हत्या के इस मामले में राजनीतिक दलों ने घटिया राजनीति को तिलांजलि देते हुए एकता का परिचय दिया है। मैं यह सोच रहा था कि यदि ऐसी घटना भारत में घटी होती तो अब तक सभी विपक्षी दलों ने भारत के प्रधानमंत्री को इस हत्या का ज़िम्मेदार ठहरा दिया होता। सरकार की आलोचना होती। गृहमंत्री के त्यागपत्र की माँग कर ली होती। भारतीय उप महाद्वीप के लोग परम्परा और संस्कृति के मामले में पश्चिमी देशों की आलोचना करते नहीं थकते। मगर इन देशों के परिपक्व लोकतंत्र से कुछ सीखने से बचते दिखाई देते हैं।
शुक्रवार को ब्रिटेन के राजनीतिक हल्कों में उस समय दहशत फैल गयी जब समाचार मिला कि साउथ-एण्ड पश्चिम क्षेत्र (एसेक्स) के सत्तारूढ़ कंज़रवेटिव पार्टी के सांसद सर डेविड एमेस की चाकू से हमला करके हत्या कर दी गयी। उस समय सर डेविड एमेस अपनी ‘परामर्श सर्जरी’ में अपने क्षेत्र के निवासियों से उनकी समस्याओं के बारे में बातचीत कर रहे थे। घटना के समय साउथ-एण्ड इलाके के काउंसलर जॉन लैंब भी वहां मौजूद थे।
69 वर्षीय सर डेविड एमेस 1983 से अपने चुनावी क्षेत्र से सांसद रहे हैं। उनकी हत्या के आरोप में एक 25 वर्षीय सोमाली मूल के व्यक्ति को गिरफ़्तार किया गया है। उनकी किसी से कोई निजी रंजिश की कोई ख़बर नहीं है। मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने इस हत्या को इस्लामिक आतंकवादी घटना घोषित कर दिया है। अभी मामले की तहकीकात जारी है।
सर एमेस के पांच बच्चे हैं… 2015 में उन्हें सार्वजनिक सेवा के लिए महारानी एलिजाबेथ द्वारा ‘नाइट’ की उपाधि दी गई थी… उनकी वेबसाइट “पशु कल्याण और जीवन समर्थक मुद्दों” के रूप में काम करती है।
याद रहे कि ब्रिटेन में प्रत्येक सांसद एवं काउंसलर हर सप्ताह अपने क्षेत्र में सलाह सर्जरी करते हैं जिसमें अपने मतदाताओं की समस्याएं सुनते हैं और उनका हल ढूंढने में सहायता करते हैं। काउंसलर लोकल गवर्नमेंट के स्तर पर कार्य करते हैं और सांसद राष्ट्रीय स्तर पर। कोरोना वायरस के फैलने के बाद से इन गतिविधियों को लगभग पूरी तरह से रोक दिया गया था। सांसद एवं काउंसलर अपने-अपने क्षेत्र-वासियों के द्वार पर जाकर उनसे बात करते रहे या फिर ई-मेल या ऑनलाइन सर्जरी के माध्यम से।
सर डेविड एमेस अपने क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय थे। उनका मानना था कि जब तक आप अपने निवासियों से मिलेंगे नहीं, तो उनकी समस्याओं को समझेंगे कैसे।
लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर ने ट्वीट किया कि यह “भयानक और बेहद चौंकाने वाली खबर है. डेविड, उनके परिवार और उनके कर्मचारियों के बारे में सोच रहा हूं।” पूर्व प्रधानमंत्री और कंजर्वेटिव पार्टी के नेता डेविड कैमरून ने ट्वीट किया, “ले-ऑन-सी से बहुत ही चिंताजनक और डरावने समाचार आ रहे हैं… मेरी चिन्ता और प्रार्थनाएं सर डेविड एमेस और उनके परिवार के साथ हैं।”
ब्रिटिश सांसदों की सुरक्षा को लेकर चिन्ता व्यक्त की जा रही है। ब्रिटिश राजनेताओं के खिलाफ हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं। जून 2016 में लेबर पार्टी की सांसद ‘जो कॉक्स’ को उनके उत्तरी इंग्लैंड निर्वाचन क्षेत्र में चाकू मारने के बाद गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। एक चरमपंथी को उनकी हत्या का दोषी ठहराया गया था। कॉक्स के पति, ब्रेंडन कॉक्स ने ट्वीट किया था कि, “हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों पर हमला करना लोकतंत्र पर ही हमला है… कोई बहाना नहीं, कोई औचित्य नहीं… यह कायरतापूर्ण है जितना है…”
हत्या के इस मामले में राजनीतिक दलों ने घटिया राजनीति को तिलांजलि देते हुए एकता का परिचय दिया है। मैं यह सोच रहा था कि यदि ऐसी घटना भारत में घटी होती तो अब तक सभी विपक्षी दलों ने भारत के प्रधानमंत्री को इस हत्या का ज़िम्मेदार ठहरा दिया होता। सरकार की आलोचना होती। गृहमंत्री के त्यागपत्र की माँग कर ली होती। भारतीय उप महाद्वीप के लोग परम्परा और संस्कृति के मामले में पश्चिमी देशों की आलोचना करते नहीं थकते। मगर इन देशों के परिपक्व लोकतंत्र से कुछ सीखने से बचते दिखाई देते हैं।
मैं अपने पहले के एक संपादकीय में लिख चुका हूं कि शायद इसी लिए भारत के लोकतंत्र को त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र कहा जाता है – ‘Flawed Democracy!’ भारत में विपक्ष में चाहे कोई भी दल क्यों न हो उसका काम एक ही होता है… किसी न किसी तरह सत्तारूढ़ दल की सरकार को गिराना। भारत में हम यह भूल जाते हैं कि किसी भी देश की लोकतांत्रिक सरकार व्यवस्था के लिये सत्तारूड़ दल एवं विपक्ष का अपना-अपना अहम किरदार होता है। विपक्ष का काम केवल सरकार की राह में रोड़े अटकाना या आलोचना करना ही नहीं है।
दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर तमाम राजनीतिक नेता शनिवार को ब्रिटिश सांसद सर डेविड एमेस को श्रद्धांजलि देने के लिए एक साथ आए। इस आतंकवादी घटना के लिये बयानबाज़ियां न करते हुए एकजुट हो कर इस आतंकवादी हत्या के विरुद्ध खड़े दिखाई दिये।
सर डेविड एमेस के अंतिम संस्कार के लिये ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बॉरिस जॉन्सन, विपक्ष के नेता केयर स्टार्मर एवं संसद के स्पीकर लिंडसे हॉयल चर्च में साझी श्रद्धांजलि देने के लिये पहुंचे।
भारत में केवल दो ही ऐसी स्थितियां याद आती हैं जब सत्तारूड़ दल और विपक्ष साथ खड़े दिखाई दिये। दोनों ही मामलों में भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मौजूद थे। 1971 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ और बांग्लादेश का उदय हुआ तो विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी सरकार को विपक्ष का पूरा समर्थन दिया। दूसरा मौक़ा था भारत का पक्ष संयुक्त राष्ट्र में रखने के लिये तत्कालीन प्रधान मंत्री नरसिम्हा रॉव ने उस समय के विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेयी में विश्वास व्यक्त करते हुए उन्हें वहां भेजना। इसके अतिरिक्त हमें यही दिखाई देता है कि विपक्ष के अनुसार सत्तारूड़ दल कुछ ठीक कर ही नहीं सकता। बस सरकार गिराने का लगातार प्रयास जारी रहता है।
यह सोचने में भी डर लगता है कि भारत के टीवी चैनलों पर डिबेट चल रही है… संवित पात्रा, सुप्रिया श्रीनेत, अभय दुबे, सुरजेवाला, गौरव भाटिया, अनुराग भदौरिया, अजय आलोक, रिजु दत्ता, दिनेश वार्ष्णेय एक दूसरे पर कटाक्ष कर रहे हैं… कुछ एंकर चिल्ला रहे हैं… चिल्ल पौं मची है और मृतक की आत्मा समझ नहीं पा रही कि ये हो क्या रहा है…
यह हत्या बेहद दुखद है पर इसके विरोध में जिस तरह सत्ता और विपक्ष एक सुर में इसकी खिलाफत कर रहे हैं यह बेहद अच्छी बात है और वाकई इस मामले में भारत का लोकतंत्र त्रुटिपूर्ण है कि यहां विपक्ष का काम किसी भी मुद्दे में किसी भी तरह से सरकार का विरोध करना है, यह एक किस्म की अपने ही लोकतंत्र के प्रति बेवकूफी है क्योंकि लोकतंत्र का अर्थ हर बात पर विरोध या गाली देना नहीं होता
माननीय, पूरा पढ़ा। इस उत्तम संपादकीय के लिए बधाई।
अंतिम परिच्छेद पूरी कहानी कहता है। जब- जब कोई छोटी-बड़ी घटना घटती है और राजनीतिक प्रवक्ता चर्चा करने टीवी पर जुटते हैं, तब-तब उनकी कुकुर- झौं-झौं होती है। कोई सुनता नहीं। कोई ठीक से बोलने नहीं पाता। सब चिल्लाते हैं। दूसरे की बात श्रोता तक न पहुंच सके। सबका यही प्रयास रहता है। यही भारतीय प्रजातंत्र का असली चेहरा है।
गंवार, जाहिल, झगड़ालू, ईर्ष्यालु, आपराधिक, असहिष्णु, चरित्रहीन, दोगले, हत्यारे, बलवाई, गुंडे, दस नंबरी, तडी़पार, घोटालेबाज – यानी हर प्रकार के घटिया लोगों से भरा है भारतीय लोकतंत्र। कोई भला आदमी उधर जाता नहीं। काली कोठरी है राजनीति।
आपके पास बेइंतिहा धन है, बाहुबल है तो राजनीति में आए। वरना हमारी आपकी तरह जुमलों की जुगाली करे।
चुनाव आयोग कुछ कर सकता है। पहले तो दागी लोगों पर प्रतिबंध लगाए। दूसरे, यदि कोई शरीफ़ आदमी राजनीति में उतरकर चुनाव लड़ना चाहे तो उसे अनुदान दे। ऐसे हर प्रत्याशी का प्रचार सरकार करे।
और हां! हर जनप्रतिनिधि अपने चुनाव क्षेत्र में हर हफ्ते कैंप करके लोगों की खोज खबर ले। यहां तो भाई लोग अपने महलों में बैठकर बस बयान जारी करते हैं। आजमगढ़ के लोग अपने सांसद अखिलेश की गुमशुदगी के पोस्टर लिए उन्हें खोज रहे हैं। और अखिलेश, जिनकी पार्टी गुंडागर्दी के लिए कुख्यात है, वे लखनऊ सैफई में बैठकर सत्तासीन योगी को कोस रहे हैं। यह भारत की सार्वदलिक राजनीतिक प्रवृत्ति है।
इसकी तुलना ब्रिटेन से न करना ही श्रेयस्कर है। कहां सुसभ्य ब्रिटिश, कहां बर्बर भारतीय नेता!
इस तरह की हत्या दुःखद है, ईश्वर मृतात्मा को शान्ति दे। भारत में लोकतंत्र तो मज़ाक बन कर रह गया है। विपक्ष मात्र आलोचना के लिए आलोचना करता है, क्योंकि उनके पास और कोई काम ही नहीं रहता। विपक्ष का सबसे वीभत्स चेहरा कोरोना काल में दिखाई दिया, विपक्ष सिर्फ़ लाशें गिन रहा था, महामारी की स्थिति को और बिगाड़ रहा था। भारतीय विपक्ष लाशों पर सत्ता की रोटियाँ सेंकता है। काश भारतीय विपक्ष को भी कुछ सद्बुद्धि मिले। मीडिया का वर्णन बेहद जीवन्त है।
श्रद्धेय तेजेन्द्र शर्मा जी सादर नमस्कार।
हर बार की तरह इस बार भी संपादकीय में ब्रिटेन की नवीन चर्चित जानकारी प्राप्त हुई। ब्रिटिश सांसद की आतंकवादी हत्या का मामला पढ़कर यह लगता है की यदा-कदा वहां पर भी आतंकवादी हत्या कर आतंक फैलाने से नहीं
श्रद्धेय संपादक महोदय सादर नमस्कार ।
हर बार की तरह इस बार भी संपादकीय में नवीन अमानवीय दुर्घटना को पढ़कर ऐसा लगा कि ब्रिटेन जैसे देश में भी
आदरणीय संपादक महोदय सादर नमस्कार । संपादकीय पढ़कर ऐसा लगा कि ब्रिटेन जैसे सशक्त देश में भी
आदरणीय संपादक महोदय सादर नमस्कार। अंकवादी हत्या कर आतंक फैलाने से कहीं नहीं चूक रहे । बेहद दुखद और चिंता का विषय, परंतु साथ ही स्वच्छ लोकतंत्र की विशेषताओं के साथ ब्रिटेन की सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष संयुक्त रुप से इसकी निंदा व चिंता कर रहे हैं । वर्तमान सरकार पर दोषारोपण को परे रखकर आतंकवाद से निपटने की संयुक्त योजना है। अर्थात् वहां पर राजनीतिक दल केवल बहस बाजी में समय बर्बाद न कर समस्या के समाधान में समय व सहयोग
का उपयोग करते हैं। एक विकसित लोकतांत्रिक नागरिक मानसिकता का वास्तविक परिचय भी है। हमें भी अपने देश में इस श्रेष्ठ व्यवहारिक सोच का क्रियान्वयन करना होगा तभी समुन्नत होंगे।
हार्दिक धन्यवाद।
पर वैचारिक जागरूकता लाने की तथा उसके व्यवहारिक धरातल पर क्रियान्वयन की परम् आवश्यकता है।
बहुत दुःखद ख़बर… मुझे तो आपके संपादकीय पढ़कर लगता है वहां हादसे होने पर कुछ जरूर एक्शन्स लिए तो जाते हैं। जबकि भारत में हादसे की आड़ में सिर्फ़ राजनीति और बयानबाज़ी।…आपके लिए शुभकामनाएं
आदरणीय सर
हत्या एक अमानवीय कृत्य है, किसी के भी प्राण बहुमूल्य।लेकिंन इससे भी जघन्य अपराध है किसी के जाने पर पक्ष विपक्ष के माध्यम से राजनीति करना।दोषारोपण करना। भारत मे यही सबसे सुरक्षित अस्त्र समझा जाता है।हत्याओं पर राजनीति करना और आरोप प्रत्यऱोप के द्वारा चुनाव जीतना ।और सत्ता पर काबिज होते ही सब भूल जाना।
दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना।
पर एक बात अवश्य है सर आपके अति प्रभावी संपादकीय हंस की भांति दूध का दूध पानी का पानी कर देते है ।
साधुवाद आपको
सर डेविड की नृशंस हत्या के बारे में जानकर दु:ख हुआ। आम जनता के सुख-दु:ख की खोज ख़बर लेने वाला एक कुशल राजनीतिज्ञ यूँ सेंत मेंत में चला गया। उसके लिए सभी दलों का एकमत हो जाना श्लाघनीय है।
किन्तु भारत में इसकी उलट देखने को मिलती है जो कि सर्वथा दुर्भाग्यपूर्ण है। इस आवश्यक विषय पर आपके विचारपूर्ण व तथ्यपरक सम्पादकीय की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है।
उक्त घटनाक्रम से भारतीय राजनैतिक दल कुछ सबक़ लें तो यह सम्पादकीय एक मील का पत्थर साबित होगा।
यह हत्या बेहद दुखद है पर इसके विरोध में जिस तरह सत्ता और विपक्ष एक सुर में इसकी खिलाफत कर रहे हैं यह बेहद अच्छी बात है और वाकई इस मामले में भारत का लोकतंत्र त्रुटिपूर्ण है कि यहां विपक्ष का काम किसी भी मुद्दे में किसी भी तरह से सरकार का विरोध करना है, यह एक किस्म की अपने ही लोकतंत्र के प्रति बेवकूफी है क्योंकि लोकतंत्र का अर्थ हर बात पर विरोध या गाली देना नहीं होता
धन्यवाद आलोक.भाई। आपने सही कहा।
सही कहा, भारत का प्रजातन्त्र अभी उतना परिपक्व नहीं बुआ उसका मुख्य दोषी मीडिया और न्यायतंत्र है
सही कहा भाई सुरेश जी
माननीय, पूरा पढ़ा। इस उत्तम संपादकीय के लिए बधाई।
अंतिम परिच्छेद पूरी कहानी कहता है। जब- जब कोई छोटी-बड़ी घटना घटती है और राजनीतिक प्रवक्ता चर्चा करने टीवी पर जुटते हैं, तब-तब उनकी कुकुर- झौं-झौं होती है। कोई सुनता नहीं। कोई ठीक से बोलने नहीं पाता। सब चिल्लाते हैं। दूसरे की बात श्रोता तक न पहुंच सके। सबका यही प्रयास रहता है। यही भारतीय प्रजातंत्र का असली चेहरा है।
गंवार, जाहिल, झगड़ालू, ईर्ष्यालु, आपराधिक, असहिष्णु, चरित्रहीन, दोगले, हत्यारे, बलवाई, गुंडे, दस नंबरी, तडी़पार, घोटालेबाज – यानी हर प्रकार के घटिया लोगों से भरा है भारतीय लोकतंत्र। कोई भला आदमी उधर जाता नहीं। काली कोठरी है राजनीति।
आपके पास बेइंतिहा धन है, बाहुबल है तो राजनीति में आए। वरना हमारी आपकी तरह जुमलों की जुगाली करे।
चुनाव आयोग कुछ कर सकता है। पहले तो दागी लोगों पर प्रतिबंध लगाए। दूसरे, यदि कोई शरीफ़ आदमी राजनीति में उतरकर चुनाव लड़ना चाहे तो उसे अनुदान दे। ऐसे हर प्रत्याशी का प्रचार सरकार करे।
और हां! हर जनप्रतिनिधि अपने चुनाव क्षेत्र में हर हफ्ते कैंप करके लोगों की खोज खबर ले। यहां तो भाई लोग अपने महलों में बैठकर बस बयान जारी करते हैं। आजमगढ़ के लोग अपने सांसद अखिलेश की गुमशुदगी के पोस्टर लिए उन्हें खोज रहे हैं। और अखिलेश, जिनकी पार्टी गुंडागर्दी के लिए कुख्यात है, वे लखनऊ सैफई में बैठकर सत्तासीन योगी को कोस रहे हैं। यह भारत की सार्वदलिक राजनीतिक प्रवृत्ति है।
इसकी तुलना ब्रिटेन से न करना ही श्रेयस्कर है। कहां सुसभ्य ब्रिटिश, कहां बर्बर भारतीय नेता!
भाई सिंह साहब, भारतीय राजनीतिज्ञों पर आपकी टिप्पणी गंभीरता से सोचने को प्रेरित करती है।
आपकी चिंता व चिंतन जायज है। लोकतंत्र की सफलता के लिए विपक्ष की मानसिकता, कार्य शैली मे बदलाव अतिआवश्यक है।
धन्यवाद महेश भाई।
Dear Tejinderji – a sincere analysis. Excellent article! Thank
Thanks Guhare Ji. I feel so happy that you approved of it.
सर डेविड ऐमस जैसे लोकप्रिय व्यक्ति की हत्या का समाचार दुखद है, उन्हें श्रधांजलि ।
DrPrabha mishra
सर डेविड की आत्मा को शांति मिले।
As always your editorial gives food for thought
Thanks so much Kathy
इस तरह की हत्या दुःखद है, ईश्वर मृतात्मा को शान्ति दे। भारत में लोकतंत्र तो मज़ाक बन कर रह गया है। विपक्ष मात्र आलोचना के लिए आलोचना करता है, क्योंकि उनके पास और कोई काम ही नहीं रहता। विपक्ष का सबसे वीभत्स चेहरा कोरोना काल में दिखाई दिया, विपक्ष सिर्फ़ लाशें गिन रहा था, महामारी की स्थिति को और बिगाड़ रहा था। भारतीय विपक्ष लाशों पर सत्ता की रोटियाँ सेंकता है। काश भारतीय विपक्ष को भी कुछ सद्बुद्धि मिले। मीडिया का वर्णन बेहद जीवन्त है।
श्रद्धेय तेजेन्द्र शर्मा जी सादर नमस्कार।
हर बार की तरह इस बार भी संपादकीय में ब्रिटेन की नवीन चर्चित जानकारी प्राप्त हुई। ब्रिटिश सांसद की आतंकवादी हत्या का मामला पढ़कर यह लगता है की यदा-कदा वहां पर भी आतंकवादी हत्या कर आतंक फैलाने से नहीं
श्रद्धेय संपादक महोदय सादर नमस्कार ।
हर बार की तरह इस बार भी संपादकीय में नवीन अमानवीय दुर्घटना को पढ़कर ऐसा लगा कि ब्रिटेन जैसे देश में भी
आदरणीय संपादक महोदय सादर नमस्कार । संपादकीय पढ़कर ऐसा लगा कि ब्रिटेन जैसे सशक्त देश में भी
आदरणीय संपादक महोदय सादर नमस्कार। अंकवादी हत्या कर आतंक फैलाने से कहीं नहीं चूक रहे । बेहद दुखद और चिंता का विषय, परंतु साथ ही स्वच्छ लोकतंत्र की विशेषताओं के साथ ब्रिटेन की सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष संयुक्त रुप से इसकी निंदा व चिंता कर रहे हैं । वर्तमान सरकार पर दोषारोपण को परे रखकर आतंकवाद से निपटने की संयुक्त योजना है। अर्थात् वहां पर राजनीतिक दल केवल बहस बाजी में समय बर्बाद न कर समस्या के समाधान में समय व सहयोग
का उपयोग करते हैं। एक विकसित लोकतांत्रिक नागरिक मानसिकता का वास्तविक परिचय भी है। हमें भी अपने देश में इस श्रेष्ठ व्यवहारिक सोच का क्रियान्वयन करना होगा तभी समुन्नत होंगे।
हार्दिक धन्यवाद।
पर वैचारिक जागरूकता लाने की तथा उसके व्यवहारिक धरातल पर क्रियान्वयन की परम् आवश्यकता है।
क्षमा जी इस विस्तृत टिप्पणी के लिये हार्दिक धन्यवाद
शैली जी आपकी बात से सहमत।
बहुत दुःखद ख़बर… मुझे तो आपके संपादकीय पढ़कर लगता है वहां हादसे होने पर कुछ जरूर एक्शन्स लिए तो जाते हैं। जबकि भारत में हादसे की आड़ में सिर्फ़ राजनीति और बयानबाज़ी।…आपके लिए शुभकामनाएं
जी प्रगति जी, आप का कहना बिल्कुल सही है…
आदरणीय सर
हत्या एक अमानवीय कृत्य है, किसी के भी प्राण बहुमूल्य।लेकिंन इससे भी जघन्य अपराध है किसी के जाने पर पक्ष विपक्ष के माध्यम से राजनीति करना।दोषारोपण करना। भारत मे यही सबसे सुरक्षित अस्त्र समझा जाता है।हत्याओं पर राजनीति करना और आरोप प्रत्यऱोप के द्वारा चुनाव जीतना ।और सत्ता पर काबिज होते ही सब भूल जाना।
दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना।
पर एक बात अवश्य है सर आपके अति प्रभावी संपादकीय हंस की भांति दूध का दूध पानी का पानी कर देते है ।
साधुवाद आपको
शिप्रा आपकी टिप्पणी बेहतरीन है।
सच्चे लोकतंत्र की नसीहत हे आपकी संपादकीय।
सर डेविड की नृशंस हत्या के बारे में जानकर दु:ख हुआ। आम जनता के सुख-दु:ख की खोज ख़बर लेने वाला एक कुशल राजनीतिज्ञ यूँ सेंत मेंत में चला गया। उसके लिए सभी दलों का एकमत हो जाना श्लाघनीय है।
किन्तु भारत में इसकी उलट देखने को मिलती है जो कि सर्वथा दुर्भाग्यपूर्ण है। इस आवश्यक विषय पर आपके विचारपूर्ण व तथ्यपरक सम्पादकीय की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है।
उक्त घटनाक्रम से भारतीय राजनैतिक दल कुछ सबक़ लें तो यह सम्पादकीय एक मील का पत्थर साबित होगा।