प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को अब समझ आ गया होगा कि ज्ञान देना और बात है और उस पर अमल करना दूसरी बात। भारत में किसान आंदोलन के वक्त उन्होंने दूसरे देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देने की नीति को भुला दिया था। उन्होंने भारत को नसीहत दी थी, लेकिन अब स्वदेश में छिड़े ट्रक ड्राइवरों के आंदोलन से जूझ रहे हैं तो कह रहे हैं कि प्रदर्शनकारी विकास में बाधक हैं।  

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो में कुछ समानताएं हैं। दोनों के बारे में कहा जाता है कि वे दिखने में सुंदर हैं… जस्टिन ट्रूडो तो इमरान ख़ास से अधिक युवा भी हैं…  दोनों ही भारत को बिन मांगी सलाहें देते रहते हैं। और दोनों ही भारत के विरुद्ध खालिस्तानियों के साथ खड़े दिखाई देते हैं।
जब भारत में कृषि कानूनों के विरुद्ध किसानों ने राजधानी दिल्ली को चारों ओर से घेरकर सभी बॉर्डर बंद करवा डाले थे, उस समय भी दोनों प्रधानमंत्रियों का रवैया एक ही था। बल्कि जस्टिन ट्रूडो ने तो खुले दिल से भारत की आलोचना भी की। उनका कहना था कि उनकी सरकार हमेशा से शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन का समर्थक रही है। 
जस्टिन ट्रूडो को 26 जनवरी में लाल किले पर किये गये हिंसात्मक प्रदर्शन और तिरंगे के अपमान में भी कुछ ख़राबी नज़र नहीं आई। पूरे एक साल तक दिल्ली के बॉर्डर बंद रहे, उन्हें समझ नहीं आया कि भारत की अर्थव्यवस्था पर कितना अधिक असर पड़ रहा है। वे भली भांति परिचित थे कि उनके देश से खालिस्तान समर्थक इस किसान आंदोलन के लिये आर्थिक मदद भेज रहे हैं। मगर उस समय कमीज़ भारत की फट रही थी… ट्रूडो तो अपने ड्राइक्लीन किये गये सूट और टाई लगा कर मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे।
ट्रूडो भूल गये थे कि ‘कोई लाख करे चतुराई रे, करम का लेख मिटे न रे भाई’। जिस तरह दिल्ली के आसपास के बॉर्डरों पर पिज़ा, खीर, पकवान पकाए जा रहे थे और मसाज पार्लर खुल रहे थे कुछ उसी तर्ज़ पर अब कनाडा की राजधानी ओटावा में हो रहा है। 
प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को अब समझ आ गया होगा कि ज्ञान देना और बात है और उस पर अमल करना दूसरी बात। भारत में किसान आंदोलन के वक्त उन्होंने दूसरे देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देने की नीति को भुला दिया था। उन्होंने भारत को नसीहत दी थी, लेकिन अब स्वदेश में छिड़े ट्रक ड्राइवरों के आंदोलन से जूझ रहे हैं तो कह रहे हैं कि प्रदर्शनकारी विकास में बाधक हैं।  
दरअसल किस्सा कुछ यूं हुआ कि जस्टिन ट्रूडो की सरकार ने कोविद-19 की वैक्सीन लगवाने को लेकर कुछ नये नियम बनाए। इन नियमों के तहत अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार आने-जाने वाले ट्रक वालों के लिए कोरोना का टीका लगाना अनिवार्य कर दिया था… अगर किसी व्यक्ति ने वैक्सीन नहीं लगवाई हो, तो उसे 14 दिनों तक घर पर ही क्वॉरंटाइन रहना होगा…
बड़ी संख्या में ट्रक-चालक इस अनिवार्य शर्त का विरोध कर रहे हैं। ट्रक-चालकों का मानना है कि टीका अधिक प्रभावी नहीं है। उनका यह भी कहना है कि जब ट्रक वाले अमेरिका-कनाडा सीमा पार करते हैं तो उन्हें सुरक्षा एजेंसियां प्रताड़ित करती हैं। यही इस संघर्ष का मूल कारण भी है।
अभी ट्रक-चालक इस नियम से जूझ ही रहे थे कि जस्टिन ट्रूडो ने एक और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बयान दे डाला। उन्होंने ट्रक-चालकों को ‘महत्व नहीं रखने वाले अल्पसंख्यक’ करार दिया। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य ने आग में घी का काम किया। ट्रूडो से यहीं चूक हो गई। उसने इस बात की कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि ट्रक-चालक इतने अधिक नाराज़ हो जाएंगे। 
ट्रक-चालकों ने कनाडा की राजधानी ओटावा को चारों तरफ़ से घेर लिया। अमरीका-कनाडा का बॉर्डर लगभग पूरी तरह से बंद कर दिया। यह ध्यान देने लायक बात है कि जस्टिन ट्रूडो सरकार संघर्ष करने वाले ट्रक-चालकों के ख़िलाफ़ वही आरोप लगा रही है जो भारत में भारतीय जनता पार्टी की सरकार किसानों के ख़िलाफ़ लगा रही थी। कुछ लोगों के दंगों के कारण विरोध करने वाले ट्रक-चालकों को चरमपंथी और देशद्रोही के रूप में भी दिखाया जा रहा है।
मज़ेदार स्थिति तो तब पैदा हो गयी जब जस्टिन ट्रूडो को अपनी पत्नी के साथ अपना सरकारी निवास छोड़ कर अपनी जान बचाने के लिये किसी गुप्त स्थान के लिये भागना पड़ा। यह शायद किसी भी सभ्य देश में पहली बार हुआ होगा कि देश के प्रधानमंत्री को जान बचाने के लिये अपने परिवार के साथ कहीं छिपने की ज़रूरत पड़ी हो। 
जस्टिन ट्रूडो ने यह भी कहा है कि ट्रक-चालक विज्ञान के विरोधी हैं और वे न केवल ख़ुद के लिए बल्कि कनाडा के अन्य लोगों के लिए भी ख़तरा बनते जा रहे हैं। यहां ध्यान देने लायक यह बात भी है कि पंजाबी ट्रक-चालक इस संघर्ष में शामिल नहीं हैं। इसका एक कारण यह भी है कि भारत-वंशी कनाडा के नागरिक खुले दिल से वैक्सीन लगवाने की मुहिम में शामिल हुए। यहां तक कि गुरुद्वारों में भी वैक्सीन लगवाने के कैंप लगवाए। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार कनाडा में 90 फ़ीसदी लोगों को कोरोना का टीका लगाया जा चुका है… इसलिए सीधे तौर पर भारत-वंशी ट्रक-ड्राइवर इस संघर्ष में शामिल नहीं हुए हैं।
14 फ़रवरी सोमवार को कनाडा की संसद में ट्रूडो ने कहा, प्रदर्शनकारी हमारी अर्थव्यवस्था, हमारे लोकतंत्र और हमारे साथी नागरिकों के दैनिक जीवन को अवरुद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं। इसे रोकना होगा… ओटावा के लोग अपने ही पड़ोस में परेशान होने के लिये नहीं बने हैं। वे सड़क के किनारे जारी हिंसा को सामना करने लायक नहीं हैं। यह एक ऐसे देश की कहानी है, जो एकजुट होकर इस महामारी से उबरा है, लेकिन कुछ लोग शोर मचा रहे हैं।
याद रहे कि जस्टिन ट्रूडो वही इन्सान है जिसने भारत में चल रहे किसान आंदोलन के बारे में कहा था, “अगर मैं किसानों के विरोध के बारे में भारत से आने वाली खबरों पर अपनी बात नहीं रखता हूं तो मुझे खेद होगा। स्थिति चिंताजनक है… हम सभी परिवार और दोस्तों को लेकर बहुत चिंतित हैं। हम जानते हैं कि यह आप में से कई लोगों के लिए यह एक वास्तविकता है। मैं आपको याद दिला दूं, शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कनाडा हमेशा खड़ा रहेगा। हम बातचीत की प्रक्रिया में विश्वास करते हैं। हम अपनी चिंताओं को उजागर करने के लिए कई माध्यमों से भारतीय अधिकारियों तक पहुंचे हैं। यह हम सब के लिए एक साथ आने का वक्त है।
इतने महान विचारों वाले जस्टिन ट्रूडो को अचानक क्या हो गया कि वह अपने देश में चल रहे ट्रक-चालकों के प्रदर्शन को दबाने के लिये आंतरिक आपातकाल घोषित करने को मजबूर हो गये। जो भारतीय आज 65 से 70 वर्ष के आसपास होंगे, उन्हें याद होगा कि 1975 में जब भारत में इमरजेंसी लगाई गयी थी तो आम आदमी पर कैसे-कैसे ज़ुल्म हुए थे।
कनाडा में आपातकाल लगाए जाने की खूब आलोचना हो रही है… भारत में भी लोग ट्रूडो को ट्रोल कर रहे हैं और उन्हें पाखंडी बता रहे हैं। 
पुलिस ने गुरुवार को ओटावा शहर में प्रवेश किया, जिससे ट्रक चालकों के मन में यह डर अवश्य पैदा हुआ कि कनाडा के कोविद​​​​-19 प्रतिबंधों के खिलाफ लगभग तीन सप्ताह तक सड़कों पर जाम रहने के विरोध में कार्रवाई की जाएगी। राजधानी में कर्मचारियों ने संसद के बाहर बाड़ लगा दी और लगातार दूसरे दिन अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों को जाने की चेतावनी दी। सुबह पुलिस की बसें इलाके में जमा हो गईं।
कनाडा ने अमेरिका से राजधानी ओटावा में कोविड-19 संबंधी पाबंदियों के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों को बढ़ावा नहीं देने की अपील की है। कनाडा के जन सुरक्षा मंत्री ने सोमवार को कहा कि अमेरिकी अधिकारियों को उनके घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। दरअसल, अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी के कई शीर्ष नेता कोविड-19 संबंधी पाबंदियों के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों का समर्थन कर रहे हैं। ओटावा में एक दिन पहले ही आपातकाल लागू किया गया था।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी के कई नेताओं ने इन विरोध प्रदर्शनों का समर्थन किया है। ट्रंप ने कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को ‘घोर वामपंथी’ करार देते हुए कहा कि ट्रूडो कोविड-19 संबंधी मूर्खता पूर्ण प्रतिबंध लगाकर कनाडा को बर्बाद कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वह तब तक वहां से नहीं हटेंगे जब तक कि टीकाकरण से संबंधित सभी नियमों और कोविड-19 संबंधी पाबंदियों को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जाता।
भारतीय सेक्युलर राजनीतिज्ञों ने जस्टिन ट्रूडो पर कोई टिप्पणी अब तक नहीं की है। उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि कनाडा में भारतवंशियों के साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है। 
हमें याद रखना होगा कि पश्चिमी देश हमेशा दूसरे देशों के लिये प्रवचन तैयार रखते हैं, मगर जब वही घटना या दुर्घटना उन पर भी घटित हो जाती है, तो उनका रवैया पूरी तरह से बदल जाता है। 9/11 से पहले अमरीका और ब्रिटेन जैसे देश जब कभी भारत में आतंकवादी घटना घटित होती थी तो वे भारत को शांत रहने की सलाह देते थे। मगर जैसे ही अमरीका में ट्विन-टॉवर पर हमला हुआ अमरीका की पूरी सोच बदल गयी और अफ़गानिस्तान पूरी तरह से बरबाद हो गया। ठीक उसी तरह 7/7 के बाद ब्रिटेन के रवैये में भी बदलाव आया। शायद अब जस्टिन ट्रूडो को भी समझ आ जाए की जूता कैसे पैर को काटता है।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

22 टिप्पणी

  1. बहुत सुंदर और सटीक आलोचनात्मक सम्पादकीय। दूसरों को किसी समस्या पर बिन मांगे सलाह देने और ख़ुद के घर में समान स्थिति पर बौखला जाने का जीवंत उदारहण है यह।
    हार्दिक सादुवाद इस मुद्दे पर विस्तृत प्रतिक्रिया रूप में आप के बढ़िया संपादकीय के लिए तेजेन्द्र सर।

  2. बहुत सुंदर और सटीक संपादकीय। दूसरे के घर पर होने वाली किसी समस्या पर बिन मांगे सलाह देने वाले अपने घर में समान स्थिति पैदा होने पर किस तरह बौखला जाते हैं, इसका यह एक जीवंत उदाहरण है। आपने इस मुद्दे पर खुलकर संपादकीय प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जिसके लिए हार्दिक सादुवाद स्वीकार करें तेजेन्द्र सर।

  3. आपने अपने संपादकीय में सच्चाई को उकेरा है और कनाडा के प्रधानमंत्री को आईना दिखाया है।‌‌भारतमें यहीं भावना है कि जब अपने सिर पड़ती है तो तब समझ आती है। भारत ने कितने‌लोकतांत्रिक ढंग से किसान आंदोलन का सामना किया है न आपातकाल लगाया और लाल‌किले पर हुए हमले के समय जैसे पुलिस ने धैर्य का प्रदर्शन किया ,उसने तो सहिष्णुता की हद ही कर दी थी। महात्मा गांधी भी शायद इतनी सहिष्णुता दिखा पाते। पुलिस व्यवहार एक अनोखी मिसाल थी जो न तो किसी देश में हुई होगी और न कभी होगी। कनाडा पुलिस प्रदर्शन कारियों पर टूट पड़ी‌है।

    • संतोष जी, आपके अनुसार किसान आंदोलन का सामना लोकतांत्रिक ढंग से किया गया। मैं इसका अर्थ नहीं समझा। महामहिम प्रधानमंत्री ने एक बार भी उनसे बात नहीं की। देश के हाइवे खोद दिए। कीलें गाड़ दीं। आसूँ गैस छोड़ी।लाठियां बरसाईं। बिजली पानी की सप्लाई काट दी। 700 से ज्यादा किसान मर गए। सैकड़ों केस दायर कर दिए उन पर। और आखिर उनके मंत्री के बेटे ने किसानों को अपनी गाड़ी से कुचल भी दिया। मंत्री पर कोई आंच नहीं। मंत्री के बेटे को भी बहुत फजीहत के बाद पकड़ा और अब जमानत दे दी है। प्रधानमंत्री के हैंडल से एक ट्वीट तक नहीं। आपको इस सबकी जानकारी नहीं है या…

      • प्रिय भाई दिनेश किसान आंदोलन को लेकर आपका नज़रिया यह है। लोकतंत्र की विशेषता ही यह है कि हर इन्सान अपने मन की बात कह सकता है। हर आदमी का सच का अपना दृष्टिकोण है। आपका पुरवाई समूह में स्वागत है।

      • दिनेश जी के वक्तव्य से लगता है कि सरकार ने आंदोलन करने वालों के साथ अत्याचार किया। आप कहाँ रहते हैं पता नहीं, लेकिन दिल्ली के नागरिकों ने यातायात की किन दिक्कतों का सामना किया है, ये वही जानते हैं। अपना कोई एम्बुलेंस में हो और धरने के कारण रास्ते की रुकावट से दम तोड़ दे उनके आँकड़े तो दिखाये नहीं गए, 700 किसान(?), दिखायी देते हैं। सरकार की जिम्मेदारी सारी जानता की है, न सिर्फ़ प्रदर्शनकारियों के प्रति। कोई भी यदि राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करेगा, कानून व्यवस्था को अपने हाथ में लेगा तो उसके साथ गाँधी वाला व्यवहार तो नहीं किया जाएगा। पूरा किसान आंदोलन ही व्यर्थ के विवाद के लिए हुआ था, किसानों ने अपने पैर काटे हैं, गहराई से कानूनों को पढ़ें, किसी बिचौलिए से नहीं असली किसान से मिलें, कानून उनके सर्वोपरि हित में था। पंजाब की कृषि में दलालों की भूमिका देखें, फिर नया वक्तव्य दें…

    • संतोष जी आपने संपादकीय को लेकर पूरे किसान आंदोलन पर अपना नज़रिया रखा है। धन्यवाद।

  4. You have rightly pointed out the double standards of Trudeau as to how he claimed to hold those beliefs which he does not actually possess.
    How these politicians have two sets of rules! One for themselves and the other for outsiders.
    Very topical issue.
    Thanks n congratulations,Tejendra ji
    Deepak Sharma

  5. जाके पैर ना फटे बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई .. पश्चिमी देशों का खोखलापन दिख ही जाता है | बात तब समझ में आती है जब अपने पर पड़ती है | सार्थक लेख

    • वंदना जी, आपकी टिप्पणी प्रमाण है इस बात का कि संपादकीय आप तक सही ढंग से पहुंच गया।

  6. तल्ख हकीकत से रूबरू हो रहे हैं वो, इस किस्म के आंदोलन से कैसे निपटा जाए- संभवत: यह समस्या पहली बार आई होगी जहां दोनों तरफ देश की जनता है। एक ट्रकरज़ जो सब कुछ रोक रहे हैं, दूसरी तरफ दूसरे लोग जो कि विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं।

    पश्चिम में आप साल भर तक घेरा डालकर और लोगों की स्वतंत्रता और जीवन-अधिकार का हनन नहीं कर सकते! आप सब लोगों के प्रति उत्तरदाई है। उन्हें सख्त कदम उठाने पड़ रहे हैं और भी उठाने पड़ेंगे।

    • रश्मि इस अर्थपूर्ण टिप्पणी के लिये धन्यवाद। आप स्थितियों को सही ढंग से समझ रही हैं।

  7. जैसी करनी वैसी भरनी, यही बात सिद्ध हो रही है, भारत के मामलों को तो विदेशी अपनी बपौती समझाते हैं। जब ख़ुद पर बीतेगा तो समझेंगे, जैसे twin tower attack के बाद अमेरिका समझ गया। अच्छा संपादकीय, जानकारी रोचक ढंग से देने का आपका तरीका श्लाघनीय है

  8. जस्टिन ट्रूडो को 26 जनवरी में लाल किले पर किये गये हिंसात्मक प्रदर्शन और तिरंगे के अपमान में भी कुछ ख़राबी नज़र नहीं आई। पूरे एक साल तक दिल्ली के बॉर्डर बंद रहे, उन्हें समझ नहीं आया कि भारत की अर्थव्यवस्था पर कितना अधिक असर पड़ रहा है। वे भली भांति परिचित थे कि उनके देश से खालिस्तान समर्थक इस किसान आंदोलन के लिये आर्थिक मदद भेज रहे हैं।

    क्या सबूत है इस बात का। आदत पुरानी है तुम सब की सिख कौम को बदनाम करने की। लाल किले पे निशान साहिब जी झुलते आए हैं हमेश से। तिरंगा और सनातन धर्म भी सिखों ने ही बचाया है। सिख ख़ालिसतिनी? मुसलमान आंतकवादी और तुम लोग अवतार उतरे हो ।

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