अर्चना उर्वशी का गीत – मन की घटाएं

एक घटा नभ की पलकन से एक घटा बरसे नयनन से। यामिनी बीत रही बिन बोले, कौन अधर की सांकल खोले। हृदय देहरी पर पग धर कर, दर्द पुराना आँखें खोले। पीर झर रही है बूंदन से। एक घटा बरसे नयनन से। नैन घाटियों के कजरारे, पर्वत करने लगे इशारे। लट बिखराती श्वेत बदलियाँ बरस...

तीन ग़ज़लें – डॉ पुष्पलता मुजफ्फ़रनगर 

1. ख़्वाब, ताबीर नहीं मिलती है चाँद,तस्वीर नहीं मिलती है इश्क,चेहरों से हुआ  है ग़ायब कोई तहरीर नहीं मिलती है रूह,राँझे की भटकती होगी आजकल हीर नहीं मिलती है ज़िन्दगी ज्यों पड़ी हो गुर्बत में अब वो जागीर नहीं मिलती है 2. आँखॆं ग़ायब हैं या नज़र ग़ायब उसकी बातों से है असर ग़ायब दिल ये...

दीपावली पर विशेष : वशिष्ठ अनूप का गीत

युगों से गरजता रहा है अँधेरा युगों से दिये हम जलाते रहे हैं। पनपते रहे हैं सदा से असुर दल सदा से उन्हें हम मिटाते रहे हैं। ज़माने ने देखा सदा यह नज़ारा अहंकार हुंकार भरता रहा है, मगर हो तिमिर चाहे बलवान जितना सदा एक दीपक से डरता रहा है; बढ़ा...

कमलेश कुमार दीवान का दीपावली पर एक गीत – आओ अंतर्मन के दीप

आओ अंर्तमन के दीप, दीप प्रज्वलित करें हम। पथ पथ अंधियारे फैलें हैं ,दिशा दिशा भ्रम हैं सूरज चांद सितारे सब हैं, पर उजास कम हैं थके पके मन, डगमग पग हैं भूले राह चले हम। आओ अंर्तमन के दीप, दीप प्रज्ज्वलित करें हम। मन मुटाव वैमनस्य दूर हो, मानव मूल्य द्रवित...

डॉ. रूबी भूषण की दो ग़ज़लें

(1) हुनर यही तो मेरी ज़िंदगी के काम आए ग़ज़ल की बात करूं और तुम्हारा नाम आए कनीज़ बन के स्वागत करूँ मैं शाम ओ सहर किवाड़ दिल के खुले ,सामने ग़ुलाम आए हर एक दिन की शुरुआत हो तेरे दम से तेरे ही दम से मेरी ज़िंदगी की शाम...

बृज राज किशोर ‘राहगीर’ की ग़ज़ल – रोशनी को आइना दिखला रही है

चाँद बाँहों में लिए इठला रही है। झील अपने आप पर इतरा रही है। चाँदनी में हुस्न दोबाला हुआ है, नूर की बारिश इसे नहला रही है। इन हवाओं ने ज़रा सा छू लिया क्या, देखिए तो किस क़दर बल खा रही है। आज इसके हौसले हैं आसमां पर रोशनी को...