Monday, May 20, 2024
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वंदना यादव का स्तंभ ‘मन के दस्तावेज़’ – आओ एक दीप जलाएं

पिछले सप्ताह दिल्ली से सटे मेरठ से एक ख़बर आई। यह खबर इतनी संवेदनशील थी कि समाचार पढ़ने और वीडियो देखने के बाद भी मैं यही सोचती रही कि नूरजहां जैसे ना जाने कितने लोग हम सबके आसपास हैंं। वे हमारे समाज का हिस्सा हैं मगर अपनी सुविधानुसार हम सबने उन्हें भुला दिया है।
दरअसल खबर यह थी कि किस तरह आर्थिक तंगी से जूझ रही नूरजहां का घर, पुलिस की मदद से, एक बल्ब की रौशनी से जगमगा उठा। यह सिर्फ अंधेरे को मात देने की कहानी नहीं है, और ना ही चिपचिपी, उमसभरी गर्मी से एक पंखे के दम पर निजात पाने के प्रयास की बयानगी है। बल्कि यह रोबोटिक माने जाने वाले पुलिस तंत्र के भीतर जीवित संवेदनाओं की कहानी है। यह घटना बताती है कि यदि हम चाहें तो हालात जैसे भी हों, मदद के लिए आगे बढ़ने वाले हाथ कभी थकते या थमते नहीं हैं।
यह सच है कि एक व्यक्ति समूचे समाज की मदद नहीं कर सकता। ना ही वह अकेला पूरे समाज की तस्वीर बदल सकता है। इस सिलसिले में एक कहावत याद आती है – ‘अकेला चना क्या भाड़ झोंकेगा!’ वैसे इस कहावत को वही पीढ़ी समझ सकेगी जिसने चने भूनने के लिए “भाड़” का अस्तित्व देखा/समझा है अन्यथा आधुनिक शहरी युवाओं के लिए चने, “रोस्टेड” ही होते हैं। खैर हम लौटते हैं समाज के उस वंचित व्यक्ति की ओर जिसे अंतिम समझ कर भुला देने की गलती अक्सर समाज करता है।
इस वायरल वीडियो में छोटे से अंधेरे कमरे को उजास से चमचमाते देखने से अधिक सुखद, बुजुर्ग नूरजहां के चेहरे की खुशी देखने से मिलती है। उतनी ही खुशी महिला पुलिस अधिकारी और उसके साथ मौजूद अन्य पुलिसकर्मियों के चेहरे, और आवाज़ में खनक रही है।
मदद के ऐसे अनेक किस्से अस्पतालों में ज़रूरतमंद लोगों की मदद के समय, बाढ़ग्रस्त, भूस्खलन या भूकंप प्रभावित इलाकों में सैनिकों द्वारा मदद करते हुए देखने को मिल जाते हैं। उड़ीसा ट्रेन हादसे के बाद भी आम नागरिकों द्वारा की गई मदद के अनेक उदाहरण मिले हैं। यानी परेशानी के समय एक-दूसरे के साथ से कठिन हालात पर विजय पाई जा सकती है। इसीलिए आइए प्रण लें कि हमसे जितनी हो सकेगी, ज़रूरतमंद की मदद करेंगे।
किसी की सहायता के लिए सबसे बुरे हालात में रहने वाले व्यक्ति का इंतज़ार नहीं करना है बल्कि अपनी सामर्थ्य अनुसार शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, वस्त्र, कपड़ों आदि से अपने आस-पास के ज़रूरतमंद लोगों को चिन्हित कर, उनकी मदद करना है। उनके निराश जीवन में आशा की चमक बनना है। ऐसे लोगों के लिए रौशन दीपक बन कर उनके जीवन को जगमगाना है। इस बात का यक़ीन मानिए कि इस तरह के कार्य, स्वयं आपके जीवन में नई रौशनी भर देंगे। खुशियाँ देने से मिलने वाले सुकून और शांति को पाने लिए प्रण लें कि अपने-अपने स्तर पर हम सब प्रत्येक अंधेरे कमरे में दीया जलाएंगे। उजाला पहुँचाएंगे।
वन्दना यादव
वन्दना यादव
चर्चित लेखिका. संपर्क - yvandana184@gmail.com
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4 टिप्पणी

  1. हम‌ मुसलसल आपकी फ़िक्र-ओ‌-नविश्ता से हमकनार हो रहे हैं अच्छा लगता है रफ़्तार से भागते अंधेरे की राह पर एक
    ज़रा सी लौ को थामने वाला दिया रखदेना.
    रस्ता चराग़ का भी तकते हैं अंधेरे
    उनको भी अकेले में दिखाई नहीं देता
    बहुत अच्छा लेख बधाई कुबूल फ़रमायें
    नीरद

  2. जी , कोशिश तो है कि जो ज़मीन से जुड़े लोग है उनकी कुछ मदद कर सकूँ क्योंकि हमारी जड़े तो ज़मीन में ही होती हैं हम कितना ही आसमान क्यों ना छू ले ।
    अच्छा है प्रेरक है आपका लेख आपको बधाई दी

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