शायर एक स्वप्नदृष्टा होता है।वह अपने भूत काल से सीख वर्तमान से समझ और भविष्य की खोज-खबर, अपनी रचनाओं में विभिन्न विधाओं में रचता है।उर्दू भाषा में यह अंदाज़-पद्य विशेष कलाम,ग़ज़ल,नज़्म या फिर नगमों में खूबसूरती का पुट लिए होता है।अविभाजित और बरतानिया सरकार के आधीन भारत के, आज की सरहद पार,एक से एक,सुप्रसिद्ध साहित्यकार पैदा हुए,जिन्होंने उर्दू,पश्तो, हिंदी और अन्य भाषाओं में सृजन कर इन भाषाओं और भारतीयता को गौरांवित किया और आज भी उनकी रचनाएं कालजयी हैं।ऐसे शानदार और नामचीन उदाहरण हैं, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,साहिर लुधियानवी, राजेंद्र सिंह बेदी,,,और उसी फहरिस्त में नैरंग सरहदी का नाम आता है।इनका पूरा नाम नंद लाल नैरंग था(6 फरवरी1912 से लेकर 5 फरवरी1973 तक),ये महान शायर अक्सर गुमनाम ही रहा क्योंकि फिल्म, थिएटर या गॉड फादर की सरपरस्ती से महरूम रहा।
नंद लाल नैरंग सरहदी का सृजन संसार उनकी पुत्रवधू सुनीता नारंग के कारण आज की दुनिया में आया जो उनकी हस्तलिखित सामग्री को भारत से कनाडा ले गईं।यही सामग्री,जब कनाडा में पेशे से डॉक्टर परंतु मशहूर उर्दू/ हिन्दी साहित्यकार के
हाथों में आई तो वे स्तब्ध रह गए।बस फिर क्या था,कुछ ही वर्षों में एक खज़ाना यथा ग़ज़ल, नज़्म, कलाम और अन्य विधाओं का सामने था।
मूल पुस्तक तामीर ए बका के रूप लगभग समग्र लेखन प्रकाशित हुआ जो की ग्यारह सौ पृष्ठों में था।यद्यपि प्रस्तुत या समीक्षित पुस्तक में इस शायर की ज़िंदगी के पूरे लेखे जोखे के साथ साथ शोधकर्ता एवं विश्लेषक डॉक्टर सैय्यद तकी आबिदी का ज़िंदगी नामा भी पुस्तक के आरंभ में ही दिया गया है।यह भी एक संयोग विशेष ही है कि नैरंग सरहदी और शोधकर्ता डॉo सैय्यद तकी आबिदी दोनों ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर और ख्याति के हैं।
पुस्तक में नंद लाल नैरंग की कृतियों को अलग अलग चैप्टर्स में प्रासंगिक प्रसंगों के साथ प्रस्तुत किया गया है।चूंकि सरहद पार यानी आज के पाकिस्तान के डेरा इस्माइल खां से,वे सीधे रिवाड़ी आए और फिर यहीं के होकर रह गए।
उसी की बानगी एक नज़्म के अंश में देखिए
निदा-ए-हरियाणा
हमें जिस रोज़ से हासिल हुआ इनाम-ए-हरियाना
बनारस की सुबह से ख़ुशनुमा है शाम -ए-हरियाना
नसीमे-रूह परवर चल रही है
ख़ुदा महफ़ूज़ रखे इस ज़मीं को हर मुसीबत से
तुम्हारे हाथ में दायम रहे लगाम-ए हरियाना
मिटा देंगे हम अपनी हस्ती-ए-फ़ानी को ऐ “नैरंग “
न आने देंगे हम लेकिन कभी इलज़ामे हरियाना।
लगभग बीस से अधिक चैप्टर/अध्यायों और मुनाजात,ना’तिया कलाम, नातिया मिसरे, ग़ज़लियात,नज्में,कत’आत-ओ रूबाईयात, तर्जुमा:सावित्री (नज़्म)में बसा हुआ है,एक खूबसूरत अंदाज़ ए बयां जो कि नैरंग सरहदी का सृजन संसार है।उसी के कुछ शेर यहां पर पेश हैं:
शे’र जब तक न शे’र हो नैरंग
हम कभी मरहबा नहीं कहते।
जो ज़फा को जफ़ा समझते हैं
उनको गम आशना नहीं कहते।
हम तो हर बात पर हैं चुप लेकिन
आप कहिए कि क्या नहीं कहते।
नैरंग सरहदी की फेहरिस्त नज़्में शीर्षक के तहत अनेकों विभूतियों यथा गुरु नानक देव, महावीर स्वामी महर्षि दयानंद,गुरु गोविंद सिंह, ग़ालिब, शहीद ए आज़म सरदार भगत सिंह,अब्दुल गफ्फार खान, कुंअर महेंद्र सिंह ‘सहर’ पर बेहद उम्दा रचनाएं हैं,कुछ की बानगी कुछ यूं है:
गुरु नानक
तू यहां आया तो फिर हिंद का तारा चमका
जुल्मतें दूर हुई बख्त हमारा
चमका।
हमारी कौम के इक काफिला सालार नानक थे
न था जिसका कोई वाली उसी के यार नानक थे
बहुत गुमराह थे भूले हुए थे अपनी मंजिल को
मगर इस रास्ते के रहबरे-ए -होशियार नानक थे।अहिंसा के पयम्बर महावीर स्वामी जी
तू तो वो है की जिसे हक का पयम्बर कहिए
हुस्न ए यूसुफ, दम ए ईसा
या दिगंबर कहिए।
गुरु गोबिंद सिंह
तूने अपनी कौम की मुश्किल को आसां कर दिया।
मोरिक ए नाचीज को दम में
सुलेमां कर दिया।
शहीद ए आज़म भगत सिंह
तख्ता -ए -दार- ए -सितम
पर तेरी कुर्बानी हुई,
फूल वो टूटा कि गुलशन भर
में वीरानी हुई।
अतः यह एक सार रूप में इस महान देशभक्त और अपने फन के माहिर शायर मरहूम नैरंग सरहदी की कहानी।पुस्तक में एक कमी अखरती है कि यदि इसे हिंदी भाषा के साथ प्रस्तुत किया जाता तो आज की पीढ़ी भी इस पुस्तक की प्रशंसक होती।एक और बात जो इस स्तर के समूचे साहित्य और साहित्यकारों के लिए कही जा सकती है।अंग्रेजी में कमेंट्री या उसका अनुवाद इसे सही और सच्चे अर्थों में अविभाजित भारत की परिभाषा और वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता को दर्शा सकता है।
पुस्तक को पढ़ने के पश्चात पाठकों को एक नए अंदाज़ का आभास निश्चित रूप से होगा।
इस समीक्षा में आपकी मेहनत नजर आई सूर्यकांत जी! पहली बार में तो हमने घबरा कर इसे आधा ही पढ़कर छोड़ दिया था। आज जब पूरा पढ़ा और धीरे-धीरे ठहर कर पढ़ा तो इतनी कठिन भी नहीं लगी समीक्षा और समझ भी आई।
कई रचनाकार होते हैं जो अपना श्रेष्ठतम रच तो देते हैं लेकिन वह सृजन दुनिया के सामने नहीं आ पाता ।
पुत्रवधु सुनीता नारंग उन्हें समझ पाईं।
जितने भी उदाहरण आपने यहाँ पर प्रस्तुत किए हैं सभी काबिले तारीफ है।
इस समीक्षा के लिए आप प्रशंसा के पात्र हैं ।बहुत-बहुत बधाइयाँ इस बहुमूल्य सृजन को पुरवाई माध्यम से सबको पढ़वाने के लिए।
इस समीक्षा में आपकी मेहनत नजर आई सूर्यकांत जी! पहली बार में तो हमने घबरा कर इसे आधा ही पढ़कर छोड़ दिया था। आज जब पूरा पढ़ा और धीरे-धीरे ठहर कर पढ़ा तो इतनी कठिन भी नहीं लगी समीक्षा और समझ भी आई।
कई रचनाकार होते हैं जो अपना श्रेष्ठतम रच तो देते हैं लेकिन वह सृजन दुनिया के सामने नहीं आ पाता ।
पुत्रवधु सुनीता नारंग उन्हें समझ पाईं।
जितने भी उदाहरण आपने यहाँ पर प्रस्तुत किए हैं सभी काबिले तारीफ है।
इस समीक्षा के लिए आप प्रशंसा के पात्र हैं ।बहुत-बहुत बधाइयाँ इस बहुमूल्य सृजन को पुरवाई माध्यम से सबको पढ़वाने के लिए।