ते जा रहे थे। हवा बहुत तेज थी। बारिश भी थी कि नहीं यही भीतर बैठे बैठे लग रहा था। अब रात के नौ बजने वाले हैं।कार घुमावदार रास्ते पर ऊंचाई चढ़ रही हैं। बाहर अंधेरा है। कोहरे की वजह से केवल दस मीटर दूरी तक की दृष्टि पहुंच थी। मैं थोड़ा डर रहा था। आशंकाएं घेर रहीं थीं। एक भी व्यक्ति नहीं दिखाई दे रहा था। हवा की सांय-सांय आवाजें। खामला गांव से ऊपर हम लोग पांच किमी चींटी चाल से पहुंच चुके थे। ऐसा कोई संकेत या आहट नहीं थी कि अतुल जी कुकरू के फारेस्ट रेस्ट हाऊस को खोज पाते। ऐसा लगा कि कहीं आगे तो नहीं आ गये। तय हुआ कि हम पीछे लौटते हैं। कार को पीछे मोड़ने की जगह भी नहीं थी किसी तरह काट काट कर कार ड्राइवर ने मोड़ ली। मैंने कहा कोई भी मिले उसे गाड़ी में बिठाकर रेस्ट हाउस तक ले चलेंगे।
एक व्यक्ति रमेश नाम का मिला।हम लोगों ने वही किया।वह कंबल ओढ़े था। ठंड यहां रहती ही है शायद। उसने हमें अपनी मंजिल तक पहुंचा दिया।इस अंधेरी बरसात में हम लोग तो नहीं पहुंच पाते। बिजली भी नहीं थी। मुक्ता ने परिहास करते हुए कहा यहां लोग क्या देखने के लिए आते हैं। रेस्ट हाउस की डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए हम लोगों ने इस निर्जन एकांत पर आश्चर्य किया। थोड़ी देर को संगीत और साहित्य पर भी बात हुई। हम लोग मध्य काल और रीति कालीन कवियों तक पहुंच गये। अतुल जी ने अष्टछाप कवियों का जिक्र किया। कवि केशव सहित बुंदेली साहित्य से गुज़र कर हम लोग खड़ी बोली तक आ गये।
मुक्ता के सवाल पर अतुल जी ने जोर देकर कहा कि मैं दावा करता हूं कि सुबह आप यहां के साइड सीन देखकर चौंक जाएंगे। गार्ड द्वारा हमसे चाय और भोजन के लिए पूछा गया, हमने केवल चाय पीना उचित समझा। बाहर ऐसी बरसात हो रही थी कि हम लोग बिना भीगे चल फिर सकते थे। मगर हाय री हवा जैसे कोई राग में गीत गा रही हो। अंधेरा उसकी संगत करता था जैसे। मगर भोर के इंतजार में हम लोग कमरों में सोने चले गए।
भोर में जल्दी नींद खुल गई थी। मेरी जानकारी में तो मैं सोया नहीं था। मगर बिटिया प्रशंसा ने बताया कि आप खर्राटे ले रहे थे। बाहर जाकर देखा तो सच में यह भव्य दृश्य था। पचमढ़ी के धूप गढ के रास्ते में भव्य दृश्य से क्षमा मांगते हुए यह कहना उचित होगा।
सतपुड़ा पर्वत कहीं भी हों अपनी नस्ल का सौंदर्य बता ही देते हैं। बाहर एक बड़ा पाईंट था। जहां से एक गहरी बहुत गहरी खाई देखी जा सकती थी। मगर बादलों की तरह के कोहरे और धुंध धुंए की वजह से हम दर्शन का चरम सुख नहीं ले सके।
यह जगह समुद्र सतह से 3668 फीट ऊंचाई पर स्थित थी। मालूम हुआ कि 48 हेक्टेयर में फैला यहां मध्य प्रदेश का एक मात्र काफी बागान है। इसे 1944 ब्रिटिश महिला फ्लोरेंस हेंड्रिक्स ने बनवाया था। हमने काफ़ी के ऊंचे पौधे छूकर देखे। उनमें लगे छोटे छोटे हरे हरे फल तोड़ कर देखे।यह रेस्ट हाउस भी काफी पुराना है। नाश्ते में हमें पकोड़े मिल गये थे।रात को हमें छोड़ने आए व्यक्ति ने बताया था कि कुकरू गांव में पांच सात सौ की जनसंख्या है और वे लोग कोदों आदि बेचकर जीवन यापन करते हैं। निश्चित रूप से इस जगह के हिस्से में अनेक बातें होंगी जो मैं नहीं सहेज सका। हमें आगे के दर्शनीय गंतव्य चिखलधरा जो जाना था। मगर यह रोमांचक बरसात की रात अविस्मरणीय हो गई है। कुकरू हम दोबारा आएंगे आज तो उसने घूंघट में से अपना मुखड़ा दिखाया ही नहीं।बस एक बरसात की यह रात यादगार होगी।
कोहरे का ये घूंघट समूचे पहाड़ ने ओढ़ रखा था।
चिखलदरा -एक शैल अद्भुत
#शैले शैले न माणिक्यं मोक्तिकं न गजे गजे #
—————-
चिखलधरा का  यहां से सीधा रास्ता था।40 किमी दूरी थी। बीच में घुमावदार रास्ते।हम मध्यप्रदेश से महाराष्ट्र में प्रवेश कर रहे थे। मेरी तबियत कुछ नासाज थी। फिर भी नदिया चले चले रे धारा तुझको चलना होगा का सूत्र याद रखते हुए मैं हिम्मत करता रहा।यह यात्रा एक कोहरे के दर्शन की यात्रा  हम लोग तंज़ में कहते रहे।
इसे कोहरा कहने के लिए मना किया गया था। अतुल जी इसे धुंआ कह रहे थे। साधारण शब्दों में इसे फ़ॉग पुकारा जा रहा था। समुद्र सतह से लगभग चार हजार फीट ऊंचाई पर स्थित चिखलधरा पहुंचते ही लगा यह बड़ी जगह तो है। यहां रेस्तरां और होटलें दिखाई दे रही हैं। फोर लेन की साफ सुथरी धुली हुई सड़कें हैं। ठेलों पर भुट्टे बिक रहे थे। एक गुमटी सी दुकान वाले ने कहा कि बरबटी के पकौड़े ले लीजिए। उबले बेरों की ढेरियां रखीं हुईं थीं। अधिकांश दुकानों पर अंडे और चाय साथ में रखे थे इसलिए हम लोग चाय नहीं ले पा रहे थे। सुविधा के लिए एक गाइड को बुक किया।इसने लगभग सात बिंदुओं को दिखाने का कहा। 
सबसे पहले वह हरिकेन पोईंट पर ले गया। यहां भी कुकरू या पचमढ़ी की हांडी खो या अमरकंटक के हाइट के पाइंट की तरह ही लगा। लेकिन हाय री फाग। ये तो दुश्मन बनी हुई थी। ऐसा लगता था कि गहरी खाइयों के आयतन को मापने के लिए कुदरत ने इस फोग को ठांस ठांस कर भर रखा है। दोपहर थी तो गनीमत थी कि दस की जगह बीस मीटर तक की दृष्टि की पहुंच हो रही थी। इसके बाद वह नाकारा गाइड हमें ठाकुर पाइंट ले गया। 
प्रशंसा ने जानना चाहा तब उस आलसी ने बताया कि यहां शोले 2 फिल्म की शूटिंग हुई थी तो ठाकुर की कोई बड़ी भूमिका थी या डायलॉग यहां बोला गया था। दरअसल वह आदमी हमें बाहर छोड़ देता था कि घूम आइए।जब उससे बोला तो उसने मसखरी करते हुए कहा अंदर है ही क्या।इन पाइंट पर एक छतरी बनी  थी जिसके नीचे तस्वीर लेने का मन करता था। एक भुट्टे बेचने वाला मराठी मिक्स में कह रहा था कि यहां लोग कूदकर जान देते हैं तो हम भी नहीं रोकते। लोगों को मुफ्त में सरकारी योजनाओं से धन मिल रहा है तो वे मरने के लिए फुर्सत में हैं। मुक्ता को हंसी आई थी। मैं भी कुछ सोचने लग गया था।
आगे जाकर एक बगीचे में सैर की जहां फायबर के जानवर नक़ली पिंजरों में ऐसे रखे गए थे जैसे वे असली हों। वहां एक मिनी इलेक्ट्रिक ट्रेन थी जिसमें बैठकर समूचे बगीचे का चक्कर लगाना आसान था। एक बोटिंग पाइंट भी था जहां मैंने और मुक्ता ने बोटिंग करना नहीं चुना।इन तीनों को निश्चित ही ऐसे कोहरे उर्फ़ फोग के बीच नौकायन करना रोमांचक तो रहा होगा। 
इसके बाद हमने एक जल प्रपात भी देखा वहीं एक देवी मंदिर था जहां मंदिरों में रहने जैसी स्वच्छता नहीं ही थी। एक दो पाइंट और थे मगर अब हम लोग पस्त हो गये थे। गाइड का हिसाब किया और उसे बताया कि तुम गाइड का नाम बदनाम न करो। मैकश गाइड ने सारी भी कहा। आगे क्या हुआ।वही घुमावदार रास्ते जो परतवाड़ा पहुंचा रहे थे। परतवाड़ा में एक बड़ी होटल में हम लोगों ने डोसा आदि का जलपान किया। इस यात्रा के दौरान मुझे सुकवि संपादक मोहन सगोरिया की बैतूल पर लिखी एक बढ़िया कविता याद आती रही। वो फिर कभी आपके साथ साझा करूंगा….
कार में इस तरह गाते बतियाते हम शाम तक बैतूल आ गये जहां से अगले दिन रेल में बैठकर हमें विदिशा भी आना था।विदिशा यानी मेरी अवधपुरी। दो दिन भी इसे छोड़ो तो कैसी कमी सी लगती है।
तुलसी फिर याद आए:
अवधपुरी सम प्रिय नहीं सोऊ
यह प्रसंग जाने कोऊ कोऊ।
ब्रज श्रीवास्तव 
L-40 Godawari Green puranpura vidisha
मो: 09425034312
ई-मेल: brajshrivastava7@gmail.com 

10 टिप्पणी

  1. ब्रज जी का यात्रा-वृतांत बहुत जीवंत लगा। पहाड़ी क्षेत्रों में वर्षा ऋतु में भ्रमण करना बहुत ही अधिक आनंदित करता है। बहुत बहुत बधाइयांँ आपको।

  2. ब्रज जी की यात्रा वृतांत मुग्ध करती है, वैसे भी पहाड़ का आकर्षण अविस्मरणीय ,और आनंदमय होता है।जीवन भर साथ रहता।

  3. भावना सिन्हा August 27, 2023 at 4:39 pm

    ब्रज जी की यात्रा वृतांत मुग्ध करती है, वैसे भी पहाड़ का आकर्षण अविस्मरणीय ,और आनंदमय होता है।जीवन भर साथ रहता।

  4. भैय्या आपके लिखने का अंदाज बहुत अच्छा है साथ बहुत खूबसूरत से फोटो

    इन्हें देखने और पड़ने से लगता जैसे हम भी आपके साथ सफ़र मैं हों

  5. लेखन की सम्पूर्ण कला का समावेश करते हुए पहाड़ों की सुंदरता का live दर्शन का अनोखा लेख है।यात्रा वृतांत

  6. भाभी जी का नाम मुझे भी बहुत पसंद है इसमें कोई टिप्पणी नहीं कर सकता ब्राह्मण करना बहुत आनंद में होता है यह आनंद आप प्राप्त करते रहिए

  7. बहुत शानदार यात्रा वृतांत
    आपका लेखन और शब्दों का चयन अद्भुत है
    साहित्य साहित्य की सेवा में आपका निरंतर कुछ ना कुछ लिखते रहना बड़ा योगदान है।

  8. जीवन मे संवेदनशीलता इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाती है,क्योंकि इससे आप ह्रदय और ह्रदय से बाहर घट रही किसी भी परिदृश्य के साथ एक तारतम्य स्थापित कर लेते है। सभी यात्राएं करते है,और अपने जीवन के सुख दुख को वरण करते हुए आगे बढ़ते रहते है। लेकिन बच्चो जैसा जिज्ञासु मन हमे हर दृश्य को आश्चर्यचकित होकर देखने की क्षमता देता है।हमारा जीवन और प्रकृति किसी आश्चर्य से कम नही..! जब इसी आश्चर्य को कोई संवेदनशीलता के साथ शब्दों में पिरो देता है,तव वह लेखक,कवि,आलोचक समालोचक बन जाता है।
    यही ब्रज श्रीवास्तव जी की खूबी है कि वह मन और मन की घटनाओं के प्रति संवेदनशील और आश्चर्य से भरे हुए है। इसीलिए वह इतना अच्छा लिख पाते है।
    ये आश्चर्य और संवेदनशीलता बनी रहे और आप ऐसे ही लिखते रहें। शुभकामनाएं..!
    मनोज कौशल(सफ़लशिक्षा)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.