Saturday, July 27, 2024
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अरुण अर्णव खरे की कहानी – चिलिंग सेंटर

लंबे इंतजार के बाद दिनकर की जिंदगी में खुशी का पल आया था | इंटरव्यू दे देकर वह थक चला था | उसे लगने लगा था कि उसमें नौकरी पाने की काबिलियत नहीं है | वह स्वयं को घरवालों पर बोझ समझने लगा था | उसने मन बना लिया था कि अब वह किसी नौकरी के लिए आवेदन नहीं देगा | उसके लिए इंटरव्यू में “पिछले दो सालों में क्या करते रहे” जैसे प्रश्नों का उत्तर दे पाना कठिन होता जा रहा था | पर तथाकथित आखिरी प्रयास में वह सफल हो गया | दीर्घ-प्रतीक्षित पहली नौकरी पाकर सातवें आसमान पर था वह .. मन में दफन हो चुके सपनों की साँसें लौट आईं थी, सुप्त भावनाएँ हिलोरें लेने लगीं थी, कुम्हलाए अरमानों में नए अंकुर फूटने लगे थे | परिवार के प्रति कर्तव्यबोध की बाती फिर से दिल में प्रज्जवलित हो उठी थी | वह अब अम्मा-बाबू जी को वह हर सुख सुविधा देने का प्रयत्न करेगा जिससे वे लोग अभी तक वंचित रहे आए हैं | उसे पढ़ाने में बहुत कष्ट सहे हैं उनने | बेरोजगारी के दिनों में भी वे हमेशा दिलासा देते रहे हैं, कभी भी उसकी लगातार असफलताओं के लिए दोषी नहीं ठहराया | उन्हीं के भरोसे की बदौलत ही वह कामयाबी पा सका है | ऐसी कितनी ही कोमल भावनाएँ दिल में संजो कर वह अपनी पहली नौकरी का नियुक्ति-पत्र लेकर रतनगढ़ पहुँचा था |
अगले दिन दिनकर ने अपनी ज्वाइनिंग रिपोर्ट चिलिंग सेंटर के मैनेजर वासुदेव पाठक को दी तो उन्होंने बहुत गर्मजोशी से उससे हाथ मिलाया और नई नौकरी की शुभकामनाएँ दी | पहले ऑफिस के लोगों से परिचय कराया और फिर शिफ़्ट इंचार्ज आशुतोष सिकरवार के साथ पूरे प्लांट की कार्यप्रणाली समझाई | इसके बाद उन्होंने कुछ सावधानियाँ बरतने तथा दुग्ध उत्पादों की वितरण प्रणाली के बारे में जानकारी दी |
दिनकर को चिलिंग सेंटर में काम करते हुए एक माह हो गया था | जो कुछ सोच कर आया था उससे अलग बहुत कुछ घट गया था इस बीच | क्या-क्या करना पड़ गया था उसे ? उसकी जिंदगी और सोच की दिशा ही बदल गई थी | कितना मुश्किल है नौकरी में रम पाना ? अपनी नौकरी के दिनों में, पापा हमेशा चिंतित क्यों दिखते थे, समझ में आने लगा था उसे | तीस दिनों में ही उसकी सारी धारणाएँ, सारी मान्यताएँ ध्वस्त हो गईं थी .. ईमानदारी, सच्चाई और निष्ठा की बातें व्यर्थ लगने लगीं थी | उसे समझ में आ गया था कि ये सब किताबी ज्ञान की बातें हैं, व्यवहारिकता में कोई भी इनको तवज्जो नहीं देता | भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हैं ? भ्रष्ट लोग बहुत बलशाली हैं ?  सोच कर दिल दहलने लगता है उसका | उसने महसूस किया है कि सिस्टम से बाहर जाकर जो भी अपनी राह बनाने की कोशिश करता है, सब उसके विरुद्ध हो जाते हैं, उसको नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते | 
महाजन सर का यह कथन – “जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए प्रैक्टिकल होना बहुत जरूरी है” दिनकर को बहुत याद आने लगा है इन दिनों | पहले वह इसे एक शिक्षक की साधारण सीख ही समझता था | इसमें छुपे गूढ़ अर्थ की ओर कभी उसका ध्यान नहीं गया था | अब लगता है कितने पते की बात कही थी उन्होंने, कितनी सार्थक सीख थी यह ? दिनकर जब भी फुरसत में होता है पिछली बातें याद आने लगती हैं | पहले दिन का घटनाक्रम भी कम अप्रत्याशित नहीं था | बहुत गर्मजोशी से स्वागत करने और संजीदगी से कार्यक्षेत्र के बारे में जानकारी देने के बाद पाठक जी ने शाम होते-होते उसे नाइट शिफ्ट के इंचार्ज के रूप में कार्य करने का आदेश थमा दिया गया था | आदेश देख कर उसका सिर घूम गया था | पहली-पहली नौकरी, नया प्लांट, नई तकनीक, कार्य का कोई पूर्व अनुभव नहीं और ये जिम्मेदारी | आदेश पढ़ते ही उसे रवि अंकल याद आ गए थे | नियुक्ति पत्र लेकर वह उनसे मिलने गया था, तब उन्होंने उसे समझाते हुए कहा था – “बेटा, तुम तो मैकेनिकल इंजीनियर हो, डेरी की नौकरी क्यों करना चाह रहे हो .. डेरियों का वातावरण अच्छा नहीं है, तुम्हें बहुत संभल कर काम करने की जरूरत होगी | वहाँ डेरी टेक्नॉलॉजिस्ट की ही चलती है .. सारे मैनेजर भी डेरी बैकग्राउंड वाले ही होते हैं .. इंजीनियरिंग वालों को मौका ही नहीं मिलता ऊपर तक जाने का | तुम्हें भी जल्दी सब समझ में आ जाएगा | मेरी मानो तो जितनी जल्दी हो सके तुम दूसरी नौकरी ढूँढ़ लेना |” उस समय उसे रवि अंकल की बात सुनकर बहुत दुख पहुँचा था उसे | रवि अंकल डेरी से सीनियर प्लांट सुप्रिंटेंडेंट के पद से रिटायर हुए थे | वह पापा के क्लासमेट थे, उन्हें कैसे बताता कि इस नौकरी का उसके लिए क्या महत्व है .. कितनी मुश्किल से मिली है उसे यह नौकरी | आज के समय में नौकरी पाना और बदलना बच्चों का कोई खेल है क्या ? पिछले दो सालों से वह नौकरी के लिए पापड़ बेल रहा था तब कहीं जाकर उसकी मुराद पूरी हुई है .. उसको शुभकामनाएँ देना तो दूर, अंकल उल्टा उसे डरा रहे हैं | अंकल की बात याद कर वह परेशान हो ही रहा था कि मैनेजर पाठक की आवाज ने उसकी एकाग्रता भंग कर दी – “मि. दिनकर, डोंट वरी .. मैं आपके असमंजस को समझ रहा हूँ लेकिन परेशान होने की कोई बात नहीं है | आप मैकेनिकल इंजीनियर हैं, प्लांट की मशीनरी को आप हमसे बेहतर तरीके से समझ सकते हैं | मैंने आशुतोष को समझा दिया है | वह एक सप्ताह तक नाइट शिफ्ट में आपके साथ ड्यूटी करेंगे | दिन की शिफ्ट का काम मैं देख लिया करूँगा |”
दिनकर ने सुनकर कुछ रिलेक्स्ड महसूस किया | चार दिनों में उसने प्लांट की कार्य प्रणाली काफी कुछ समझ ली | स्टाफ से भी उसका परिचय हो गया था | चार दिनों में ही उसे एहसास हो गया था कि नौकरी करना बहुत जिम्मेदारी वाला काम है | उसे खुद को प्रूव करने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी | नौकरी ज्वाइन करने के पहले अफसरी के जो सपने सँजोए थे, उनके लिए यहाँ कोई जगह नहीं है, यहाँ का काम बिल्कुल अलग तरह का है, उसे एहसास हो चला था | सोसायटीज से दूध के कंटेनर आने, उन्हें चेक करने से लेकर समय पर दूध की सप्लाय सुनिश्चित करने तक बहुत सारी जिम्मेदारियाँ उसके कंधों पर आ गई थी | प्लांट का इंडिपेंडेंट चार्ज संभालने के बाद, पहले ही दिन बॉयलर ऑपरेटर यासीन से उसका पंगा हो गया था | यासीन समय पर उपस्थित नहीं हुआ तो उसने उसके नाम के आगे क्रास लगा दिया था | यासीन की अनुपस्थिति में प्लांट ऑपरेटर सुमेर सिंह ने बॉयलर चालू कर लिया था | यासीन के आने से पहले ही अधिकांश कंटेनर्स को स्टीम वॉश भी कर लिया गया था | यासीन आया उसने रजिस्टर में दस्तखत किए और उसके सामने से एक भद्दी सी गाली देते हुए चला गया | उस समय वह केमिस्ट से दूध में कितना मिल्क पॉवडर मिलाया जाना है, की जानकारी ले रहा था | उसने यासीन को गाली देते हुए सुन तो लिया था लेकिन उस समय अनसुना करना ही उसे बेहतर लगा | फ्री होने पर उसने यासीन के दस्तखत के नीचे उसके आने का समय अंकित कर दिया और मैनेजर के लिए एक नोट छोड़ दिया | पहले ही दिन उसे रवि अंकल की बात याद आ गई कि डेरी का माहौल अच्छा नहीं है, गंदे किस्म की नेतागिरी है वहाँ .. उसे रोज ही कई परीक्षाओं से गुजरना होगा |
इस घटना को चार दिन हो गए | यासीन भी समय पर आने-जाने लगा था, लेकिन उसके लिए चुनौतियों की कमी नहीं थी | उस दिन वह रात को तीन बजे अचानक ही अपने चैंबर से निकल कर प्लांट की ओर चला आया था | वह विभिन्न मीटर्स की रीडिंग देख कर लौट रहा था कि उसकी नजर रामरतन, सियाचरन, मनसुख और जग्गी पर पड़ी जो जग में दूध लेकर पी रहे थे | देख कर उसका पारा चढ़ गया, उसने चारों को फटकार लगा दी | अगली बार गलती करने पर दूध का पैसा उनके वेतन से वसूल करने की चेतावनी भी दे दी | यासीन पास ही खड़ा यह सब देख रहा था | चलते चलते उसके कानों में यासीन की आवाज पड़ी – “नया-नया मुल्ला बना है ज्यादा प्याज खाएगा ही | अरे कुछ नहीं होगा, तुम लोग अपना काम करो .. ऐसी घुड़कियों से बिल्ली भी नहीं डरती .. अब तक कितने ही ऐसे अफसर निकाल दिए हैं नीचे से” 
दिनकर के तन-बदन में आग लग गई लेकिन वह कुछ सोचकर चुप रहा आया | अगले दिन फिर उसके सामने विकट स्थिति उत्पन्न हो गई | वह केमिस्ट अजीत सक्सेना के रजिस्टर के पन्ने पलट रहा था, जिसमें वह प्रतिदिन सोसायटीवार आनेवाले दूध का फैट परसंटेज और मात्रा दर्ज करता था | अचानक एक इंट्री पर उसकी नजरें ठिठक गईं | उसे गड़बड़ी की आशंका हुई | कल ही उसके सामने रायला मंडल और फुलबाड़ी धेनु समिति सोसायटीज से आने वाले दूध की जाँच सक्सेना ने की थी | रजिस्टर में दर्ज और उसके सामने जाँच में पाए गए फैट की मात्रा में आधा किलो का अंतर था | स्पष्ट था सक्सेना द्वारा सोसायटीज को लाभ पहुँचाने के लिए उनका फैट परसंटेज बढ़ाकर अंकित किया जा रहा था | उसे मिल्क पॉवडर के रजिस्टर में भी गफलतबाजी लगी .. हर दिन 40-50 किलो पॉवडर की खपत अधिक दर्शाई जा रही थी | सक्सेना से पूछा तो उसने हँसकर टालने की कोशिश की | जब उसके विरुद्ध कार्यवाही करने की धमकी दी तो वह उल्टा उसके काम में दखल न देने की सीख देने लगा | उसने रात में ही मैनेजर के नाम पूरा विवरण लिखते हुए सक्सेना के विरुद्ध उचित कार्यवाही करने के लिए एक पत्र लिख डाला | उसे उम्मीद थी कि मैनेजर जरूर उचित कार्यवाही करेंगे पर तीन दिन बाद भी मैनेजर ने कोई कार्यवाही नहीं की | उसे आशंका हुई कि इस काम में मैनेजर की भी मिली-भगत हो सकती है |   
अगले दिन दोपहर को, जब वह लंच करने के उपरांत आराम करने की तैयारी में था, साबूलाल सेन उससे मिलने आ गया | साबूलाल उसकी शिफ्ट का सबसे पुराना कर्मचारी था | वह ज्यादा पढ़ा लिखा तो नहीं था लेकिन प्लांट से संबंधित सारी जानकारी उसे थी | वह समय से पहले ही प्लांट पर आ जाता और अपना काम पूरी जिम्मेदारी से करता था | 
“अचानक कैसे आना हुआ साबूलाल” – दिनकर ने पलंग पर बैठते हुए पूछा |
“साब, आपसे एक बात कहनी है”- साबूलाल दबी जुबान से बोला |
“हाँ, साबू बोलो”
“साब, आप यासीन .. सक्सेना जैसे लोगों के बीच में मत पड़ा कीजिए ..”
“मैं कहाँ उनके बीच में पड़ता हूँ .. वही लोग मेरे और काम के बीच में आ जाते हैं |”
“छोटे मुँह बड़ी बात, आप मेरी बात का मतलब समझने की कोशिश कीजिए” – साबूलाल झिझकते हुए बोला |
“साबू, प्लांट अच्छे से काम करे, सभी काम ईमानदारी से हों, सारे रिकॉर्ड सही रखे जाएँ .. ये सब देखना मेरी जिम्मेदारी है | मैं नहीं देखूँगा तो फिर कौन देखेगा ? मेरा काम ही क्या है ? मैं तो केवल अनुशासन में रहकर सही ढंग से काम करने के लिए कहता हूँ” – दिनकर ने साबूलाल को समझाने की कोशिश की |
“साब, मैं यह सब नहीं जानता .. पहले भी प्लांट में काम होता था, इसी तरह होता था, वैसा ही अब भी हो रहा है .. कुछ भी नहीं बदला है | सभी लोग पुराने हैं, केवल आप ही नए हैं | आप मुझे अच्छे लगे इसलिए आपसे कहने चला आया | आप समझदार हैं, बस आप मेरी इतनी बात मान लीजिए .. कुछ दिनों में आपको सब पता चल जाएगा” – साबू इतना कहकर चला गया लेकिन दिनकर को अनेक अनसुलझे सवालों के बीच छोड़ गया |
अगले दिन फिर नई मुसीबत से दिनकर का सामना हो गया | जिन दो टैंकरों से प्रतिदिन तीन-तीन हजार लीटर दूध दिल्ली भेजा जाता था, उनमें उसे पाँच सौ लीटर दूध का एक गुप्त चैंबर मिला था, यानि प्रत्येक टैंकर में तीन हजार के स्थान पर साढ़े तीन हजार लीटर दूध भरा जा रहा था | मतलब हर दिन एक हजार लीटर दूध का गोलमाल किया जा रहा था | रिकॉर्ड बुक्स में यह गड़बड़ी प्लांट की पाइप लाइन में डेड स्टोरेज और वैस्टेज के रूप में दर्शाई जाती थी | उस दिन उसने कोई हंगामा नहीं किया और चुपचाप फोन पर मैनेजर को सब कुछ बता दिया | मैनेजर ने सब ध्यान से सुना और फिलहाल टैंकर को जाने देने के लिए कहा | उस समय उसने टैंकर को जाने दिया लेकिन रिकॉर्ड बुक में टैंकर का पुन: फिजिकल वेरिफिकेशन कराए जाने का नोट लगा दिया | अगले दिन वह मैनेजर के बुलावे का इंतजार करता रहा | उसका मानना था कि इतनी बड़ी चोरी पकड़ कर उसने बहुत बड़ा काम किया है | वह प्रशंसा का हकदार है | पर शाम तक मैनेजर की ओर से कोई संदेश नहीं मिला और न ही टैंकर मालिक पर किसी एक्शन की जानकारी प्राप्त हुई | उसे विश्वास हो चला कि मैनेजर की ईमानदारी दिखावा मात्र है ? वह भी सबसे मिला हुआ है और खूब गोलमाल कर रहा है ?
शाम को प्लांट पर जाने से पूर्व साबू पुन: उससे मिलने आ गया | उसने आते ही कहा – “साब आपने मेरी बात नहीं मानी न, .. आप सबसे अकेले कैसे लड़ पाएँगे ? आप किसी दिन बड़ी मुसीबत में फँस जाएँगे ?”
“साबू, तुम्हीं बताओ, मै क्या करुँ .. प्लांट में इतनी गड़बड़ी चल रही है, उसको देख कर मैं कैसे चुप बैठ जाऊँ, मेरी समझ में कुछ नहीं आता .. तुम मुझे मुसीबत से बचाना तो चाहते हो पर मैं किससे मदद लूँ ..” दिनकर की विवशता उसके स्वर में झलक रही थी |
“आपकी कोई मदद नहीं करेगा यहाँ .. मैं एक अदना सा कर्मचारी .. मेरे हाथ में कुछ नहीं है | क्या आपको पता है, आपने आज जिन टैंकर की रिपोर्ट की है, वे किनके हैं ?”
“किनके हैं ..”
“चेयरमैन भैरूलाल गौतम के साले केशव राम के .. सबको पता है कि टैंकर में ज्यादा दूध जा रहा है पर किसी ने कभी कुछ नहीं किया | यासीन गौतम जी का आदमी है | यासीन के भाई ने पिछले चुनाव में भैरूलाल के कहने पर किसी को ठिकाने लगाया था तबसे वह जेल में है | यासीन भी पिछले मैनेजर से मारपीट के चक्कर में सस्पैंड हुआ था, पर एक हफ़्ते में ही बहाल हो गया और मैनेजर का ट्रांसफर कर दिया गया | सक्सेना यासीन का पिछलग्गू है | आप कैसे पार पाएँगे ऐसे लोगों से ? आपको कुछ हो गया तो क्या बीतेगी आपके घर वालों पर ? जैसे आशुतोष बाबू आँख बंद करके रखते हैं आप भी तो वैसा कर सकते हैं ..”
उस रात दिनकर अपने चैंबर में ही अनमना सा बैठा रहा, न उसने सक्सेना से कुछ पूछा और न प्लांट की ओर गया | सुबह दिल्ली जाने वाले दूसरे टैंकर आए थे | यह देखकर वह अंदर ही अंदर खुश तो बहुत हुआ पर खुशी के भाव चेहरे पर नहीं आने दिए | वह निर्विकार बना रहा | उसने टैंकर में भी कोई रुचि नहीं दिखाई | सुमेर सिंह ने रोज की तरह उनमें दूध भरा और गेटपास देकर रवाना किया | दो दिन ऐसे ही बीत गए |
दोपहर को जब दिनकर लंच लेकर होटल से लौट रहा था कि मैनेजर का संदेश आया, तुरंत ऑफिस आइए | मैनेजर बहुत गुस्से में था, उसे देखते ही फट पड़ा – “आप ऐसे काम करेंगे .. पूरी तरह आँख बंद करके प्लांट चलाएँगे .. पता भी है क्या हुआ है आपकी शिफ्ट में ..”
दिनकर हक्का-बक्का था | शब्द उसके गले में अटक गए थे | मैनेजर ने बात चालू रखी – “सुबह से दूध फटने की शिकायतें आ रहीं हैं | पूरा तीस हजार लीटर दूध आपकी लापरवाही की भेंट चढ़ गया | लाखों के इस नुकसान की भरपाई कौन करेगा ? आपकी नौकरी जाएगी सो जाएगी .. हमारे लिए भी मुसीबत खड़ी कर दी आपने” 
दिनकर को काटो तो खून नहीं | शोकॉज नोटिस मिल गया उसे | कई दिनों तक वह विक्षिप्त सा रहा आया | क्या करे वह ? नौकरी को बाय-बाय कह दे, पर क्या गॉरंटी है कि उसे जल्द ही दूसरी नौकरी मिल जाएगी ? क्या नई नौकरी में उसे चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ेगा ? उसकी नौकरी लगने से घर में सब कितने खुश थे .. पापा ने कितनी मुश्किल से लोन लेकर उसे पढ़ाया था ? दो साल से वही लोन की किश्त भर रहे थे, अब उसे मौका मिला है पापा का हाथ बँटाने का तो वह भाग जाना चाहता है ? और लोग भी तो नौकरी कर रहे हैं .. वह अकेला नहीं है नौकरी करने वाला .. क्यों सबके काम में दखल देता है .. सबके साथ मिलकर काम क्यों नहीं करता ? वह प्रैक्टिकल होना क्यों नहीं चाहता ? सारी व्यवस्था ठीक करने का सारा ठेका उसका तो है नहीं ? उसके ऊपर भी लोग हैं .. मैनेजर को भी सब पता है | उसने शिकायत भी की थी पर उन्होंने चुप्पी साध रखी, कुछ नहीं किया, उससे एक बार चर्चा करने की भी जरूरत नहीं समझी .. अब दोबारा उससे कोई गलती हुई तो नौकरी गई | क्या मुँह लेकर जाएगा वापस घर ? पापा ने भी तीस साल नौकरी की है, उन्होंने भी सब कुछ सहा ही होगा पर नौकरी तो करते ही रहे न ? वह भी करेगा नौकरी ? अच्छे से करेगा, सबको साथ लेकर चलेगा वह .. किसी से कोई पंगा नहीं .. सबका दोस्त बन कर रहेगा वह .. 
दिनकर कई दिनों बाद रात में घूमते हुए प्लांट की ओर गया था उस दिन | सब अपने काम में व्यस्त थे | उसने सियाचरन को इशारे से बुलाया, कहा – “बहुत थकान सी लग रही है .. तुम चाय नहीं पिलाओगे आज”
सियाचरन अविश्वास से उसका मुँह ताकने लगा | कुछ देर में वह चाय बनाकर उसके चैंबर में ले आया | यह देख कर साबू के चेहरे पर मुस्कराहट तैर गई थी | सुबह कैंपस में फिर वही पुराने टैंकर दूध लेने आए थे | वह दूर खड़ा क्षितिज में धीरे-धीरे सूरज को ऊपर की ओर चढ़ते देख रहा था .. पर अंदर एक सूरज डूब रहा था | 
अरुण अर्णव खरे
24 मई 1956 को अजयगढ़, पन्ना (म.प्र.) में जन्म । भोपाल विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक । संप्रति मध्यप्रदेश शासन में मुख्य अभियंता पद पर कार्यरत रहते हुए सेवा निवृत |
साहित्य की सभी विधाओं में लेखन .. कहानी और व्यंग्य लेखन में देश भर में चर्चित नाम |  एक उपन्यास “कोचिंग@कोटा”, चार कहानी संग्रह – “भास्कर राव इंजीनियर”, “चार्ली चैप्लिन ने कहा था”, “पीले हाफ पैंट वाली लड़की” व “मेरी कहानियाँ” तथा चार व्यंग्य-संग्रह – “हैश, टैग और मैं”, “उफ्फ! ये एप के झमेले”, “एजी, ओजी, लोजी, इमोजी” और “मेरे प्रतिनिधि हास्य-व्यंग्य” सहित दो काव्य कृतियाँ – “मेरा चाँद और गुनगुनी धूप” तथा “रात अभी स्याह नहीं” प्रकाशित । दो दर्जन से अधिक संग्रहों में कहानी व व्यंग्य शामिल | इनके अतिरिक्त खेलों पर भी आठ पुस्तकें प्रकाशित । इंडिया टुडे, अहा जिंदगी, कथादेश, वागर्थ, कथाक्रम, नूतन कहानियाँ, कथा समवेत, रचना उत्सव, विभोम स्वर, विश्वगाथा, व्यंग्य यात्रा, अट्टहास, अक्षरा, गगनांचल, दैनिक भास्कर, अमर उजाला, जनसंदेश टाइम्स, जनसत्ता, ट्रिब्यून सहित देश की सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित | साहित्यिक उपलब्धियों के लिए कादम्बरी सम्मान (चार्ली चैप्लिन ने कहा था), जयपुर साहित्य संगीति सम्मान (पीले हाफ पैंट वाली लड़की), पं. कुंजीलाल दुबे स्मृति राष्ट्रीय पुरस्कार (उफ्फ! ये एप के झमेले), श्रीलाल व्यंग्य साहित्य सम्मान (मेरे प्रतिनिधि हास्य-व्यंग्य) तथा शिक्षाविद पृथ्वीनाथ भान सम्मान, जयपुर व साहित्य एवं व्यंग्य संस्थान सम्मान, रायपुर (कोचिंग@कोटा) सहित बीसाधिक पुरस्कार एवं सम्मान | आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी वार्ताओं का प्रसारण |
वर्ष 2017 में अमेरिका व 2018 में मॉरिशस में काव्यपाठ | वर्ष 2015 में भोपाल तथा 2018 में मॉरिशस में सम्पन्न 10वें व 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में प्रतिभागिता | मॉरिशस में “हिन्दी की सांस्कृतिक विरासत” विषय पर आलेख की प्रस्तुति |
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