भारत की महान् विभूति लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि

 – स्नेह ठाकुर
नव वर्षीय उत्सवों में जल्द ही ग्रहण लग गया। यह वर्ष अपने वर्ष के दूसरे महीने में ही हमसे एक ऐसी महान् विभूति को छीन ले गया है जिसकी क्षति काल-कालांतर में पूरी नहीं होगी। “मेरी आवाज़ ही पहचान है”, हिंदी सिनेमा के अद्भुत गीतों को स्वर देने वाली महान कलाकार, भारत रत्न से विभूषित लता मंगेशकर अब शारीरिक रूप से, भौतिक रूप से, हमारे साथ नहीं हैं, पर जैसा कि लता जी ने स्वयं ही कहा कि उनकी आवाज़ ही उनकी पहचान है, वो आवाज़ जो भारत में ही नहीं वरन् विदेशों में भी पहचानी जाती है, अमर है।
कई वर्ष पहले तीन संस्थाओं, जिसमें एक “यूनाइटेड वे” भी थी जिससे मैं सम्बंधित थी, ने लता जी को टोरांटो कैनेडा में आमंत्रित किया था। दीदी की आवाज़ का अँग्रेजी रूपांतरण करने आए एक और आवाज़ के धनी – श्री हरीश भिमानी जी। साथ में आए किशोर कुमार जो न केवल अपने गम्भीर गायन से आपको अभिभूत करते थे, वहीं दूसरे ही क्षण अपने गायन से हँसा-हँसाकर आपका पेट दर्द कर देते हैं। और साथ में थे धीर-गम्भीर आवाज़ के धनी, अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाने वाले – दिलीप कुमार, संग थीं उनकी सौन्दर्य की धनी पत्नी अभिनेत्री सायरा बानो। अपने समय की चुलबुली, साथ ही चित्र-पट पर धीर-गम्भीर अभिनय हेतु अपना लोहा मनवाने वाली पद्मिनी कोल्हापुरे। हलता जी की दो बहनें – ऊषा व मीना मंगेश्कर व अनेक विभूतियाँ – डायरेक्टर्स आदि थे।
“मेरी आवाज़ सुनो” की गायिका को किसी से भी यह कहने की आवश्यकता नही, क्योंकि इस आवाज़ में इतनी कशिश है कि कोई चाहने पर भी इस आवाज़ को नज़रंदाज़ कर ही नहीं सकता। हिंदी के अतिरिक्त कई भाषाओं में – पंजाबी, मराठी, गुजराती, अंग्रेजी आदि में गाने वाली, एक ही दिन में पाँच-पाँच रिकार्डिंग करने वाली उर्ज्वसित लता जी के जीवन में रियाज़ बहुत महत्वपूर्ण था और उसके बाद सुबह व रात्रि-पूजा। तत्पश्चात उनका पसंदीदा काम था खाना बनाना और भ्रमण, जैसे कि वे कनाडा आईं, तो फोटोग्राफी… लता जी का कहना था कि “संगीत के बिना मैं अपना जीवन सोच ही नहीं सकती, पर यदि संगीत मेरे जीवन में किसी कारणवश न भी हो तो भी भगवान से प्रार्थना करुँगी कि वे कम-से-कम अच्छा संगीत सुनने की शक्ति अवश्य दें।”
मुझे काव्य, कथा आदि लिखने का व पेन्टिग्स करने का शौक़ है। बातों के दौरान दीदी ने कहा कि जो भी करो खूब मन लगा कर करो। भारत को न भुला कर यहाँ की संस्कृति को भी अपना कर सामंजस्य बनाकर रहो। मैंने अचानक बैग में हाथ डाला, कागज़ न मिला, एक डॉलर का नोट मिला, उस पर ही लता जी का ऑटोग्राफ ले लिया; उस ऑटोग्राफ की फ़ोटो और एक वह फ़ोटो जो लता दीदी के साथ ली थी, दोनों यहाँ प्रस्तुत हैं।
– स्नेह ठाकुर, टोरोंटो, कनाडा। ईमेलः dr.snehthakore@gmail.com

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