Sunday, October 6, 2024
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अलका ‘सोनी’ की कविता – कहने की कोशिश की है

कितनी बार
इस धरती ने
चिलचिलाती धूप से जलकर
हमसे कहने की
कोशिश की है,
नदियों के सूखते
जल ने भी
आंसू बहाकर हमसे
अपने फफोलों को
दिखाने की कोशिश की है,
सावन-भादो के
बादलों की कम होती
गर्जना की ओर भी
कभी ध्यान देने की
गरज़ नहीं की हमने
क्यों…..
अपनी धुन में मस्त
अंधाधुंध काटते ही
चले गए जंगलों को
नंगे होते पहाड़ों के
साथ ही नंगी
होती गयी मानवता
भूल गए हम कि
यह धरती जिसे माँ
कह कर बुलाते रहे हैं
वह केवल हमारी नहीं है
इस पर अधिकार है
इन पेड़ों, जंगलों औऱ
कल-कल बहती नदियों का
उमड़ते -घुमड़ते बादलों का
हरी भरी घासों का भी
ये सब मिलकर ही इस
धरती को बनाते हैं
सुंदर और नैसर्गिक
जहां जन्म लेता है
किलकारियां लेता मानव।
अलका सोनी
अलका सोनी
लेखिका व कवयित्री। भारत के अनेक बड़े समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, कादम्बिनी पत्रिका, नेपाल व अमेरिका के समाचार पत्र में रचनाओं का प्रकाशन। संपर्क - [email protected]
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