भारतीय सिनेमा ओटीटी प्रसारण के रूप में एक साहसिक नवाचार की तरफ बढ़ चला है, लेकिन इसे लेकर कुछ प्रश्न भी उठ रहे हैं कि इस नवाचार का भविष्य क्या है? क्या ओटीटी माध्यमों पर फ़िल्में आने से सिनेमाघरों को दूरगामी नुकसान हो सकता है? क्या फिल्मों के प्रसारण के स्वरूप पर भी इसका कोई व्यापक व दीर्घकालिक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है?
कोरोना महामारी ने जनजीवन के सभी क्षेत्रों को बुरी तरह से प्रभावित किया है। भारतीय मनोरंजन उद्योग भी इस संकट की गिरफ्त में है। मार्च के अंतिम सप्ताह से ही फिल्मों-धारावाहिकों की बंद पड़ी शूटिंग को अभी हाल ही में चालू करने की अनुमति तो प्राप्त हुई है, लेकिन इस अनुमति के साथ ऐसे अनेक दिशानिर्देश हैं, जिनका पालन करते हुए शूटिंग करना निर्माता-निर्देशकों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। पिछले दिनों यह भी खबर आई थी कि पृथ्वीराज और मैदान जैसी बड़ी फिल्मों के लिए जो भारी-भरकम सेट बने थे, उन्हें भी देखरेख के अधिक खर्च के कारण हटाया जा रहा है। यह एक अलग नुकसान है।
दूसरी तरफ सिनेमाघर भी मार्च अंत से ही बंद हैं। इस कारण जो फ़िल्में बनकर तैयार हो चुकी हैं, उनके प्रसारण पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। ट्रेड विश्लेषकों की मानें तो कोरोना के कारण उपजी इन परिस्थितियों से बॉलीवुड को तकरीबन 1300 करोड़ से 2500 करोड़ तक का नुकसान होने की संभावना है।
यह जानना भी दिलचस्प होगा कि हाल के वर्षों में अप्रैल से जून की तिमाही बॉलीवुड के लिए प्रायः काफी फायदेमंद रही है। बीते साल इन महीनों के दौरान बॉलीवुड में दो दर्जन से अधिक छोटी-बड़ी फिल्मों का प्रसारण हुआ, जिनमें दे दे प्यार दे, भारत और कबीर सिंह ने अच्छी कमाई के साथ सफलता प्राप्त की। इसी तरह 2018 में भी इस तिमाही में बॉलीवुड ने राज़ी, 102 नॉट आउट, वीरे दी वेडिंग, संजू जैसी सफल फिल्मों के जरिये खूब पैसे बनाए थे।
इस तरह 2020 से बॉलीवुड को कुछ अधिक ही उम्मीदें थीं, क्योंकि इस साल की दूसरी तिमाही को कई बड़ी फिल्मों का गवाह बनना था। 24 मार्च को प्रसारण के लिए तैयार सूर्यवंशी सहित अप्रैल-जून की तिमाही में 83, लक्ष्मी बॉम्ब, राधे जैसी बड़ी फ़िल्में आनी थीं, जिनसे बॉक्स ऑफिस पर पैसा बरसना लगभग तय माना जा रहा था, लेकिन कोरोना से उपजी परिस्थितियों ने फिल्म जगत की इन उम्मीदों पर तुषारापात कर दिया।
सब बातों के बाद एक बात यह भी है कि बड़े परदे पर भीड़ के बीच बैठकर नायक-नायिका की अदाओं पर उछलते और सीटी बजाते हुए फिल्म देखने के अभ्यस्त बहुसंख्यक भारतीय दर्शक ओटीटी माध्यमों के टीवी-लैपटॉप-मोबाइल जैसे छोटे परदों पर फिल्म देखने में शायद ही पूर्ववत रुचि ले पाएं।