Saturday, September 7, 2024
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ज्ञान प्रकाश विवेक की पाँच ग़ज़लें

वर्तमान में ज्ञान प्रकाश विवेक और हिन्दी ग़ज़ल एक दूसरे के प्रयायवाची माने जाएं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। वे अपनी ग़ज़लों में रदीफ़ के इस्तेमाल के लिये भी जाने जाते हैं। वे ग़ज़ल लेखन में प्रयोग भी करते रहते हैं। ज्ञान प्रकाश विवेक कहानी और उपन्यास भी उसी सहजता से लिख जाते हैं जिससे कि अपनी प्रिय विधा ग़ज़ल। अपने उपन्यास डरी हुई लड़की के लिये अंतरराष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान से अलंकृत ज्ञान जी ने हमें पुरवाई के पाठकों के लिये अपनी पाँच ग़ज़लें भेजी हैं। लीजिये, हम सब इन ग़ज़लों का लुत्फ़ उठाते हैं –

1.
यारो, मैं इक मकान था ऐसे गिरा कि बस
पल भर में ईंट-ईंट बिखरता गया कि बस
फिर उसके बाद सारा शिराज़ा बिखर गया
वो जाँनिसार बज़्म से ऐसे उठा कि बस
वो भूख का मारा हुआ जोकर था दोस्तो
जो रोटियों के वास्ते इतना हँसा कि बस
जंगल में एक हिरनी अनायास गिर पड़ी
इक तीर उसके वक्ष में ऐसा लगा कि बस
मैंने ज़रा-सा डाँट दिया था परिन्द को
नाराज़ होके मुझसे वो ऐसे उड़ा कि बस
चाय का कप उछल के कहीं दूर जा गिरा
मैँ आज अपने फ़र्श पे ऐसा गिरा कि बस
जुगनू की ज़िन्दगी थी फ़कत एक रात की
लेकिन वो एक रात भी इतना जिया कि बस
2.
थोड़ा भटक गया हूँ मेरा इंतज़ार कर
मैं तुझको ढूंढता हूं मेरा इंतज़ार कर
ये रेल का सफ़र बड़ा लंबा है क्या करूं
घर से तो चल चुका हूं मेरा इंतज़ार कर
कपड़े नये पहन के मैं निकला ज़रूर था
लेकिन फिसल गया हूँ मेरा इंतज़ार कर
अब तक तो आ ही जाता जो होता मैं कार में
साइकिल से आ रहा हूं मेरा इंतज़ार कर
आगे का रास्ता मुझे बिल्कुल पता नहीं
मैं चौक पे खड़ा हूं मेरा इंतज़ार कर
जूते की कील चुभने लगी थी मुझे ज़रा
थोड़ा सा रुक गया हूं मेरा इंतज़ार कर
होती है मेरे साथ हज़ारों अलामतें
मैं ऐसा सिरफिरा हूं मेरा इंतज़ार कर
हर शख़्स ढूंढता है वहाँ अपने आप को
मैं तुझको ढूंढता हूं मेरा इंतज़ार कर
3.
तुम्हारी रोज़ की अनबन से रिश्ता टूट जाएगा
रहेगा सब मुकम्मल पर भरोसा टूट जाएगा
अभी आकाश की गुल्लक ज़रा हो जाएगी ख़ाली
अभी आकाश से कोई सितारा टूट जाएगा
कमस खाई है मैंने ऐ समन्दर तुझ से लड़ने की
मुझे मालूम है मेरा सफ़ीना टूट जाएगा
ये शीशे का महल जो देखने में ख़ूबसूरत है
यक़ीनन, एक दिन इसका करिशमा टूट जाएगा
अभावों का उठाए फिर रहा है बोझ मुद्दत से
मुझे लगता है इक दिन ग़म का मारा टूट जाएगा
पुराने दोस्तों से कृष्ण जी मिलते नहीं यारो!
कि सुन कर बात ये निर्धन सुदामा टूट जाएगा
हमेशा फ़ासले में ज़िन्दगी रखती रही मुझको
उसे मालूम था साँसों का धागा टूट जाएगा।
4.
कभी जहाज़ कभी कश्तियां बनाते हैं
नदी से इस तरह नज़दीकियां बनाते हैं
ये वो शहर जहाँ बारिशें नहीं होतीं
शहर के लोग मगर छतरियां बनाते हैं
हूज़ुर! आपने बनवाए हाईवे लेकिन
ग़रीब लोग तो पगडंडियां बनाते हैं
हमारे पास ज़रा-सी ज़मीन है यारो !
कि इसके वास्ते हम खुर्पियां बनाते हैं
हमारी शहर के बच्चों में है बहुत इज्ज़त
कि उनके वास्ते हम वर्दियां बनाते हैं
5.
बदन की खोल कर पुस्तक बिखर जाने को जी चाहे
बहुत ज़िन्दा रहे, थोड़ा-सा मर जाने को जी चाहे
मुसाफ़िर हूं मैं ऐसा सरफिरा मेरा न पूछो तुम !
कि चलती रेलगाड़ी से उतर जाने को जी चाहे
मैं यूं तो काफ़िले के साथ शामिल हूँ मगर यारो
किसी पीपल की छाँ में ठहर जाने को जी चाहे
ऐ दरिया, तेरे पानी कि लहर बनता रहा बरसों
मगर अब बुलबुला बनकर उभर जाने को जी चाहे
किया है जोग धारण मैंने इक मुद्दत हुई लेकिन
अचानक क्या हुआ मुझको कि घर जाने को जी चाहे
ज्ञान प्रकाश विवेक
1875 सेक्टर-6, बहादुरगढ़-124507 (हरियाणा)
मोबाइलः +919813491654
Email: [email protected]
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