न धन के अम्बार हैं नहीं गुणों की खान|
पास बाँटने क लिए छोटी सी मुस्कान ||
साँस साँस लिखती रही, पाती जिसके नाम|
वो बैरी ना पढ़ सका, बीती उमर तमाम||
टूटा दिल ये सोचता, कैसा था मधुमास|
मधु सारा तो पी गया, छोड़ गया इक प्यास||
भूखी हैं तन्हाईयाँ, बैठी घुटने टेक|
यादों की कुछ रोटियां, शाम रही है सेंक||
छोड़ दे अरी छोड़ दे, कितनी की फरियाद|
छोड़े ना परछाई सी, जिद्दी तेरी याद ||
शाख शाख पर गिद्ध हैं, नहीं सुरक्षित छाँव|
बिटिया रख सम्भाल कर, घर से बाहर पाँव||
स्वेटर हैं बाजार में,   पहले से तैयार|
गृहिणी अब बुनती नहीं, रिश्तों का संसार||
बेटी घर की शान है, बेटी घर की आन|
घर अगर एक देह है, बेटी इसकी जान||
मंदिर अब जाते नहीं, मोबाईल टू मीट|                                                  सुबह देव प्रेषित हुए, रात्रि हुए डिलीट||
रात बेचारी उंघती, हुई नींद से पस्त|
व्हाट्सप्प के फेर में, सभी फोन में व्यस्त||
बुढ़ापा ज्यों गिलास के, तले दूध का झाग|
सड़क सड़क कर अंत तक, पीने का बैराग||

2 टिप्पणी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.