प्रेम कहाँ गया इस धरती से
मैं ढूंढ रही हूँ उस पहले इंसान को
पागल बन कर
घर, गलियों, बस्ती और शहरों में या
कुछ उन इन्सानों में
जो प्रेम को जानते, समझतें और बूझते थे,
क्या प्रेम आज लोगों की ज़रूरत बन गया है
किन्ही ज़रूरी मुद्दों में, या
फिर उसकी गर्दन कहीं फँसी हुई , या कहीं लटकी हुई है
कुर्सी, नारे, वादे और कहीं गहरे स्याह तहख़ानों में,
सोचती रही हूँ, कि
आंदोलनों में घुस कर
राजनीति की कुर्सियों पर बैठ कर
कहीं प्रेम का अस्तित्व ज़मींदोज़ हो बैठा ..तो !
इस रंगीन, खूबसूरत प्रकृति में
बचा कर रखने की कोई दूसरी वस्तु ही  नहीं होगी,
प्रेम सिसक रहा है, झुलस रहा है, छाज रहा है
अपने अंग से टपकते बूँद-बूँद की उस लहू पर
जिसका रंग लाल नहीं
आज टीस में काला हो चला है,
रिश्तों में प्रेम व्यापार बन चुका है
जिस्मानी आदान -प्रदान का
जिस तरह जीतने पर सत्ता की कुर्सी से
ब्याह करता है एक राजनीतिज्ञ
बन जाती है सौत वो ही कुर्सी
घर में बैठी ब्याही बीबी की,
सोचती हूँ दो युगल प्रेमियों की शादी
प्रेम को जिलाए रखने के लिए होती है
या, फिर समाज के द्वारा दिए गये
चश्मदीद प्रमाण पत्र के आधार पर
नवेली ब्याहता से
बलात्कार करने का अधिकार,
रख देता है प्रथम मिलन में
ब्याहता के मुँह पर कसकर हाथ
थमीं रहें साँसें कुछ धीमी -धीमी
न पहुँचे बाहर सोते बूढ़े तक
उसकी उत्तेजनाओं की आवाज़
वो भी तब, जब आँखों में हज़ार सपने और
रोम-रोम में उड़ना चाहती हों तितलियाँ,
जिस रिश्ते में प्रेम का अंकुर फूटने से पहले ही
क्यों बसने लगती है सिर्फ़ चीत्कार,
देखो ! आज प्रेम मर-मर कर भी ज़िंदा है
अपने टूटे मनोबल और स्वार्थ से भरी
साँसों को लेकर
क्योंकि, कुचला गया प्रेम
दूसरों के कदमों में लिपट जाता है
खुद को बचाने की ख़ातिर,
ऐसा लग रहा है
आज प्रेम काग़ज़ों में जा बसा है
जिसमें न ख़ुश्बू है, न ही कोमलता भरी ताजगी
वो सिर्फ कागज है
उस पर प्रेम लिखा तो जा सकता है
सिर्फ़ काली या लाल स्याही से
पर जिया नहीं जाता
क्योंकि, वो लाल रंग की ऊर्जा रहित और
ओस की नर्म  पारदर्शी कोमलता रहित है ,
बचा लो इस प्रेम को
अगर बचा सकते हो तुम
वर्ना तैयार रहो एक उस जंगल को काटने के लिए
जिस जगह पर
हर मनुष्य के हाथों में कुल्हाड़ी या मशाल होगी
और तुम देख रहे होंगे आसमान में
उड़ते धुएँ के काले ग़ुब्बारों को
जिसके ज़िम्मेदार तुम ख़ुद होगे
कोई और नहीं,
सम्भावनाएँ कभी मरती नहीं हैं
चुनौतियों को स्वीकार करो और आगे बढ़ो
संघर्ष कभी हारा नही
यहाँ कद्र करो प्रेम की
क्या तुमने प्रेम जैसे पवित्र एहसास को
गिरवी रख दिया है, या
आचरण पर अपने कोई शंका है तुम्हें
देखो ! प्रेम कहीं पर मर रहा है
क्या हम प्रेम करना भूल गये हैं ..…??
शिक्षा - एम. ए. प्रकाशित पुस्तकें— चार काव्य संग्रह, दो कहानी संग्रह. संपर्क - kusum.paliwal@icloud.com

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