दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस में हिंदी की एसोसिएट प्रोफेसर और हिंदी में ‘हिमोजी’ को जन्म देने वालीं अपराजिता शर्मा का शुक्रवार को हार्ट अटैक के कारण निधन हो गया। उनकाबनायाहिमोजीएपबहुतचर्चितहुआथा।दरअसल, इमोजीतोसिर्फभावनाओंकासंचारकरताहैलेकिनहिमोजीमेंएकचरित्रकेसाथकुछशब्दोंकेजरिएभावनाओंकोव्यक्तकियाजाताहै। अपराजिताने 270 सेअधिकहिमोजीबनाए।हिंदी के लिए समर्पित इस विशिष्ट प्रतिभा का यों असमय चले जाना हिंदी समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। पुरवाई परिवार की अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली…
उस दिन मिरांडा हाउस के हिंदी डिपार्टमेंट में मैं अकेले ही बैठा था। शायद कुछ काम कर रहा था या क्लास जाने की तैयारी कर रहा था। तभी कंधे पर बैग लटकाए एक अध्यापिका आईं और मुझसे पूछा आप कौन?
मैंने कहा कि मैं अतिथि अध्यापक हूं और कुछ दिन पहले ही मैंने यहां ज्वाइन किया है, लेकिन आप से मिलने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ। आपका क्या नाम है?
चेहरे पर बहुत ही प्यारी सी मुस्कुराहट बिखेरती हुईं उन्होंने कहा, मैं अपराजिता हूं।
उसके बाद तो उन्होंने मुझे ज्यादा बोलने का मौका ही नहीं दिया और एक-एक करके अपने बारे में सारी बातें बताती गईं। वह क्या कर रही हैं, किन चीजों में उनकी रूचि है, क्या उनको अच्छा लगता है? ये तमाम बातें बहुत ही कम समय के अंदर उन्होंने मुझे बता दिया था।
वह बहुत सुन्दर इमोजी बनाती थीं और हिंदी में उसका नाम उन्होंने ‘हिमोजी‘ रखा था, जिसके बारे में उन्होंने विस्तार से मुझे बताया था। अपने मोबाइल में बहुत सारी इमोजीस मुझे निकाल कर दिखाया भी और कहा कि वह वैश्विक स्तर पर इस काम को ले जाना चाह रही हैं और उनको काफी ज्यादा रिस्पॉन्स भी मिल रहा है।
मिरांडा हाउस की इस अध्यापिका से मैं बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ और मुझे ऐसा लगने लगा था कि आने वाले दिनों में हो सकता है मैं जरूर इनके साथ मिलकर कुछ काम करूंगा और इसी विश्वास के साथ उनसे विदा ली।
शायद वही उनके साथ मेरी पहली और आखिरी मुलाकात थी। उसके बाद समय-समय पर सोशल मीडिया में उनके बारे में पढ़ने को मिलता था| हाल ही में उनकी प्रमोशन के बारे में खबर मिली तो बहुत अच्छा लगा था कि एक अच्छे और प्रतिभावान व्यक्ति को अच्छा मंच मिला है।
आज जब अपराजिता जी के देहांत की खबर मिली तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जीवन में कभी ऐसा भी हो सकता है! जब आप इतना कुछ जीवन में करने की तैयारी करो और अचानक एक दिन जीवन ही समाप्त हो जाए! सिर्फ एक ही मुलाकात में, मेरे मन में अमिट छाप छोड़ने वाली अपराजिता जी को अलविदा कहने के लिए मेरा मन अभी तैयार नहीं है। लेकिन जो हो गया है उसको कोई नकार नहीं सकता। अलविदा अपराजिता जी, जल्दी ही कहीं फिर मुलाकात होगी…