1
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अब मैं बीच भवंर में जाकर, तूफानों को थामुंगा ,
बाधाएं कितनी भी हों, मैं नाव चला कर मानूंगा!
अब मैं बीच भवंर में जाकर ………!
पाल खोल दूंगा नावों की , ऊपर उठे ज्वारों में,
विपदा कभी ना आने दूंगा,सागर के मछुआरों में,
झंझावातों की मैं अब तो,चूल हिला कर मानूंगा,
बाधाएं कितनी भी हों, मैं नाव चला कर मानूंगा,
अब मैं बीच भवंर में जाकर …….!
मैं भारत माँ का बेटा हूँ ,बेटे का फ़र्ज़ निभाऊंगा ,
शोषण-बंधन दूर करूँगा,कुछ ऐसे क़र्ज़ चुकाऊंगा,
हर वो वादा करूँगा पूरा , जो मैं मन में ठानूंगा ,
बाधाएं कितनी भी हों,मैं नाव चला कर मानूंगा,
अब मैं बीच भवंर में जाकर …….!
जुर्म का पर्दा फाश करूँगा , कह दो सब गद्दारों को,
संभल के चलना अब ये कह दो, देश के ठेकेदारों को,
अमन-शान्ति प्रेम प्यार का,फूल खिला कर मानूंगा,
बाधाएं कितनी भी हों, मैं नाव चला कर मानूंगा,
अब मैं बीच भवंर में जाकर ……!
2
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मैं प्यासा हूँ बटोही, चल पड़ा हूँ,
दिल में सपना लिए निकल पड़ा हूँ,
भले ही रास्ते कितने कठिन हों,
चौराहे हों,या पगडण्डी महीन हो,
नज़र के सामने रखता हूँ मंज़िल,
यकीं है,मैं इसे,कर लूंगा हासिल,
फिर मेरे क़दमों तले चट्टान होगी,
इस जहाँ में इक नई पहचान होगी ||
3
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मैं सोच में डूबा रहता हूँ,
ना बात किसी से कहता हूँ,
मन लाख उड़ाने भरता है,
तन जहाँ-तहाँ ही रहता है,
मन की तृष्णा के घावों को,
क्यों तन प्रतिक्षण ही सहता है,
मन लाख दुहाई देता है,
पर तन कुछ भी नहीं कहता है,
मन तो इक पागल पंछी है,
तन तरुवर रूपी डेरा है,
जो सुबह-शाम विचरता मन,
तन उसका रैन बसेरा है|
4
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कोमल हों मन के विचार
मृदुल भाव से कर श्रृंगार
अन्तर्द्वन्द,संकोच को तज
वाणी पंहुँचे फिर मुख के द्वार
एकत्रित कर तू मन के भाव
विश्लेषण कर फिर कर सुधार
जिह्वा की तो कोई थाह नहीं
बस मापनी है तेरा व्यवहार
वाचाल की जग में हार सदा
मृदुभाषित कर तू स्वर विहार।