Friday, October 11, 2024
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नवीन कुमार जोशी की दो कविताएँ

1 – महामारी ऐसी चल रही है
महामारी ऐसी चल रही है।
इंसानियत मरती जल रही है
मिलते नहीं एक दूसरे से लोग
लग ना जाए कहीं कोई रोग
बस संकट के दौर की बेबसी खल रही है।
महामारी ऐसी चल रही है।
इधर चिताएं भभक रही है
उधर प्राणवायु कम रही है
बस अपनों से मिले बगैर जिंदगी मचल रही है।
महामारी ऐसी चल रही है।
बेबस, लाचार, भटका मजदूर
नहीं हुआ संकट से दूर
बस मजदूरी से जीने की एक उम्मीद मचल रही है।
महामारी ऐसी चल रही है।
शमशान गुलज़ार हो रहे है
दवाखाने भी कम लग रहे है
बस संकट के दौर की भयावह तस्वीर बदल रही है।
महामारी ऐसी चल रही है।
2 – हमें किधर को जाना है
हमें किधर को जाना है
हमें किधर को जाना है।
बाहर निकल कर, सब से मिलकर
खुद को खुद से संक्रमित कर
क्या यही स्नेह बढ़ाना है।
हमें किधर को जाना है..।
ऐसे भी क्या काम हुए है
जीवन से अनजान हुए है
राह पकड़ कर भेड़ों की
जीवन से परेशान हुए है
बस हर जन को यह समझाना है।
हमें किधर को जाना है।
पैसे, प्रतिष्ठा और व्यवहार
बचेगी जिंदगी तो रहेंगे हजार
हमें अनमोल जिंदगी को व्यर्थ ना गंवाना है।
हमें किधर को जाना है।
अपनों को समझा कर के
पूर्ण मनोबल बातें करके
महामारी को हराना है।
हमें किधर को जाना है
हमें किधर को जाना है।
नवीन कुमार जोशी
नवीन कुमार जोशी
शोधार्थी, हिंदी विभाग राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर संपर्क- +917737626466 ईमेल- [email protected]
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