दरवाजे की घंटी बजी। 

कौन है?’

मैं हूँ| खोलो…’ 

(आवाज पहचानकर मिनी ने दरवाजा खोल दिया।) 

वापिस क्यों आये?’ 

फाईल लेना भूल गया था। वही लेने आया हूँ।‘ 

अब चाय पीकर ही जाईये, अभी अभी बनायी है मैंने अपने लिये।‘ 

वैसे देर हो रही है। फिर भी तुम कहती हो तो लाओ आधी कप पीकर ही जाता हूँ।‘ 

चाय पीकर मनीश मिनी के गाल पर प्रेम से स्पर्श करके तेजी से बाहर निकल गया। मिनी भी उसी तेजी से बालकॉनी की तरफ बढ़ी; जिधर से सड़क पर खड़ी व आती जाती गाड़ियाँ अपने हॉर्न से बड़े शहर की चहलकदमी का हर पल अहसास कराती रहती हैं। मनीश जानता था कि वह उसे देख रही है इसलिये उसने भी हाथ हिलाते हुए अपनी गाड़ी का शीशा बंद कर एसी ऑन किया। कहने को तो मार्च का महीना था अभी बसंत बहार का मौसम चल रहा था मगर नोयडा में जैसे मई के महीने की गर्मी ने पहले से ही डेरा डाल दिया था। 

अगले दिन भी मनीश के ऑफिस जाने के लिये निकलते ही कुछ ही देर बाद फिर घंटी बजी। 

मिनी ने चाय का प्याला टेवल पर रखा और मुस्कारकर हुए बड़बड़ाते हुए लापरवाही से कौन है पूछते हुए दरवाजा खोल दिया। सुरक्षा हेतु मिनी ने कई बार मनीश को कहा था कि एक लोहे की जाली का भी दरवाजा लगवा दो… मगर समय की कमी और काम की व्यसतता के चक्कर में मनीश कारपेंटर को बार बार ना बोल पाया था। नोयडा में कोई भी कारीगर एक बार कहने पर आ जाये तो समझ लीजिये आप किस्मत के धनी है। 

दरवाजा खुलते ही मिनी के सामने एक अजनवी खड़ा था। मिनी ने सोचा था कि मनीश है मगर अंजान व्यक्ति को देखकर वह ठिठक गयी। उसके माथे पर पट्टी बंधी थी जिसमें से खून का रिसाव हो रहा था। 

मिनी ने धीरे से पूछा‌

आप कौन?’

मैंआप जानती हैं मुझे…

जी? कृपया अपना परिचय दीजिये मैंने आपको नहीं पहचाना! मिनी अभी कुछ और कहती सुनती कि वह झटके से घर के भीतर प्रवेश कर गया और मिनी का हाथ पकड़कर खींचते हुए दरवाजा बंद कर दिया। मिनी भय से काँपने लगी। मगर वह शांत धीरज रखते हुए उसे खुद के साथ सोफे पर बिठा वही रखी पानी की बोतल उठा पानी पीने लगा। 

एक नजर में उसे देखकर कोई भी यह कहता कि वह किसी अच्छे घर का सुंदर युवक होगा; क्योंकि वह लगभग छह फीट कद, गोरा वर्ण, बड़ी बड़ी बादामी आँखें, मजबूत कद काठी व सुनहरे बालों वाला था। मगर उसकी यह हरकत उसे अव्वल किस्म का गुंडा साबित कर रही थी। वह सोफे पर बैठा आराम तलव से मिनी को निहार रहा था। धीरे धीरे पानी का एक एक घूँट उसके गले से उतरता हुआ उसे तो ठंडा कर रहा था मगर मिनी का तापमान बढ़ा रहा था। मिनी समझ नहीं पा रही थी कि वह चीख क्यों नहीं रही…आखिर उसे क्यों यह अजनवी घातक नहीं लग रहा जो कि घातक हो सकता है!  

उसे चीखने का मन कर रहा था मगर दिमाग बहुत तेजी से अनेक सवालों जबावों में उलझाने लगा जैसे कि चीखने से लोग इकठ्ठे हो जायेंगे फिर क्या होगा? सब इसको मारेंगे। पुलिस के हवाले कर देंगे। फिर…फिर सब यही कहेंगे कि यह उसके घर कैसे प्रवेश किया अवश्य इसका कोई चक्कर होगा या…या फिर यह कहेंगे कि इसने दरवाजा क्यों खोला? इसको घर में घुसने ही नहीं देना था अगर यह जबदस्ती घर में घुस रहा था तभी तुरंत हल्ला करना था आदि आदि…आखिर हकीकत कोई नहीं समझेगा।  बेहतर है अब चीखने की बजाय अपने तरीके से इस विकट परिस्थिति से निपटा जाये।  

मिनी ने देखा कि वह अब भी शांत सा पड़ा हुआ था जैसे कुछ बोलने से पहले सोच विचार कर रहा हो कि क्या बोले? मगर मिनी दौड़कर किचन गयी और चाकू लेकर उसे धमकाने लगी। और वह मिनी पर ऐसे हँसने लगा जैसे कोई बच्चा बचकानी हरकत कर रहा हो। 

उसने मिनी से कहा, ‘मैं तुम्हारा पड़ोसी हूँ। सामने वाली बिल्डिंग में रहता हूँ। यह जो मेरे माथे पर पट्टी बंधी है इसकी वजह तुम ही हो। कल जब तुम निकली थी, तभी तुम्हें देखने के लिये मैं तेजी से सीढ़ी उतरने लगा; तब फिसल कर यह चोट मोल ले ली। तुम्हें मैं कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा। क्योंकि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ।‘ 

वह बोलता जा रहा था और मिनी आश्चर्य से उसे ना जाने कैसे और क्यों सुन रही थी। बीच बीच में चीखकर उसे जाने के लिये कहती तब वह और शांति से उसे पानी पीने के लिये कहता और यकीन दिलाता कि वह उसे छूएगा भी नहीं। बस अपनी बात कहकर चला जायेगा। फिर बोलना शुरू किया…  

देखो रात को अपने कमरे का परदा सही से लगाया करो। तुम्हारे पति को इतनी बेसब्री रहती है कि वह सही से परदा भी नहीं लगाता और तुम्हें लेकर शुरू हो जाता है। मैं अपनी नजरों को दूरदर्शन बना तुम दोनों की पूरी पिक्चर देखता हूँ। जरा सोचकर देखो मुझ पर क्या बीतती होगी? पिछले कई महीनों से देख रहा हूँ। सोचकर देखो कितना भर गया हूँ?’ 

मिनी याद करने लगी कि कई बार मौसम सुहाना है कहकर मनीश परदा हटा देता था और खुली चादँनी में उसे चाँद कहकर प्यार करता था। उसने मना भी किया कि कोई देख रहा होगा तो! वह झट से कह देता कि सब लोग अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त हैं किसी को फुरसत नहीं कि वह उन्हें देखें। क्योंकि रात में दूर दूर सभी के घरों के परदे लगे रहते हैं। मिनी ने ध्यान किया तो ख्याल आया कि सामने अर्थात इसके घर का भी परदा लगा रहता था तो फिर यह कहाँ से कैसे देखता होगा

अजनबी और करीब आकर उसके पैरों तले बैठ गया। मगर थोड़ी दूर ताकि वह उससे स्पर्श ना हो पाये। टेबल के बगल में नीचे बैठकर अपने दाहिने हाथ का टेका लेते हुए अपने घने बालों पर उँगलियाँ फिराते हुए दूसरे हाथ से मोबाईल को देखने लगा।

फिर उसने कहा, “हिफाजत से रहा करो। निजी कार्यों को करने से पहले तरीके से पर्दे लगा लिया करो। मैं क्या मेरी जगह खुद तुम्हारा पति भी होता तो वह भी तुम्हें यूँ देखकर पागल हो जाता। तुम हो ही इतनी सुंदर। तुम्हें मुझसे डरने की आवश्यकता नहीं क्योंकि मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ। यकीन करना मेरा कि मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाने वाला। यह रहा मेरा कार्ड जिसमें मेरी सारी जानकारी है। जब चाहो मुझे फोन कर सकती हो। आज बड़ी बेबसी रही इसलिये तुम्हें अपने दिल की कह डाली वरना मैं आसानी से हाथ आ जाऊँ वो भँवरा नहीं। अब चलता हूँ। इतना कहकर वह तेजी से दरवाजा खोलकर निकल गया, बाहर निकलते ही तुरंत दरवाजा खींचकर बंद भी कर गया। 

मिनी हतप्रभ सी देखती रह गयी। अपने आपमें खींचती रह गयी। क्रोध मानो उसके सिर चढ़ गया था। वह बिना चीखे भींचकर रह गयी। मगर तभी वह उसे देखने तुरंत बाहर निकली की किधर गया होगा तो वह कहीं भी नजर नहीं आया। फिर बालकॉनी आकर देखा तब भी वह कहीं नहीं दिखा। वह अपने बैडरूम में आकर बड़ी सी खिड़की का परदा हटाकर सामने फ्लैट में देखनी लगी जिसका जिक्र उसने किया था। वह तैयार हुई और जिज्ञासावश सामने के फ्लैट में जाने के लिये सोचने लगी। सीढ़ियाँ उतरते हुए उसे ख्याल आया कि अजनबी ने सामने का फ्लैट कहा था; मगर कौन सा फ्लैट है यह कैसे पता चलेगा? क्योंकि सामने की बिल्डिंग में लगभग आठ फ्लोर हैं। एक फ्लोर में चार फ्लैट। सामने अगल बगल बिल्डिंग भी तो हो सकती है। 

वह पूरी सीढ़ी उतरने से पहले वापिस अपने घर आ गयी। उसने अजनबी द्वारा दिया गया वह कार्ड देखा। उस पर केवल नाम, फोन नम्बर, ईमेल व शिपिंग कॉरपरेशन लिखा था। दुविधा उसके मस्तिष्क को झकझोर रही थी। घटना उसे भयंकर दुर्घटना जैसी लग रही थी। वह अपने विचारों में उलझ सोच रही थी। आखिर समाज का नजरिया ही ऐसा है जिसके कारण वह समाज को इकठ्ठा नहीं कर पायी और स्वयं अकेले इस समस्या से जूझ रही है। बेशक अजनबी ने उसे छूआ नहीं मगर उसकी बिन मर्जी उसकी जिंदगी में यूँ दखलअंदाजी करने वाला वह होता कौन है? क्या मुझे उसे तलाशना चाहिये? क्या होगा उसको तलाश कर? क्या मैं उसे जेल भेजना चाहती हूँ? अगर हाँ, तो यह काम मैंने तब क्यों नहीं किया जब वह मेरे घर में मेरी बिना मर्जी दाखिल हो रहा था। तब अगर मैं हल्ला मचा देती तो वह जेल में होता। क्यों मैंने यह लड़ाई समाज की लड़ाई नहीं बनने दिया? सिर्फ इसलिये कि लोग कहीं मुझे भी गलत ना समझने लगे? अब अगर उसे ढूँढकर जेल भिजवाऊँगी तो क्या लोंगो को पता नहीं चलेगा? क्या लोग अब कुछ नहीं कहेंगे? ऐसा तो नहीं कि लोग अपनी कायरता को छिपाने के लिये समाज को दोषी ठहरा देते हैं। उस समय अगर उसने बंदूक दिखाई होती तो मैं अवश्य हल्ला मचा देती। तब वह पूर्णतया दोषी होता और समाज पूरी तरह मेरे साथ। हाँ, यही सही होता। कम से कम मैं अभी इस तरह परेशान ना होती। इसका मतलव व्यक्ति अगर पूरी तरह गलत नहीं दिखता है तभी हम उसे रियायत देते हैं। अब क्या करना चाहिये? यह सोचना है, ना कि क्या करना था यह। 

मिनी ने कॉफ़ी बनायी और पीते पीते सोचने लगी कि उसे आगे क्या करना चाहिये। उसने कार्ड पर छपे नम्बर पर फोन किया। तुरंत फोन उठा लिया गया। 

हाँ, बोलो मैं ही हूँ जो अभी तुमसे तुम्हारे घर से मिलकर आया है।‘ 

मिनी को उसकी इस दुष्टता पर क्रोध आया मगर उसने शांत रहकर उससे उसका फ्लैट नम्बर पूछा। अजनबी ने उसे फ्लैट नम्बर बताकर फोन काट दिया। मिनी को थोड़ा अटपटा लगा और बडबडाई अजीब पागल है।’ 

वह सामने के फ्लैट में गयी। घंटी बजाने पर एक नौकरानी ने पूछा, ‘किससे मिलना है। मिनी ने नाम बताया तो वह बोली, ‘यह साहिब तो मर चुके हैं। मिनी चौंकी! परंतु चौंकने के निशान चेहरे पर ना आ जाये इस बात का भी ख्याल रखा और जिज्ञासूवश उसने उससे भीतर आने की इजाजत मांगी। 

ड्राइंग रूम में केवल सोफा था। भीतर से खाँसने की आवाज आ रही थी। मिनी ने पूछा, भीतर कौन है?’ नौकरानी ने बताया, ‘माँ जी हैं। बीमार रहती हैं। मैं सुबह शाम घर का काम करके खाना दवा खिलाकर चली जाती हूँ।‘ 

इनका बेटा नहीं है?‘ 

आपने जो नाम पूछा था वह तो मर चुका है। और दूसरा बेटा विदेश में है जो हर महीने इनके इलाज व खर्चे के लिये रुपये भेजता रहता है। सुना है वह पहले यहीं रहता था, इसी घर में अपनी माँ के साथ। मगर जब से उसकी शादी हुई उसे माँ जी ने घर निकाल दिया। क्योंकि उसने जिस लडकी से शादी की थी वह मुसलमान थी। और ये ठहरे खाटी बनारसी पंडित। अब आप ही बताओ माँ जी ने कौन सी गलती की?’ 

मिनी चुपचाप सुनती रही। फिर धीरे से बोली, ‘क्या मैं माँ जी से मिल सकती हूँ?’ 

नौकरानी उसे भीतर ले गयी। बोली, ‘माँ जी आपसे कोई मिलने आया है।‘ 

माँ जी ने चश्मा पहनते हुए पूछा, ‘कौन आया है?’ 

मैं सामने वाले फ्लैट में रहती हूँ। मेरा नाम मिनी है।‘ 

अच्छा तो पड़ोसी हो।‘ 

जी हाँ, हमें आये हुए लगभग पांच महीने हो गये हैं। आज आपसे मिलने का मन किया इसलिये आ गयी।

अच्छा किया आ गयी। मैं पूरी दोपहर और शाम भर अकेले पड़े पड़े थक जाती हूँ। (नौकरानी की तरफ इशारा करते हुए) यह सुबह रहती है तो थोड़ा मन लग जाता है। वैसे यह रात में यही रुकती है। दोपहर बारह से शाम आठ बजे तक इसकी छुट्टी होती है। तब यह अपने घर जाती है। आठ घंटे का अकेलापन मुझे बहुत काटता है।‘ 

कोई बात नहीं तब मैं आ जाया करूँगी। इस बहाने मेरा भी मन लग जाया करेगा।

उस दिन मिनी ने भय, जिज्ञासा, करूणा व ममता की अजीब सी मिलीजुली अनुभूती की थी।  

अब मिनी अक्सर दोपहर माँ जी से मिलने चली जाया करती थी। मगर जब भी उस घर की तरफ बढ़ती थी तब वह उस घटना को याद करके सिहर उठती थी। मिनी को इतना समझ आ गया था कि उस अजनबी ने झूठ बोला था। मगर उसने झूठ क्यों बोला था? उसने यही फ्लैट नम्बर क्यों दिया था? आखिर उसका इस फ्लैट से क्या नाता है

मिनी ने उस घर में चारों तरफ नजर दौड़ायी मगर उस अजनबी की कहीं कोई तस्वीर नहीं दिखी। फिर मिनी ने माँ जी से एलबम देखने की चाहत जतायी। मिनी एलबम की एक एक तस्वीर को ध्यान से देखती रही और उन्हें अपनी नजरों में कैद करने का प्रयास करती रही। अचानक वह हैरान हो गयी! 

एक तस्वीर में माँ जी के साथ तीन लड़के दिख रहे थे। मिनी के पूछने पर माँ जी ने बताया, ‘सबसे बड़ा बेटा और पति सड़क हादसे में गुजर गये थे। उसके बाद से ही वह ज्यादा बीमार रहने लग गयी। दूसरा बेटा मनीश है जो कि किसी मुस्लिम लड़की से शादी करके अमरीका चला गया है। और तीसरा बेटा जितिन है जो कि बैंगलोर में काम करता है और कभी कभी मिलने आता है।‘ 

एलबम देखने के कुछ देर बाद मिनी असहज महसूस करने लगी। तबियत खराब लग रही है कहकर मिनी जल्दी ही अपने घर वापिस आ गयी। बिस्तर पर औधें मुहँ गिरकर फूट फूटकर रोने लगी। उसे अब सारी तस्वीर स्पष्ट समझ आ रही थी। उसे अब समझ आ रहा था कि जब उसने उस अजनबी की बात मनीश को बतायी थी तब वह ज्यादा क्यों नहीं चौंका था? बस इतना कहकर टाल दिया कि सोच समझकर दरवाजा खोला करो। यह बात अलग है कि उसके बाद सुरक्षा तहत एक और लोहे का दरवाजा भी लगवा दिया। मगर मनीश को जितना क्रोधित होकर प्रतिक्रिया देना थी उतनी दी नहीं थी। 

अजनबी जितिन ने बदतमीजी करने का प्रयास किया जो कि नाटक भर था। इसलिये वह अपनी मर्यादा को ना भूला। इसका मतलव उस दिन मैंने जो निर्णय लिया था वह सही था। अगर समाज को इकठ्ठा कर देती तो वह जेल नहीं जाता बल्कि मेरा देवर है यह बता देता। 

आह जिंदगी! कैसे कैसे रंगों से हमें नहलाती रहती है; और हम उसमें भींगते रहते हैं। दुख दर्द में ही जीने के लिये खुशी तलाशते रहते हैं। मनीश अपने परिवार के करीब किस तरह मुझे लाये… यह भी एक भाई कि भाई के प्रति प्रेम दिखाता है और एक बेटे की उसकी माँ के लिये भक्ति बताता है। मनीश कि जितनी प्रशंसा की जाये उतनी कम है। मैं धन्य हो गयी मनीश जैसा पति और माँ जी जैसी…

मिनी सोचने लगी कहीं ऐसा तो नहीं कि माँ जी बहुत अच्छी सिर्फ इसलिये हैं क्योंकि वह मुझे मिनी समझती हैं उनकी बहु नहीं? लेकिन मैंने तो पिछले दो माह में उनमें एक भी कमी नहीं पायी फिर वह गलत कैसे हो सकती हैं? मैं उन्हें सिर्फ इसलिये गलत कह दूँ क्योंकि उन्होंने मुझे मेरे धर्म के कारण नहीं स्वीकारा! यह तो गलत होगा। ऐसे तो मैं भी गलत हो सकती हूँ क्योंकि मैंने अपने धर्म के विरुद्ध विवाह अपनी पूर्ण सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया। अगर दोषी कोई ज्यादा है तो वह मैं हूँ क्योंकि मैंने अपनी केवल सुरक्षा देखी। मुझे ऐसा पति चाहिए था जो सिर्फ मुझे प्यार करे। दूसरा विवाह कभी करने की सोच भी ना सके। फिर भी अगर वह बेवफा निकले तो मैं उसे कानूनी सजा दिला सकूँ और जीवन भर की सुरक्षा भत्ता पा सकूँ। मुझे किसी हलाला से ना गुजरना पड़े। 

माँ जी ने तो केवल धर्म के बारे में सोचा! मगर मैंने ना तो मनीश के परिवार और ना ही अपने परिवार के लिये सोचा। ना धर्म के लिये सोचा ना ही समाज के लिये सोचा। मैंने सिर्फ अपने बारे में सोचा। मैं व्यक्ति बन गयी थी।  मैं ही मनीश के पीछे पड़ी थी। मैंने ही तो मनीश से शादी की जिद की थी और वह मेरे रूप पर फिदा हो गया था। 

ओह! इसका मतलव मनीश ने अपनी माँ की देखभाल के लिये यह फ्लैट लिया। मेरे कारण परिवार बिखर गया। परिवार को एक करने के लिये दोनों भाईयों ने मिलकर चाल चली। मतलव मनीश अपनी माँ के करीब मुझे लाना चाहते हैं। सास बहु को एक दूसरों के गुणों से परिचित कराना चाहते हैं। आखिर देखा जाये तो आज मैं और मनीश की माँ एक दूसरे के काफी करीब आ चुके हैं। वह मुझे अपनी बेटी की तरह प्यार करती हैं और उनमें मैं अपनी अम्मी देखती हूँ। मैं मनीश को कुछ नहीं बताऊँगी। जैसे चल रहा है ऐसे ही चलने दूँगी। 

दोपहर तक अपने घर का सारा काम खत्म करके मिनी नियमित रूप से सामने फ्लैट में अपनी सासू माँ के घर जाने लगी। पहले एकाध दिन नहीं भी जाती थी; मगर अब वह एक भी दिन जाना ना भूलती थी। सेवा भाव पाकर माँ जी भी उसके प्रति अत्यधिक करुणा भाव रखने लगीं। मिनी ने कई बार माँ जी को फोन पर उन्हें उनके बेटे से अपने बारे में बात करते सुना था। 

धीरे धीरे समय ने ऐसी रफ्तार पकड़ी की एक दिन मिनी ने दादी बनने की खबर देकर माँ जी को खुश कर दिया। मगर बदले में जब माँ जी ने अपने बेटे और मुस्लिम बहु के बारे में दुख जताया तो मिनी के जख्म हरे हो गये। 

मिनी ने सोच लिया कि अब वह मनीश को सबकुछ सच बता देगी। वही हुआ जिसकी सम्भावना मिनी को थी।  उसके सच बोलते ही मनीश ठहाके मारकर हँसने लगा। क्योंकि वह तो सब कुछ जानता ही था केवल एक हल्का परदा ही तो गिरा हुआ था। मिनी के मन से बहुत बड़ा बोझ हल्का हुआ और मनीश की खुशी का ठिकाना ना रहा। 

अब तो मिनी को क्या खाना है क्या नहीं आदि आदि सलाह माँ जी से मिलती रहती और नौकरानी भी कुछ अधिक रुपये कमाने के चक्कर में मिनी और माँ जी को अधिक खुश रखती। 

मिनी को बेटा हुआ यह खबर माँ जी को मिनी ने फोन पर दी। माँ बनने के लगभग एक महीने तक मिनी घर से बाहर निकलने की स्थिति में नहीं थी। मगर धर्म की बहु व नवजात पोते को देखने की तीव्र इच्छा के कारण माँ जी को रहा नहीं गया। वह अपनी नौकरानी के सहारे धारे धीरे चलकर मिनी के घर पहुँच गयीं। 

मनीश के दरवाजे खोलते ही माँ जी  को हार्ट अटैक आते आते रह गया। दोनों माँ बेटे की आँखे एक दूसरे को देखकर फटी की फटी रह गयीं। अब क्या था भीतर माँ जी ने प्रवेश किया और जितिन को भी वहीं देखकर हैरान हो गयीं। जितिन ने माँ की लठिया को धीरे से उठा दूर रख दिया। क्योंकि माँ जी को गुस्सा आ गया तो लठिया से कब पिटाई शुरू हो जाये कुछ भरोसा नहीं। 

सब चुप थे। माँ ने कड़क आवाज में जितिन से पूछा, ‘तू बैंगलोर से यहाँ कब आया?’ फिर मनीश से पूछा, ‘अच्छा, तो यह तेरा अमेरिका है!’ 

दोनों बेटों की स्थिति मिमियाने के सिवाय कुछ नहीं थी। नौकरानी भीतर कमरे से पोते को गोद में पुचकारते हुए माँ जी की गोद में रखते हुए बोली, ‘यह देखो जिसके लिये आप इतनी बेसब्र हो रही थीं।‘ 

माँ तो माँ होती है और उसकी गोद में सूद हो तो बात ही क्या? पोते को गोद में पुचकारते हुए माँ धीरे से उठते हुए भीतर कमरे में मिनी के पास चली गयीं। दोनों बेटों ने दरवाजे के सहारे लटके परदे से झाँका तो देखा कि माँ ने पोते को मिनी के बगल में लिटा दिया और प्यार से मिनी का सिर सहलाने लगीं और आँसू पौछने लगीं। मिनी अपने बहते अश्रू से माँ जी के हाथों को भींगा रही थी और अपने दोनों हाथों को जोड़कर माफी मांग रही थी। 

माँ ने प्यार कहा, ‘तुमने मेरा दिल जीता था इसलिये अब तक मैं तुम्हें अपनी धर्म की बेटी मानती रही, मगर आज मैं मानव धर्म अपनाते हुए तुम्हें अपनी प्रिय बेटी बहु के रूप में स्वीकार करती हूँ। क्या तुम मुझे माफ करके अपनी माँ के रूप में स्वीकार करोगी?‘ 

मिनी के रोते हुए गले से एक भर्राती हुई आवाज निकली माँ और सारे गिले शिकवे आसूँ बन बह गये।

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