होम कविता डॉ. तारा सिंह अंशुल की कविता – यहाँ स्वार्थ का फेरा है कविता डॉ. तारा सिंह अंशुल की कविता – यहाँ स्वार्थ का फेरा है द्वारा डॉ. तारा सिंह अंशुल - April 25, 2021 135 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet ख़ामोशी पसरी दिलों पर अजनबीयत का डेरा है सच्चे हमदम हमराज़ कहां यहाँ स्वार्थ का फेरा है रही नहीं खुद्दारी अब तो गद्दारी का आया पहर है यूं हरे-भरे सावन को अब सैलाबी तूफ़ां का डर है हुकूमत जनहित में है तो जन-गण-मन में सवेरा है खामोशी पसरी दिलों पे अजनबीयत का ये डेरा है धरा के सीने पर हरओर ज़हरीली हवा का मेहर है बोलबाला है बेईमानों का गिरता ईमान पे क़हर है खो गए कहीँ मानवीय मूल्य इन्हें कोई कब हेरा है सच्चे हमदम हमराज़ कहां यहां स्वार्थ का फेरा है वो रौनक कहां है गुलशन में क्यों आती नहीं बहारें लोग हुए हैं शहरी बाबू घर बाग बगीचे कौन सवांरे विश्वास मे लेकर दे प्यार में धोखा हरओर अंधेरा है सच्चे हमदम हमराज़ कहां हैं यहां स्वार्थ का फेरा है बारहों महीने ख़िजा का मौसम लेता रहे अंगड़ाई बेलगाम हसरतें हुई जन-जीवन में आयी रुसवाई सब कुछ छोड़ जाना यहीं है पर लोग कहें ये मेरा है सच्चे हमदम हमराज़ कहां हैं यहां स्वार्थ का फेरा है तिकड़मी राजनीति में जिसकी है लाठी उसकी भैंस जो नाचे गाये तोड़े तान जहाँ में हैं बढ़ते उसके फैंस जो यूं ही होता है उत्पन्न उसको लोग कहें लमेरा है सच्चे हमदम हमराज़ कहाँ हैं यहां स्वार्थ का फेरा है संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं मनवीन कौर की कविता – मेरे पापा हरदीप सबरवाल की चार कविताएँ अनीता रवि की कविता – मैं पांचाली नहीं Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.