Saturday, July 27, 2024
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डॉ तबस्सुम जहां की लघुकथा – देवी अम्मी की जय

“भोली एक मुनिया दो लाडो तीन…छह सात। हैं रे मंगतू! ये तो सात छोरियां ही दीखे हैं। तैने तो कई ही नौ छोरियां आ रही हैंगी कलेवा जीमने। इंदु की सास ने चश्मे की आढ़ से घर आयी छोटी बच्चियां देख नौकर मंगतू से कहा।
   “माता जी दूबे जी का परिवार सोसायटी छोड़ कर चला गया है। उनकी दो बच्चियां कम हो गयी हैं। उनकी जगह खान साहब का परिवार आया है उनके भी दो छोटे बच्चे हैं। आप कहें तो उन्हें लिवा लाऊं।”    “
“हाँ हां क्यों नही। सुनो, उनको साफ बता देना कि हमारे यहां नवरात्रि कन्या पूजन है। जल्दी जा और दौड़ कर वापस आ।” इंदु ने मंगतू से कहा।
   बहू की बात सुनकर सास जमुना तनतना उठी। बोली- “हैं री बहुरिया! तू भी घनी बावरी हो रई हैगी। मुसलमानन के बच्चे देवी माता का भोग जीमेंगे? पूजापे में आवेंगे? बरत खोटा हो जावेगा तेरा-मेरा। देवी माँ खुस न होवेंगी।
  “कैसी बातें करती हैं माता जी! छोटे बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं भला उनसे भगवान कैसे खुश नही होगा। रही बात मुसलमान होने की, तो मान लीजिए उनका खुदा सच मे है तो हमे भी तो वे पाल रहा है। हमारी देवी सत्य है तो वे भी तो करोड़ों मुसलमानों को पाल रही है। बात सिर्फ इतनी- सी है कि एक परम शक्ति है जो समूची सृष्टी का पालन-पोषण करती है। हां, अलग अलग संस्कृति के लोग उसे अलग नामों से बुलाते है बस। जब ईश्वर पालने मे भेद नही करता तो हम मनुष्य कौन होते हैं भेद करने वाले।” इंदु ने तर्क दिया तो सास को आखिरकार हार माननी पड़ी वे बोलीं-
“ले भयी, बहुरिया! तू तो रेडुआ की तरियो ओन हो जावे है बस। जब देखो तब लेच्चर सुरु हो जावे है तेरा। सारा लेच्चर बस तू अपना हम पर गैरे है। वे मुसलमानन अपने बच्चे देवी माई के कन्या पूजापे में कभी न भेजेंगे। तू देख लीजो।”
  इससे पहले वह आगे कुछ कह पाती मंगतू के साथ खान साहब के दोनों बच्चे घर मे दाख़िल हुए। डरे सहमे से। दोनों बच्चे थोड़ा संकोच के साथ बाक़ी बच्चियों के साथ पंगत में बैठ गए। जमुना को अचरज तो हुआ पर सास बहु ने सभी बच्चों को प्यार से जिमाया और पैर छू कर आशीर्वाद लिया। अंत मे इंदु सबको 10 का नोट थमाते बोली- “देवी माता की जय। सब बच्चियां एक स्वर में “देवी माता की जय” बोल उठीं। इस दौरान आदिल और मरियम ख़ामोश रहे। केवल एक दूसरे को ताकते रहे। इंदु उनकी  मनः स्थिति को भांप गयी। वे दोनों के पास आयी और बोली। ‘बोलो बेटा- “अल्लाह की जय” सब एक स्वर में बोल उठे अल्लाह की जय। आदिल और मरियम जो अभी तक सहमे सहमे थे। वे मुस्कुरा उठे। आदिल तो कुछ ज़्यादा ही जोश में आ गया और कह उठा। “देवी अम्मी की जय” देवी माता की जगह देवी अम्मी शब्द सुन जमुना तो ठहाका लगा कर हंस पड़ी। हंसी रुकी तो नम आंखों से भीगे स्वर बोली- देखियो तो बालकन की बातें। देवी माता को ‘देवी अम्मी’ बताएं हैं। इंदु को लगा मानो आदिल और मरियम की खिलख़िलाहट में देवी माँ मुस्कुरा रही हैं। भोली, मुनिया और लाडो के होंठो से ख़ुदा हंस रहे हैं। सृष्टि के किसी कोने से परमशक्ति सब पर अपना आशीर्वाद बरसा रही है। सहसा जमुना फिर बोल उठी-“देवी अम्मी की जय।”
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