अमेजॉन प्राइम वीडियो पर 28 मई से वेब सीरीज़पंचायत का सीज़न3 अब देखा जा रहा है। इस वेब सीरीज़के दोनों सीज़नदर्शकों द्वारा देखे और सराहे गए हैं। फुलेरा ग्राम पंचायत के आसपास, ग्रामीण जीवन का ताना-बाना को बुना गया है। दीपक मिश्रा के निर्देशन में यह सीरीज़ , हर सीज़नमें इंद्रधनुष के किसी एक रंग को प्रमुखता से दर्शाती है।
इस सीरीज़के मुख्य मुख्य पात्रों में नीना गुप्ता, रघुवीर यादव, जितेंद्र शर्मा,चंदन रॉय, फ़ैज़ल मलिक, सुनीता राजवार के अतिरिक्त, गुस्सैल विधायक के रूप में पंकज झा और ख़ुराफाती भूषण के रूप में दुर्गेश कुमार ने भी अपने अभिनय की छटा बिखेरी है।
निर्देशक दीपक मिश्रा की यह ख़ासियत रही है कि, उन्होंने किसी भी पात्र की भूमिका को न तो टाइप्ड होने दिया है, ना ही ओवर-एक्टिंग का शिकार और ना ही दर्शकों को आसानी से कयास लगाने का अधिकार!?, यही खूबी है निर्देशन की;कि वहकिरदार और उस पर फ़ोकस को बदलते रहें। ताकि कहानी में नवीनता बनी रहे। जहां पिछले दो सीज़नमें जहां जितेंद्र कुमार,रघुवीर यादव और नीना गुप्ता पर पर फ़ोकस था। वहीं अब इस सीज़न3 के दूसरे पात्रोंपर भी फ़ोकस किया गया है। जिससे दर्शकों की रुचि और कहानी की गुणवत्ता तथा गति पर भी असर पड़ा है।
सीज़न2 का अंत, दुखांत रहा। इधर सीज़न3 की शुरुआत भी, ठीक सीज़न2 की उदासी सेहुई। ग्रामीण जीवन में राजनीति और उसकी वीभत्सता और भयावहता का अहसास, बेहद सच्चाई, परंतु मनोरंजन के तड़के के साथ दिया गया है।
आठ एपिसोड की सीरीज़ , शुरू में थोड़ी धीमी गति से चलती है। उप-प्रधान प्रह्लाद और शहीद के पिता की ग़मगीन हालात को बखूबी प्रस्तुत किया है। पिछले सीज़नसे घटनाओं को जोड़ते हुए, यह दर्शकों को ग्रामीण जीवन के अंदर झांकने का नायाब मौका देता है। सरकारी योजनाओं की झलक और उसमें हुई हेराफेरी की बानगी, बड़े ही व्यंग्यात्मक शैली में सहज ही दर्शकों को आकर्षित तो करेगी ही साथ ही साथ गुदगुदाएगी भी। प्रधानमंत्री आवास योजना को सब-प्लॉट में पेश कर भ्रष्टाचार पर सीधे-सीधे चोट की है।
कहानी के सारे पात्र, अपने-अपने रोल में ठीक-ठाक नज़र आये। पंचायत सीज़न3 में भी जितेंद्र कुमार अपने रोल में बेहद संवेदनशील युवा के रूप में जमें हैं, वही मंजे हुए पॉलिटिशियन के रूप में, प्रधान जी और नीना गुप्ता इस पूरी सीरीज़में कद्दावर किरदारों के रूप में नज़र आते हैं। इनकी नोक-झोंक और लड़ाई भी सीरीज़में स्वाभाविक अभिनय की बानगी को प्रस्तुत करती है। ‘चंदन राय’ ने ‘विकास कुमार’ के रोल में, अपनी छाप तीनों सीज़नमें छोड़ी है।
इस सीरीज़का एक अन्य पात्र, ‘प्रहलाद’यानी ‘फ़ैज़ल मलिक’, इमोशनल अंदाज़ की रस्सी पर सीधे चले नहीं वरन दौड़े हैं। ‘विनोद’ यानी ‘अशोक पाठक’ अपनी भूमिका में उभर कर सामने आए हैं। ‘आभा शर्मा’ ने भी अपनी छोटी सी भूमिका में एक अलग छाप छोड़ी है। खलनायिका नहीं तो एक मौकापरस्त महिला के रोल में ‘क्रांति देवी’ यानी ‘सुनीता राजवार’ सीरीज़को आगे बढ़ाने में काफी प्रभावी साबित हुई हैं। हाल ही में यह सपोर्टिंग एक्टर, अपनी साफगोई और कांस फिल्म फेस्टिवल के कारण प्रकाश में आयीं। ‘रिंकी’ यानी ‘सांविका’ कहीं से भी लव स्टोरी में फिट नहीं बैठती हैं ना तो चेहरे मोहरे से और ना ही मुखिया की लड़की के अभिनय से; इस कलाकार को अभी बेहद मेहनत की ज़रूरत है। चंदन कुमार के लेखन में स्थानीय मुद्दों की पकड़ मजबूत है और उतना ही न्यायपूर्ण निर्देशन दीपक कुमार मिश्रा जी ने किया है। उन्होंने इतनी बड़ी कास्ट को बखूबी संभाला ही नहीं वरन सभी को भूमिकानुसार स्क्रीन टाइम दिया है; जो इस सीरीज़के भविष्य के लिए अच्छा संकेत है। फ़ोटोग्राफ़ी में अभिताभ सिंह ने, समुचित प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। सीरीज़का संगीत सम यथोचित और आनंददायक है।
पूरी सीरीज़में ग्रामीण अंदाज़ का स्वाभाविक और सीधा सादा मनोरंजन; व्यंग्य के तड़के के साथ, आपको गुदगुदाता ही नहीं वरन ज़ोर-ज़ोर से हँसाता भी है।
जैसा की पहले लिखा जा चुका है कि, आरंभ के चार एपिसोड इस सीरीज़की नींवसे लगते हैं। पांचवें एपिसोड से ट्विस्ट और टर्न की शुरुआत होती है; जो आठवें एपिसोड तक चलती है। प्रधान जी और उनकी टीम का ड्रामा, गुस्सैल विधायक के लटके-झटके, अपने रंग में आते हैं। घोड़े वापस पाने का, ‘प्रतिष्ठा का प्रश्न’, कड़वी भयावह सच्चाई, दबंगई, हिंसा का ट्रेलर है। उसमें भी व्यंग्य का पुट दर्शकों के कौतूहल को बढ़ाता है। ‘शांति समझौता दिवस’ प्रकरण में कबूतर का उड़ाया जाना और फिर उसका मर जाना, एक सटीक व्यंग्य है। कहीं-कहीं तो ‘मिर्जापुर’ का अक्स भी दिखाई पड़ता है। सीधी-सादी पंचायत, उसमें हिंसा और राजनीति का घाल-मेल, फिर ग्राम प्रधान को कंधे में गोली लगना; अस्पताल में सीरीज़के, ‘हीरो नुमा पात्र जितेंद्र’ के साथ प्रहलाद,चंदन एवं अन्य, विधायक की गुंडई टीम के साथ, आमने-सामने की लड़ाई; सन् 2021 में, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत में हुए ‘चाट युद्ध’ के मंज़र को; पुनः प्रस्तुतकरती हुई लगती है। उपप्रधान, ‘प्रह्लाद’ इसमें बागपत चाट युद्ध के, लंबे बालों वाले बाबा से लगते हैं। यह एपिसोड रील और रियल की दूरी को पाटता सा लगता है। इसे हम सीरीज़का क्लाइमैक्स एपिसोड भी कह सकते हैं।
दीपक कुमार मिश्रा और चंदन कुमार की जुगलबंदी यानी कंटेंट और कुशल निर्देशन और शेष टीम का शानदार प्रदर्शन इस; गारंटी के दौर में, फुलेरा गांव के जीवन के माध्यम से मस्ती, कॉमेडी, एक्शन, ट्विस्ट और राजनीति का दमदार और शानदार कॉकटेल प्रस्तुत करता है और दर्शक इसे बार-बार देखना पसंद करेंगें।
आदरणीय सूर्यकांत जी!
हम टीवी नहीं देखते हैं किंतु हमने मायके में पंचायत का पहला भाग पिछले साल देखा था।
इस बार दूसरा देखना शुरू किया लेकिन पूरा नहीं देख पाए, आखिरी एपिसोड बच गया था। अभी जून के लास्ट में जाएंगे तो तीसरा भाग भी देख लेंगे।
वाकई बहुत अच्छा लगा।
आपने अच्छी समीक्षा की है।
आदरणीय सूर्यकांत जी!
हम टीवी नहीं देखते हैं किंतु हमने मायके में पंचायत का पहला भाग पिछले साल देखा था।
इस बार दूसरा देखना शुरू किया लेकिन पूरा नहीं देख पाए, आखिरी एपिसोड बच गया था। अभी जून के लास्ट में जाएंगे तो तीसरा भाग भी देख लेंगे।
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