समृद्धि जैन की उम्र दस साल है और वे बर्लिन के ब्लूमन स्कूल में कक्षा चार की छात्रा हैं। रचनात्मक लेखन में उनकी अभिरुचि है। कोरोना के बाद की परिस्थितियों और उसकी नयी लहर को लेकर समृद्धि ने यह कविता लिखकर हमें भेजी तो हमें लगा कि इसे पुरवाई के पाठकों तक पहुँचना चाहिए। उम्र के हिसाब से समृद्धि के लेखन में बहुत गहरी संवेदना है, जो कि इस कविता में साफ़ देखा जा सकता है। समृद्धि को उज्जवल भविष्य की शुभकामनाओं के साथ उनकी यह कविता प्रस्तुत कर रहे हैं। – मॉडरेटर
बदल गई ये दुनिया सारी इस एक साल में।
फँस गए हम सब कैसे कोरोना के जाल में।
कोरोना का जाल ऐसा जो दिन दिन बढ़ता जाए।
एक वेव के बाद देखो दूसरी वेव फिर फिर आए।
काम धंधे ठप्प हो गए इस सारे जंजाल में।
बदल गई ये दुनिया सारी इस एक साल में।
स्कूल हमारे बंद हुए और घर में हुए हम क़ैद।
शुरू में तो आया मज़ा, पर अब हो गए हैं सैड।
दोस्तों से मिलना मुश्किल, खेलना कूदना बंद।
पढ़ाई का इतना नुक़सान, ऑनलाइन सारे प्रबंध।
मम्मी के कपड़े और मेक-अप को हो गई टेन्शन।
कपड़ों की हुई ऐसी तैसी, मास्क बने नया फ़ैशन।
मास्क बने नया फ़ैशन कि अब कौन चेहरा देखे।
सब भूल जाओ मगर जाना हर जगह मास्क लेके।
अपनी सेफ़्टी अपने हाथ, सिखाया इस बवाल ने।
बदल गई ये दुनिया सारी इस एक साल में।
Amazing!
अति उत्तम!
Bahut Badiya