पर्वतों की हर बात निराली होती है। सर्दियों में सफेद बर्फ को अपने उपर पूरा ओढ़ लें तब भी, और मौसम के बदलने की आहट पर इसी उजास में लिपटे दुशाले को धीरे-धीरे उधेड़ते हुए पूरा धवल स्वरूप हटा कर अपने असल स्वरूप में आ जाएं तब भी। सिर उँचा उठाए खड़े पर्वतों को हम जितना भी दोष दे लें, मगर वे भी कहाँ अपनी मर्जी के मालिक हैं! उनके उपर भी तो कुदरत का कानून चलता है। 
प्रकृति का मनमौजी स्वभाव इन दिनों समूचे उत्तर भारत को ठिठुरने को मजबूर किए हुए है। साल भर का यही वह समय है जब अलसाए-से, देर तक रजाई में पड़े रहने को जी चाहता है। कुनकुनी धूप हर एक को अपनी नर्म गर्माहट के मोहपाश में बाँध लेती है। और ऐसे ही मौसम में क्या ऐसा भी कोई है जिसने धूंआ-धूंआ सी चांदनी रातों में गर्म चाय की चुस्कियां लेते हुए थोड़ी ठंडक, थोड़ी गर्माहट महसूस ना की हो!
इन्हीं ठंड की चादर ओढ़ने-बिछाने वाले दिनों में, गर्म बिछौने में दुबक कर सपनों के तिलिस्म में खो जाने को किसका मन नहीं करता! बंद कमरे की गर्माहट से बाहर निकलना कौन चाहता है? मगर जो ऐसा चाहता है, वह अपने आने वाले कल की मजबूत बुनियाद गढ़ रहा है। जिसने क्षण भर का लालच त्याग कर आने वाले समय को अपने अनुकूल बनाने की ठान ली है, या कहें कि आने वाले समय के अनुकूल ख़ुदको बनाने की ठान ली है।
जो कृत्रिम उष्मा का मोह छोड़कर अपने शरीर को तपाने चल पड़ा है, ऐसे अलबेले ही कोहरे को चीर कर तारीख़ में अपनी उपस्थिती दर्ज करवाते हैं। ऐसे जाबांज जिन्हें मौसम की मार से घबराहट नहीं होती बल्कि प्रकृति का लगातार बदलना उन्हें जीवन की सीख देता है। सर्द मौसम में ऐसे लोग सुबह का सूरज उगने से पहले नींद से जागती प्रकृति को देखने, महसूसने के गवाह बनते हैं।
जो अल-सुबह अपने सपने पूरे करने के लिए निकल पड़ते हैं, जो काम-रोजगार के लिए दौड़ रहे होते हैं, ऐसे तमाम लोगों के हौसले उन्हें गर्माहट देते हैं। ऐसे लगन के पक्के, और जोश से भरे प्रत्येक व्यक्ति को सर्दियों की गर्माहट मुबारक हो। आने वाले कल की सुनहरी ताबीर लिखने में जो जी-जान से जुटे हुए हैं, उनकी मेहनत मुकाम तक पहुंचे। ऐसा अद्भुत कर गुजरने का जुनून पालने वालों को, सर्द मौसम में सफलताओं के जुनून की गर्माहट मुबारक। 

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