• डॉ. उमेशचन्द्र सिरसवारी
‘रहें न रहें हम, महका करेंगे, बन के कली, बन के सबा, बाग़े वफ़ा में…’ यह गीत आज लता दीदी की अनुपस्थिति में बार-बार याद दिला रहा है। वे भारत के इस गुलशन में सदैव उपस्थित रहेंगी। मधुर स्वर लहरियाँ बनकर। इस बगिया रूपी भारत की हर धड़कन में सदियों तक उनकी आवाज गूँजती रहेगी। आठ दशक तक अपनी मखमली, मधुर आवाज से करोड़ों दिलों पर राज करने वालीं भारतरत्न, स्वर कोकिला, स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर का निधन ‘वसंत पंचमी’ के अगले ही दिन हुआ, जब हम भारतवासी माँ सरस्वती की प्रतिमाएं विसर्जित करने के लिए लेकर जा रहे थे। लगा मानों वीणा वादिनी, वाग्देवी खुद अपनी बेटी को लेने धरा पर आईं थीं। लता दीदी ने कई पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व किया और हम संगीत प्रेमियों के मानस पटल पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ी। पाँच भाई बहनों में सबसे बड़ी लता दीदी ने कभी शादी नहीं की और अपना संपूर्ण जीवन अपने बहन-भाइयों के लिए समर्पित कर दिया। आज की पीढ़ी के लिए लता दीदी का जीवन एक प्रेरणा बनकर सामने आता है।
लता दीदी की वाणी में साक्षात माँ सरस्वती का वास था, तभी तो उस ईश्वर ने स्वर और लता दीदी को एक साथ इस धरा पर भेजा था। स्वर लहरियाँ और लता दीदी की जो जोड़ी थी, वैसा उदाहरण इस धरा पर कहीं दिखाई नहीं देता। उनका नाम, उनके गुण, उनका परिवार सब अलग चीज हैं। उम्र तो सबकी होती है और सबको जाना पड़ता है, लेकिन लता दीदी के लिए परमपिता परमात्मा ने अलग ही व्यवस्था कर रखी थी। जहाँ दीदी ने अपने सुरों से ईश्वर की स्तुति की तो वहीं आम आदमी के दर्द को भी अभिव्यक्ति दी। ‘सिलसिला’, ‘फासले’, ‘विजय’, ‘चांदनी’, ‘लम्हे’, ‘डर’ आदि फिल्मों में गाए गए लता दीदी के गीत अलग ही छटा बिखेरते नजर आते हैं। ‘देखा एक ख्वाब तो…’, ‘नीला आसमान…’, ‘मेरे हाथों में’, ‘चूड़ियां खनक गईं’, ‘तू मेरे सामने’, ‘दरवाजा बंद कर लो’ जैसे गाने लोगों की जुबान पर चढ़ गए और खूब पसंद किए गए। वास्तव में लता दीदी सुरों की मलिका थीं।
लता मंगेशकर के गाए गीत खेत-खलिहानों से लेकर महानगरों, घरों, बाजारों, शहरों-कस्बों से लेकर बाग-बगीचे की रखवाली करने वाले व्यक्ति की झोंपड़ी तक, रेलों, बसों, ऑटो, रिक्शा, टैक्सियों और छोटी-बड़ी कारों से लेकर बड़ी-लंबी गाडियों तक में लता दीदी की स्वर लहरियाँ गूँजती नजर आती हैं और आगे भी सदियों तक इन सब जगहों पर स्वर सम्राज्ञी की आवाज गूँजती रहेगी। गीतों में पिरोई उनकी आवाज प्रत्येक व्यक्ति को ठिठका-ठहरा देती है। ट्रांजिस्टर के युग की कहानी भी अलग ही है। लोग लता दीदी के गाए मधुर गीतों का बड़े चाव से सुनते थे और आज भी सुनते हैं। साइकिल की टोकरी में रखे ट्रांजिस्टर से निकली दीदी की स्वर लहरियां हवा में तैर जाती थीं। सचमुच उस आवाज ने चप्पे-चप्पे पर अपनी छाप छोड़ी है। उसने सुबह-शाम बहुत सैर की है। हर किसी के मोबाइल में यूट्यूब पर गुनगुनाती आवाज प्रत्येक व्यक्ति को सकून देती है।
लता दीदी की आवाज सदियों तक अनवरत चलती रहेगी। अपनापे से, प्रेम से, नई पीढ़ियों से लाड़-दुलार करती हुई। लता दीदी ने भजन और आराधना गीतों को जो वाणी दी, ऋतुओं-पर्वों की छवियों को जिस तरह मूर्तिमान किया, वह अद्भुत है। उनके गायन की रेंज बहुत बड़ी है। इस रेंज में उनकी आवाज कभी मंद लहरों सी बहती है, कभी वर्षा फुहार बन जाती है। कभी वासंती हो उठती है, तो कभी धमाचौकड़ी करती है। कभी चुहल करती है, तो कभी रूठती-मनाती है। कभी झूला झूलती पेंगे भरती है। वह सबको आलोकित करती हुई प्रतीत होती है। लता दीदी का जीवन हमारी पीढ़ियों के लिए प्रेरक जीवन गाथा है।
1950 और 60 के दशक में लता दीदी की आवाज पूरे देश की सुरीली आवाज बन गई थी। आधुनिक भारत की संस्कृति लता दीदी की उपस्थिति से अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रही है। संगीत का यह उत्कर्ष लता दीदी की आवाज से ही दिखाई देता है। उनकी मुस्कान पर देश हँसता था, उनके रोने पर देश रोता था। 1950-60 के बाद जिस व्यक्ति का जन्म हुआ और होश संभाला, उसका रेशा-रेशा लता दीदी की आवाज गुनगुनाता था। उस पीढ़ी की वे सच्ची प्रतिनिधि थीं, जिसने अपने दर्द को उनके गीतों में पाया और जिया। लता दीदी की आवाज में एक करुण पुकार थी, वह कब व्यक्ति के लिए मीठी और मधुर बन जाती उसे पता ही नहीं चलता। सहस्राब्दी की आवाज लता दीदी हम संगीत प्रेमियों के दिल में हमेशा संगीत बनकर जीवित रहेंगी और सदियों तक मार्गदर्शन करती रहेंगी।
लता मंगेशकर की जीवन यात्रा :
जन्म : 28 सितंबर, 1929 ई.
मृत्यु : 06 फरवरी, 2022 ई.
जन्मस्थान : इंदौर, मध्य प्रदेश
पिता : पं. दीनानाथ मंगेशकर
माता : शेवन्ती मंगेशकर
उपलब्धियां :
  • पहली बार आवाज दी- मराठी फिल्म ’किती हसाल’ (1942)
  • पहली बार अभिनय- मराठी फिल्म ’पाहली मंगलागौर’ (1942)
  • पहली हिंदी फिल्म ’आपकी सेवा में’ (1947)
  • अनेक भाषाओं में गायन- 30 से अधिक भाषाओं में हजारों फिल्मी और गैर-फिल्मी गीत गाए।
  • आखिरी बार – निखिल कामत की फिल्म ’डुन्नो वाय 2’ (2015) में
पुरस्कार :
पद्म भूषण- 1969
दादा साहब फाल्के पुरस्कार- 1989
फिल्म फेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड- 1993
एन.टी.आर. पुरस्कार- 1999
पद्म विभूषण- 1999
भारतरत्न (भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान)- 2001
लीजन ऑफ ऑनर (फ्रांस का सर्वोच्च सम्मान) – 2007
6 फिल्म फेयर अवार्ड और 3 राष्ट्रीय पुरस्कार
उपनाम :
सुर सम्राज्ञी
स्वर कोकिला
सहस्राब्दी की आवाज
भारत कोकिला
सरस्वती
पार्श्व गायिकाओं की महारानी
92 साल की लता मंगेशकर ने अपने जीवन में 36 भाषाओं में करीब 30,000 गीत गाए हैं और एक हजार फिल्मों में आवाज दी है। 16 दिसंबर, 1941 को रेडियो के लिए पहली बार दो गीत गाए। दिसंबर, 2021 को 80 साल पूरे हुए।
कवि प्रदीप के लिखे गीत ’ऐ मेरे वतन के लोगों’, गीत को भारत-चीन युद्ध के बाद 26 जनवरी, 1963 को नेशनल स्टेडियम में लता जी ने जब गाया तो पंडित नेहरू की आंखों में आंसू बहने लगे थे। वहीं उन्होंने लता जी को ’भारत कोकिला’ की उपाधि दी थी।
लता मंगेशकर ने हमेशा क्वांटिटी की बजाय क्वालिटी को महत्व दिया है, इसलिए उनके द्वारा गाया लगभग हर गीत अपने आप में अनोखा है, बेहतरीन है, सुनने लायक है। उन्होंने हजारों गाने गाए हैं और उनमें से चंद गीतों को सर्वश्रेष्ठ कहना नाइंसाफी होगी। कई गीत ऐसे भी हैं जो कुछ कारणों से लोकप्रिय नहीं हो पाए, फिर भी उम्दा हैं। समय-समय पर कई गीतकारों, संगीतकारों, अभिनेताओं ने लता के श्रेष्ठ गीतों की सूची बनाने की कोशिश की है, लेकिन उनके सामने भी यही समस्या रही है कि किसे शामिल करें और किसे छोड़ें। वैसे तो पचास और साठ का दशक फिल्म संगीत के लिहाज से स्वर्णिम काल माना जाता है।
डॉ. उमेश चन्द्र सिरसवारी, ईमेलः umeshchandra448@gmail.com  

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