सवाल यह उठता है कि आख़िर फ़ारुख़ अब्दुल्ला भारतीय संविधान के अंतर्गत चुनाव जीत कर एक सांसद बने हैं। वे ऐसी बात सोच भी कैसे सकते हैं कि चीन भारत पर आक्रमण करके भारतीय कश्मीर को हथिया ले? और ऐसी सोच रखने वाले व्यक्ति को क्या भारतीय संसद में बने रहने का अधिकार है?
जम्मु कश्मीर के विवादित नेता फ़ारुख़ अब्दुल्ला ने आज करण थापड़ के सामने अपना दिल खोल कर रख दिया जब उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा, “ईमानदारी से कहूं तो मुझे हैरानी होगी अगर उन्हें (केन्द्र सरकार को) वहां (कश्मीर में) कोई ऐसा शख़्स मिल जाता है जो खुद को भारतीय बोले।”
फ़ारुख़ अब्दुल्ला ने आगे कहा, “आप जाइए और वहां किसी से भी बात कीजिए.. वे खुद को भारतीय नहीं मानते हैं और न ही पाकिस्तानी.. मैं यह आपको स्पष्ट कर दूं। पिछले साल 5 अगस्त को उन्होंने (भाजपा सरकार ने) जो किया, वह ताबूत में आख़री कील था।”
फ़ारुख़ अब्दुल्ला ने अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर करते हुए आगे कहा, “कश्मीरियों को सरकार पर कोई भरोसा नहीं रह गया है। उन्होंने कहा कि विभाजन के वक्त घाटी के लोगों का पाकिस्तान जाना आसान था लेकिन तब उन्होंने गांधी के भारत को चुना था न कि मोदी के भारत को।”
नैशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने आगे कहा, “आज दूसरी तरफ से चीन आगे बढ़ रहा है। अगर आप कश्मीरियों से बात करें तो कई लोग चाहेंगे कि चीन भारत में आ जाए। जबकि उन्हें पता है कि चीन ने मुस्लिमों के साथ क्या किया है।”
इस पर करण थापड़ ने पूछा कि क्या आप यह बात पूरी गंभीरता से कह रहे हैं, अब्दुल्ला ने जवाब दिया, “बात गंभीरता की नहीं है, लेकिन मैं ईमानदारी से कह रहा हूं मगर लोग इसे सुनना नहीं चाहते।”
हैरानी की बात यह है कि फ़ारुख़ अब्दुल्ला कश्मीर घाटी से भारतीय संसद के लिये चुनाव लड़ते हैं, चुनाव जीतते हैं और संसद में शिरक़त भी करते हैं मगर अपने आपको भारतीय मानते नहीं और न ही अपने मतदाताओं को भारतीय मानते हैं। तो उन्हें और उनके पुत्र को क्या मजबूरी रही कि भारतीय संविधान के तहत चुनाव भी लड़ते हैं और कभी पाकिस्तान तो कभी चीन के गुण गाते दिखाई देते हैं।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में विरोध और आलोचना का हक़ सबको है मगर जो बात विचलित करती है वो ये कि बकौल फ़ारुख़ अब्दुल्ला कश्मीर और कश्मीरियों पर चीन का शासन होना चाहिए। सवाल ये है कि आखिर उन्होंने ऐसा सोच भी कैसे लिया? क्या उन्होंने चीन का वो रवैया नहीं देखा जो चीन ने उइगर मुसलमानों के प्रति अपनाया हुआ है?
सोचने की बात यह है कि आज चीन में रहने वाले उइगर मुसलमान न सिर्फ ग़रीबी और ख़स्ताहाल ज़िंदगी जी रहे हैं बल्कि उन्हें अपनी जान का खतरा भी बना हुआ है। चीन की हुकूमत उइगर को बदलना चाहती है। यदि वो मानते हैं तो अच्छी बात है नहीं तो उन्हें तमाम तरह की यातनाओं का सामना करना पड़ता है।
बात अभी बीते दिनों की है खबर आई थी कि चीन ने उइगर मुसलमानों की मस्जिदों को तोड़कर पब्लिक टॉयलेट का निर्माण कराया। इसके अलावा अगर बात उइगर मुसलमानों पर चीन के रुख की हो तो वर्तमान में चीन ने इस समुदाय की सभी धार्मिक स्वतंत्रताओं का हनन कर लिया है जिसके चलते चीन में मुसलमान दोयम दर्जे की ज़िंदगी जीने को मजबूर है। तो फिर भला फ़ारुख़ अब्दुल्ला, जो अपने आपको मुसलमानों का मसीहा मानते हैं, कैसे चीन की दासता स्वीकार करने को तैयार हो गये?
फारूक अब्दुल्ला ने शनिवार को लोकसभा में चीन के साथ सीमा विवाद का मामला उठाया। उन्होंने कहा कि “सीमा विवाद ख़त्म करने के लिए यदि भारत चीन से बातचीत कर सकता है, तो जम्मू-कश्मीर में सीमा के हालात से निपटने के लिए दूसरे पड़ोसी के साथ भी वार्ता की जानी चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “मुझे खुशी है कि सेना ने मान लिया है कि शोपियां में तीन लोग गलती से मारे गए थे। मुझे उम्मीद है कि सरकार इस मामले में अच्छा मुआवजा देगी। अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में कोई विकास नहीं हुआ है। केंद्र शासित प्रदेश में 4जी सेवा पर लगाए गए प्रतिबंध से छात्रों और कारोबारियों को नुकसान हुआ है।” उन्होंने अपनी हिरासत के दौरान अपने पक्ष में आवाज उठाने के लिए सांसदों का आभार व्यक्त किया।
इससे पहले भी पाकिस्तान द्वारा हथियाए हुए कश्मीर के इलाके पर भारतीय संसद पर उसे भारत का हिस्सा बताने पर फ़ारुख़ अब्दुल्ला ने राहत इन्दौरी से शब्द उधार लेते हुए कहा था, “वो इलाका क्या इनके बाप का है।”
सवाल यह उठता है कि आख़िर फ़ारुख़ अब्दुल्ला भारतीय संविधान के अंतर्गत चुनाव जीत कर एक सांसद बने हैं। वे ऐसी बात सोच भी कैसे सकते हैं कि चीन भारत पर आक्रमण करके भारतीय कश्मीर को हथिया ले? और ऐसी सोच रखने वाले व्यक्ति को क्या भारतीय संसद में बने रहने का अधिकार है?
Highly shocking and condemnable statement .These politicians have done maximum damage to Kashmir.
बहुत सही बात कही आपने। फारुख को संसद से त्यागपत्र दे देना चाहिए। एक भारतीय एऐसा कैसे कह सकता है।
जो हिंदुस्तान में रहकर ज़मीन से गद्दारी करे मुझे तो ऐसा कोई शक़्स पसंद ही नही। बढ़िया लिखा आपने
बढ़िया लेख