यूरोप का बाल साहित्य हमेशा से ही बहुत समृद्ध रहा है । यूरोप के बालसाहित्य में बाल पुस्तकों के लिए चयनित कहानियाँ,उनकी बाल सुलभ भाषा व आकर्षित आवरण हमेशा से ही आकर्षण का विषय रहा ।
यहाँ मैं नीदरलैंड के बाल साहित्य के विषय में कुछ जानकारी देना चाहूँगी ।नीदरलैंड में बाल साहित्य व बाल पुस्तकों के लिए कुछ नियम व नीतियाँ तैयार की गई है, जिसका पालन हर लेखक ,प्रकाश व विक्रेता को करना आवश्यक है । बाल साहित्य का वर्गीकरण बाल पाठकों की आयु वर्ग के अनुसार किया गाया है । शून्य से बारह वर्ष तक बाल व बारह से अठारह वर्ष तक की किशोरावस्था को विशेष ध्यान में रख कर पुस्तकें लिखी व प्रकाशित की जाती रहीं हैं
बाज़ारों से लेकर पुस्तकालयों तक में पाठक वर्ग की आयु के अनुसार ही पुस्तकें रखी जाती है। यूरोप की एक बहुत बड़ी विशेषता यह है कि
वहाँ लोगोंने अपनी भाषा व अपनी संस्कृति व परंपराओं की जड़ों को बहुत मज़बूती से पकड़ रखा है । बाल मन तक इन परंपरा ,संस्कृति व भाषा को पहुँचाना यह भी एक कारण था बाल साहित्य को
समृद्ध बनाने का ।बचपन से बच्चा जो भाषा माँ से सीखता ,बोलता है यदि उसी भाषा में उसे पढ़ाया जाए तो वह बहुत सहज ही बालमन में अपनी जगह बना लेता है।इसी बात को केन्द्र बना कर नीदरलैंड ने राजकीय कामकाज से लेकर साहित्य व शिक्षा की भाषा ,अपनी मातृभाषा को बनाया। इसके पीछे की भावना ,अपनी डच भाषा व साहित्यिक इतिहास का अस्तित्व बनाए रखना,लेखकों के लिए नई संभावनाओं को स्थान देना, बाल पाठकों में पढ़ने की रुचि को बनाए रखना था।
।17 वीं शताब्दी में यहाँ बच्चों का पुस्तकों के प्रति आकर्षण पैदा करने केलिए “ Hiëronymus van Alpen “ नाम का एक बाल संग्रह प्रकाशितकिया गया जिसमें तीन बच्चों के द्वारा बच्चों के ही शब्दों में हस्तलिखित डचभाषा के गीत संग्रहित किया गया ।यह संग्रह बड़े व बच्चों में बहुत पसंद कियागया और उस समय इसके बीस से भी ज़्यादा हस्तलिखित संस्करण प्रकाशितहुए। साहित्यकार जो अब तक दूसरे साहित्य लिख रहें थे उनकी रुचि भी बालसाहित्य लिखने में बढ़ने लगी।और इस तरह शरू हुआ बाल साहित्य का इतिहास ।समय के साथ साथ बाल साहित्य में बहुत सारे बदलाव आये जैसाकी अब बाल साहित्य में अक्षर ज्ञान, शिक्षा,ज्ञान,सामाजिक ज्ञान ,गीत नाटक कहानियाँ ,मनोवैज्ञान, विश्लेषण इतिहास,पंचतंत्र व धर्म संबंधी जानकारी भीशामिल हो गए हैं । नीदरलैंड में पाठक वर्ग बहुमत में हैं । यहाँ आपको पैट्रोल पंप से लेकर सुपर बाज़ार तक सभी जगह आप पुस्तकें ख़रीद सकते हैं । कार्यालयों, अस्पताल ,डाक्टर के प्रतीक्षा गृहों में आपको बाल पुस्तकें पढ़ने को मिल जाएँगी।
बाल साहित्य व बाल साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के लिए यहाँ पुरस्कारकी आयोजित किये गए हैं ।जैसे कि Zilveren ,Gouden Griffel,Centraal Bestand Kinderenboeken.
इसी क्षृखला में कुछ आयोजनों की परंपरा शुरू की गई जैसे 1955 मेंKinderboekenweek यह वर्ष में एक ऐसा सप्ताह होता है जिसमें पूरेनीदरलैंड के सारे स्कूलों में सप्ताह भर पुस्तक पढ़ने का कार्य किया जाता है।
यह सप्ताह सभी के लिए एक उत्सव की तरह होता है क्योंकि इस सप्ताह में बच्चों के लिए,सभी स्कूलों ,पुस्तकालयों व अन्य स्थानों में इस सप्ताह बहुत सारी परतिस्पर्धाओं का आयोजन किया जाता है। यहाँ के राजा रानी, मंत्री व मेयर भी इस तरह के आयोजनों का हिस्सा बनते हैं व बच्चों के लिए पुस्तक पढ़ते है ताकी बच्चों की रुचि ज़्यादा से ज़्यादा पुस्तक पढ़ने में लगे। पिछले कुछ वर्षों से चलता फिरता पुस्तकालय भी गाँव,शहर, शरणार्थी शिविरों में जा कर बाहर से आने वाले बच्चों को पुस्तक ,नाटक,व गीत के माध्यम से डच भाषा व यहाँ की संस्कृति सिखा रहे हैं ।नीदरलैंड में बच्चों के जन्मदिन पर पुस्तकें उपहार में देने का चलन है ।
सेवानिवृत्त दादा, दादी सप्ताह में एक बार प्राथमिक विद्यालयों में जा कर बच्चों के लिए पुस्तक पाठन का कार्य स्वयं सेवी के रूप में करते हैं ।
बाल साहित्यकारों में Anni. M. G. Schmidt , Paul van Loon,Francine Oomen Chris Vachter कुछ जाने माने नाम हैं। जो बाल साहित्य में बहुत लोकप्रिय हैं । यहाँ डच भाषा के अतिरिक्त कुछ स्थानीय भाषाओं में भी बाल साहित्य प्रकाशित होता है । जब भी किसी बाल साहित्यकारों की पुस्तकों का विमोचन किया जाता है उस से पहले सभी स्कूलों को सूचित किया जाता है ।अधिकांश पुस्तक सप्ताह के समय ही बड़े बड़े पुस्तकालयों में पुस्तकों का विमोचन किया जाता है। बाल पाठक विशेष रूप से आमंत्रित होते हैं । लेखक बच्चों के साथ बैठ कर अपनी पुस्तक का अंश पढ़ कर सुनाता है । नगर पुस्तकालय के अतिरिक्त सभी स्कूलों में अपना एक पुस्तकालय होता है जिसे सरकार से समय समय पर नई पुस्तकें ख़रीदने के लिए अनुदान दिया जाता है। लेखक भी अपनी पुस्तक की कुछ प्रतियाँ स्कूलों को दान कर देते हैं । प्राथमिक से सेकेंडरी एजुकेशन तक बच्चों को स्कूल से मुफ़्त पुस्तकालय पास मिलता है। ताकि बच्चों की रुचि पुस्तक पढ़ने और लेखकों की रुचि लेखन में लगी रहे।करोना काल में बाल व किशोर लेखकों की पुस्तकों में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है । लोग डिजिटल माध्यम से भी पुस्तकें पढ़ रहे हैं । बाल साहित्यकारों को नीदरलैंड में बहुत सम्मान दिया जाता है। उन्हें भविष्य के निर्माता व संस्कृति के रक्षक रूप में देखा जाता है। नीदरलैंड में पाठक बहुत है। आप हर गली के नुक्कड़ पर एक किताब की अलमारी देख सकते है । जहॉं लोग अपनी मर्ज़ी से आते जाते पुस्तकें पढ़ते हैं ।बच्चों के साथ पार्क में जाते समय पुस्तक वहाँ से लेते हैं और घर जाते समय वापिस रख देते है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है की नीदरलैंड में बाल साहित्य व बाल साहित्यकार दोनों का ही अपना विशेष स्थान व महत्व है ।
डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे
स्वतंत्र पत्रकार व लेखिका
नीदरलैंड
  • भारत की बेटी,सूरीनाम की बहूँ व नीदरलैंड की निवासी
  • स्वतंत्रत पत्रकार, लेखिका
  • कवियित्री व समाजसेवी
  • डिस्ट्रिक्ट आसन (नीदरलैंड)
  • टाऊन हाल की सलाहकार समिति की सदस्या
  • Stichting Suriname Hindi parishad  व Nederland Hindi Parishad में अध्यापिका के रूप में जुड़ कर हिंदी को आगे बढ़ाने में प्रयासरत ।  वर्तमानमे “यूरोप कीप्रसिद्ध बाल कहानियाँ “ प्रकाशनार्थ ।
  • अध्यक्ष “ अंतरराष्ट्रीय हिंदी संगठन नीदरलैंड
  • सह अध्यक्ष फ़ेसबुक पेज world of children’s Literature, Art & Cultuur
  • पूर्व संचालिका दिल्ली दूरदर्शन
    • पत्रिका, व साहित्यकी
  • पूर्व समाचार वाचिका
  • विदेश प्रसारण विभाग
  • ऑल इंडिया रेडियो दिल्ली
    • पूर्व लेक्चरर पत्रकारिता व जनसंचार माध्यम दिल्ली विश्वविद्यालय
  • 2012-2017 तक Sociale Culturele werk Pittelo (नीदरलैंड) की अध्यक्ष पद परकार्यरत रही |
  • 2005 :अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह
  • नीदरलैंड की संचालिका
  • संस्थापिका
  • Mama ochtend (एक सुबह माँ केनाम)
  • महिलाओं को  डच व हिन्दी भाषा के व उनके अधिकार क्षेत्र के बारे में अवगत कराना।
    • MeidenClub ( Girls Club)
  • बारह से पंद्रह साल की लड़कियों के लिए स्वास्थ्य ,शिक्षा  ,स्कूल व पारिवारिकसमस्याओं से संबंधी समस्याओं का निदान ।
  • भाषा: हिन्दी,अंग्रेज़ी, डच
  • कार्य अनुभव:
  • 6 साल तक दिल्ली दूरदर्शन के साहित्यक कार्यक्रम

1 टिप्पणी

  1. मैडम ऋतु ननन पांडे जी का शानदार और जानदार आलेख पढ़ने को मिला ।लगा की किसी पुस्तक के मॉडल देश और संस्कृति में समा गए।
    ऋतु जी बाल साहित्य से लंबे समय से जुड़ी हैं अध्यापन ,प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और फिर वर्षों पर्यंत नीदरलैंड में निवास और उस भाषा को आत्मसात
    कर एक मधुमक्खी के शहद का सा श्रम और उसका आस्वादन पढ़ने से मिला।
    पुस्तक समृद्ध संस्कृति कैसी होनी चाहिए उसकी नज़ीर व्यवहारिक रूप में ,इस आलेख में सहजता सरलता और प्रभावी ढंग से उकेरी गई है।
    काश हमारे भारत वर्ष में भी यही सशक्त व्यवस्था होती। मैंने अपने कई आलेखों में स्वतंत्र पुस्तक नीति के बारे में बार-बार प्रश्न किया है और उसके प्रभाव को भी अपने अनुभव से बताने की कोशिश की है परंतु भारतीय संस्कृत में अभी भी स्वतंत्र पुस्तक नीति और नियामक रूप की संस्था का नितांत अभाव है। जहां तक मेरी स्मृति है कि नीदरलैंड देश की राजधानी या कोई अन्य शहर विश्व पुस्तक राजधानी रहा है जो की किसी भी देश और उसकी पुस्तक संस्कृति के लिए गौरव की बात है। संभवतः तब यह व्यवस्थाएं और पुख्ता हुई होंगीं। इस देश में क्या स्वंतत्र पुस्तक नीति है,,,,लेखिका को यह भी स्पष्ट लिखा चाहिए था।
    इस प्रकार का बेमिसाल आलेख प्रकाशित करने हेतु आदरणीय डॉक्टर तेजेंद्र शर्मा जी को हृदय से आभार और बधाई। मैडम ऋतु ननन पांडे को साधु साधु साधु
    सादर
    सूर्य कांत शर्मा

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.